पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उठाए गए कदम से देश की राजनीति में अफरा-तफरी का माहौल है. संसद में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से जोरदार आवाजें उठीं लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बयान देते हुए कहा कि राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न होने जैसी स्थिति बन गई है और पूरे घटनाक्रम पर केंद्र लगातार नजर बनाए हुए है.
जाहिर है राज्य में अराजक स्थिति पैदा करने वाला कोई गैर-राजनीतिक दल नहीं बल्कि संवैधानिक पद पर आसीन (बैठी) एक महिला मुख्यमंत्री है. जो एक पुलिस अधिकारी को जांच से बचाने के लिए केंद्रीय एजेंसी (सीबीआई) के खिलाफ राज्य की पुलिस का इस्तेमाल करती है. और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए रात में धरने पर बैठ जाती है. ममता का मकसद बीजेपी विरोध की राजनीति में सबसे आगे दिखना है साथ ही सीबीआई जांच के खिलाफ आवाज उठाकर विक्टिम कार्ड खेलने का भी जोरदार राजनीतिक चाल चलना है. जिससे उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में सियासी फायदा भी हो और उनके लोग सीबीआई की जांच से बच पाने में कामयाब हो सकें.
ध्यान देने वाली बात यह है कि 17,000 करोड़ रुपए के इस घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की जा रही है, और तीन बार सम्मन भेजे जाने के बावजूद कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई को जांच करने में सहयोग करने से बच रहे थे. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बयान में साफ कर दिया कि सीबीआई की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार चल रही थी और सीबीआई साल 2013 में एसआईटी के मुखिया रह चुके राजीव कुमार से कई मुद्दों पर जानकारी हासिल करना चाह रही थी.
केंद्र और राज्य में टकराहट के पीछे की असली वजह
राजीव कुमार के जांच में सहयोग करने की बात तो दूर उल्टा सीबीआई के अधिकारियों के साथ राज्य की कोलकाता पुलिस ने बदसलूकी की और उन्हें घंटों हिरासत में रखा. केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ राज्य पुलिस इस कदर पेश आएगी इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी. लेकिन राज्य की मुखिया इस घटना को अंजाम देने में काफी अग्रसर रहीं और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंचकर उनके समर्थन में सत्याग्रह करने का ऐलान भी कर दिया.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरना पर बैठने का ऐलान कर चुकी थीं वहीं राज्य पुलिस ने सीबीआई की टीम को घंटों हिरासत में रखा. अराजकता की सारी हदें तब पार हो गई जब सीबीआई के दफ्तर को पुलिस ने घेर लिया और मुख्यमंत्री के साथ कोलकाता के पुलिस कमिश्नर धरने पर बैठे नजर आने लगे. इस मामले को लेकर पुलिस सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कई अधिकारियों ने गहरी आपत्ति जताई और उन्होंने इसे सर्विस नियमों की अनदेखी करार दिया.
सेवानिवृत (रिटायर्ड) अधिकारी एक आईपीएस अफसर के इस तरह धरना में सहभागिता (सहयोग) को सर्विस नियमों की अनदेखी मानते हैं.
उत्तर प्रदेश और बीएसएफ के पूर्व डीजी प्रकाश सिंह कहते हैं कि ऑल इंडिया सर्विसेज़ के अफसर से ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं की जा सकती है और राजीव कुमार का धरना-प्रदर्शन में हिस्सा लेना वाकई सर्विस रूल के नियमों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि राजीव कुमार जैसे अफसर को यह कतई शोभा नहीं देता है.
हलांकि प्रकाश सिंह सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर रह चुके नागेश्वर राव के कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर जांच एजेंसी भेजने के फैसले को सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि सीबीआई के पूर्णकालीन डायरेक्टर बहाल हो चुके हैं तो अंतरिम डायरेक्टर जिनकी विश्वसनियता खुद सवालों के घेरे में है उन्हें ऐसे कदम से बचना चाहिए था.
ममता का कदम बेहद गैर-जिम्मेदाराना और अराजकता फैलाने जैसा
वैसे प्रकाश सिंह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उठाए गए कदम को बेहद गैर-जिम्मेदाराना करार देते हैं और इसे अराजकता फैलाने जैसा कदम मानते हैं.
बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अभायनंद के मुताबिक सीबीआई के साथ राज्य की यह टकराहट कोई नया नहीं है और यह कानूनी अंतर्विरोध एक्ट में निहित है. यह एक आम समस्या से थोड़ी ज्यादी बड़ी समस्या है जो समय-समय पर उफान मारता है. अभयानंद के मुताबिक नेतृत्व यदि क्षमतावान और दूरदर्शी हो तो ऐसी समस्याओं का समाधान निकाल लेता है.
