मौत एक ऐसी मुक्ति है जिसका लुत्फ मरने वाला नहीं उठा सकता. उसके खिलाफ केस और अपील चलती रहती है.
सुप्रीम कोर्ट के सामने जयललिता और शशिकला समेत कई लोगों को बरी करने के खिलाफ कर्नाटक सरकार की अपील पर फैसला करने की जिम्मेदारी थी. ये मामला आय से अधिक संपत्ति का था, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट ने जयललिता और शशिकला समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.
साफ है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पलटकर सभी आरोपियों को दोषी करार देने का निचली अदालत का फैसला बहाल किया, तो उसकी जद में शशिकला आ गईं. जयललिता अब किसी भी सजा से आजाद हैं. फैसला सिर्फ इतना ही नहीं है. इसके कई और पहलू हैं.
मौत से किसी भी इंसान के खिलाफ तो मुकदमा खत्म हो जाता है, लेकिन उसकी संपत्ति पर तो केस चलता रहता है. ये कानून की स्थायी मान्यता है. यही वजह है कि कानूनी वारिसों को मरने वाले का इन्कम टैक्स रिटर्न भरना पड़ता है. और जितना टैक्स मरने वालों पर सरकार लगाती है, वो टैक्स भी इन वारिसों को भरना पड़ता है.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी जयललिता तो अब अदालती कार्यवाही से आजाद हैं. मगर उनकी संपत्ति अभी भी कानूनी प्रक्रिया के दायरे में है. इसीलिए उनकी संपत्ति में से ही 100 करोड़ रुपए का वो जुर्माना वसूला जाएगा, जो कर्नाटक की निचली अदालत ने इस केस में उन पर लगाया था.
दूसरी संपत्तियों की लग सकती है बोली
इन हालात में इस बात की पूरी संभावना है कि जयललिता पर लगाया गया जुर्माना वसूलने के लिए चेन्नई में उनके चर्चित आवास पोएस गार्डेन की नीलामी की जाए. साथ ही उनकी और संपत्तियों की भी बोली लगाई जा सकती है, जिससे 100 करोड़ रुपए का जुर्माना वसूला जा सके.
इसका एक बड़ा फायदा ये होगा कि जयललिता की संपत्ति पर दावेदारी का जो विवाद चल रहा है, वो खत्म हो जाएगा. इस विवाद के केंद्र में जयललिता का पोएस गार्डेन ही है.
कार्यवाहक मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम ने कुछ दिन पहले ही हस्ताक्षर अभियान छेड़ दिया था. वो मांग कर रहे थे कि जयललिता के बंगले का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए. इस बंगले को जयललिता का स्मारक घोषित करने की मांग भी पन्नीरसेल्वम कर रहे थे. पन्नीरसेल्वम ये मांग उठाकर अपनी राजनैतिक विरोधी शशिकला पर निशाना साध रहे थे. मगर उनकी मांग सवालों के घेरे में थी, क्योंकि ये बात अभी तय ही नहीं हुई है कि जयललिता की संपत्ति का वारिस कौन है?
अब अदालत के फैसले से साफ है कि 100 करोड़ रुपए का जुर्माना वसूलने के लिए जयललिता की संपत्तियों की नीलामी की जा सकती है.
क्या है अदालत की राय?
2016 में आंध्र प्रदेश सरकार बनाम सुभद्रम्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपनी राय साफ की थी. कोर्ट ने कहा था कि किसी आरोपी की मुकदमे के दौरान मौत होने पर उसकी संपत्ति उसके वारिसों को नहीं सौंपी जा सकती. क्योंकि जिला जज के लिए उस इंसान की इजाजत लेना मुमकिन नहीं होगा, क्योंकि वो मर चुका है.
अदालत ने इस मामले में बड़ा रुढ़िवादी रुख अपनाया था और बात को क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तकनीकी पहलू में उलझा दिया था. किसी की मौत होने की सूरत में उसके उसके अपने घर में रहने और संपत्ति के इस्तेमाल की शब्दावली नहीं इस्तेमाल होनी चाहिए. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत की उस राय को खारिज करके सही किया था, जिसमें लोअर कोर्ट ने कहा था कि किसी मौत की सूरत में भी उस पर मुकदमा खत्म हो जाना चाहिए.
हालांकि जयललिता के मामले में तथ्य अलग हैं. वो उस वक्त जिंदा थीं, जब केस का ट्रायल हुआ. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट का 14 फरवरी 2017 का आदेश सिर्फ उस ट्रायल को सही ठहराता है. उस वक्त जयललिता जिंदा थीं. जबकि सुभद्रम्मा के केस में ऐसा नहीं था. इसीलिए सुभद्रम्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था, वो इस केस में लागू नहीं होना चाहिए. जयललिता की संपत्ति के वारिसों के लिए यही उम्मीद की किरण है. इसी आधार पर वो अदालत से इस मामले पर फिर गौर करने की अपील कर सकते हैं.
जाहिर है कि मौत होने पर कोई भी इंसान तो मुकदमे के ट्रायल से आजाद हो जाता है, मगर उसकी संपत्ति को ये मुक्ति नहीं हासिल.
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