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Mamata vs CBI की लड़ाई में अनचाहे ही सही, BJP ने सभी विरोधियों को एकजुट कर दिया है

इस पूरे घटनाक्रम से बीजेपी ने अनचाहे में ही सही, सभी रीजनल पार्टियों को एकजुट कर दिया है. नवीन पटनायक जिन्होंने सभी दलों से उचित दूरी बना रखी है. वे भी ममता के साथ दिखाई पड़ रहे हैं

Syed Mojiz Imam

कोलकाता के पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक चश्मे से देखने की जरूरत है. बीजेपी इस पूरे मामले को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास कर रही है ताकि बंगाल में राजनीतिक लाभ लिया जाए. बीजेपी बंगाल से अपनी टैली बढ़ाने की कोशिश कर रही है. हालांकि बीजेपी को ये गुमान नहीं था कि ममता बनर्जी बीजेपी के इस पूरे अभियान को संघ बनाम राज्य और उत्पीड़न की दिशा की तरफ इस तरह ले जाएगीं. कोलकाता के पुलिस का इस्तेमाल और फिर धरना देना, ममता की राजनीति को चमका रहा है. बीजेपी ममता के सिंगूर के और लेफ्ट की सरकारों से की लड़ाई भूल गई है. ममता बनर्जी जो ठान लेती हैं, वही करती हैं.

इस धरना प्रदर्शन से ममता सेंटर स्टेज में


ममता बनर्जी का धरना स्थल कोलकाता में है, लेकिन इसकी धमक दिल्ली में बखूबी सुनाई पड़ रही है. संसद में पूरा विरोधी खेमा ममता के साथ दिखाई दे रहा है. जिस तरह की महत्ता उनको मिल रही है उससे साफ है कि बीजेपी की राजनीतिक ना समझी है. राजनीतिक लड़ाई सड़क पर लड़ी जाती है. ममता ने कई साल तक लेफ्ट सरकार के खिलाफ संघर्ष किया है. जिसमें कई बार उनके ऊपर लाठीचार्ज तक हुआ है. कई साल के संघर्ष के बाद टीएमसी बंगाल में मजबूत हुई है.

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बीजेपी को भी संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए. मौजूदा परिस्थिति का कानूनी पहलू अलग हो सकता है. लेकिन इस वक्त सब ममता की हिम्मत की दाद दे रहे हैं. हर राजनीतिक दल अपने हिसाब से ममता को समर्थन दे रहे हैं.अरविंद केजरीवाल और तेजस्वी यादव खुलकर साथ हैं तो राहुल गांधी ने फोन पर साथ होने की बात कही है.

ममता के लिए राजनीति चमकाने का सबसे सही मौका

संसद में भी इसका नजारा देखा जा रहा है. जहां सरकार विरोधी खेमा एकजुट हो रहा है. धरनास्थल पर ममता बनर्जी बार-बार बीजेपी को चुनौती दे रहीं हैं. ममता ने कहा कि लोकतंत्र खतरे में है, वो समझते है कि मुझे धमकी दे सकते है, हमारे पुलिस कमिश्नर के घर पर आकर वो लोग गलती कर रहे हैं. राहुल गांधी ने मुझे फोन किया है. अखिलेश यादव ने फोन किया है. जाहिर है कि ममता समझ रही हैं कि वो इस वक्त बीजेपी के खिलाफ धुरी बन गई है.

ये सही मौका राजनीति चमकाने का भी है. ममता बंगाल से निकल कर पूरे देश में मोदी सरकार के खिलाफ मैस्कॉट बनना चाह रही हैं. ये मौका सीबीआई ने ममता बनर्जी को दे दिया है. बीजेपी भले संविधान की दुहाई दे रही है. अकेले ममता के खिलाफ संसद में राजनाथ सिंह और बाहर रविशंकर प्रसाद ने मोर्चा संभाला क्योंकि बीजेपी समझ रही है कि ये राजनीतिक लड़ाई में तब्दील हो गई है.

ममता को समर्थन देना कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस की मजबूरी है कि उसे बीजेपी के खिलाफ सभी राजनीतिक दल का साथ देना है. जब समाजवादी पार्टी के खिलाफ सीबीआई ने एक्शन लिया तो कांग्रेस ने अखिलेश यादव का समर्थन किया था. बंगाल में भी ममता तो चुनाव पूर्व कांग्रेस के साथ नहीं हैं लेकिन बाद में कांग्रेस के साथ आ सकती हैं.

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ये बात दीगर है कि ममता ने कांग्रेस के एक स्तंभ को तोड़ लिया है. एबी गनी खान चौधरी के परिवार से मौजूदा सांसद मौसम नूर को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है. हालांकि विधानसभा में भी कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी है. कांग्रेस में कई गुट है एक टीएमसी के साथ जाने की वकालत करता है को दूसरा लेफ्ट के साथ तीसरा एकला चलो रे की बात करता है.

