view all

गुजरात की जमीन से गुजराती में गरजे पीएम मोदी, तेज हुई गुजराती गौरव बनाम वंशवाद की जंग

'मैं चाय बेच सकता हूं, लेकिन भारत को नहीं बेच सकता.' अपनी इस टिप्पणी में मोदी ने बोफोर्स या अन्य किसी घोटाले का तो जिक्र नहीं किया, लेकिन संदेश और संकेत साफ था

Sanjay Singh

26 जनवरी 2001 को आए भयंकर भूकंप ने गुजरात के भुज इलाके को पूरी तरह से तबाह कर दिया था. लेकिन जिन लोगों ने भूकंप के तुरंत बाद और फिर भूकंप के एक साल बाद भुज और अंजार इलाकों का दौरा किया, वो राहत कार्यों, पुनर्निर्माण और भूकंप पीड़ित लोगों के पुनर्वास की सरकारी कोशिशों की तारीफ किए बिना नहीं रह सकते हैं.

भूकंप के बाद भुज और अंजार के आसपास के इलाकों की शक्ल-ओ-सूरत पूरी तरह से बदल गई थी. शहर, कस्बे और गांव मलबे के ढेर में तब्दील हो गए थे. ऐसी तबाही हुई थी कि पहचानना मुश्किल हो गया था कि भुज कहां है और अंजार कहां?  लेकिन गुजरात सरकार के अथक प्रयासों से अब इन इलाकों की तस्वीर बदल चुकी है.


अब भुज और अंजार भी विकास की डगर पर गुजरात के बाकी शहरों के साथ कदमताल करते नजर आते हैं. बदलते वक्त के साथ दोनों शहर आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहे हैं.

भुज ,भूकंप और मोदी की पहली परीक्षा

नरेंद्र मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने अक्टूबर 2001 में दिल्ली से गुजरात भेजा था. मोदी को पार्टी के वरिष्ठ  नेता केशुभाई पटेल की जगह मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था. मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीनों के भीतर ही मोदी ने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं को साबित कर दिया था. बतौर मुख्यमंत्री मोदी ने अपने प्रदर्शन और नीतियों से देश को यह बता दिया था कि उनके पास न सिर्फ बड़ा विजन है, बल्कि कई विशाल योजनाएं भी हैं.

मुख्यमंत्री बनकर गुजरात की सत्ता संभालने से पहले मोदी दिल्ली में रहा करते थे. तब वह बीजेपी के महासचिव हुआ करते थे. तब तक मोदी के पास किसी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं था और न ही उन्होंने कभी कोई चुनाव लड़ा था. लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी ने जिस तरह से भुज और अंजार में पुनर्निर्माण और पुनर्वास कराया, उसने उन्हें लोकप्रिय बना दिया.

ये भी पढ़ें: गुजरात चुनाव 2017: एक गांव जहां मुस्लिमों की तरह दफनाए जाते हैं हिंदू

लेकिन गोधरा की घटना के बाद गुजरात में भड़के दंगों के चलते मोदी को जबरदस्त आलोचना का सामना करना पड़ा. राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की तमाम आलोचना और आरोपों के बावजूद मोदी ने खुद को शांत रखा और आगे बढ़ते गए. उन्होंने सबसे पहले खुद को ब्रांड मोदी के तौर पर तैयार किया और फिर वक्त के साथ अपनी इस छवि को साबित भी कर दिया.

मोदी ने ही गुजरात में कच्छ के रण के लिए विशेष योजना बनाई थी. इस योजना के तहत सैकड़ों किलोमीटर में फैले कच्छ के रण को पर्यटन स्थल के तौर पर तैयार किया गया. खुद मोदी ने एक बार इस इलाके के बारे में कहा था कि, एक तरफ रेगिस्तान है और दूसरी तरफ पाकिस्तान.

