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गुजरात चुनाव 2017: प्यू की रिपोर्ट से क्या राहुल गांधी कोई सबक लेंगे?

राहुल गांधी और उनकी पार्टी के मैनेजरों को यह चीज समझनी चाहिए कि क्या हर वक्त नोटबंदी और मोदी की कड़ी आलोचना करने से कांग्रेस उपाध्यक्ष या पार्टी को गुजरात चुनावों में कोई फायदा होगा या नहीं

Sanjay Singh

गुजरात के लिए अपनी रणनीति तैयार करते वक्त कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शायद दो बड़ी गलतियां कीं. पहली- उन्होंने नोटबंदी को सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ एक बड़े चुनावी मुद्दे के तौर पर उभारा और दूसरी- उन्होंने खुद को सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ शख्सियत के तौर पर खड़ा किया.

उन्हें और उनकी पार्टी के रणनीतिकारों को निष्पक्ष वॉशिंगटन बेस्ड पीयू रिसर्च सेंटर के पीएम मोदी, खुद पर, सोनिया गांधी, कांग्रेस की पोजीशन और मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर भारत की जनता के संतोष के स्तर पर हालिया सर्वे और विश्लेषण को देखना चाहिए.


88 फीसदी मोदी के पक्ष में

प्यू की रिपोर्ट में कहा गया है कि 88 फीसदी भारतीयों की मोदी के प्रति अनुकूल राय है. यह मुख्यधारा की मीडिया के एक तबके के गढ़े गए तर्कों के उलट है. सर्वे के मुताबिक, 83 फीसदी भारतीयों को लगता है कि देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति अच्छी है. 70 फीसदी लोगों का मानना है कि वे देश की दिशा से संतुष्ट हैं.

मोदी और उनके समर्थकों के लिए और ज्यादा उत्साहित करने वाली बात यह है कि सर्वे में कहा गया है कि सत्ता में तीन साल रहने के बावजूद देश के लोगों के मन में उनके लिए प्यार बरकरार है. बल्कि असलियत तो यह है कि उनकी लोकप्रियता अब तक के चरम पर है और देश के हर हिस्से में वह लोगों के पसंदीदा बने हुए हैं. यहां तक कि देश के जिन हिस्सों में बीजेपी का बड़ा जनाधार नहीं है वहां भी मोदी की लोकप्रियता अपने चरम पर है.

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आश्चर्य की बात यह है कि देश के चार दक्षिण भारतीय राज्यों- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना में मोदी की निजी लोकप्रियता की रेटिंग 94 फीसदी है. केरल को इस सर्वे में शामिल नहीं किया गया था. प्यू रिसर्च सेंटर ने कहा है कि सर्वे को 21 फरवरी से 10 मार्च 2017 के बीच 2,464 रेस्पॉन्डेंट्स के बीच कराया गया. यह सर्वे पीएम मोदी के नोटबंदी के ऐलान के साढ़े तीन महीने बाद कराया गया. यही वह दौर था जबकि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में हुए असेंबली इलेक्शंस में से चार में सरकार बनाई, साथ ही देश के कई हिस्सों में शहरी निकायों और ग्रामीण पंचायत चुनावों में जीत हासिल की.

नोटबंदी और जीएसटी को खलनायक बनाने का क्या मतलब?

चुनाव के नतीजों ने साबित किया है कि बड़ी तादाद में देश के लोगों की नजर में नोटबंदी मोदी का उठाया गया एक बड़ा बोल्ड कदम था. लोगों को लगता था है यह एक ऐसा कदम है जिससे थोड़े वक्त में भले ही मुश्किलें पेश आएं, लेकिन इससे लंबे वक्त में बड़े फायदे होंगे. प्यू के सर्वे में इस बात की पुष्टि की गई है. प्यू ने सर्वे का विश्लेषण करने और इसे रिलीज करने में वक्त लिया. ऐसा उनकी आंतरिक छानबीन और प्रक्रियाओं की वजह से हुआ.

राहुल गांधी और उनकी पार्टी के मैनेजरों को यह चीज समझनी चाहिए कि क्या हर वक्त नोटबंदी और मोदी की कड़ी आलोचना करने से कांग्रेस उपाध्यक्ष या पार्टी को गुजरात चुनावों में कोई फायदा होगा या नहीं. हिमाचल प्रदेश के चुनावों में अपने ना के बराबर कैंपेन में भी उन्होंने नोटबंदी का जिक्र किया. इस मसले पर उनकी मुखरता नोटबंदी लागू होने के बाद नवंबर-दिसंबर 2016 और फिर पांच राज्यों के असेंबली इलेक्शंस के कैंपेन जैसी ही रही.

