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कर्नाटक चुनाव: 'चिकन' में जीत तलाश रही बीजेपी ने वोटरों को किया निराश

राहुल गांधी मंदिर में पूजा-पाठ करने से पहले चिकन खाते हैं या नहीं, इससे कर्नाटक के लोगों की जिंदगी न तो बेहतर हो जाएगी और न ही खराब.

T S Sudhir

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान शुरू हो चुका है. देश के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी पूरी शिद्दत के साथ चुनावी तैयारियों में जुटे हैं. गुजरात की तरह ही कर्नाटक में भी चुनाव प्रचार की कमान खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संभाल रखी है. चार दिन के चुनावी दौरे पर कर्नाटक पहुंचे राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और कर्नाटक में बीजेपी के सीएम उम्मीदवार बी. एस. येदियुरप्पा पर जमकर निशाना साधा. राहुल ने आरोप लगाया कि बीजेपी अलग-अलग समुदायों के बीच नफरत फैलाने और आग लगाने का काम कर रही है.

लेकिन राहुल के कर्नाटक दौरे के दौरान कांग्रेस राज्य में चिकन और मंदिर के दोराहे पर आकर फंस गई है. बीजेपी की रूल बुक में जहां मंदिर पहले आता है. वहीं इसके विपरीत, कांग्रेस का हाथ चिकन के साथ है. ऐसा भगवा पार्टी यानी बीजेपी का दावा है. दरअसल बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने रविवार को कोप्पल जिले के कनकगिरी में स्थित नरसिम्हा स्वामी मंदिर में जाने से पहले चिकन खाया था. येदियुरप्पा का यह आरोप कथित रूप से एक अपुष्ट मीडिया रिपोर्ट पर आधारित है.


पहले सिद्धारमैया पर लग चुका है आरोप

कांग्रेस को येदियुरप्पा का आरोप बहुत नागवार लगा है. पार्टी ने न सिर्फ आरोप को नकारा बल्कि पलटवार करते हुए कहा है कि बीजेपी लोगों के खाने की थाली में भी ताक-झांक करती है. वैसे येदियुरप्पा इस तरह का आरोप कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर भी लगा चुके हैं. पिछले साल अक्टूबर में सिद्धारमैया ने धर्मस्थल के भगवान मंजूनाथ स्वामी मंदिर के दर्शन किए थे. उस वक्त येदियुरप्पा ने आरोप लगाया था कि सिद्धारमैया मछली (फिश फ्राई) और चिकन खाकर मंदिर में पहुंचे थे. हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने ऊपर लगे आरोप को खारिज कर दिया था. साथ ही उन्होंने पलटकर पूछा था कि अगर वह मछली या चिकन खाकर मंदिर चले जाते तो इसमें गलत क्या हो जाता. सिद्धारमैया की दलील से ऐसा लगा कि उनकी नज़र में घर की मुर्गी (चिकन) दाल बराबर है.

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बहरहाल, कर्नाटक में बीजेपी ने नॉन-वेज (मांसाहार) को अपने चुनाव अभियान का मुद्दा बनाकर लोगों को निराश किया है. एक विपक्षी दल अगर नॉन-वेज मेन्यू की आड़ में सत्तारूढ़ सरकार को हटाने की मंशा रखता है तो यह कर्नाटक के लोगों के लिए बेहद दुखद बात है. इससे जाहिर होता है कि कर्नाटक में बीजेपी के पास कल्पनाशीलता और रणनीति का भारी अभाव है. राज्य में कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर सिद्धारमैया सरकार को घेरा जा सकता है. लेकिन उसके बजाय बीजेपी चिकन का मुद्दा उठाकर अपनी छाती पीट रही है. या यूं कहें कि चिकन की हड्डी में अपनी जीत तलाश रही है.

राहुल के टेंपल रन के विरोध में बड़ा छिछला सा आरोप

बीजेपी का आरोप है कि राहुल गांधी महज़ एक 'चुनावी हिंदू' हैं, जो सिर्फ वोट पाने के लिए ही मंदिरों के चक्कर लगाते हैं. बीजेपी नेताओं को पक्का यकीन है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी किसी भी मंदिर में जाने से पहले चिकन जरूर खाते हैं, जोकि हिंदू धर्म की भावनाओं और मान्यताओं के खिलाफ है. वहीं कांग्रेस ऐसे किसी भी आरोप से इनकार करती है. कांग्रेस के मुताबिक बीजेपी कपोल कल्पना के आधार पर ऐसे अनर्गल आरोप लगा रही है. राहुल गांधी ने भी दोहराया है कि बीजेपी को भले ही उनके मंदिर जाने से दिक्कत हो, लेकिन वह मंदिरों के दर्शन करना बंद नहीं करेंगे.

राहुल गांधी के अडिग रुख को देखते हुए ही शायद बीजेपी को अपनी रणनीति में बदलाव के लिए मजबूर होना पड़ा है. लिहाजा पार्टी की तरफ से नई तरह की सियासी खिचड़ी पकाई जा रही है. यानी राहुल को घेरने के लिए चिकन का मुद्दा उछाला गया है. वैसे अभी तक सिर्फ बीफ ही बीजेपी की समस्या थी. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो बाकायदा चुनौती दे रखी है कि अगर सिद्धारमैया सच्चे हिंदू हैं तो वह कर्नाटक में बीफ पर रोक लगाकर दिखाएं. वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने योगी आदित्यनाथ की चुनौती का करारा जवाब दिया. सिद्धारमैया ने उन लोगों की साख पर ही सवाल उठा दिए जो बीफ खाने पर एतराज जताते हैं.