पीएम बनने के बाद गुजरात में पहली रैली

मोदी के राजनीतिक करियर में भुज एक अहम मकाम रखता है. यही वजह है कि मोदी ने गुजरात में अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत भुज से की है. भुज से प्रचार का श्रीगणेश करके मोदी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह अपनी जड़ों, अपने मूल में वापस लौट आए हैं. मोदी आज प्रधानमंत्री हैं, लिहाजा गुजरात चुनाव में बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन उनके लिए बहुत मायने रखता है. गुजरात में अगर बीजेपी जीतती है तो 201 9 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए मोदी के हौसले और बुलंद हो जाएंगे.

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी गुजरात में पहली बार चुनाव प्रचार करने उतरे हैं. ऐसे में उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ना लाजमी है. गुजरात की जनता मोदी को सुनने को बेताब है. वहीं मीडिया भी मोदी को भरपूर कवरेज दे रही है. यही वजह है कि अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू करने से पहले सोमवार को मोदी जब भुज के आशापुरा माता मंदिर पहुंचे तो लगभग सभी न्यूज चैनलों ने उन तस्वीरों को लाइव दिखाया. इसके अलावा मोदी की जनसभाओं का भी लगातार लाइव प्रसारण किया जा रहा है.

आशापुरा माता मंदिर में मोदी से हाथ मिलाने वालों और उन्हें शुभकामनाएं देने वालों का तांता लगा हुआ था. इनमें बड़ी तादाद में बच्चे, महिलाएं और पुरुष शामिल थे. मोदी से मुलाकात के बाद लोग बहुत खुश नजर आए. ऐसा लग रहा था कि लोगों की कोई बड़ी मनोकामना पूरी हो गई हो. वहीं भुज की जनसभा में उमड़ी भीड़ ने यकीनन मोदी और उनकी पार्टी को गदगद कर दिया होगा.

ये भी पढ़ें: गुजरात चुनाव: शहरी गुजरात को है मोदी का चस्का, राहुल को करनी होगी और मेहनत

गुजरात चुनाव के मद्देनजर मोदी ने अपने राजनीतिक विमर्श को तीन चीजों पर केंद्रित किया है.  मोदी ने सबसे पहला मुद्दा विकास बनाम परिवारवाद का उठाया है. मोदी ने विकास के रूप में खुद को और बीजेपी को पेश किया है, जबकि राहुल गांधी और कांग्रेस को परिवारवाद का प्रतीक बताया है. मोदी ने दूसरा मुद्दा गुजराती अस्मिता और राष्ट्रवाद के गौरव का उठाया है. जबकि खुद को गुजरात के बेटे के तौर पर पेश करके, मोदी ने तीसरा और सबसे अहम मुद्दा उछाला है.

इस मुद्दे के तहत मोदी खुद को सरदार वल्लभभाई पटेल की विरासत का उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिशों में जुट गए हैं. खुद को गुजरात का बेटा बताकर मोदी लोगों को यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि गुजरात का गौरव और उनका गौरव एक-दूसरे के पूरक हैं, लिहाजा उनका अपमान गुजरात का अपमान है.

राजकोट की गिनती सौराष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण शहरों में होती है. इस इलाके को पटेल समुदाय का गढ़ माना जाता है. ऐसे में भुज के बाद राजकोट की जनसभा में भी मोदी ने सरदार पटेल को याद किया. मोदी ने राहुल गांधी का नाम लिए बगैर इशारों-इशारों में उन पर निशाना साधा. मोदी ने कहा कि, लोग यहां आते हैं और तरह-तरह की बातें करके राज्य की छवि खराब करने की कोशिश करते हैं.

'जितना उछालोगे कीचड़ उतना खिलेगा कमल'

मोदी ने ये भी कहा, 'जो लोग हम पर कीचड़ उछाल रहे हैं, वह कमल खिलाने में एक तरह से हमारी मदद कर रहे हैं... गुजरात की जनता गुजरात के अपमान को बर्दाश्त नहीं करेगी.'

