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राजस्थान: अफसरों को बचाने में अपनी ही पोल खोल रही है सरकार

जनता ने अगर अपनी समझ का परिचय दे दिया तो भगवा खेमे को इतना नुकसान हो जाएगा कि आंकड़ें सिर्फ रुलाएंगे

Mahendra Saini

कहते हैं जब राजा चौपट हो तो नगरी में अंधेरा छाने से कोई रोक नहीं सकता. राजस्थान में हालात इससे अलग नहीं दिख रहे हैं. देश के सबसे बड़े राज्य में बीजेपी सरकार अपने कार्यकाल के चौथे साल में है. अगले साल यहां चुनाव हैं.

लेकिन राज्य में चर्चा का केंद्र बिंदु विकास का पैमाना नहीं बल्कि सरकार के एक के बाद एक बेतुके फैसले, परस्पर विरोधी आंकड़े और इनके समर्थन में मंत्रियों की अतार्किक बयानबाजी ही ज्यादा है.


इसी सोमवार को भारी विरोध के बावजूद सरकार ने भ्रष्ट आचरण के आरोपी लोकसेवकों को जांच से बचाने वाला कानून विधानसभा में पेश किया. बदले हालात में आखिरकार ये बिल प्रवर समिति को भेजकर राजे सरकार ने फौरी राहत ली.

लेकिन इसके समर्थन में पहले गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने जो आंकड़े और तर्क पेश किए थे, बुधवार को खुद गृहमंत्री ने नए आंकड़ें पेशकर अपने ही तर्कों की हवा निकाल दी. समझ में नहीं आता कि इतने बड़े पदों पर बैठे जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी क्या बिना सोचे-विचारे ही काम करते हैं.

आंकड़ों की बाजीगरी में फंसे गृहमंत्री 

CrPC और IPC में संशोधन वाले काले कानून के समर्थन में सरकार और गृहमंत्री ने दावा किया था कि 2013 के बाद लोकसेवकों के खिलाफ कुल दर्ज मामलों में 73% फर्जी पाए गए हैं. लोकसेवकों को बदनामी से बचाने और उन्हे निडर होकर काम करने देने के लिए ही कानून में संशोधन उन्होने बेहद जरूरी बताया था.

बुधवार को बीजेपी विधायक मोहन लाल गुप्ता के सवाल पर गृहमंत्री ने ही इससे एकदम उलट सच विधानसभा में रखा. कटारिया ने बताया कि पिछले 3 साल में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने 60 IAS और RAS अफसरों के खिलाफ कुल 72 मामले दर्ज किए गए हैं.

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इनमें से 56 में जांच चल रही है, 10 में चालान पेश कर दिया गया है और 6 में ही फाइनल रिपोर्ट (एफआर) लगी है. उन्होने खुद की पीठ ठोंकते हुए दावा किया कि अफसरों पर इतनी बड़ी कार्रवाई देश का कोई और राज्य नहीं कर पाया है.

खुद को शाबाशी देने की कोशिश में कटारिया भूल गए कि इसी हफ्ते उन्होंने सदन में कुछ और ही आंकड़े रखे थे. 3 दिन के अंदर परस्पर दो विरोधाभासी आंकड़े राजस्थान सरकार ने पेश किए हैं. एक में कहा गया कि कुल मामलों में से 73% फर्जी पाए गए.

मुझे लगता है किसी मामले के असली या फर्जी होने का पता जांच के बाद ही लगता होगा. यानी कुल दर्ज मामलों में सभी में जांच पूरी हो गई होगी तभी सरकार विश्वास से कह पाई होगी कि 73% मामले फर्जी हैं.

दूसरी ओर, अपने दूसरे दावे में सरकार कह रही है कि 60 अफसरों पर दर्ज 72 मामलों में 6 में एफआर लग चुकी है. यानी सिर्फ 8.33% मामले पूर्णता पर पहुंच सके हैं.

फिर सरकार ने कैसे कह दिया कि लोकसेवकों के खिलाफ 73% मामले फर्जी हैं. ये तो सरासर सदन के अपमान का ही नहीं बल्कि जनता के साथ धोखे का मामला भी हो जाता है.

