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पंजाब चुनाव 2017:  मजीठा में राहुल के बोल फीके क्यों, ये सिर्फ मोदी के मुरीद बता सकते हैं

राहुल को कोई राह निकालनी होगी कि उनके बोल बासी या फीके ना लगें

Akshaya Mishra

उम्मीद यही थी कि राहुल बादल पर करारी चोट मारेंगे और उन्होंने मारी भी जोर की चोट. उम्मीद थी कि राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेंगे, राहुल ने ऐसा ही किया. उम्मीद थी कि राहुल बाकी बातों के साथ नशाखोरी, विकास की कमी, पंजाब से उद्योग-धंधों के पलायन और नोटबंदी का मुद्दा उठायेंगे.. राहुल ने यह भी किया.

मजीठा की अपनी सभा में राहुल ने हर उस जगह पर चोट मारी जहां उन्हें मारना चाहिए था... बोले भी पूरी सफाई और दमखम के साथ, लेकिन इस सब के बावजूद क्या राहुल लोगों पर अपना असर छोड़ पाए?


नहीं... बिल्कुल नहीं और इसकी वजह हैं नरेंद्र मोदी.

नरेंद्र मोदी ने भाषण देने की कला को इस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है कि उसके सामने किसी नेता का अच्छा भाषण भी फीका लगने लगता है. मोदी के भाषण नाटकीयता से भरपूर होते हैं... उनमें लोगों को अपने से जोड़ लेने की कोशिश होती है. मोदी ने भाषण देने की कला को साध लिया है लेकिन राहुल ने नहीं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिद्धु के साथ राहुल गांधी

भाषण प्रवाह

हां, ये जरूर कह सकते हैं कि पहले की तुलना में राहुल के भाषण कुछ बेहतर हुए हैं. उनके बोलने में अब प्रवाह आता जा रहा है. अपने भाषणों में जहां वे कटाक्ष करते हैं वहां कुछ ज्यादा बेहतर जान पड़ते हैं. आज के उनके भाषण में कहीं कटाक्ष नहीं था. भाषण वैसा ही सीधा-सपाट था जैसा कि अमूमन चुनावी भाषण होते हैं.

उन्होंने बादल-परिवार पर सूबे में नशे और भ्रष्टाचार की समस्या की अनदेखी का आरोप मढ़ा. उन्होंने वादा किया कि नशे की समस्या से सख्ती से निबटा जाएगा और कड़े कानून बनाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि किसान, छोटे व्यापारी और इस तबके के लोग बादल-परिवार के शासन में तबाह हो गये हैं और सूबे में मुनाफे के हर धंधे में बादल-परिवार ने हाथ डाल रखे हैं.

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राहुल ने गुरुनानक का नाम लिया और बताया कि अकालियों ने कैसे गुरु के बचन ‘सबका सब तेरा’ को बिगाड़कर ‘सबका सब मेरा’ में बदल डाला है.

उन्होंने आम आदमी पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि वह वादे तो बहुत करती है लेकिन निभाती है बहुत कम है. इस बात को सही ठहराने के लिए उन्होंने दिल्ली का उदाहरण दिया और यह भी कहा कि आम-आदमी पार्टी अलग-अलग जगह पर अलग-अलग बातें करती है.

चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल

यह कहते हुए कि आम आदमी पार्टी सूबे में मुख्यमंत्री का चेहरा देने में नाकाम रही, राहुल ने चुटकी ली कि केजरीवाल दिल्ली और पंजाब दोनों जगहों पर मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. उन्होंने मामले को बाहरी बनाम पंजाबी का मुद्दा बनाकर उछाला.

पीएम पर कटाक्ष

प्रधानमंत्री पर अंगुली उठाते हुए उन्होंने कहा कि वे भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो अकाली दल को समर्थन कैसे दे सकते हैं. राहुल के भाषण में नोटबंदी का जिक्र आया कि इससे समाज के सभी वर्ग के लोगों पर बुरा असर पड़ा है. राहुल ने दावा किया कि कांग्रेस कभी झूठे वादे नहीं करती.

वे बोले- 'कांग्रेस जो कहती है वो करके दिखाती है' और कैप्टन अमरिन्दर सिंह को कांग्रेस की तरफ से सूबे का उम्मीदवार घोषित किया जो कि सूबे के लोगों के लिए अब कोई अचरज की बात नहीं रही.

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भाषण ठीक था लेकिन तनिक तड़का डालकर उसे बेहतर बनाया जा सकता था. भाषण लोगों को अपने से जोड़ ना सका. पंजाब में कांग्रेस के सितारे बुलंद हो रहे हैं और अकाली-बीजेपी गठबंधन को ऐड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा.

पीएम नरेंद्र मोदी रैली के दौरान

राहुल की पार्टी ने कड़ी मेहनत की है और पंजाब में जीत मिलने पर राहुल के लिए पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का रास्ता निकलेगा. ऐसे में राहुल के लिए सूबे की हर चुनावी रैली को अपने ‘शो’ में बदलना जरुरी है. इसके लिए राहुल को कुछ और ज्यादा करना होगा, चलताऊ और फीके भाषणों से बात नहीं बनने वाली है.

बेशक, वोटर को लुभाने के लिए सिर्फ भाषण काफी नहीं होता. कुछ जमीनी काम करने होते हैं, हवा बनानी पड़ती है. पार्टी के अदने-अव्वल हर कार्यकर्ता को एकजुट कर उसे हांक लगानी पड़ती है और विरोधी की चाल की कमजोरी भांपकर उसका फायदा उठाना होता है.

लेकिन राष्ट्रीय रंगमंच पर मोदी के आगमन के साथ चुनाव-अभियान में भाषणों की अहमियत बढ़ी है, भीड़ को लुभाने के लिहाज से भाषण अहम बन चले हैं. लोगों को लुभाने की केजरीवाल की अपनी खास शैली है. राहुल को कोई राह निकालनी होगी कि उनके बोल बासी या फीके ना लगें.