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मोदी पर सीधे हमले से केजरीवाल क्यों कतरा रहे हैं?

बीते चुनावों में पीएम मोदी की लोकप्रियता देख उन पर सीधा प्रहार नहीं कर रहे केजरीवाल

Amitesh

यूपी का चुनाव हो या उत्तराखंड का, विधानसभा चुनाव हो या फिर स्थानीय निकाय का चुनाव बीजेपी अपने सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को भुनाने से कतराती नहीं है. पार्टी के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक मोदी-मोदी के नारे से पूरे चुनावी माहौल को मोदीमय बनाने से किसी तरह का परहेज नहीं करते.

मोदी विरोधी भी हर चुनाव में मोदी सरकार के काम काज को लेकर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही कठघरे में खड़ा करते हैं. लेकिन, दिल्ली के दंगल में इस बार चुनाव हो रहा है एमसीडी का और दिल्ली के दिग्गज अरविंद केजरीवाल की तरफ से मोदी के सीधे विरोध से परहेज करने की कोशिश की जा रही है.


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शायद हाल के विधानसभा चुनावों में मोदी के नाम पर बीजेपी को मिली जीत ने केजरीवाल को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है. लाख कोशिशों के बावजूद पंजाब जीत न सकने का मलाल और गोवा में खाता तक नहीं खोल पाने के बाद अब शायद चाल बदल गई है.

केजरीवाल और उनके रणनीतिकारों को लग रहा है कि मोदी पर हमले का दांव उल्टा पड़ सकता है. इस वक्त मोदी की लोकप्रियता चरम पर है. अगर मोदी पर ज्यादा हमले हुए तो एमसीडी चुनाव में बीजेपी के खिलाफ बने एंटीइंकंबैंसी फैक्टर का फायदा नहीं मिल पाएगा. शायद बीजेपी भी यही सोच रही है कि केजरीवाल यही गलती कर दें और एमसीडी की लड़ाई को मोदी बनाम केजरीवाल बना दें. लिहाजा निशाने की दिशा बदल गई है.

रजौरी गार्डन की हार से लिया सबक? 

रजौरी गार्डन के उपचुनाव में चित्त होने के बाद के चिंतन ने चाल में बदलाव कर मोदी से सीधे-सीधे पंगा न लेने की रणनीति पर मजबूर कर दिया है. शायद जनाब को डर सता रहा है कि मोदी लहर अगर दिल्ली में भी चल गया तो एमसीडी में आने का सपना धरा का धरा रह जाएगा. लिहाजा, हमला मोदी के बजाए बीजेपी पर हो रहा है.

दिल्ली में एमसीडी में बीजेपी दस साल से सत्ता में है. दस साल के कामकाज का हिसाब मांग कर बीजेपी को घेरा भी जा सकता है, लिहाजा अब एमसीडी के कामकाज और बीजेपी के काम को लेकर केजरीवाल हमलावर हैं.

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आम आदमी पार्टी की रणनीति में बदलाव क्या रातोंरात हो गया है या फिर वक्त के थपेड़ों ने ऐसा कर दिया है. इस पर बहस हो सकती है. लेकिन, इसमें तनिक भी दो राय नहीं कि सरकार बनने के दो साल बाद भी केजरीवाल लोगों की नजर में खरे नहीं उतर पाए हैं. ढेर सारी उम्मीदों के साथ केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने एकतरफा जीत दिलाई थी. कभी उपराज्यपाल से अधिकारों को लेकर खींचतान तो कभी कोई और बहाना, हमेशा काम के बजाए टकराहट में ही अटकी पड़ी दिल्ली सरकार से जनता को नाउम्मीदी ही हाथ लगी है.

नरेंद्र मोदी वाली गलती नहीं करना चाह रहे केजरीवाल

ऐसी सूरत में केजरीवाल शायद उस गलती से बचना चाह रहे हैं जो गलती दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त खुद नरेंद्र मोदी ने कर दी थी. उस वक्त मोदी का सीधे केजरीवाल पर निशाना साधना बीजेपी को उल्टा पड़ गया. सकारात्मक राजनीति और सपनों की सुंदर और सुहानी दिल्ली का ख्वाब संजोए दिल्ली की जनता को विकास के रोड मैप के बजाए विरोधियों पर हमले का ये अंदाज नहीं भाया था.

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अब केजरीवाल इस बात को भांप चुके हैं. दिल्ली में उनकी सरकार के खिलाफ भी जनता में माहौल है. उनकी लोकप्रियता में कमी आई है. दूसरी तरफ यूपी फतह के बाद मोदी का ग्राफ सातवें आसमान पर है. ऐसे में इस चतुर केजरीवाल भला मोदी से पंगा लेने की गलती क्यों करें?