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लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी के सहयोगी एक-एक कर नाराज क्यों हो रहे हैं?

बीजेपी की कोशिश इस बार दक्षिण से लेकर नॉर्थ-ईस्ट तक उन राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाने की है लेकिन पुराने सहयोगियों के एक-एक कर अलग होने से बीजेपी की उम्मीदों को झटका लग सकता है.

Amitesh

अगले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सहयोगी दल आंखें तरेर रहे हैं. बीजेपी की सहयोगी और आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू का बयान बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजाने वाला है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि ‘हम बीजेपी के साथ मित्र धर्म निभा रहे हैं लेकिन, अगर वो गठबंधन नहीं चलाना चाहते हैं तो हम अकेले जाने को तैयार हैं.’

नायडू का यह बयान बीजेपी के साथ टीडीपी के रिश्तों में आ रही खटास को अब सतह पर ला दिया है. काफी लंबे वक्त से राज्य में टीडीपी के साथ बीजेपी के रिश्तों को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. खासतौर से बीजेपी नेताओं की तरफ से आ रहे बयान भी इस बात के संकेत दे रहे थे. लेकिन टीडीपी अध्यक्ष और सूबे के मुखिया के बयान ने रिश्तों में आ रहे ठंडेपन का एहसास करा दिया है.


बीजेपी नेताओं के बयान से नाराज नायडू

नायडू की नाराजगी राज्य के बीजेपी नेताओं की तरफ से आ रहे बयानों को लेकर है. उनको लगता है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को इस तरह के बयानों पर रोक लगानी चाहिए. नायडू का कहना है कि राज्य सरकार पर बीजेपी नेता लगातार उंगली उठा रहे हैं. यही बात चंद्रबाबू नायडू को नागवार गुजर रही है.

आंध्र प्रदेश में 2014 में गठबंधन के बाद बीजेपी और टीडीपी दोनों को फायदा हुआ था. बीजेपी को केंद्र सरकार में टीडीपी समर्थन दे रही है. केंद्र सरकार में टीडीपी शामिल भी है, जबकि, टीडीपी-बीजेपी की सरकार आंध्र प्रदेश में चल रही है.

इसके पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री थे तो उस वक्त भी चंद्रबाबू नायडू ने वाजपेयी सरकार को समर्थन दिया था. लेकिन, बाद में 2004 में सरकार जाने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला कर लिया था. 2004 में आंध्र प्रदेश में भी टीडीपी सरकार चली गई थी. नायडू ने उस वक्त बीजेपी की नीतियों के चलते अल्पसंख्यक समुदाय की नाराजगी का हवाला देकर बीजेपी से दूरी बना ली थी. शायद नायडू टीडीपी की हार के लिए बीजेपी को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे.

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वक्त ने करवट बदला और आंध्र प्रदेश में कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री वाईएसआर की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत के बाद कांग्रेस के भीतर मचे घमासान का फायदा चंद्रबाबू नायडू ने उठाया. लेकिन एक बार फिर नायडू ने मोदी लहर का फायदा उठाने के लिए बीजेपी के साथ समझौता  कर लिया. आज आंध्र प्रदेश और केंद्र दोनों जगहों पर टीडीपी-बीजेपी सरकार में शामिल है.

लेकिन अब लगभग चार साल तक सत्ता में बने रहने के बाद लगता है दोनों दलों का हनीमून पीरियड खत्म होने लगा है. वरना इस तरह का बयान देखने को नहीं मिलता.

जगन की बीजेपी से नजदीकी का असर!

दरअसल, आंध्र प्रदेश के कई बीजेपी नेता नायडू सरकार की आलोचना करने लगे हैं. कुछ नेताओं की तरफ से जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के साथ काम करने के विकल्प का भी इशारा दिया जाने लगा है.

अभी हाल ही में जगनमोहन रेड्डी की तरफ से भी कुछ इसी तरह का बयान आया है जिसने मुख्यमंत्री नायडू को परेशान कर दिया है. जगनमोहन ने कहा है कि ‘अगर आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है तो हम बीजेपी को समर्थन देने के लिए तैयार हैं.’

हालांकि, लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आंध्र में विधानसभा चुनाव भी होने वाला है. अभी इसमें एक साल का वक्त है, लेकिन, चंद्रबाबू नायडू के बयान ने बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी है.

शिवसेना ने तय की तलाक की तारीख

इससे पहले शिवसेना ने अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर बीजेपी की परेशानी पहले ही बढ़ा दी है. मुंबई की नेशनल एक्जीक्यूटिव की बैठक में शिवसेना ने प्रस्ताव पारित कर अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया.

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बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते लोकसभा चुनाव के वक्त से ही खराब हो गए हैं. लेकिन शिवसेना केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह टीडीपी की तरह ही बीजेपी के साथ सरकार में शामिल है. शिवसेना बीजेपी की सबसे पुरानी पार्टनर है. लेकिन, अब दोनों के बीच की लड़ाई और वर्चस्व की कोशिशों ने रिश्ते को तलाक के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है.

बिहार में हो सकता है बवाल!

कुछ इसी तरह का हाल बिहार में भी दिख रहा है. पिछली बार लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश में रामबिलास पासवान की पार्टी एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के साथ समझौता किया था. बीजेपी को उस वक्त फायदा भी मिला था.

लेकिन अब बिहार में नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद एनडीए के समीकरण में बदलाव की आशंका दिखने लगी है. लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी के लिए सीटों का बंटवारा करना काफी मुश्किल होगा, क्योंकि उसे जेडीयू के साथ-साथ एलजेपी और आरएलएसपी के लिए भी सीटें छोड़नी पड़ेगी.

दूसरी तरफ, आरएलएसपी मे दोफाड़ होने के बाद जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार के नेतृत्व में दूसरे धड़े और जेडीयू से निकलकर अलग पार्टी बना चुके पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी 'हम' के साथ भी सीटों का समझौता इतना आसान नहीं होगा.

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नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ आने के बाद अब बाकी छोटे क्षेत्रीय दलों को कम भाव मिलने का डर सता रहा है. लिहाजा अभी से ही उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के अगले कदम को लेकर शंका बनी रहती है. इस शंका को कुशवाहा और मांझी के बीच-बीच में आ रहे बयान और बड़ा कर देते हैं.

ऐसे में बिहार में भी लोकसभा चुनाव के वक्त एनडीए के कुछ सहयोगी दलों के अलग होकर कांग्रेस-आरजेडी खेमे में जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. उधर, हरियाणा में हरियाणा जनहित कांग्रेस का पहले ही कांग्रेस में विलय हो चुका है. यह बीजेपी के लिए पहला झटका था. लेकिन अब शिवसेना-टीडीपी के रूख ने बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.

बीजेपी की कोशिश इस बार दक्षिण से लेकर नॉर्थ-ईस्ट तक उन राज्यों में अपना जनाधार बढ़ाने की है जहां अबतक उसे ज्यादा सफलता नहीं मिली है. कोशिश एंटीइंकंबेंसी से संभावित नुकसान की भरपाई की है. लेकिन पुराने सहयोगियों के एक-एक कर अलग होने से बीजेपी की उम्मीदों को झटका लग सकता है.