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कर्नाटक चुनाव: कांग्रेस का आखिरी दांव, सोनिया की पॉपुलैरिटी भुनाना चाहती है पार्टी

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी पार्टी का प्रचार करने के लिए चुनावी समर में उतर रही हैं. कर्नाटक के बीजापुर में सोनिया की रैली मंगलवार को चार बजे होने वाली है. सोनिया गांधी को रणनीतिक तौर पर पार्टी ने आखिरी वक्त में उतारा है. कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के ताबड़तोड़ रैलियों के बाद रणनीति में बदलाव किया है. पार्टी को लग रहा है कि स्लाग ओवर्स में सोनिया की बैटिंग से कांग्रेस की नैय्या पार हो जाएगी.

कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा कि सोनिया बेल्लारी से सासंद रह चुकी हैं इसलिए बीजेपी उनको नजरअंदाज करने की गलती ना करे. सोनिया गांधी के प्रभाव को कम आंकना भूल होगी. हालांकि बीजेपी के बढ़ते ग्राफ से कांग्रेस में खलबली मच गई है इसलिए सोनिया गांधी की आखिरी वक्त में रैली कराने का फैसला किया गया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कर्नाटक के नेताओं ने राहुल गांधी से सोनिया की रैली कराने की मांग की थी. जिसके बाद तय हुआ कि पार्टी को जीत की दहलीज पर पहुंचाने के लिए सोनिया गांधी की पब्लिक मीटिंग कराई जाए. किस जगह रैली की जाए इसके लिए काफी मशक्कत की गई. अब बीजापुर में रैली का आयोजन किया जा रहा है.


बीजापुर में रैली का मकसद

बीजापुर उत्तर पश्चिम कर्नाटक का इलाका है. जहां से तकरीबन 94 सीटें आती हैं. इस इलाके में जीत का मतलब सरकार बनना तय है. बीजापुर बेलगाम डिवीजन के तहत आता है. इस डिवीजन में धारवाड़, गडग, हावेरी और उत्तर कन्नडा जिले आते हैं. कर्नाटक के एक सीनियर कांग्रेस नेता का कहना है कि सोनिया गांधी की अपील यहां ज्यादा है. इसलिए पार्टी इसे कैश कराना चाहती है. बीजापुर में पहला महिला विश्वविद्यालय 2003 में कांग्रेस के कार्यकाल में बना था. सोनिया गांधी इसका भी माइलेज लेने की कोशिश करेंगी. ये बात दीगर है कि उस वक्त के सीएम एसएम कृष्णा अब बीजेपी के साथ हैं.

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यही नहीं कर्नाटक में अल्पसंख्यक वोटों की तादाद काफी है. जिसे बंटने से रोकने के लिए सोनिया गांधी मैदान में उतरी हैं. खासकर जेडीएस की इन वोटों पर नजर है. यहां जेडीएस की ताकत ज्यादा नहीं है. सीधी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस की है. यहां का स्ट्राइक रेट मायने रखता है. कांग्रेस को लग रहा है कि वोट बंटने से फायदा बीजेपी को हो सकता है क्योंकि राहुल साफ्ट हिंदुत्व की लाइन पर हैं. इसलिए पार्टी को सोनिया गांधी का सहारा लेना पड़ा है.

2 साल बाद प्रचार में सोनिया गांधी

2 अगस्त, 2016 में तबियत खराब होने की वजह से सोनिया गांधी को यूपी विधानसभा का प्रचार बीच में छोड़कर आना पड़ा था. सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में रोड शो और रैली करनी थी, जिसके बाद से सोनिया गांधी ने पब्लिक मीटिंग से परहेज रखा था. गुजरात के हाई प्रोफाइल चुनाव से सोनिया गांधी ने दूरी बनाए रखी है. नॉर्थ ईस्ट के चुनाव में सोनिया ने पार्टी का प्रचार नहीं किया. पार्टी के सक्रिय काम-काज से सोनिया काफी दिन से अलग रहीं. दिसंबर में राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी थी. अप्रैल में पहली बार काफी अरसे के बाद सोनिया गांधी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली का दौरा किया था.

स्टार प्रचारक के लिस्ट में सोनिया

कांग्रेस की स्टार प्रचारक की लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम पहले से था. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी पार्टी की तरफ से चुनाव आयोग को दिया गया था. स्टार प्रचारक की लिस्ट में सहयोगी दलों के नेताओं का नाम था. हालांकि मनमोहन सिंह ने अभी तक प्रेस कांफ्रेस ही किया है. लेकिन राजनीति में कब कौन सा दांव कारगर हो जाए कहना मुश्किल है. कर्नाटक की लड़ाई ऐसे मोड़ पर है कि दोनों तरफ के लोग अपने हर योद्धा को मैदान में आजमा रहे हैं. हालांकि माना जा रहा था कि कांग्रेस में सोनिया युग समाप्त हो गया है. राहुल गांधी युग शुरू हो गया है. लेकिन राहुल गांधी को भी सोनिया गांधी की जरुरत पड़ गई.

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कर्नाटक चुनाव कांग्रेस के लिए जीतना जरूरी

कर्नाटक का चुनाव कांग्रेस को जीतना अत्यंत जरूरी है. इससे विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ेगी. ये बात और है कि चुनाव पीएम बनाम सीएम लड़ा जा रहा है. लेकिन कांग्रेस की राजनीति में जीत का क्रेटिड राहुल गांधी को ही जाएगा. तमाम विपक्ष के नेता कर्नाटक चुनाव के नतीजों पर आंख गड़ाए हैं. अगर कांग्रेस जीतेगी तो गठबंधन की धुरी बनेगी. नहीं तो तीसरे मोर्चे की कश्मकश बढ़ेगी. ममता बनर्जी और के सी आर इस ताक में बैठे हैं. दोनों नेता कई बार तीसरे मोर्चे की वकालत कर चुके हैं.

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सोनिया की भूमिका

राहुल गांधी के अध्यक्ष के नामांकन के वक्त सोनिया गांधी की भूमिका तय हो गयी थी. फ़र्स्टपोस्ट ने ही खबर दी थी कि सोनिया गांधी यूपीए और कांग्रेस संसदीय दल की चेयरमैन बनी रहेंगी. हालांकि कांग्रेस में परंपरा यही थी कि पार्टी अध्यक्ष ही संसदीय दल का अध्यक्ष होता है. लेकिन सोनिया गांधी गठबंधन की राजनीति में कांग्रेस की जरुरत है क्योंकि गठबंधन के कई नेता राहुल गांधी के साथ सहज नहीं है. उनको सोनिया और उनकी टीम ही एकजुट कर सकती हैं. इसलिए विपक्ष की राजनीति में सोनिया गांधी का महत्व बरकरार है. इस चुनाव के बाद सोनिया गांधी के सामने यूपीए के पुराने दलों को साथ लाने की चुनौती है. जिसमें रामविलास पासवान और रामदास अठावले एनडीए के साथ है. तो ममता बनर्जी कन्नी काटने में लगी हैं.