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नीतीश कुमार के हालिया बयान ‘पॉलिटिकल पॉश्चरिंग’ से ज्यादा कुछ नहीं

नीतीश कुमार को लगता है कि अगर अभी से ही बीजेपी से बार्गेनिंग की कोशिश नहीं की गई तो ऐन मौके पर बीजेपी उन्हें और दबाव में ला सकती है

Amitesh

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में बैंकरों के साथ मीटिंग के दौरान अभी हाल ही में बयान दिया था ‘जब तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल जाता है तबतक कोई भी व्यक्ति बिहार में पूंजी नहीं लगाएगा.’ एक बार फिर नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को दोहराया है. 15वें वित्त आयोग के सामने नीतीश ने मांग की है कि बिहार जैसे पिछड़े राज्य के विकास के लिए उसे विशेष राज्य का दर्जा देना चाहिए.

नीतीश कुमार का तर्क है कि योजना आयोग ने बिहार स्टेट रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट 2000 के तहत आयोग के डिप्टी चेयरमैन की अगुवाई में एक स्पेशल सेल का गठन अनिवार्य कर दिया था. मोदी सरकार ने योजना आयोग खत्म करके नीति आयोग का गठन कर दिया. बिहार के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि अब नीति आयोग इसी तरह एक स्पेशल सेल का गठन करे.


कुल मिलाकर लब्बोलुआब यही है कि नीतीश कुमार विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे को और जोर-शोर से उठाने की तैयारी में हैं.

नीतीश का नोटबंदी पर यू-टर्न

उनके बयान को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है. यह चर्चा इसलिए गर्म है क्योंकि नीतीश कुमार ने नोटबंदी के मुद्दे पर भी यू टर्न लेते हुए इसपर सवाल खड़े कर दिए हैं. ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए नोटबंदी के मुद्दे पर मोदी सरकार के कदम की तारीफ की थी. लेकिन, अब जबकि बीजेपी के साथ बिहार में सरकार चला रहे हैं, तो इस वक्त उनके नोटबंदी पर यू टर्न करने पर सवाल तो पूछे ही जाएंगे.

इन दो मुद्दों के अलावा मोदी सरकार के चार साल पूरा होने के मौके पर उनके बधाई संदेश की भी चर्चा हो रही है. नीतीश कुमार ने चार साल के मौके पर मीडिया के सवालों का जवाब देने से कतराते नजर आए, लेकिन, अपने ट्वीट में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देते हुए कहा ‘विश्वास है कि सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी.’

नीतीश ने बधाई में भी सरकार की खिंचाई कर दी क्योंकि उनके ट्वीट से साफ लग रहा था कि वो सरकार को पूरा क्रेडिट नहीं दे रहे हैं बल्कि जनता की अपेक्षाओं पर उतरने की नसीहत दे रहे हैं.

एक तरफ मोदी सरकार चार साल की उपलब्धियों को लेकर जनता के दरबार में हाजिरी लगा रही है. प्रधानमंत्री मोदी चार साल बाद अब चुनावी मोड में जनता को सरकार के हिसाब-किताब का जवाब दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ, नीतीश कुमार का इस तरह नसीहत भरा ट्वीट सवाल खड़ा कर  रहा है.

नीतीश की नाराजगी क्यों?

दरअसल, नीतीश कुमार ने जुलाई 2017 में आरजेडी का साथ छोड़कर जब से बीजेपी का हाथ पकड़ा था, तब से उन्हें केंद्र सरकार से बिहार को लेकर उम्मीदें काफी ज्यादा थीं. उन्हें भी लगा कि केंद्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार मिलकर डबल इंजन के सहारे बिहार में विकास कामों में और तेजी लाएंगी. बिहार के मुख्यमंत्री ने उम्मीदें बहुत पाल रखी थीं, लेकिन, लगता है उनकी उम्मीदों के मुताबिक उन्हें वो सब नहीं मिला.

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पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाए जाने के नीतीश की मांग को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाल दिया था. यहां तक कि बाढ़ राहत पैकेज में भी नीतीश कुमार की उम्मीदों के मुताबिक केंद्र से मदद नहीं मिल पाई. बीजेपी के साथ आने के बाद नीतीश कुमार को बाढ़ के वक्त ज्यादा राहत पैकेज की उम्मीद थी. इन दो घटनाक्रमों ने उन्हें परेशान कर दिया.

मोदी सरकार में नहीं मिली जगह

इसके अलावा पिछले साल मोदी सरकार के कैबिनेट फेरबदल के वक्त भी बीजेपी की तरफ से नीतीश कुमार को ज्यादा भाव नहीं मिला. बात नहीं बन पाई और जेडीयू मोदी सरकार में शामिल नहीं हो सकी.

