view all

राज्यसभा उपसभापति चुनाव: सीटों की गणित में फंसा पेंच

राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव को लेकर सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है

Aparna Dwivedi

भारतीय संसद के उच्च सदन के उपसभापति की जगह खाली है और फिलहाल उस जगह को भरने की संभावना दिख नहीं रही है. वर्तमान उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो चुका है और उनकी चगह नए उपसभापति की चयन प्रक्रिया संसद के आगामी सत्र के बीच में होनी है. लेकिन समस्या ये है कि इस सदन में सत्तारूढ़ दल बीजेपी के पास बहुमत नहीं है और ना ही विपक्षी दलों के पास सही आंकड़े हैं.

यही वजह है कि उपसभापति के चयन को लेकर मामला फंसा हुआ है. कांग्रेस नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल जब समाप्त हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें दोबारा मनोनीत नहीं किया है. बीजेपी की कोशिश है कि उच्च सदन का उपसभापति उनकी पार्टी का हो. लेकिन दोनों ही दलों को पास बहुमत नहीं है और यही वजह से वो पार्टी के किसी सदस्य के नाम को आगे नहीं कर पा रहे हैं. आमतौर से उपसभापति के कार्यकाल समाप्त होने के बाद आगामी संसद सत्र में चुनाव करा दिया जाता है. फिलहाल मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू होकर 10 अगस्त तक चलेगा.


भारत में संसद के दो सदन होते हैं, एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा. लोकसभा के सदस्यों को जनता मतदान करके चुनती है जबकि राज्यसभा के सदस्यों को राज्यों के चुने गए विधायक निर्वाचित करते हैं. ऐसे में राष्ट्रीय कानूनों और बिल में राज्यों की भी अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी बन जाती है.

राज्यसभा का उपसभापति

राज्यसभा की अध्यक्षता देश के उपराष्ट्रपति करते हैं. अभी वैंकेय्या नायडू उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के अध्यक्ष हैं. उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य मिलकर करते हैं. अध्यक्ष ही सभापति होते हैं और एक उपसभापति भी होते हैं, जिसे राज्यसभा के सदस्य मिलकर चुनते हैं.

यह भी पढ़ें: 2019 में एकजुट विपक्ष: मोदी के सामने 'महागठबंधन' सिर्फ सपना बनकर न रह जाए

सभापति के ना होने पर उपसभापतिराज्यसभा का कार्यभार संभालते हैं. अध्यक्ष या उपसभापति सदन की अध्यक्षता करता है, उसका काम नियमों के हिसाब से सदन को चलाना होता है. किसी भी बिल को पास कराने के लिए वोटिंग हो रही है तो उसकी देखरेख भी ये ही करते हैं. ये किसी भी राजनीतिक पार्टी का पक्ष नहीं ले सकते हैं. सदन में हंगामा होने या किसी भी और कारण से सदन को स्थगित करने का हक अध्यक्ष या उपसभापति को ही होता है. किसी सदस्य के इस्तीफा को मंज़ूर या नामंज़ूर करने का अधिकार अध्यक्ष का उपसभापति को ही होता है. नामंज़ूर करने की स्थिति में वो सदस्य सदन से इस्तीफा नहीं दे सकता है.

राज्यसभा में संख्या का गणित

राज्यसभा में 67 सांसदों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बदले हालात में तेलगु देशम पार्टी का उससे नाता तोड़ने और शिव सेना के साथ रिश्ते खराब होने के बाद बीजेपी के लिए उपसभापति पद के चुनाव का सामना कर पाना आसान नहीं रह गया.

कांग्रेस पार्टी की सदस्य संख्या 51 रह गई है. लेकिन विपक्षी एकता के बदले हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी 6, डीएमके के 4, बीएसपी के 4, एनसीपी के 4 सीपीएम के 4, सीपीआई के 1 और अन्य गैर बीजेपी पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे बीजेपी पर भारी पड़ रहे हैं. हालांकि 13 सदस्यों वाली एआईएडीएमके बीजेपी के साथ जाएगी. ऐसे आसार हैं लेकिन 9 सदस्यों वाला बीजू जनतादल और शिव सेना समेत कुछ और दल अगर तटस्थता बनाए रखते हैं तो इससे विपक्षी पलड़ा भारी होना तय है.

अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवार ही राज्यसभा के उपसभापति बनते थे. सिर्फ एक बार ये पद विपक्षी दल के पास गया था. अभी पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक यह पद उसी के पास रहा है.

लेकिन बीजेपी की कोशिश है कि इस बार उपसभापति का पद उनकी पार्टी के पास जाए. बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस पद पर बीजेपी का उम्मीदवार का चयन चाहते हैं. उपसभापति के चुनाव के मुद्दे पर दोनों पार्टियों में बैठकों का दौर जारी है. हाल फिलहाल राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली के घर पर इस मुद्दे को लेकर बैठक भी बुलाई गई, जिसमें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित वरिष्ठ नेताओं ने भी शिरकत की.

यह भी पढ़ें: अब आठवीं अनुसूची की सभी 22 भाषाओं में बोल सकेंगे राज्यसभा सांसद

इसी बैठक में सुझाव आया कि एनडीए के किसी घटक दल से उपसभापति का नाम आगे किया जाए और उसपर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाए. हालांकि शिरोमणि अकाली दल के सदस्य नरेश गुजराल के नाम पर चर्चा की गई. मगर उनके नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाई है.

वहीं कांग्रेस की तरफ से केरल से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीसी चाको का नाम उछला है. कांग्रेस का कहना है कि पीसी चाको से ज्यादा अनुभवी उम्मीदवार विपक्ष में नहीं हैं. चाको पहले भी राज्यसभा पैनल के सदस्य रहे हैं. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वे टूजी घोटाले की जांच के लिए बनी संसदीय समिति के चेयरमैन रहे चुके हैं. इस बात के संकेत हैं कि राहुल गांधी उन्हें उपसभापति पद का दावेदार बनाने के लिए उन्हें केरल से पार्टी की ओर से राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दें.

21 जून को केरल की तीन राज्यसभा पर चुनाव होना है इनमें पीजे कुरियन भी शामिल हैं जो सदस्यता से रिटायर हो जाएंगे. 140 सदस्यों वाली केरल विधानसभा में केरल में मौजूदा समीकरणों के हिसाब से 22 सदस्यों वाली विपक्षी कांग्रेस पार्टी आईयूएमएल, केरल कांग्रेस (मणि) और केरल कांग्रेस (जे) के साथ मिलकर एक ही सदस्य को राज्यसभा में भेज सकती है.

क्यों टल सकता है उपसभापति का चुनाव?

सूत्रों का कहना है कि अगर एनडीए संख्याबल जुटाने में विफल रहता है, तो चुनाव को अगले शीतकालीन सत्र के लिए टाला जाए जा सकता है. हालांकि विपक्ष सत्र की शुरूआत में ही नए उपसभापति के चुनाव की मांग उठा सकता है.

चुनाव को अगले सत्र के लिए टालने के पीछे बीजेपी की दलील है कि संविधान में भी नए उपसभापति के चुनाव को लेकर कोई तय समय सीमा नहीं है. यह उपराष्ट्रपति यानी सभापति के विवेक पर निर्भर करता है. सूत्रों का कहना है कि यूपीए दौर में डा. रहमान खान के अवकाश प्राप्त करने के चार महीने बाद चुनाव हुआ था. खान दो अप्रैल को रिटायर हुए थे, लेकिन चुनाव के लिए मानसून सत्र का इंतजार किया गया था. उस समय 8 अगस्त को सत्र बुलाया गया था और उपसभापति का चुनाव 21 अगस्त को हुआ था.

यह भी पढ़ें: जानिए कौन हैं वो चार लोग जिन्हें राष्ट्रपति ने किया राज्यसभा के लिए नामित

लोकसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में हर संसद और राज्य के हर चुनाव को सरकार की कार्यशैली और कूटनीति की परीक्षा के रूप में देखा जाता है. एक तरफ सबकी नजर इस पर है कि क्या बीजेपी अपनी सहयोगी पार्टियों को मना पाएगी या उनके सामने झुकेगी वहीं दूसरी तरफ विपक्षी एकता के दावे की भी परीक्षा है. क्या कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के लिए ये पद छोड़ देगी और सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ देगी. मामला यहीं पर अटका है. राज्यसभा में सीटों का गणित किसी के भी पक्ष में नहीं है इसलिए पेंच फंसा हुआ है.

(लेखिका वरिष्ठ और स्वतंत्र पत्रकार हैं)