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प्रियंका गांधी के खिलाफ बीजेपी की रणनीति तैयार, बीजेपी के 35 सूरमा करेंगे कांग्रेस पर वार

देखना है कि अब एसपी-बीएसपी गठबंधन के भंवर में पहले से फंसी बीजेपी प्रियंका की धमाकेदार एंट्री से खुद को कैसे संभालती है

Shivaji Rai

सियासत का फलसफा है समय के साथ बदल जाना. प्रियंका वाड्रा को लेकर कांग्रेस में उठे 'इंदिरा इज बैक' के नारों से यूपी की सियासी हवा ने एकबार फिर अपना अलग रूप आख्तियार कर लिया है. सत्‍ताधारी बीजेपी 'काक चेष्टा बको ध्यानं' वाले अंदाज में सियासी हवा के रुख को परखने में जोर-शोर से जुट गई है, बदली हवा के मद्देनजर बीजेपी ने वोट समीकरण के नए गणित पर काम करना शुरू कर दिया है. बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे के साथ-साथ संगठनात्मक चक्रव्यूह पर भरोसा कर रही है.

प्रियंका वाड्रा के आने से बेस वोट में सेंधमारी न हो, इसको रोकने के लिए बीजेपी अपने 35 प्रमुख चेहरों को विभिन्‍न मोर्चे पर उतारने की तैयारी में है. इन चेहरों में सीएम योगी और दोनों डिप्‍टी सीएम समेत कई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष शामिल हैं. कमेटी के प्रमुख चेहरों में कलराज मिश्र, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी के साथ-साथ केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, स्वाति सिंह, अनुपमा जायसवाल, अर्चना पांडे, गुलाबो देवी और रीता बहुगुणा जोशी शामिल हैं. इसके साथ ही एनडीए के घटक अपना दल की नेता और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को भी कमेटी में जगह दी गई है.


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बीजेपी इस असंतोष को खत्‍म करने और अपने कनेक्शन को पुनर्जीवित करने की कोशिश में

सामाजिक समीकरणों के सहारे चुनावी समर सजाने में जुटी बीजेपी ने इस कमेटी के गठन में भी अगड़े, पिछड़े और दलित समीकरण का बखूबी ध्यान रखा है. साथ ही पिछड़ों और अनुसूचित समुदाय में उन चेहरों को जगह देने की कोशिश की गई है, जिनकी अपनी जातीय पहचान है. साथ ही कमेटी में संयोजक और प्रभारी से लेकर प्रचार-प्रसार और डोर-टू-डोर जनसंपर्क जैसे अन्य कामों के लिए 19 ग्रुप बनाए गए हैं. बीजेपी इस सियासी पिरामिड से बेस वोट के साथ-साथ सर्वसमाज को साधने की कोशिश में है.

बीजेपी नेतृत्‍व प्रियंका वाड्रा को हल्‍के में नहीं ले रहा है. वह जानता है कि कांग्रेस की नजर भी सवर्ण मतदाताओं विशेषकर ब्राह्मण समुदाय पर है. गौरतलब है कि पूर्वी यूपी के 43 सीटों पर ब्राह्मण समुदाय का वोट फीसदी 13 के करीब है. यूपी में पिछले दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टी को मिली हार और अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कानून पर अध्‍यादेश के बाद यह माना जा रहा है कि योगी सरकार से ब्राह्मण वोटर असंतुष्‍ट हैं और अपनी उपेक्षा को लेकर पार्टी से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में अगर ब्राह्मण मतदाता इस चुनाव में फिसल गए तो बीजेपी का पलीता लगना तय है. बीजेपी इस असंतोष को खत्‍म करने और अपने कनेक्शन को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है.

मौजूदा चुनौतियों के देखते हुए बीजेपी की निगाह नई सोशल इंजीनियरिंग पर भी है. बीजेपी बेस वोट के साथ-साथ पिछड़े वर्ग में गैरयादव वोट साधने की कोशिश में है. फिलहाल पार्टी सर्वसमाज को आनुपातिक हिस्सेदारी देने में सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला बरकरार रखेगी या नहीं, अभी साफ नहीं है. लेकिन बीजेपी नेतृत्‍व केंद्र की सत्ता में बैलेंस ऑफ पावर बनने के लक्ष्य को लेकर यूपी की सभी 80 सीटों पर आक्रामक चुनाव लड़ने की रणनीति में है.

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हालांकि, बीजेपी इस बात को भलीभांति जानती है कि पिछली चुनावी उपलब्धि को दोहरा पाना मौजूदा दौर में आसान नहीं है. बीजेपी साथ-साथ यह भी समझती है कि एसपी-बीएसपी गठबंधन और कांग्रेस के बीच कड़वाहट नहीं है. इसलिए चौतरफा आक्रमण रोकने और प्रहार करने की रणनीति जरूरी है. बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह खुद यूपी में 50 फीसदी वोट के लिए रणनीति बनाने की कमान संभाल रहे हैं. इसी रणनीति के तहत अमित शाह 30 जनवरी को लखनऊ का दौरा करने वाले हैं.

'प्रियंका दोधारी तलवार सरीखी हैं'

लखनऊ दौरे के दौरान शाह अमित शाह लखनऊ, कानपुर और बुंदेलखंड क्षेत्रों के बूथ कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे. 8 फरवरी को वाराणसी और गोरखपुर क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे. बूथ कार्यकर्ता सम्‍मेलन भी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति का हिस्‍सा है. बीजेपी के रणनीतिकार दो मोर्चे पर एकसाथ काम कर रहे हैं. पहला पूर्वी यूपी की चुनावी लड़ाई को बीजेपी बनाम कांग्रेस बनाना और दूसरा महिला स्‍टार प्रचारकों के जरिए प्रियंका वाड्रा पर चौतरफा हमला करना. प्रियंका गांधी राजनीतिक जमीन पर कितने पानी में हैं ये साबित होना भले अभी बाकी हो. पर यूपी गठबंधन की लड़ाई में प्रियंका गांधी को भी बीजेपी बतौर ढाल इस्‍तेमाल करना चाहती है. बीजेपी नेतृत्‍व इस मंथन में लगा है कि कैसे यूपी के मुकाबले त्रिकोणीय रूप दिया जाए.

बीजेपी नेतृत्‍व ये भी जानता है कि प्रियंका दोधारी तलवार सरीखी हैं. सही रणनीति रही तो वो बीजेपी से ज्‍यादा महागठबंधन के वोट को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इस बात पर सभी सहमत हैं कि प्रियंका के व्यक्तित्व में लोगों को इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. लिहाजा महिला वोटर्स का प्रियंका के प्रति आकर्षण से इनकार नहीं किया जा सकता.

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ऐसे में केंद्र और योगी कैबिनेट की महिला नेताओं के आक्रामक हमले के जरिए उस आकर्षण को धुंधला करने की रणनीति है. स्‍थानीय राजनीतिक पंडितों की मानें तो यूपी में कांग्रेस के पास आज भले ही जमीनी कार्यकर्ताओं का अभाव है लेकिन प्रियंका के मोर्चे पर खड़े होने से कांग्रेस को पुनर्जीवन का मौका जरूर मिल सकता है. देखना यह है कि अब एसपी-बीएसपी गठबंधन के भंवर में पहले से फंसी बीजेपी प्रियंका की धमाकेदार एंट्री से खुद को कैसे संभालती है.