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कश्मीर: बात अब राजनीतिक दलों के हाथ से निकलती जा रही है

2014 में बढ़-चढ़कर चुनाव में हिस्सा लेने वाले युवा अब चुनाव के नाम पर ही भड़क जाते हैं.

Sameer Yasir

कश्मीर घाटी में हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि बात अब कश्मीर के राजनीतिक दलों के हाथ से निकलती जा रही है. ऐसा लगता है कि कश्मीरी अब नेताओं का सामाजिक बहिष्कार करने की चेतावनी दे रहे हैं. भले ही ये बायकॉट अस्थाई हो, मगर है ये बेहद डरावना.

पिछले कुछ महीनों के हालात ये बताने के लिए काफी हैं कि कश्मीर में मुख्यधारा की राजनीति कितनी दुश्वार है. जो नेता जनता के नुमाइंदे समझे जाते हैं, वो आम लोगों से बहुत दूर हैं. वो जिनकी नुमाइंदगी करते हैं, उन्हीं की राय से, उन्हीं की मुश्किलों से नावाकिफ हैं.


राजनेताओं की बजाए अलगाववादी हैं मुख्यधारा में शामिल

सत्ताधारी पीडीपी के महासचिव निजामुद्दीन बट कहते हैं, 'आज अलगाववादी और मुख्यधारा के राजनीतिक दल एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं. दोनों तरफ के हिंसक तत्वों ने बातचीत को कमोबेश नामुमकिन बना दिया है. आज अलगाववादी, समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं. वहीं मुख्यधारा के नेता आज अलग-थलग पड़ गए हैं.'

बट आगे कहते हैं, 'अलगाववादियों ने खुद को हिंसा करने वालों के हाथों में सौंप दिया है. वो राजनीतिक समाधान नहीं चाहते. वो अपनी मंजिल हासिल करने के लिए सिर्फ हिंसा के रास्ते पर चलना चाहते हैं.'

आज कश्मीर में बातचीत का रास्ता पूरी तरह बंद पड़ा है. सियासी कार्यकर्ताओं से मिलना, प्रचार में उनकी राय लेना और रणनीति बनाना, ये सब काम आज बंद दरवाजों के भीतर हो रहे हैं. ऐसी बैठकों से पहले सादी वर्दी में पुलिस तैनात कर दी जाती है, जो आने-जाने वालों पर नजर रखती है.

आज कश्मीर में नेताओं और अवाम के बीच संवाद पूरी तरह से खत्म हो गया है. नेताओं से फोन पर बात करना भी जान के लिए खतरा साबित हो सकता है.

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क्या महबूबा मुफ्ती की बात उल्टी पड़ गई है?

नेशनल कांफ्रेंस के प्रदेश अध्यक्ष नासिर सोगामी कहते हैं, 'कश्मीर के आज के हालात बहुत तकलीफदेह हैं. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहती थीं कि सिर्फ पांच फीसद लोग हिंसा चाहते हैं. लेकिन आज ऐसा लगता है कि सिर्फ पांच फीसद लोग अमन के रास्ते पर चलना चाहते हैं. आज बातचीत का रास्ता बंद होता जा रहा है. सरकार का इकबाल कमजोर हो गया है. बाकी राजनीतिक दलों की कोई सुनने वाला नहीं है. ये सबके लिए बड़ी चुनौती है'.

Photo. wikicommons

सोगामी जोड़ते हैं, 'अगर हालात सुधारने के लिए जल्द ही कुछ कदम नहीं उठाए गए तो, मौजूदा सरकार और बाकी दलों के खिलाफ गुस्सा और नफरत और बढ़ेगी. केंद्र सरकार हिंसा के इस दौर को राजनीतिक समस्या ही नहीं मानती. इस वजह से मुश्किल और बढ़ती जा रही है.'

आज आतंकवादियों और अलगाववादियों को भारी जन समर्थन मिल रहा है. लोग उन पर ज्यादा यकीन करने लगे हैं. एक सीनियर पुलिस अफसर कहते हैं, 'हाल ही में सुरक्षा बलों के काफिले पर हमला करने वाले आतंकियों को छुपने की जगह देने के लिए लोगों ने अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे, ताकि आतंकी उनके घर में पनाह ले सकें.'

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अब हिंसा को ही अकेला रास्ता मानते हैं ये युवा

कश्मीर की युवा पीढ़ी ने हिंसा का पिछला दौर नहीं देखा था. वो सामान्य हालात के आदी हो चले थे. लेकिन आज वो सड़कों पर हैं. वो ऐसी जंग लड़ रहे हैं जिसका फिलहाल कोई अंत नहीं दिख रहा है. वो मौजूदा हालात को मंजूर करने को राजी नहीं, भले ही उनकी जान चली जाए.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर कहते हैं कि ये गुस्सा मौजूदा सरकार के खिलाफ है. वो पीडीपी से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उसने राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को कश्मीर में पैठ करने का मौका दे दिया है.

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मीर कहते हैं कि जब पीडीपी-बीजेपी की सरकार बनी थी, तो उसने कश्मीरियों से बातचीत का वादा किया था. मगर आज वो सड़कें बनाने में लगे हैं. बातचीत का जिक्र भी नहीं होता. वो अपने वादे भी नहीं पूरे कर रहे हैं. वो लोगों को कीड़े-मकोड़ों की तरह मार रहे हैं. मौजूदा सरकार ने कश्मीर में तबाही मचा रखी है. ऐसे में लोग राजनेताओं से नफरत ही करेंगे. मीर मानते हैं कि लोगों की नाराजगी की बड़ी वजह मुफ्ती सरकार का कामकाज का तरीका है.

(फोटो: पीटीआई)

अब चुनाव इनके लिए कोई मायने नहीं रखते

श्रीनगर लोकसभा चुनाव में बेहद कम मतदान से जाहिर है कि लोगों का मौजूदा सियासी दलों से भरोसा उठ चुका है. सीपीएम के नेता मोहम्मद यूसुफ तारीगामी कहते हैं, 'आज हम बेहद खराब हालात में रह रहे हैं. मौजूदा दौर 90 के दशक की हिंसा से भी बुरा है. अगर कोई जादू नहीं होता, तो कश्मीर से मुख्यधारा के दलों का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा. ठीक उसी तरह जैसे आतंकवाद की शुरुआत के वक्त हुआ था'.

तारीगामी कहते हैं कि 2014 के चुनाव में युवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. वोट डालने के लिए लोग लंबी कतारों में खड़े हुए थे. लेकिन तीन साल में जो भी हुआ आज युवा उससे बेहद खफा हैं. वो चुनाव के नाम पर ही भड़क जाते हैं. तारीगामी कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार को अपने रवैये पर विचार करना चाहिए. उन्होंने कश्मीर के नाखुश युवाओं के हिंसा का रास्ता पकड़ने की वजह तलाशनी चाहिए.

पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक खानसाहिब हकीम मोहम्मद यासीन कहते हैं, 'हिंसा किसी भी मसले का हल नहीं. भारत और पाकिस्तान, कश्मीर मुद्दा सुलझाने को लेकर गंभीर नहीं हैं. कश्मीर में आज हालत इसी वजह से बिगड़े हैं'.