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सबसे लोकप्रिय पीएम के भरोसे पूरा होगा अमित शाह का मिशन 360?

मोदी के चाणक्य शाह की तैयारी ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से हो रही है. सर्वे में इंडिया का मूड भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.

Amitesh

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मिशन मोड में काम कर रहे हैं. देश के अलग-अलग राज्यों की खाक छानने वाले शाह अभी से ही शह और मात के खेल के लिए बिसात बिछाने में लगे हैं.

इस सियासी बिसात पर सोच-समझकर अपने मोहरे चलने वाले अमित शाह ने अभी से ही 2019 की बड़ी लड़ाई के लिए कमर कस ली है. अति आत्मविश्वास में ना आने की उनकी फितरत ही उन्हें इस बड़ी लड़ाई के लिए तैयार करती है.


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह यूपी समेत कई राज्यों में लगातार जीत के बावजूद कभी रिलैक्स मोड में नहीं दिखे. कभी यूपी तो कभी बंगाल तो कभी केरल तो कभी हरियाणा लगातार अलग-अलग राज्यों में प्रवास कर रहे हैं. बस नजर 2019 की लड़ाई पर जा टिकी है.

अमित शाह ने इसी कड़ी में दिल्ली में पार्टी दफ्तर में कई वरिष्ठ मंत्रियों और संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बड़ी बैठक की है. सबके सामने पार्टी की रणनीति का प्रेजेंटेशन दिया गया है और अबतक का सबसे बड़ा टारगेट दिया है जिसका नाम है मिशन 360+

ये टारगेट केवल बीजेपी के लिए है, जिसने 2019 की लड़ाई के लिए अपने दम पर 360 से ज्यादा सीट जीतने का लक्ष्य रखा है.

अमित शाह का जीत का खाका

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति के मुताबिक अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी उन 150 सीटों पर फोकस कर रही है जिन सीटों पर पिछले लोकसभा चुनाव में वो दूसरे, तीसरे या चौथे स्थान पर रह गई थी.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, यूपी में रायबरेली से लेकर अमेठी तक की सीटों पर भी जीत का लक्ष्य रखा गया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक अमित शाह ने मीटिंग में इस बाबत कहा भी कि हम यूपी में सभी सीट क्यों नहीं जीत सकते हैं. खासतौर से कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सीट पर भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की नजर है.

बीजेपी फिलहाल पूर्वी भारत और दक्षिण भारत के राज्यों की 123 सीटों पर मुख्य तौर से फोकस कर रही है. प्रोजेक्ट कोरोमंडल नाम से पहले से ही बीजेपी इन तटीय राज्यों में अपने जनाधार विस्तार और संगठन को ठीक करने में लगी है.

बीजेपी के फोकस में तमिलनाडु-पुडुचेरी की 40, केरल की 20, पश्चिम बंगाल की 42 और ओडीशा की 21 सीटें ही हैं. बीजेपी की तरफ से इन 123 सीटों में से 117 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है. दूसरी तरफ, पूर्वोत्तर के राज्यों की 25 में से 22 सीटें जीतने का लक्ष्य बीजेपी की तरफ से रखा गया है.

दरअसल, शाह को लगता है कि 2014 की तुलना में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लगभग 20 फीसदी सीटों पर नुकसान हो सकता है, जहां अभी उनके सांसद चुनाव जीते हैं. खासतौर से बीजेपी शासित राज्यों में जहां बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में क्लीनस्वीप किया है, उन राज्यों में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ उन सांसदों के खिलाफ भी एंटी इंकंबेंसी देखने को मिल सकती है.

हार को जीत में बदलने का फॉर्मूला

यही वजह है कि अमित शाह की तरफ से अभी से ही संभावित नुकसान की भरपाई के लिए उन सीटों पर फोकस किया जा रहा है जहां बीजेपी का प्रदर्शन उतना बेहतर नहीं रहा है.

इन सभी राज्यों में अभी से ही बीजेपी ने मोदी सरकार के दो केंद्रीय मंत्री, पार्टी के दो राष्ट्रीय सचिव और एक महासचिव को लगा दिया है. कोशिश है उन 150 सीटों पर हर हालत में जीत सुनिश्चित करने की.

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अमित शाह की तरफ से अभी से ही बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को चार्ज किया जा रहा है. पार्टी कैडर्स को भी रिजार्ज किया जा रहा है. इसीलिए कहा जा रहा है कि अब बीजेपी पहले वाली बीजेपी नहीं है. उस वक्त सत्ता में रहते हुए पार्टी संगठन पर उस कदर ध्यान नहीं दिया गया. लेकिन अब केंद्रीय मंत्रियों को भी संगठन के कामों में लगाकर बड़ी लड़ाई की तैयारी अभी से ही की जा रही है.