मोदी अपने भाषणों में सरदार पटेल का जिक्र करके पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधाने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल मोदी यह साबित करना चाहते हैं कि, कांग्रेस में गुजरात के लाल सरदार पटेल को उचित सम्मान और महत्व नहीं दिया गया. साथ ही मोदी यह भी कहने की कोशिश कर रहे हैं कि नेहरू को गुजरात की जरा भी चिंता नहीं थी.

भुज की जनसभा में मोदी ने नेहरू की नीतियों पर कई सवाल खड़े किए. मोदी ने कहा, 'नेहरू जब प्रधानमंत्री थे, तब भी अंजार में जबरदस्त भूकंप आया था. लेकिन अंजार का दौरा करने के बावजूद नेहरू ने तब वहां राहत और पुनर्निर्माण के लिए कोई खास मदद नहीं की थी.'

इसके बाद मोदी ने भुज और अंजार के भूकंप और उसके बाद वहां उनकी सरकार द्वारा चलाए गए पुनर्निर्माण और पुनर्वास अभियान का जिक्र किया. अपने कामकाज के गुणगान से मोदी ने लोगों को रिझाने की भरपूर कोशिश तो की ही साथ ही गुजरात को लेकर नेहरू का नजरिए बताकर कांग्रेस पर भी करारा वार किया.

मोदी के लिए यह बात बहुत महत्व रखती है कि वह लोगों को समझाएं कि देश का प्रधानमंत्री बनने की मजबूरी के चलते ही उन्हें गुजरात छोड़ना पड़ा, लेकिन उनकी आत्मा अभी भी अपने गृह राज्य में बसती है.

यही वजह है कि भुज में मोदी ने कहा, 'गुजरात मेरी आत्मा है और भारत मेरा परमात्मा है. गुजरात ने मुझे बच्चे की तरह पाला है, गुजरात ने ही मुझे शक्ति दी है.'

'चाय बेची है लेकिन देश नहीं बेचा'

मोदी और उनकी टीम ने यूथ कांग्रेस के चायवाला मीम के ट्वीट को भी मुद्दा बना दिया है. उस ट्वीट के बहाने मोदी अब कांग्रेस और उसके परिवारवाद पर हमला बोल रहे हैं. मोदी को खुद को चायवाला कहलाने में कोई आपत्ति नहीं है. चायवाले की छवि के सहारे ही मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जमकर लोगों की सहानुभूति और समर्थन हासिल किया था.

ये भी पढ़ें: गुजरात चुनाव: वोटबैंक में सेंध लगाने को भड़काऊ प्रचार कर रहीं पार्टियां

लिहाजा यूथ कांग्रेस के उस ट्वीट को भुनाने में मोदी की टीम ने देर नहीं लगाई. बात बिगड़ती देख और डैमेज कंट्रोल के तहत यूथ कांग्रेस ने वह ट्वीट डिलीट करने में देर नहीं लगाई. लेकिन फिर भी बीजेपी और मोदी को बैठे-बैठाए एक गर्मा-गर्म मुद्दा मिल गया. मोदी अब उसी ट्वीट को उछालकर कांग्रेस के खिलाफ आग उगल रहे हैं. मोदी जनता के समक्ष यह साबित करने में जुट गए हैं कि, कांग्रेस में सारी शक्तियों का केंद्र सिर्फ एक ही परिवार है. जबकि उनका जैसा एक व्यक्ति जो गरीब परिवार में पैदा हुआ, वह आज देश का प्रधानमंत्री बना बैठा है. चायवाला का मुद्दा उठाते हुए मोदी ने कहा कि, यह न सिर्फ उनका बल्कि देश की जनता का भी अपमान है.

मोदी ने यह कहते हुए कांग्रेस पर कटाक्ष किया, 'मैं चाय बेच सकता हूं, लेकिन भारत को नहीं बेच सकता.' अपनी इस टिप्पणी में मोदी ने बोफोर्स या अन्य किसी घोटाले का तो जिक्र नहीं किया, लेकिन संदेश और संकेत साफ था कि, वो दरअसल कहना क्या चाहते हैं.