अहमदाबाद में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान की तस्वीर

कांग्रेस तर्क दे सकती है कि जीएसटी प्यू सर्वे के चार महीने बाद लागू हुआ है और ऐसे में अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर लोगों के संतोष का स्तर इसके नतीजों में शामिल नहीं हो पाए हैं. कारोबारियों और ट्रेडर्स का एक तबका जीएसटी के लागू होने के तरीके से नाराज है. इनकी कुछ चिंताओं और गुस्से को जायज माना जा सकता है. हकीकत यह है कि जिस तरह से मोदी सरकार इन चीजों को देखते हुए एक्शन में आई और मोदी ने खुद अपने मंत्रियों को तत्काल सुधार के कदम उठाने के निर्देश दिए उससे यह संकेत मिल रहा है कि सरकार और बीजेपी ने जीएसटी पर लोगों की मुश्किलों को समझा है और चुनावों में इसके बुरे नतीजों की आशंका से वह चिंतित है.

गुजरात में मजबूत हैं मोदी

लेकिन राहुल लगातार नोटबंदी और जीएसटी पर कड़ा रुख अख्तियार किए हुए हैं और मोदी को एक तानाशाह के तौर पर दिखा रहे हैं. यहां तक कि वह मोदी को शोले फिल्म के क्रूर डाकू गब्बर सिंह भी बताने से पीछे नहीं हटे. कांग्रेस में ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्हें लगता है कि राहुल ने मोदी के खिलाफ सीधे खुद को उतारकर एक गलती की है.

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार राहुल किसी इलेक्शन में मोदी के खिलाफ इतने मुखर हुए हैं. गुजरात में वह सघन चुनाव प्रचार कर रहे हैं. महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद मोदी गुजरात के सबसे बड़े नेता हैं. गुजरात के 13 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मोदी अब देश के बड़े प्रधान या प्रधानमंत्री हैं. निश्चित तौर पर राज्य के लोगों को उन पर गर्व है. लोग उन्हें देश का अब तक का सबसे मजबूत प्रधानमंत्री मानते हैं और इस मामले में वह उनकी तुलना इंदिरा गांधी से करते हैं.

प्यू रिपोर्ट में कहा गया है कि 92 फीसदी गुजराती मोदी के नेतृत्व को पंसद करते हैं. अखिल भारतीय स्तर पर उनकी रेटिंग सोनिया गांधी के मुकाबले 31 फीसदी ज्यादा है, साथ ही उनकी राहुल गांधी के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा रेटिंग रखते हैं.

राहुल की स्थिति डांवाडोल

आश्चर्यजनक तौर पर कांग्रेस ने काफी सुर्खियां बनाने के बाद पार्टी अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी को फिर से आगे के लिए टाल दिया है. 19 साल से कांग्रेस की चीफ अपनी मां सोनिया गांधी से राहुल को पार्टी की कमान लेते देखने के लिए देश को अभी और इंतजार करना पड़ेगा. कांग्रेस को शायद लगता है कि पार्टी के सुप्रीम कमांडर बनने के चंद हफ्तों के भीतर ही दो राज्यों में हार की जिम्मेदारी आने से राहुल के लिए अजीब स्थिति पैदा हो सकती है.

प्यू का एक और नतीजा जो कांग्रेस के लिए दिक्कततलब हो सकता है वह यह है कि राहुल गांधी के लगातार मोदी सरकार पर चार-पांच कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाने के बावजूद अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि 81 फीसदी लोगों का मानना है कि मोदी वास्तव में गरीबों की मदद कर रहे हैं. अगर यह चीज सच है तो इसका मतलब है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के मोदी के खिलाफ आरोपों पर कोई गौर नहीं कर रहा है.

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प्यू की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री की बढ़ती लोकप्रियता को घरेलू मसलों को हल करने की उनकी सफलता के हिस्से के तौर पर समझा जा सकता है. कम से कम 10 में से 7 लोगों ने माना है कि किस तरह से मोदी ने गरीबों की मदद की है और बेरोजगारी, आतंकवाद और भ्रष्टाचार को दूर करने के उपाय किए हैं. इन चार चीजों में लोगों का उनका समर्थन करना 2016 के मुकाबले 10 अंक ज्यादा है.’

यह देखना रोचक होगा कि किस तरह से राहुल गांधी प्यू रिसर्च सेंटर के नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हैं. क्या वह इस सर्वे को भी वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैंकिंग के मजबूत होने की तरह से खारिज कर देंगे या वह इस पर गंभीरता से विचार करेंगे. राहुल गांधी को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांग्रेस ने 1985 के बाद से गुजरात में कोई इलेक्शन नहीं जीता है.