इस घटना ने सभी रीजनल पार्टियों को किया साथ

बीजेपी ने अनचाहे में सभी रीजनल पार्टियों को एकजुट कर दिया है. नवीन पटनायक जिन्होंने सभी दलों से उचित दूरी बना रखी है. वे भी ममता के साथ दिखाई पड़ रहे हैं. बीजेपी कह रही है जो करप्ट हैं, सब साथ हैं, जाहिर है बीजेपी के पास विकल्प कम है. वो सिर्फ इस मसले पर इन सभी दलों को घेर सकती है. एसपी, बीएसपी और आरजेडी समेत कई दल सीबीआई की वजह से परेशान हैं. हालिया घटनाक्रम से सीबीआई की साथ पर बट्टा लगा है.

ममता बनर्जी ये साबित करना चाहती हैं कि सीबीआई सियासी तोता बन गई है, जिसे उन्होंने पिंजरे का रास्ता दिखाया है. हालांकि इस मसले पर टीआरएस के केसीआर ने पत्ते नहीं खोले हैं. केसीआर बीजेपी से सीधे संघर्ष से बच रहे हैं. उनके राज्य तेलांगना में बीजेपी से उनको कोई चुनौती नहीं है. वहां कांग्रेस से उनको राजनीतिक चुनौती मिल सकती है.

बंगाल की राजनीति

बंगाल की राजनीति में ममता का वजूद सतत संघर्ष की वजह से है. ममता जब कांग्रेस से अलग हुई थी तो बीजेपी की हिमायत उनको हासिल थी. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शामिल रही हैं. जाहिर है कि ममता बनर्जी परिपक्व तरीके से राजनीतिक अवसर को समझती हैं. जब कांग्रेस से अलग हुई, बीजेपी का सहारा लिया, फिर बाद में कांग्रेस की मदद से लेफ्ट को सरकार से बेदखल कर दिया. ममता को जब लगा कि कांग्रेस की दोस्ती नुकसानदेह है तो कांग्रेस से अलग हो गई हैं.

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी कई सीट जीतने में कामयाब रही है, लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सफलता नहीं मिली है. बीजेपी की कशमकश है कि वो बंगाल से टैली बढ़ाना चाहती है. ये एक ऐसा राज्य है जो यूपी की कमी को भर सकता है, लेकिन ममता बीजेपी का पैर जमने नहीं दे रही हैं. बीजेपी के खिलाफ अंगद के पांव समान जमीं है. बीजेपी सारे हथकंडे अपना रही है, लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है. ममता ने सरकार में आने के बाद अपने को लगातार मजबूत किया है.

सीबीआई के भरोसे यूपी से बंगाल की राजनीति?

सीबीआई को लेकर लगातार राजनीतिक बवाल जारी है. यूपी में एसपी-बीएसपी के गठबंधन का एलान होने के बाद खनन घोटाले में सीबीआई ने कई अफसरों को शिकंजे में लिया है. जिसके बाद एसपी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि पहले कांग्रेस सीबीआई भेजती थी. अब बीजेपी भेज रही है.

काफी तल्ख लहजे में उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक कारणों से ऐसा किया जा रहा है. यहीं नहीं गोमती रिवर फ्रंट के कथित घोटाले की जांच चल रही है. एसपी के अलावा बीएसपी की मुखिया मायावती के ऊपर सीबीआई की तलवार लटकती रहती है. राजनीतिक हलकों में ये चर्चा आम है कि सीबीआई से बचने के लिए मायावती कांग्रेस के करीब जाने से डर रही हैं.

कमोवेश यही परिस्थिति बिहार में है. तेजस्वी यादव ने सीबीआई पर राजनीतिक शह पर केस करने का आरोप लगाया है. हालांकि लालू यादव को चारा घोटाले में सजा मिल चुकी है. लेकिन रेलवे के मामले को लेकर केस लालू के परिवार के खिलाफ चल रहा है. जाहिर है कि लालू यादव भी एंंटी बीजेपी फ्रंट के प्रमुख नेता हैं. इसलिए कई सालों से लालू परिवार सीबीआई को झेल रहा है.

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बंगाल में ममता को घेरने के लिए शारदा स्कैम की कार्यवाही चल रही है. पहले मुकुल रॉय को शिंकजे में लिया गया लेकिन मुकुल रॉय ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. सोशल मीडिया में इस तरह के मीम भी देखने को मिल रहे हैं, जिसमें मुकुल रॉय को ममता के साथ दिखाया गया और लिखा गया अपवित्र, फिर बीजेपी के मुखिया अमित शाह के साथ दिखाया गया और लिखा गया पवित्र. इस तरह का मजाक चल रहा है. हालांकि मुकुल रॉय ममता के बाद नंबर दो के नेता थे. मुकुल रॉय ने बकायदा दिनेश त्रिवेदी की जगह ले ली थी जो ममता के साथ कई सालों से थे.

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा तमाशा

चुनाव से पहले ये आखिरी राजनीतिक फ्लैश पॉइंट है. जिसके जरिए बीजेपी ने सभी विरोधियों को एक कर दिया है. यह एकजुटता खंडित जनादेश में बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है. चुनाव के बाद के लिए बीजेपी ने कोई बातचीत का विंडों नहीं छोड़ा है. खासकर ममता के लिए जो अपने बूते पर 30 से ज्यादा सांसदो की पार्टी हो सकती हैं. यही हाल बाकी राजनीतिक दलो के साथ बीजेपी कर रही है. राजनीति ब्लैक-वाइट का सीधा गेम नहीं है. तब जब गठबंधन के आने की आहट है.