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Rajasthan: आसान नहीं CM चुनने का फैसला, गहलोत और पायलट के बीच जारी शह और मात का खेल

मुख्यमंत्री पद के दोनों दावेदारों, अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से कोई भी इस पद से कम कुछ भी मंजूर करने को तैयार नहीं है. दोनों तरफ से शह और मात के तमाम दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं

Mahendra Saini

कांग्रेस को वोटों के लिए बीजेपी से लोहा लेने में जितने पसीने नहीं आए, उससे कहीं ज्यादा अब जीते विधायकों का नेता चुनने में आ रहे हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मतदाताओं ने बीजेपी को बेदखल कर कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाया, लेकिन तीनों ही जगह कांग्रेसी कलह खुलकर सामने आ रही है. फिलहाल हम राजस्थान की ही बात करें तो 11 दिसंबर को काउंटिंग के बाद से ही यहां माहौल एकदम गरम है.

माहौल की गर्मी का एहसास इसी से लगाया जा सकता है कि बुधवार को पूरे दिन कांग्रेस दफ्तर के बाहर गहलोत और पायलट समर्थक जिंदाबाद-मुर्दाबाद का नारा लगाते रहे. कई बार ये समर्थक इतने उग्र हो गए कि बड़े नेताओं को बाहर आकर दखल देना पड़ा. दफ्तर के बाहर पुलिस का भारी बंदोबस्त लगाना पड़ा. दोनों गुटों के बीच में बैरीकेडिंग लगानी पड़ी. पायलट के एक समर्थक ने तो खून से राहुल गांधी को चिट्ठी लिखने का दावा कर दिया.


पार्टी ने सरकार बनाने का दावा करने के लिए राज्यपाल से समय ले लिया. लेकिन मुख्यमंत्री के नाम का फैसला न हो पाने की वजह से राजभवन जाने का समय निर्धारित नहीं किया जा सका. राज्यपाल ने कांग्रेस को रात 8 बजे तक आ जाने की मोहलत दे दी. 8 बजे तक भी जब नेता का नाम तय नहीं हुआ तो पार्टी ने राज्यपाल से औपचारिक भेंट की. मुलाकात के लिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों ही नेता पहुंचे.

ठिठुरते बुधवार को गरम रहा माहौल

बुधवार को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री चुनने की आधिकारिक कवायद शुरू की. सुबह 10 बजे ही जीते विधायकों को पार्टी मुख्यालय बुला लिया गया. पर्यवेक्षक वेणुगोपाल विधायक दल का नेता चुनने के लिए खास तौर पर दिल्ली से आए. एक-एक विधायक से व्यक्तिगत फीडबैक लिया गया. शाम तक ये कवायद चलती रही. लेकिन नतीजा वही रहा जैसा कांग्रेस में आम तौर पर होता आया है. यानी फैसला आलाकमान पर छोड़ दिया गया. हालांकि पार्टी प्रभारी अविनाश पांडेय ने दिन में ऐलान किया था कि शाम तक मुख्यमंत्री तय कर लिया जाएगा.

मुख्यमंत्री पद के दोनों दावेदारों, अशोक गहलोत और सचिन पायलट में से कोई भी इस पद से कम कुछ भी मंजूर करने को तैयार नहीं है. दोनों तरफ से शह और मात के तमाम दांव-पेंच आजमाए जा रहे हैं. पूर्ण बहुमत की सीमारेखा पर पहुंचने से पहले रुकी पार्टी के लिए गहलोत गुट ने ऑक्सीजन सप्लाई का फॉर्मूला होने का दावा किया. गहलोत गुट ने कहा कि वे बागियों की वापसी कराने और 5 साल बिना किसी व्यवधान के सरकार चलाने का सामर्थ्य रखते हैं.

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दूसरी ओर, पायलट गुट ने भी इस युद्ध को जीवन-मरण का प्रश्न बना रखा है. गहलोत के बहुमत दिलाने के दावे को काटने के लिए पायलट गुट ने बीएसपी विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा का वीडियो वायरल कराया. इस वीडियो में गुढ़ा दावा कर रहे हैं कि न सिर्फ वे बल्कि दूसरे कई निर्दलीयों का समर्थन भी वे कांग्रेस को दे देंगे, अगर पायलट सीएम बनते हैं.

