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दिल्ली में खत्म हुआ राजनीतिक ड्रामा लेकिन काफी दूर तक सुनाई देगी इसकी गूंज

9 दिनों से चला आ रहा धरना भले ही खत्म हो गया हो पर अगले कुछ दिनों में दिल्ली की तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों के अंदर जबरदस्त तरीके से बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं

Ravishankar Singh

देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 9 दिनों से चला आ रहा राजनीतिक ड्रामे का अंत भले ही हो गया हो, लेकिन इस घटना की गूंज काफी दूर तक सुनाई देने वाली है. 12 जून से शुरू हुए इस राजनीतिक ड्रामे में कई किरदारों ने अलग-अलग अंदाज में और अपने स्वभाव के विपरीत रोल अदा किया है.

दिल्ली की तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों में एलजी हाउस में चल रहे धरना और प्रदर्शन को भुनाने की जबरदस्त होड़ मची थी. इन राजनीतिक दलों में दिल्ली की जनता के नजरों में अपने आपको ईमानदार और दूसरों को बेईमान साबित करने की होड़ थी. कुछ नेता पर्दे के सामने आकर तो कुछ पर्दे के पीछे रह कर यह काम कर रहे थे.वहीं कुछ पार्टियों में अपने ही पार्टी नेताओं को नीचा दिखाने की होड़ चल रही थी. कुल मिलाकर पिछले 9 दिन दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में काफी उठापटक और भविष्य के लिए आशान्वित साबित होने वाला है.


सबसे पहले बात करते हैं आप से नाराज चल रहे कुमार विश्वास की. कुमार विश्वास आप के उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने शायद पहली बार पार्टी के अंदर रहते हुए भी पार्टी के आंदोलन के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला. कुमार विश्वास ने कुछ नहीं बोलते हुए भी बहुत कुछ बोल दिया और बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी खूब बोल कर भी कुछ नहीं बोल पाए. इस आंदोलन में विपक्ष की तरफ से जोरदार आवाज उठाने का सारा क्रेडिट विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता और आप के बागी कपिल मिश्रा ले कर चले गए.

कई मायनों में रहा खास

आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में जहां देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मोर्चा खोल रखा था तो वहीं बीजेपी को आप के ही बागी कपिल मिश्रा का सपोर्ट मिल रहा था. दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के लगभग सभी बड़े नेता पिछले 9 दिनों से अपने-अपने घरों में नवरात्र मना रहा थे.

इन नौ दिनों में कांग्रेस पार्टी को अगर शीला दीक्षित का साथ नहीं मिला होता तो उसकी हालत दिल्ली में बद से बदतर हो गई होती. पिछले कुछ सालों में दिल्ली में कांग्रेस पार्टी की ऐसी हालत हो गई जैसे श्रीकृष्ण भगवान गोपियों के वस्त्र चुरा कर पेड़ पर चढ़ गए हों और गोपियां कन्हैया-कन्हैया पुकार रही हो. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस का दिल्ली में गोपियों वाला हाल कर दिया है.

इस राजनीतिक ड्रामे के कई पहलू सामने आए. देश के कई ऐसे राजनेता अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट में आए, जो पहले उनसे दूरी बनाने में ही विश्वास रखा करते थे. लेफ्ट पार्टियां हमेशा से ही अरविंद केजरीवाल से दूरी बना कर चला करती थी, लेकिन इस बार बीते रविवार को 'आप' के प्रदर्शन में न केवल सीपीएम नेता सीताराम येचुरी शामिल हुए बल्कि प्रदर्शन में लेफ्ट के झंडे भी देखे गए.

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इसी के साथ 'आप' को कुमारस्वामी, विजयन, टीडीपी के एन चंद्रबाबू नायडू और ममता बनर्जी जैसे नेताओं का खुला समर्थन मिला. इन चारों नेताओं ने बीते शनिवार को अरविंद केजरीवाल के घर जाकर केवल आंदोलन को नैतिक तौर पर समर्थन ही नहीं दिया बल्कि अगले दिन नीति आयोग की बैठक में पीएम मोदी से भी इस बारे में जिक्र किया.

केजरीवाल को मिला लालू परिवार का साथ

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने अरविंद केजरीवाल का खुलेतौर पर समर्थन किया.

यही अरविंद केजरीवाल साल 2015 में नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में जब भाग लेने गए थे तो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गले लगा लिया था. लालू के गले लगाने पर उस समय मीडिया में केजरीवाल की खूब किरकिरी हो रही थी, तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि लालू प्रसाद यादव भ्रष्टाचार में लिप्टे एक व्यक्ति हैं. हम नीतीश कुमार के बुलावे पर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. लेकिन, समय की चाल देखिए वही नीतीश कुमार इस समय एनडीए के पाले में आ गए हैं और वही आरजेडी नेता का पुत्र केजरीवाल के समर्थन में ट्वीट पर ट्वीट कर रहा था.

इस घटनाक्रम के बाद ऐसे कई नेता सामने आए जो पहले तो अरविंद केजरीवाल के साथ साये की तरह चिपके रहते थे, लेकिन अब दूरी बना ली है. 9 दिनों तक चले इस राजनीतिक ड्रामे में ऐसे भी कई नेता सामने आए, जिनको इस राजनीतिक ड्रामे में खुद का नफा और नुकसान समझ में आ रहा था. ये राजनेता अपना-अपना गणित और पार्टी में अपना समीकरण फिट करने के फिराक में लगे रहे.

केजरीवाल के मास्टर स्ट्रोक का किस पर पड़ा सबसे ज्यादा असर?