वैसे राजीव कुमार के धरना में भागीदारी को लेकर अभयानंद ने भी दुख प्रकट किया. उन्होंने एक पुलिस अधिकारी के आचरण के लिए इसे अशोभनीय करार दिया. लेकिन राजनीतिक लड़ाई इस कदर राज्य में संवैधानिक संकट पैदा करेगा और खुद मुख्यमंत्री केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ बगावती तेवर अपनाएंगी इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी.
आलम यह है कि गृह मंत्री को लोकसभा में यह बयान देना पड़ा कि सीबीआई के दफ्तर और रिहायशी ठिकानों पर केंद्रीय पुलिस बल को तैनात किया गया है जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके. फिलहाल ममता बनर्जी के समर्थन में विपक्ष गोलबंद होने लगा है और केंद्र पर सीबीआई के बेजा इस्तेमाल का आरोप बीजेपी विरोधी पार्टियां जोरशोर से लगा रही हैं. कइयों ने आपातकाल (इमरजेंसी) से बदतर स्थिति का हवाला देकर बीजेपी को जमकर कोसा. वहीं तेजस्वी यादव सरीखे नेता ममता को भरपूर समर्थन देने की बात कहकर बीजेपी पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप मढ़ने में आगे दिखे.
पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से कैसे जुड़े हैं घोटाले के तार?
रोज वैली घोटाला तकरीबन 15,000 करोड़ का है वहीं शारदा चिटफंड घोटाला 2500 करोड़ रुपए का है. यह बंगाल के दो बड़े आर्थिक घोटाले हैं जिनमें निवेशकों के पैसों को कई गुना बढ़ाने का लालच देकर पैसे बटोरे गए और बाद में कंपनियां बंद कर दी गईं. साल 2013 में 1989 बैच के अफसर राजीव कुमार एसआईटी टीम की अगुवाई कर रहे थे. उनपर आरोप है कि इस घोटाले से जुड़े अहम कड़ी को जिनकी पैठ पश्चिम बंगाल सरकार में गहरी थी उनके खिलाफ सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई. साथ ही कई महत्वपूर्ण सबूतों को मिटा दिया गया.
सीबीआई इसी संबंध में राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती है लेकिन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के मुताबिक कई सम्मन भेजे जाने के बाद भी पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सीबीआई के सामने हाजिर होने से बचते रहे.
TMC पर शारदा और रोज वैली स्कैम के आरोपी को बचाने का आरोप
शारदा कंपनी की चैयरपर्सन सुदीप्ता सेन थीं जिन्हें ममता बनर्जी का खास बताया जाता है. वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्यसभा सांसद कुणाल घोष कंपनी के मीडिया डिविजन के प्रमुख थे. एक अन्य सांसद का फोटो कंपनी के विज्ञापन में खूब प्रचारित किया गया लेकिन अप्रैल 2013 के बाद सुदीप्ता से संपर्क करना नामुमकिन हो गया और कंपनी रातों-रात बंद हो गई.
रोज वैली स्कैम के प्रबंध निदेशक (एमडी) शिवमय दत्ता के संबंध बॉलीवुड और रियल स्टेट के कारोबारियों से था. मनी लॉन्ड्रिंग और कंपनी नियम को दरकिनार करने के चलते सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा सीबीआई को 2014 में सौंप दिया. सीबीआई इस मामले में 80 चार्जशीट फाइल कर चुकी है वहीं हजारों करोड़ रुपए अभी तक रिकवर भी किए जा चुके हैं. आरोप है कि दोनों कंपनियों के कर्ता-धर्ता की गहरी पैठ सत्ताधारी टीएमसी में है इसलिए इसकी मुखिया सीबीआई जांच से तिलमिला उठी हैं.
TMC के कई नेता जेल की हवा खा चुके हैं, कइयों के नाम जांच में शामिल
दिसंबर 2014 में राज्य के परिवहन और खेल मंत्री मदन मित्रा आपराधिक षडयंत्र, चीटिंग और अन्य आरोपों के तहत गिरफ्तार किए जा चुके हैं. वहीं राज्यसभा सांसद कुणाल घोष, श्रीजॉय बोस सहित पार्टी के उपाध्यक्ष रजत मजूमदार भी जेल की हवा खा चुके हैं. शारदा ग्रुप की सीईओ और सीएमडी की उस चिट्ठी की चर्चा भी जोरों पर है जिसमें 22 ऐसे लोगों के नाम बताए गए हैं जो इस कंपनी के जरिए काफी पैसा बना चुके हैं. जाहिर है यह कौन से ऐसे नाम हैं जिनको लेकर बीजेपी लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए है और ममता केंद्र के खिलाफ बगावती रोल अपनाकर एंटी बीजेपी पार्टियों को जुटा कर विक्टिम रोल प्ले करने में जुट गई हैं.
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