फील गुड फैक्टर के भंवर जाल में फंसने के बजाए अमित शाह ग्राउंड लेवेल पर काम करते दिख रहे हैं. यही उनकी ताकत भी है.

सर्वे में भी अमित शाह की रणनीति पर मुहर

अमित शाह की यह रणनीति रंग लाती भी दिख रही है. चुनाव में तो अभी वक्त है, लेकिन इस वक्त हो रहे सर्वे में बीजेपी और एनडीए अपने विरोधियों से काफी आगे दिख रही है.

हाल ही में कराए गए इंडिया टुडे और मार्केट रिसर्च कंपनी कार्वी इन्साइट्स के ओपिनियन सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक के सबसे लोकप्रिय पीएम के तौर पर उभरे हैं. मोदी इंदिरा गांधी से भी ज्यादा लोकप्रिय प्रधानमंत्री बताए गए हैं.

सर्वे के मुताबिक, अगर आज की तारीख में चुनाव कराए जाएं तो बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 349 सीटों पर जीत हासिल करेगी. ये आंकड़ा एनडीए के मौजूदा सीट 332 से 17 ज्यादा है.

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सर्वे में बीजेपी को अकेले अपने दम पर 298 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि सहयोगी दलों के खाते में 51 सीटें दिख रही हैं. मजे की बात ये है कि सर्वे में बीजेपी के वोटों का प्रतिशत 32 फीसदी से बढकर 35 फीसदी तक पहुंच रहा है.

सर्वे में कांग्रेस को 47 जबकि उसे सहयोगी दलों के साथ पूरी यूपीए को 75 सीटें दी गई हैं. जबकि गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी दलों को 119 सीटें मिलने की संभावना है.

मूड ऑफ द नेशन के नाम से कराए गए इस सर्वे से साफ है कि इस वक्त पूरे देश में मोदी लहर कम होने के बजाए और बढ़ ही रहा है. किसी भी तरह से मोदी की लोकप्रियता में कमी होती नहीं दिख रही है.

अमित शाह को लगता है इस वक्त मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाकर संगठन और सरकार में तालमेल के दम पर मिशन 360 को हासिल किया जा सकता है. अमित शाह को उम्मीदें बिखरे हुए विपक्ष से भी हो रही हैं.

बिखरा विपक्ष साझी सियासत को कैसे बचा पाएगा

इस वक्त विपक्षी दलों की बेचैनी मोदी को रोकने को लेकर हो रही है. राहुल गांधी से लेकर शरद यादव तक सभी मोदी विरोध के नाम पर एक हो रहे हैं. साझी विरासत बचाने के नाम पर साझी सियासत की खिचड़ी पकाने की कोशिश भी हो रही है.

लेकिन, विपक्ष की इस कोशिश पर ही सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक शरद यादव के सम्मेलन में पहुंच गए. लेकिन अखिलेश यादव, मायावती, ममता बनर्जी और लालू यादव जैसे दिग्गज नहीं पहुंचे. उनकी तरफ से उनके नुमाइंदे ही पहुंच पाए.

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कांग्रेस की पतली हालत के बाद राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी इन विपक्षी दलों को एक साथ एक मंच पर लाने की. नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद तो बिहार का प्रयोग फेल हो गया है. लेकिन बिहार के ही फॉर्मूले को यूपी और बंगाल में लागू करने की उनकी कोशिश परवान चढ़ जाएगी ऐसा कहना काफी मुश्किल है.

बंगाल में इसकी एक झलक देखने को भी मिल गई है जब स्थानीय निकाय के चुनाव में टीएमसी इस कदर हावी है कि लेफ्ट और कांग्रेस का वजूद ही मिट सा गया है.

ऐसे में अपनी ताकत के दम पर लेफ्ट और कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की भूल शायद ममता बनर्जी ना करें. दूसरी तरफ, केरल में कांग्रेस की अगुआई वाला यूडीएफ और लेफ्ट की अगुआई वाला एलडीएफ एक साथ एक मंच पर ना आ सके. ऐसी सूरत में एनडीए के खिलाफ पूरे विपक्ष को एक कर पाना राहुल गांधी के लिए मुश्किल होगा.

अपने संगठन को मजबूत करने और अपनी ताकत का विस्तार करने की कोशिश के बजाए सिर्फ हारे-थके नेताओं के भरोसे मोदी को रोकने की राहुल की मुहिम शायद कारगर ना हो क्योंकि मोदी के चाणक्य शाह की तैयारी ज्यादा योजनाबद्ध तरीके से हो रही है. सर्वे में इंडिया का मूड भी कुछ ऐसा ही लग रहा है.