कुछ नेता ऐसा भी सामने आए जो सिर्फ घर में बैठकर ड्रामा खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. ये सारी कवायद कुलमिलाकर लोकसभा चुनाव की आहट को देखते हुए की जा रही है. इतना तो तय है कि अरविंद केजरीवाल ने इस मास्टर स्ट्रोक से केवल विपक्ष को ही नहीं चित किया बल्कि पार्टी के अंदर भी कई लोगों की बोलती बंद कर दी. पार्टी के अंदर और बाहर कई नेताओं की नींद इस धरना और प्रदर्शन से गायब हो गई है.

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दिल्ली की राजनीति को करीब से समझने वाले एक पत्रकार कहते हैं, दिल्ली के कई पार्टियों के नेताओं और कुछ पार्टियों के प्रदेश अध्यक्षों को लग रहा था कि यह राजनीतिक ड्रामा जितना लंबा जाएगा, उससे उनका उतना ही नुकसान हो सकता है. धरने को लंबा खींचने से कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियों के अंदर भी नेताओं के हित और पद दोनों प्रभावित हो रहे थे.

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन इस पूरे एपीसोड से करीब-करीब गायब ही रहे. दिल्ली की पूर्व दिग्गज शीला दीक्षित ने मोर्चा संभाल कर कांग्रेस पार्टी को मैदान में जिंदा रखा. शीला दीक्षित ने जिस तरह से अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल कर राजनीतिक पाठ पढ़ाया उसकी खूब चर्चा हुई. दूसरी तरफ अजय माकन न ही अपना और न अपनी पार्टी का स्टैंड ठीक से रख पाए और न ही मीडिया तक ही पहुंचा पाए.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के बारे में भी ऐसा ही कहा जा रहा है. मनोज तिवारी के बारे में कहा जा रहा है कि अब उनकी पकड़ कमजोर पड़ने लगी है. या यूं कहें कि पार्टी आलाकमान ने भी अब ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया है. पार्टी के अंदर विजेंद्र गुप्ता, विजय गोयल और प्रवेश वर्मा पहले की तुलना में काफी आक्रमक हुए हैं.

दूसरी तरफ दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता दिल्ली की राजनीति में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. विधानसभा के अंदर हो या विधानसभा के बाहर विजेंद्र गुप्ता पार्टी के लिए एक बड़ा चेहरा बन कर सामने आ रहे हैं. वहीं इस पूरे एपीसोड में एक-दो मौकों को छोड़ दें तो मनोज तिवारी की उपस्थिति न के बराबर ही थी.

दिल्ली को करीब से जानने वाले एक पत्रकार कहते हैं,‘मनोज तिवारी को लेकर दिल्ली बीजेपी में अंदर से काफी असंतोष उभर रहा है. पार्टी आलाकमान भी इस बात से भलीभांति अवगत है. लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले दिल्ली बीजेपी में बड़े पैमाने पर फेरबदल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.’

कपिल मिश्रा के फॉर्मूले से बची बीजेपी

आप के बागी कपिल मिश्रा को लेकर भी कई तरह की खबरें मिल रही हैं. राजनीतिक गलियारे में कपिल मिश्रा के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें जोर पकड़ने लगी है. ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कपिल मिश्रा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे कर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

अरविंद केजरीवाल के एलजी हाउस में धरना देने के बाद कपिल मिश्रा ने ही सीएम ऑफिस में धरना देने का फॉर्मूला दे कर बीजेपी को फजीहत से बचा लिया था. ऐसी भी खबर है कि कपिल मिश्रा के इस आइडिया को बीजेपी आलाकमान ने भी खूब सराहा है.

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल का यह धरना और अनशन दिल्ली के कई राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं को नफा और नुकसान देने वाला साबित होने वाला है. पिछले 9 दिनों से चले आ रहे इस राजनीतिक ड्रामे के कई पात्र ऐसे थे जो पर्दे के सामने थे तो कई ऐसे थे जो पर्दे के पीछे.

कई राजनेता इस नौटंकी के खत्म होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. इस ड्रामे में कई किरदार सामने आए. कोई पर्दे पर नजर आया,  किसीने  पर्दे के पीछे अहम रोल अदा किया. इन सब के बीच अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी के ही एक किरदार का रोल काफी याद किया जा रहा है, जिसने अरविंद केजरीवाल को उसी के अंदाज में जवाब दिया.

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आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा, बीजेपी के प्रवेश वर्मा और अकली दल के मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी मंगलवार को 8 दिनों से चला आ रहा अपना धरना और अनशन खत्म कर दिया.

कपिल मिश्रा पिछले 9 दिनों से ट्वीटर पर लगातार छाए रहे. शायद कपिल मिश्रा की वजह से ही बीजेपी को नफा नहीं तो नुकसान भी नहीं हुआ. ऐसे में बीजेपी को अरविंद केजरीवाल के इस पुराने चेले का अपने पाले में आने का इंतजार है. कपिल मिश्रा दिल्ली की राजनीति में बीजेपी के लिए अरविंद केजरीवाल के सामने एक मजबूत अस्त्र साबित हो सकते हैं.

9 दिनों से चला आ रहा धरना भले ही खत्म हो गया हो पर अगले कुछ दिनों में दिल्ली की तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों के अंदर जबरदस्त तरीके से बदलाव के आसार नजर आ रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी उनमें से एक है. इस राजनीतिक ड्रामे में किसको फायदा हुआ किसको नुकसान इसको लेकर भी गुना-भाग शुरू हो गए हैं. वैसे तो दिल्ली के दंगल में कई महारथी थे, लेकिन मुकाबला आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही हुआ. कांग्रेस पार्टी सीन से पूरी तरह से गायब नजर आई.