सरकार की पोल खोलने वाला एक और सच अभी बाकी है. अगर आपराधिक कानून (राजस्थान संशोधन)-2017 पारित कर दिया जाता है तो ऐसा सच शायद कभी सामने नहीं आ पाए क्योंकि तब मीडिया पर भी पाबंदी लग जाएगी और लोकसेवकों के मामलों पर कोई सवाल भी नहीं पूछ पाएगा.

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली एक जानकारी के मुताबिक पिछले 24 महीने में ACB को लोकसेवकों के खिलाफ 16 हजार से ज्यादा शिकायतें मिली हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ 51 मामले ही दर्ज किए गए हैं. अब ये समझ से बिल्कुल परे है कि सरकार 73% मामलों के फर्जी होने का आंकड़ा कहां से जुटा लाई.

भ्रष्टाचार पर दावा कुछ, हकीकत कुछ

राजस्थान में बीजेपी नेता जोर देकर कहते हैं कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए वे जीरो टॉलरेंस पॉलिसी पर कायम हैं. यूपीए-2 के कुछ काले कारनामों के बाद केंद्र में भी बीजेपी इस बात का ढोल पीटते नहीं थकती कि साढ़े तीन साल में अभी तक भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने नहीं आया है.

लेकिन राजस्थान में ही कुछएक मिसाल ऐसी हैं जिनसे शक का पर्याप्त आधार बन जाता है. जानकारों का कहना है कि ACB में आईपीएस दिनेश एम. एन. ने कई प्रशासनिक अधिकारियों को ट्रैप किया था.

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इनमें नीरज के. पवन और अशोक सिंघवी जैसे सीनियर आईएएस भी शामिल हैं. लेकिन ऊपरी दबाव के चलते दिनेश एमएन का ACB से तबादला कर दिया गया.

पिछले दिनों, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और आलोचना को दबाने वाले कई और काम राजस्थान में किए गए. गांवों में सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाए बाहुबलियों को DLC दर पर सरकारी जमीन सौंप देने का प्रस्ताव तैयार किया गया.

राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी की. इसके अलावा, सरकार के गलत फैसलों की सोशल मीडिया पर आलोचना को भी प्रतिबंधित करने वाला एक सर्कुलर जारी किया गया. इसके तहत, कोई भी सरकारी अधिकारी-कर्मचारी शासन की आलोचना नहीं कर सकता.

ये सब तब हो रहा है जब संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) आईएएस परीक्षा के अभ्यर्थियों को नीतिशास्त्र के पैमाने पर भी जांचता है. नीतिशास्त्र के इस प्रश्नपत्र के सिलेबस में एक आईएएस के लिए गैर-तरफदारी, वस्तुनिष्ठता, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, जवाबदेहिता जैसे नैतिक मूल्य शामिल हैं.

इनके अनुसार एक लोकसेवक सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा से नहीं बल्कि जनता की सेवा के उद्देश्य से प्रेरित होकर काम करेगा.

लेकिन राजस्थान सरकार के इन फैसलों को देखें तो यह साफ-साफ नैतिक और लोकसेवा के मूल्यों का हनन दिखता है. आखिर, उस मत को सरकार कैसे प्रतिबंधित कर सकती है जो उसकी गलत नीतियों या भ्रष्ट आचरण की आलोचना करता हो.

समझो कि जनता जागरूक है!

इसी दौरान, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी राजे सरकार पर ट्वीट किया कि ये 2017 है न कि 1817. वाकई में ये समझ से परे है कि बीजेपी थिंक टैंक जनता को इतना बेवकूफ क्यों समझ रहा है जो लोकतंत्र में सामंतवादी काले कानूनों के लिए जोर-जबरदस्ती तक की जा रही है. जनता ने अगर अपनी समझ का परिचय दे दिया तो भगवा खेमे को इतना नुकसान हो जाएगा कि आंकड़ें सिर्फ रुलाएंगे.

वैसे भी, राजस्थान में 2018 चुनावी साल है. बीजेपी को समझना होगा कि चुनावी साल में जनता की समझ पर सवाल उठाना आत्मघाती हो सकता है. न ही जनता को बेतुके तर्कों, गलत आंकड़ों और फर्जी जुमलों से बहकाया जा सकता है. बेहतर होगा, सरकारें संविधान प्रदत्त नागरिक अधिकारों का हनन न करें. आखिर लोकतंत्र में ताकत जनता के पास ही है और राज्य हमेशा ध्यान रखे कि संविधान के पहले तीन शब्द– 'हम भारत के लोग..' ही हैं.

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