बीजेपी के साथ आने के बाद भी उनके भीतर उपेक्षा का भाव दिख रहा है. नीतीश कुमार को लग रहा है कि पहले की तरह वो राज्य में सरकार नहीं चला पा रहे हैं, क्योंकि अब उल्टे बीजेपी भी उनपर हावी होने की कोशिश कर रही है.

करप्शन और कम्युनलिज्म से कैसे पार पाएंगे नीतीश ?

रामनवमी के मौके पर बिहार में निकाले गए जुलूस के बाद बिगड़े माहौल और उसके बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित सारस्वत के बयान को लेकर मचे घमासान से भी नीतीश कुमार चिंतित दिखे. हालाकि बीजेपी आलाकमान ने उस वक्त नीतीश कुमार की बात पर ध्यान देते हुए अश्विनी चौबे और गिरिराज सिंह जैसे पार्टी के बड़बोले नेताओं को चुप रहने की घुट्टी जरूर पिला दी. लेकिन, नीतीश इस मुद्दे पर असहज दिख रहे थे.

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करप्शन और कम्युनलिज्म यानी भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से समझौता नहीं करने के अपने दावे को दोहराते हुए नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं को सख्त संदेश दे दिया था. लेकिन, अभी भी उनके भीतर वो डर घर कर रहा है जिसमें उन्हें लगता है कि बिहार में अगले लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी उन्हें सीटों के बंटवारे के वक्त घेर सकती है.

नीतीश का ताजा बयान इसी रणनीति को दिखाता है. नीतीश कुमार को लगता है कि अगर अभी से ही बीजेपी से बार्गेनिंग की कोशिश नहीं की गई तो ऐन मौके पर बीजेपी उन्हें और दबाव में ला सकती है.

नीतीश को लोकसभा चुनाव की चिंता

एनडीए के भीतर गैर बीजेपी दलों एलजेपी और आरएलएसपी को साथ लाने की उनकी कोशिश भी यही दिखा रही है. नीतीश की रामविलास पासवान के साथ बढ़ती नजदीकी इसी बात का इशारा कर रही है. उन्हें लगता है कि पासवान, कुशवाहा और पप्पू यादव को अपने साथ रखकर बिहार में लोकसभा चुनाव के वक्त टिकट बंटवारे के वक्त बीजेपी पर दबाव बनाया जा सकता है.

फिलहाल बिहार में 40 लोकसभा की सीटों में से 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को 31 सीटों पर जीत मिली थी, जिसमें बीजेपी को 22, एलजेपी को 6, आरएलएसपी को 3 सीटें थी. जबकि आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2, एनसीपी को 1 और जेडीयू को 2 सीटें मिली थीं. लेकिन, जेडीयू के अब एनडीए के पाले में आने के बाद एनडीए की ताकत बढ़कर 33 हो गई है.

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मौजूदा हिसाब से बीजेपी लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों पर दावा करने वाली है. क्योंकि उसके 22 सीटों पर पहले से जीते हुए सांसद हैं. ऐसे में 2 सदस्य वाली जेडीयू को आने वाले लोकसभा चुनाव के वक्त परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. गौरतलब है कि बीजेपी के साथ अलग होने से पहले 2009 के लोकसभा चुनाव तक जेडीयू बड़ी पार्टी के तौर पर और बीजेपी जूनियर पार्टनर के तौर पर चुनाव मैदान में उतरती थी.

लेकिन, नीतीश अब बीजेपी के साथ बराबरी के स्तर पर बार्गेनिंग करने की कोशिश में अपनी रणनीति में बदलाव करते दिख रहे हैं.

तो क्या नायडू की राह पर जाएंगे नीतीश?

फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि नीतीश कुमार चंद्रबाबू नायडू की राह पर जाएंगे. नीतीश कुमार के लिए ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा. 2013 में मोदी विरोध के नाम पर बीजेपी का साथ छोड़कर जाना, फिर चार साल बाद 2017 में भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर उसी मोदी का हाथ पकड़ना और फिर मोदी का साथ छोड़ना उनकी विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर देगा.

हालाकि करप्शन और कम्युनलिज्म दोनों से बराबर दूरी रखने की बात करने वाले नीतीश क्या आरजेडी और बीजेपी दोनों से दूरी बनाकर पासवान, कुशवाहा और पप्पू यादव जैसे लोगों के साथ मिलकर कोई नया मोर्चा बनाने की कोशिश करेंगे? इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, यह सबकुछ निर्भर करेगा बीजेपी के साथ चुनाव के वक्त बार्गेनिंग के वक्त मिलने वाले बराबरी के हक पर, वरना नीतीश कुमार फिर से कोई चौंकाने वाला फैसला ले सकते हैं.