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स्लॉग ओवर में पहला छक्का लगा है तो बाकी पांच गेंदों पर क्या होगा?

सियासत के मैदान में गरीबों को आरक्षण देने वाला फैसला पहला छक्का है. चुनावी ओवर में अभी ऐसे ही कई ‘छक्के’ बरसने वाले हैं.

Kinshuk Praval

सियासत के मैदान में गरीबों को आरक्षण देने वाला फैसला पहला छक्का है. चुनावी ओवर में अभी ऐसे ही कई ‘छक्के’ बरसने वाले हैं. दरअसल, ऐसा खुद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ही राज्यसभा में कह रहे हैं कि जब मैच क्लोज होता है तो छक्का लगता है और यह पहला छक्का नहीं है, और भी छक्के आने वाले हैं.

तो क्या माना जाए कि मोदी सरकार की तरफ से ‘अच्छे दिनों’ की शुरुआत हो चुकी है और ओवर की पहली गेंद पर सीधे बॉलर यानी विपक्ष के सिर से छक्का मारने के बाद अगली पांच गेंदों पर चुनावी स्टेडियम में 100 मीटर से ऊंचे छक्के दिखाई पड़ेंगे?


चार साल पहले जब रेल-किराया बढ़ा तो सियासी हाहाकार मचा. मोदी सरकार के फैसले को विपक्ष ने आड़ हाथों लिया. तब केंद्र सरकार ने सफाई दी कि रेल घाटे को पूरा करने के लिए दिल पर पत्थर रखकर किराया बढ़ाने का फैसला लेना पड़ा. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि इलाज के लिए कड़वी गोली देनी ही पड़ती है.

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अब सूरत बदली-बदली सी नजर आ रही है. कड़वी दवा के इलाज के बाद अब फैसलों के रूप में वो दवा दी जा रही है जो जनता में एनर्जी बूस्टर का काम करे. तभी रविशंकर प्रसाद ने कहा कि स्लॉग ओवर में विकास और बदलाव के लिए ऐसे छक्के यानी फैसले आएंगे और चुनावों में एनडीए को भारी बहुमत दोबारा मिलेगा. क्या माना जाए कि मैच यानी लोकसभा जीतने के लिए ऐसे छक्के यानी ऐसे बड़े फैसलों का दौर शुरू हो चुका है?

दरअसल, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10% आरक्षण से जुड़े संविधान संशोधन विधेयक की टाइमिंग को लेकर सरकार की मंशा पर सियासी सवाल उठे. विपक्ष ने सवाल उठाया कि संसद के आखिरी शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन ही इस विधेयक को लाने के पीछे सरकार की मंशा ईमानदार नहीं बल्कि चुनावी लगती है.

इसका एक सीधा जवाब भी हो सकता है. राजनीतिक दल और सरकारें जो भी लोकलुभावन फैसला लेती हैं उसके पीछे क्या चुनाव हारने की मंशा होती है? जाहिर तौर पर चुनाव जीतने के लिए ही तमाम योजनाओं का रैलियों से लेकर घोषणा-पत्र के जरिए बखान होता है. तीन राज्यों में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में मिली जीत के पीछे मोदी सरकार से किसानों की नाराजगी नहीं बल्कि कांग्रेस की किसानों से कर्जमाफी का वादा बड़ी वजह माना जाता है. ऐसे में किसानों की कर्जमाफी चुनाव जीतने के लिए ही की गई या नहीं?

हर सरकार अपने कार्यकाल में हुए विकास और दूसरी योजनाओं की उपलब्धियों को लेकर चुनाव मैदान में जाती है तो विपक्ष सरकार के अधूरे कामों और असफलताओं के पुलिंदों को सबूत बना कर मैदान में ताल ठोंकता है. ऐसे में आर्थिक तौर पर अगड़ी जातियों के कमजोर लोगों को आरक्षण का फैसले पर सियासी सवाल उठाने की वजह बेमानी लगती है.

क्या इस देश में सिर्फ आरक्षण की राजनीति के दम पर ही क्षेत्रीय दलों ने अपना क्षत्रप स्थापित नहीं किया है? ऐसे में मोदी सरकार को आरक्षण पर घेरने की विपक्ष की कवायद खुद विपक्ष की हताशा का परिचय है. बड़ी बात ये है कि मोदी सरकार ने इस बड़े फैसले को लेने का जोखिम उठाया और संसद में बिल पास कराकर बढ़त भी हासिल कर ली. इतिहास अब पीएम मोदी को इसलिए भी याद रखेगा कि उन्होंने बिना एससी-एसटी कोटे में छेड़छाड़ किए आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने का काम किया.

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जाहिर तौर पर लोकसभा चुनाव देश की सियासी टीमों के लिए ‘वर्ल्ड-कप’ से कम नहीं है. यहां सभी सियासी टीमों को जीत के लिए 272 रनों यानी सीट का टारगेट मिला है. एक-एक रन यानी एक-एक सीट बेहद महत्वपूर्ण है.

बीजेपी इस बार भी सत्ता का कप जीतना चाहती है. मैच के पहले ओवर में आरक्षण का छक्का मारने के बाद अब अगली पांच गेंदों में मिड ऑफ पर युवा बेरोजगारों के लिए युनिवर्सल बेसिक इंकम का छक्का जड़ा जा सकता है तो कवर पर किसानों के लिए हर महीने 4 हजार रुपए का छक्का भी मारा जा सकता है. बीजेपी की टीम को इस वक्त चुनाव की पिच बल्लेबाजी के लिए माकूल नजर आ रही है.

विपक्ष की बॉलिंग कभी धारदार दिखाई देती है तो कभी कप्तानी के सवाल पर बिखरी और लय खोती दिखाई देती है. विरोधी टीम में मोदी एंड टीम के खिलाफ फील्डिंग सेट करने को लेकर भी एकता दिखाई नहीं देती. केसीआर, ममता बनर्जी और मायावती जैसे दिग्गज खिलाड़ियों से चुनावी मैदान में राहुल की कप्तानी में फील्डिंग कराना आसान नहीं दिखाई देता है.

इतने सारे विरोधाभास की ही वजह से ‘टीम-मोदी’ के हौसले बुलंद हैं और अब जबकि लोकलुभावन घोषणाएं ही राजनीति का चरित्र बनती जा रही हैं तो फिर ये तो पहला ही छक्का है.

ऐसे में विरोधियों को टाइमिंग पर सवाल उठा कर गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण पर अपनी भीतरी मंशा जाहिर नहीं करनी चाहिए. बल्कि उन्हें ये जवाब तलाशना चाहिए कि जब साल 2010 में यूपीए की सरकार के समय आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने का सुझाव दिया था तो उस समय उस पर अमल क्यों नहीं किया गया?