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चुनावी साल में ‘नीतीश-पासवान’ की जोड़ी BJP पर दबाव बनाने की कोशिश करती रहेगी !

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपचुनाव में एनडीए की हार के बाद एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान और चिराग पासवान से मिलने की इच्छा व्यक्त की

Amitesh

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने अपने बेटे और सांसद चिराग पासवान के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ST-SC एक्ट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद सरकार से रिव्यू पिटीशन डालने की मांग की. पासवान ने इस फैसले से ST-SC समुदाय के लोगों को मिलने वाले संरक्षण के खत्म होने या फिर उनमें ढिलाई होने की संभावना जताते हुए इस मामले में सरकार को प्रो-एक्टिव होने को कहा.

हालांकि इस दौरान वो यह कहना नहीं भूले कि केंद्र की मोदी सरकार ने प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटिज एक्ट में कई कड़े प्रावधान कर दलितों पर हो रहे जुल्म को रोकने की पूरी कोशिश की है. फिर भी, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आलोक में सरकार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा.


इस मौके पर एलजेपी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और उनके बेटे सांसद चिराग पासवान ने कहा कि ‘उनकी पार्टी और उनकी पार्टी के ही विंग दलित सेना की तरफ से भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन जल्द ही दिया जाएगा.’

मोदी सरकार में दलितों के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाकर रखने वाले रामविलास पासवान के इन तेवरों से बीजेपी परेशान हो रही होगी. लेकिन, अब लगता है पासवान चुप रहने के मूड में नहीं हैं. पिछले चार साल से सरकार के हर फैसले में हां में हां मिलाने वाले पासवान ने अब अपनी चुप्पी तोड़नी शुरू कर दी है. लेकिन, यह सबकुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है.

क्या है नीतीश-पासवान की रणनीति ?

अगले साल लोकसभा का चुनाव है, उसके पहले एलजेपी अध्यक्ष अपनी पार्टी को फिर से सत्ता की धुरी के तौर पर सामने लाने में लगे हैं. बिहार में अभी पिछले हफ्ते ही उपचुनाव का परिणाम आने के बाद रामविलास पासवान ने सबको साथ लेकर चलने की अपील की थी. उनकी नसीहत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुलाकात के बाद हुई.

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सूत्रों के मुताबिक, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपचुनाव में एनडीए की हार के बाद एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान और चिराग पासवान से मिलने की इच्छा व्यक्त की. पटना में हुई इस मुलाकात के दौरान दोनों में इस बात पर एक राय थी कि सरकार की छवि दलित और मुस्लिम विरोधी हो रही है. इसी के बाद रामविलास पासवान और चिराग पासवान ने भी बीजेपी को नसीहत दी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सांप्रदायिक सद्भाव के साथ समझौता नहीं करने का बयान दे डाला.

सूत्रों के मुताबिक, जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार को इस वक्त सबसे ज्यादा रामविलास पासवान की दरकार है, जबकि रामविलास पासवान भी नीतीश कुमार को साथ लेकर चलना चाहते हैं. जीतनराम मांझी के महागठबंधन के साथ जाने और पार्टी के दलित नेता उदयनारायण चौधरी और श्याम रजक के मुंह फुलाने के बाद से नीतीश कुमार ने कांग्रेस से जेडीयू में आए अशोक चौधरी के बहाने दलित राजनीति में संतुलन बनाने की कोशिश की है.

लेकिन, उनको भी लगता है कि रामविलास पासवान अगर साथ रहें तो फिर दलित-महादलित वोट बैंक उनके साथ जुड़ा रह सकता है. इस वक्त बिहार में एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा भी हैं. लेकिन, उनके साथ नीतीश कुमार की अदावत जगजाहिर है. ऐसे में नीतीश कुमार के सामने पासवान एक मजबूत सहयोगी नजर आ रहे हैं.

क्या नीतीश-पासवान बीजेपी को घेर पाएंगे?

दूसरी तरफ, एलजेपी को लग रहा है कि प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई  बीजेपी से बात करने और सीट बंटवारे में भी अपना हक लेने के लिए नीतीश कुमार के सहयोग की जरूरत होगी. अगर नीतीश कुमार और रामविलास पासवान दोनों मिलकर बीजेपी के साथ बात करें तो बारगेनिंग ठीक तरीके से कर पाएंगे.

