राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार शिवसेना के साल 2019 का चुनाव अकेले लड़ने का फैसला और राज्य में अपनी खोई चुनावी जमीन को वापस हासिल करने के फैसले से बीजेपी के साथ इसके गठबंधन में दरार पैदा होने की संभावना है.
उद्धव ठाकरे की नेतृत्व वाली पार्टी का मानना है कि उसकी सहयोगी बीजेपी का इस देश में समर्थन कम हो रहा है और वह देवेंद्र फड़णवीस सरकार की ‘विफलताओं’ का अकेले चुनाव में जाकर लाभ उठाना चाहती है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले की वजह से दोनों पार्टियों के बुनियादी मतदाताओं में बिखराब होगा और इससे विपक्षी पार्टियों कांग्रेस और रांकपा के लिए संभावनाएं खुलेंगी और बीजेपी को इससे कड़ी चुनौती मिलेगी.
लंबे समय से साथ रहीं पार्टियां होंगी अलग
शिवसेना ने पिछले सप्ताह आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अपनी बैठक में प्रस्ताव पारित किया था कि वह साल 2019 का लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी.
राज्य में शिवसेना बीजेपी की कनिष्ठ सहयोगी पार्टी है.
शहर के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष सुधेंद्र कुलकर्णी ने बताया कि राज्य की राजनीति बहुत ही ज्यादा अस्थायी, अनिश्चित और सिद्धांतविहीन होने जा रही है.
उन्होंने कहा कि लंबे समय तक साथ रहने वाले दो भगवा सहयोगियों के अलग होने से महाराष्ट्र की राजनीति और बहुकोणीय हो जाएगी.
कुलकर्णी ने कहा, 'राजनीति में चतुष्कोणिय मुकाबले (कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना और बीजेपी) की वजह से राज्य काफी प्रभावित हुआ है. यहां तक की दो प्रतिद्वंद्वी गठबंधन (शिवसेना-बीजेपी और कांग्रेस-एनसीपी) भी मिले-जुले तरीके से नहीं रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल जोशी ने कहा कि बीजेपी के बढ़ते प्रभाव की वजह से शिवसेना में असुरक्षा की भावना आ गई है.
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