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सिद्धारमैया ने पूछा, 'हमारी खाने-पीने की आदतों के बारे में सवाल करने वाले ये लोग कौन हैं? तमाम हिंदू भी बीफ खाते हैं. मैं बीफ नहीं खाता क्योंकि मुझे पसंद नहीं है. लेकिन अगर मैं चाहूंगा तो ज़रूर खाऊंगा. मुझे रोकने वाले वे लोग कौन होते हैं?'

क्या बीजेपी को बाकी हिंदुओं से भी समस्या है?

'मछली और चिकन मेरी थाली में नहीं' के मुद्दे का प्रचार-प्रसार करके बीजेपी ने कर्नाटक में मुसीबत मोल ले ली है. बहुत से लोगों का मानना है कि बीजेपी गलत मुद्दे के सहारे खतरनाक रास्ते पर चल पड़ी है, जो कि उसे जीत की मंजिल से दूर ले जा सकता है. क्या बीजेपी को सिर्फ राहुल और सिद्धारमैया के नॉन-वेज खाकर मंदिर जाने से समस्या है? क्या बाकी हिंदुओं से बीजेपी को ऐसी कोई समस्या नहीं है? क्या ऐसी कोई मशीन है जिससे यह जांच हो सके कि मंदिर में प्रवेश करने से पहले किसी ने क्या खाया था?

क्या वे ऐसा सुझाव देंगे कि मंदिर के द्वार पर हर श्रद्धालु यह घोषणा करे कि उसने कोई नॉन-वेज आइटम नहीं खाया है?

नॉन-वेज का मुद्दा उठाकर बीजेपी कर्नाटक के मतदाताओं के कॉमन सेंस का अपमान कर रही है. राहुल गांधी मंदिर में पूजा-पाठ करने से पहले चिकन खाते हैं या नहीं, इससे कर्नाटक के लोगों की जिंदगी न तो बेहतर हो जाएगी और न ही खराब. लेकिन 'कर्नाटक सिर्फ शाकाहारियों के लिए है' जैसा प्रचार करके बीजेपी ने बड़ा जोखिम मोल ले लिया है. बीजेपी की भाषा में कहें तो, बीफ मुक्त, फिश मुक्त, चिकन-मुक्त कर्नाटक. क्या इसे पार्टी का मेन्यू माना जाए? क्या इस मेन्यू से बीजेपी के सभी सदस्य सहमत हैं?

इस वजह से नाकाम हो सकता है बीजेपी का हिंदुत्व ब्रांड

बीजेपी के शाकाहारी अभियान को धार्मिक रूप से ऊंची जाति में तो मान्यता मिल सकती है. लेकिन पिछड़ी जातियों में इस अभियान का कारगर होना मुश्किल नज़र आता है. क्योंकि सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं बल्कि पूरे देश में पिछड़ी जाति के लोग अपने देवी-देवताओं को मांस की भेंट चढ़ाते हैं. यही वजह है कि इस मामले में बीजेपी का हिंदुत्व ब्रांड नाकाम साबित हो सकता है. जबकि सिद्धारमैया की 'तो क्या' प्रतिक्रिया कांग्रेस को बढ़त दिला सकती है क्योंकि उससे कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व विस्तृत नजर आता है.

जनवरी में, तटीय कर्नाटक के सिरसी शहर में अभिनेता प्रकाश राज ने एक समारोह में शिरकत की थी. जहां उन्होंने केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े की आलोचना की थी. प्रकाश राज के जाने के बाद बीजेपी यूथ विंग के कार्यकर्ताओं ने मंच को गोमूत्र से धोया था. क्या बी.एस. येदियुरप्पा ने कोप्पल के मंदिर में भी वैसे ही शुद्धि अभियान का सुझाव दिया है?

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कर्नाटक की चुनावी थाली में सिर्फ चिकन और मछली जैसे खाद्य पदार्थ ही नहीं हैं. इसमें पकौड़ा भी शामिल है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पकौड़ाशास्त्र (पकौड़ानॉमिक्स) अब राजनीतिक आकर्षण बन चुका है. यही वजह है कि राहुल गांधी और उनके साथी कार्यकर्ता रायचूर जिले के कल्मला गांव में नाश्ते के एक स्टॉल पर जा पहुंचे और पकौड़े के दक्षिण भारतीय संस्करण ‘बाज्जी’ का लुत्फ उठाया. इस तरह उन्होंने न सिर्फ पेट पूजन किया बल्कि मोदी के पकौड़े वाले बयान पर विरोध भी दर्ज कराया.

दरअसल राहुल गांधी का असल मकसद लोगों को उस रोजगार की जमीनी सच्चाई दिखाना था, जिसे प्रधानमंत्री मोदी अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रहे हैं.

बहरहाल अब यह स्पष्ट हो गया है कि, मई में विधानसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के मतदाताओं को पाक-कला की प्रदर्शनी से कई तरह के वैचारिक पकवानों का लुत्फ उठाने का मौका मिलेगा. लिहाजा देखने वाली बात यह होगी कि राज्य की जनता किस पकवान पर अपनी सहमति की मुहर लगाएगी. वेज या नॉन-वेज?