विधायकों की राय पर्ची पर, जनता की 'शक्ति' पर

अंदरखाने से जो खबरें छन-छन कर निकल रही हैं, उनके मुताबिक कांग्रेस के सीनियर विधायक गहलोत के समर्थन में एकजुट हैं. पायलट की कम उम्र के चलते ये लोग उन्हें नेता चुनने से हिचक रहे हैं. इसके अलावा पायलट पर अपनी गुर्जर जाति के समर्थन में जातिवाद और बाहरी होने का तमगा भी लगा है. इसके उलट, गहलोत इस समय राजस्थान की सर्व जातियों के सर्वमान्य नेता की छवि रखते हैं. लोकसभा चुनाव-2019 में उनका अनुभव फायदा भी दिला सकता है.

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कई विधायक ऐसे भी हैं जो गहलोत को सीएम पद पर चाहते हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर ऐसा कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें डर है कि अगर सत्ता गहलोत को नहीं मिल नहीं पाई तो अगले 5 साल तक वे बर्फ में लगाए जा सकते हैं. इसीलिए एक-एक विधायक से पर्ची पर उनके पसंदीदा नेता का नाम लिया गया.

उधर, कांग्रेस के ड्रीम प्रोजेक्ट शक्ति एप से जुड़े लोगों से भी रायशुमारी की गई. इस एप से करीब 9 लाख लोग जुड़े हुए हैं. एप यूजर्स के पास राहुल गांधी की रिकॉर्डेड कॉल आई जिसमें उन्होंने जीत के लिए धन्यवाद देते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए राय मांगी. कॉल में दावा किया गया कि ये नाम सिर्फ राहुल गांधी ही जान पाएंगे और कोई नहीं.

फाइल फोटो

दिल्ली के 'विशेषाधिकार' पर खफ़ा भरतपुर के राजा

भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और डीग-कुम्हेर विधायक विश्वेंद्र सिंह मुख्यमंत्री पद का फैसला आलाकमान के हिस्से छोड़ने पर गुस्सा हो गए. विश्वेंद्र ने कहा कि जब सब कुछ दिल्ली को ही तय करना है तो उनकी विधायकी का औचित्य क्या है. विश्वेंद्र ने तंज कसा कि फैसला नहीं कर पा रहे हैं तो टॉस कर लें. आखिरकार, विधायकों की रायशुमारी पर सवालिया निशान लगाते हुए वे बैठक से चले गए.

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विश्वेंद्र सिंह सचिन पायलट के गुट के माने जाते हैं. कांग्रेस की एक बैठक में उन्होंने सभी नेताओं से हाथ उठवाकर पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की सौगंध भी दिलाई थी. इसके बाद भयंकर बवाल हुआ था. हालात ऐसे बन गए थे कि तब के राजस्थान प्रभारी गुरुदास कामत को राजनीति छोड़ने तक का ऐलान करना पड़ा था. हालांकि, बाद में सोनिया गांधी के दखल पर उन्होंने अपना इस्तीफा तो वापस ले लिया, लेकिन उन्हें राजस्थान से बाहर कर दिया गया.

बहरहाल, दिल्ली से गुरुवार को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान होने की पूरी संभावना है. पार्टी प्रभारी अविनाश पांडेय ने सभी विधायकों को अगले 2 दिन जयपुर मे ही रुकने का मैसेज किया है. विधायकों के लिए एक होटल के 70 कमरे बुक किए गए हैं. हालांकि मुख्यमंत्रियों के नाम आलाकमान की तरफ से तय किए जाने की कांग्रेस में पुरानी परंपरा है. 70 और 80 के दशक में वो भी समय था जब रातोंरात मुख्यमंत्री बदल दिया जाता था. लेकिन लोकतांत्रिक सिद्धांतों का तकाजा है कि मुख्यमंत्री का नाम तय करने में पारदर्शिता और चुने हुए विधायक दल की राय को तवज्जो मिले.