view all

लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश में क्षेत्रीय पार्टियां

राज्यो में बीजेपी विरोधी गठबंधन बनाने की तैयारी तो हो रही है लेकिन ऐसे गठबंधन को लेकर की पेंच कई हैं

Amitesh

मध्यप्रदेश के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष गौरीशंकर यादव ने मीडिया से बातचीत में यह कहा कि अगर कांग्रेस प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करती है, तो अगले विधानसभा चुनाव में एसपी सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी.

मध्यप्रदेश में एसपी का कोई खास जनाधार नहीं है. ऐसे में उसके प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से इस तरह का बयान देने का क्या मतलब है? आखिर क्या कारण है कि समाजवादी पार्टी मध्यप्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस से सौदा करने की कोशिश कर रही है. इस बयान के कई मायने हैं. अभी विधानसभा चुनाव के बाद असल तैयारी लोकसभा चुनाव की चल रही है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अभी से ही अपनी रणनीति को अंजाम देने में लगे हैं.


एसपी का भले ही मध्यप्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं है. वहां लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस ही रही है. फिर भी कांग्रेस से सीटों को लेकर तालमेल करने की बात करना और कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने की धमकी देना उस सियासी चाल को दिखाता है, जिसको वो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के वक्त यूपी में करना चाहती है.

क्योंकि आज की तारीख में कांग्रेस का यूपी में जनाधार बेहद कमजोर है. बीजेपी सत्ता में है. लेकिन, पांच साल सरकार चलाने के बाद अब समाजवादी पार्टी विपक्ष में है. बीएसपी भी महज 19 सीटों पर विधानसभा में सिमट चुकी है, फिर भी मायावती के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता. मायावती का प्रभाव हर हाल में कांग्रेस से ज्यादा है. ऐसे में यूपी के भीतर कांग्रेस इस वक्त बिना किसी प्रतिस्पर्द्धा के चौथे स्थान पर साफ-साफ दिख रही है.

यूपी कांग्रेस में भी गठबंधन को लेकर एसपी-बीएसपी का दबाव

जब भी यूपी में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की बात हो रही है, तो एसपी-बीएसपी-आरएलडी के साथ कांग्रेस का भी नाम आता है. ऐसे में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के वक्त कांग्रेस को उसकी ताकत के मुताबिक ही सीट देने की बात होगी. यही वजह है कि पहले से ही कांग्रेस के ऊपर एसपी-बीएसपी जैसे दल की तरफ से दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है.

ये भी पढ़ें: NOTA पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, चुनाव आयोग के अधिकारों पर कैंची

यूपी में महागठबंधन बनाने को लेकर एसपी की तरफ से बीएसपी और आरएलडी को साथ लाने को लेकर तो सहमति दिखती है लेकिन, कांग्रेस को साथ लेने में एसपी की तरफ से कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखती है. यह वही एसपी है जिसके मुखिया अखिलेश यादव पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे. उस वक्त राहुल-अखिलेश की जोड़ी की तरफ से मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती दी गई थी.

लेकिन, उस वक्त यूपी के लड़कों (अखिलेश-राहुल) की जोड़ी का जादू फीका पड़ गया था. विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस से हाथ मिलाने की अखिलेश की कोशिश को राजनीतिक भूल माना गया था. क्योंकि जिन सीटों पर कांग्रेस चुनाव मैदान में थी, वहां किसी तरह का कोई मुकाबला जमीन पर दिख भी नहीं रहा था. कांग्रेस का कम जनाधार और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जमीन पर उतना ताकतवर और सक्रिय न होना भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सफाए का कारण बना. सही मायने में एसपी को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का कोई फायदा नहीं मिल पाया.

अब एसपी इस बात को समझ रही है, जिसके कारण यूपी में कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव के वक्त गठबंधन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. अगर गठबंधन में कांग्रेस शामिल होती भी है तो उसे बेहद कम सीटों पर ही मानना होगा.

