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एआईएडीएमके में इनके दम से है हलचल

आने वाले दिनों में पार्टी में नेतृत्व संघर्ष बढ़ेगा जो नुकसान पहुंचाने से ज्यादा पार्टी का भला नहीं करने वाला

Akshaya Mishra

आय से अधिक संपत्ति मामले में वीके शशिकला की सजा के साथ तमिलनाडु के राजनीतिक नाटक में एक नया मोड़ आ गया है.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शशिकला के मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा को तार-तार कर दिया. वैसे समीक्षा याचिका अभी भी एक विकल्प के तौर पर बची हुई है.


बहरहाल, दो दशक पुराने इस मामले का फैसला पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. 2015 के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले में शशिकला की आय से अधिक संपत्ति का गलत अनुमान पूरी तरह साफ हो गया था.

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इस कारण उनकी मुख्यमंत्री बनने में की जाने वाली जल्दबाजी थोड़ा हैरान करने वाली थी. यह संभव है कि वह अदालत के फैसले से पहले पार्टी का पूरा नियंत्रण हाथ में ले लेना चाहती थीं.

इससे अपनी पसंद के मुख्यमंत्री के चयन की अपनी इच्छा की पूर्ती उनके लिए आसान हो जाती. और उस तरह वो तब भी अन्नाद्रमुक और राज्य के संचालक के तौर पर जमी रहतीं. सीधे-सीधे शब्दों में कहा जाए तो वो जेल जाने से पहले अपने लिए एक पन्नीरसेल्वम यानी अपने प्रतिनिधि की तलाश में थीं.

जाहिर सी बात है कि आराम से पार्टी का नेता बन जाने के बाद शशिकला पन्नीरसेल्वम की तरफ से कोई प्रतिरोध की उम्मीद नहीं कर रही थीं. लेकिन पिछले कुछ दिनों में बदली करवट वाले हालात ने और ऊपर से मुख्यमंत्री मुद्दे पर कार्रवाई करने में राज्यपाल विद्यासागर राव की देरी ने उनकी सारी योजना चौपट कर दी.

इससे पन्नीरसेल्वम की स्थिति क्या हो जाती है?

ये अभी स्पष्ट नहीं है. शशिकला ने उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर उनके लिए हालात थोड़े मुश्किल कर दिए हैं. वहीं चार बार के विधायक ई पलनीसामी को पार्टी का अध्यक्ष चुन कर शशिकला ने नए सिरे से एक सत्ता-संघर्ष की शुरुआत भी कर दी है.

इसका मतलब यह है कि पन्नीरसेल्वम को पार्टी के भीतर अपनी स्वीकार्यता और मुख्यमंत्री बनने का दावा साबित करने के लिए अब विधायकों की एक बड़ी संख्या को अपने पाले में लानी होगी.

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इतनी बड़ी संख्या में विधायक जुटाना आसान नहीं है. शशिकला ने 119 विधायकों को अपने काबू में कर रखा है तो वहीं पन्नीरसेल्वम 10 विधायकों और दो सांसदों को जोड़ने में कामयाब हो पाएं हैं.

अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि अदालत के फैसले के बाद इन 119 विधायकों में से कितने पन्नीरसेल्वम के पाले में चले आएंगे. रिपोर्ट्स तो कहती हैं कि इनमें से कम से कम 50 तो पाला बदलने को राजी हैं. अब अगला जंग का मैदान होगी लेजिस्लेटिव असेम्बली जहां राज्यपाल के कहने पर उनको अपना बहुमत सिद्ध करना होगा.

विधायकों के साथ पलानीसामी (फोटो: पीटीआई)

आगे जो होना हो, लेकिन ये तो तय है कि एआईएडीएमके पहले जैसी नहीं रहेगी. उस ऐतिहासिक नेतृत्व के स्तर को न पन्नीरसेल्वम और न ही पलानीसामी जी सकेंगे -जो स्वर्गीय जयललिता का था.

पार्टी कैडर ने ये स्तर शशिकला को देने का मन बनाया था जिन्हें वे चिनम्मा के नाम से पुकारते हैं. शशिकला के लिए खुद को स्थापित करने और जयललिता की छाया से बाहर निकलने का अवसर था. लेकिन अब ये दरवाजा बंद हो चुका है. आने वाले दिनों में पार्टी में भारी आंतरिक संघर्ष की स्थिति पैदा होने की संभावना है.

शीर्ष-पद के लिए दोनों में से किसी भी दावेदार की विजय समस्याओं का अंत नहीं होगा. आने वाले दिनों में हो सकता है कि पार्टी विभाजने के रास्ते पर चली जाए.

पन्नीरसेल्वम के दावों में कोई विश्वास नहीं रहा 

शशिकला कैम्प से विधायकों को आकर्षित करके अपने समर्थन में लाने के लिए पन्नीरसेल्वम पहले ही जीत का दावा और अम्मा का इस्तेमाल कर चुके हैं. लेकिन अब आगे बढ़ना उनके लिए आसान नहीं होगा. कई बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अभी भी वो बराबर के लोगों के मुकाबले में हैं.

सौजन्य: सोलारिस

कई लोग उन्हें नेता स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होंगे. अम्मा का प्रतिनिधि होना उनके पतन की वजह भी बन सकती है. पलनीसामी अभी भी एक बंद मुट्ठी हैं जिन्हें आजमाया नहीं गया है. उन्हें अपने आपको साबित करना होगा.

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शशिकला का प्रतिनिधि होना जयललिता के प्रतिनिधि होने जैसी बात नहीं है. व्यक्तित्व का वो बल दोनों नेताओं में ही नजर नहीं आता.

अब जो नजर आता है वो यही है कि आने वाले दिनों में पार्टी में नेतृत्व संघर्ष बढ़ेगा जो नुकसान पहुंचाने से ज्यादा पार्टी का भला नहीं करने वाला.