नीतीश-पासवान दोनों अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर भी एक समान नजरिया रखते हैं. उन्हें लगता है कि दोनों मिलकर रहें तो उनकी आवाज एनडीए के भीतर ठीक से सुनी जाएगी. पटना में 1 अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात के बाद बिहार में एनडीए के भीतर की सियासी खिचड़ी तो कुछ ऐसी ही पक रही है.

हालाकि, बीजेपी को जैसे ही इसकी भनक लगी, पार्टी के दो दिग्गज धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव ने रामविलास पासवान से मुलाकात भी की. इस मुलाकात के बाद पासवान के तेवर थोडे नरम जरूर पड़े. लेकिन, अब वो अपनी रणनीति से पीछे हटने के मूड में नहीं हैं.

फिर से सत्ता की धुरी बनने की कोशिश में पासवान

नीतीश कुमार की पार्टी  जेडीयू के नेता के सी त्यागी की रामविलास पासवान और चिराग पासवान से मुलाकात को भी काफी अहम माना जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भले ही के सी त्यागी की मुलाकात को उनके बेटे अमरीश त्यागी की कंपनी से जुड़े विवाद से जोड़कर देखा जा रहा हो, लेकिन, सूत्र बता रहे हैं कि इस दौरान नीतीश-पासवान के करीब आने पर दोनों ही दलों को होने वाले फायदे पर भी चर्चा हुई.

उधर, सांसद पप्पू यादव ने भी रामविलास पासवान से मुलाकात की है. मुद्दा भले ही कोई और बताया गया, लेकिन, राजनीति में संकेतों के बड़े मायने होते हैं. पासवान की अचानक बढ़ती सक्रियता उन्हें बिहार में एनडीए के भीतर एक धुरी के तौर पर उभार रहा है.

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अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी के दो केंद्रीय मंत्रियों गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे के खिलाफ इस तरह बयान नजर नहीं आता. अबतक बीजेपी के खिलाफ कुछ खुलकर नहीं बोलने वाले चिराग पासवान ने फर्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान गिरिराज सिंह के बयान की कड़ी आलोचना की. चिराग ने साफ-साफ शब्दों में कहा कि इस तरह की भाषा सही नहीं है. अगर ऐसा बोलते हैं तो फिर सरकार की तरफ से किए गए दलितों और अल्पसंख्यकों के कल्याण के सारे काम बेकार चले जाते हैं. चिराग पासवान का मानना है कि राजनीति में परसेप्शन मायने रखता है. मोदी सरकार ने दलित उत्थान को लेकर कई बड़े काम किए हैं. यहां तक की बाबा साहब भीमराम अंबेडकर के नाम पर कई ऐसे काम हुए हैं जो अबतक नहीं हो पाए थे. फिर भी, सरकार का परसेप्शन दलित विरोधी होना चिंता का कारण है.

कुछ इसी तरह की बात अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर भी कही जा रही है. चिराग पासवान कहते हैं कि मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के विकास को लेकर कई बड़े काम किए हैं. लेकिन, गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे लोगों की वजह से सब किए पर पानी फिर जाता है.

चिराग पासवान के बयान से साफ लग रहा है कि अब एलजेपी चुप नहीं रहने वाली है. उसे भी मजबूती जेडीयू के साथ आने से मिल रही है. लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त है. लेकिन, उसके पहले बीजेपी को सहयोगी दलों को भी साथ लेकर चलना होगा. उनकी भी सुननी होगी.

चार साल तक चुप रहे सहयोगी अब चुनावी साल में बोलने लगे हैं. उन्हें भी लगने लगा है कि चुनावी साल की चुप्पी उनका नुकसान कर सकती है. यही वजह है कि अब बीजेपी के भीतर भी उनके सहयोगी एक होकर बीजेपी पर दबाव बनाने लगे हैं. बीजेपी के दोनों सहयोगी नीतीश-पासवान की दोस्ती बीजेपी को बड़ा संदेश दे रही है.