मध्यप्रदेश में कुछ यही हाल एसपी का है. लिहाजा, एसपी को मालूम है कि कांग्रेस उसे ज्यादा भाव नहीं देने वाली. कांग्रेस मध्यप्रदेश में अगर एसपी को सीट नहीं देती है, तो फिर उसी का हवाला देकर यूपी में भी एसपी की तरफ से भी कांग्रेस को ऐसा ही जवाब दिया जाएगा. एसपी की तरफ से पहले से ही इस तरह दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है.

राज्यों में बीजेपी विरोधी गठबंधन को लेकर कई पेंच

कुछ ऐसा ही हाल बीएसपी का भी है. बीएसपी की तरफ से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों प्रदेशों में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की शर्त रखी गई है. बीएसपी ने कांग्रेस को साफ कर दिया है कि अगर उसके साथ गठबंधन होगा तो तीनों ही राज्यों में वरना नहीं होगा.

ये भी पढ़ें: वाजपेयी के अनसुने किस्से (पार्ट-3): नरेंद्र मोदी कैसे अपने गुरु की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं

दरअसल, कांग्रेस मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में बीएसपी के साथ गठबंधन तो चाहती है, लेकिन, राजस्थान में नहीं. क्योंकि उसे लगता है कि राजस्थान में वो अपने दम पर बीजेपी को चुनौती दे सकती है. दूसरी तरफ, मध्यप्रदेश में बीएसपी का जनाधार है. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि उसे चार विधायक भी चुनाव जीतकर पहुंचे थे.

ऐसे में कांग्रेस दलित वोटों को साध कर बीजेपी विरोधी वोटों के बंटवारे रोकने के लिए बीएसपी के साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही गठबंधन करना चाहती है. बीएसपी की तरफ से भी दबाव बनाने की कोशिश हो रही है. एसपी के मध्यप्रदेश अध्यक्ष ने यह बयान देकर कांग्रेस पर दबाव और बढ़ा दिया है कि उसकी बात बीएसपी से भी चल रही है.

कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ मायावती

दरअसल, पहले भी ऐसा होता रहा है जब कई राज्यों में साथ-साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कुछ राज्यों में एक-दूसरे के विरोध में भी पार्टियां चुनाव लड़ती रही  है. मसलन, बीजेपी के साथ जेडीयू का बिहार में गठबंधन काफी लंबे वक्त से है. (बीच में 2013 से 2017 तक जेडीयू अलग हो गई थी), फिर भी, जेडीयू का केवल बिहार में ही बीजेपी के साथ गठबंधन रहता है, लेकिन, जेडीयू बिहार से बाहर कर्नाटक, गुजरात जैसे राज्यों में अकेले चुनाव लड़ती रही है.

इसके अलावा बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना पहले भी जब बीजेपी के साथ रिश्ते बेहतर थे. महाराष्ट्र में गठबंधन होने और साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कई दूसरे प्रदेशों में अकेले चुनाव लड़ती थी. इससे न ही गठबंधन पर असर पड़ता था और न ही बीजेपी को कोई नुकसान ही होता था, क्योंकि सहयोगी दलों का जनाधार दूसरे प्रदेशों में बेहद कमजोर था और बजेपी मजबूत हालत में थी.

लेकिन, कांग्रेस के लिए इस वक्त हालात वैसे नहीं हैं. कांग्रेस केंद्र में भी कमजोर हालत में है और कई राज्यों में भी उसकी हालत वैसी नहीं है. लिहाजा, उससे उसके सहयोगी और संभावित सहयोगी अपने हिसाब से बारगेनिंग करने में लगे हैं. एसपी की तरफ से दिया गया बयान उसी बारगेनिंग की रणनीति को दिखा रहा है, जिसके दम पर लोकसभा चुनाव के वक्त यूपी में एसपी की तरफ से कांग्रेस पर दबाव बनाया जाएगा.