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कांग्रेस CWC बैठक: आखिर NRC पर कांग्रेस ने क्यों बदला रुख!

कांग्रेस पार्टी संसद के अंदर और बाहर इस मसले को लेकर रुख साफ नहीं कर पाई है. जिससे बीजेपी को फायदा हुआ है. कांग्रेस अब जागी है इसलिए कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी की दूसरी कार्यसमिति की बैठक में एनआरसी के मुद्दे पर चर्चा हुई है. जिसमें पार्टी ने बीजेपी पर काउंटर अटैक करने की रणनीति बनाई है. कांग्रेस जहां अभी तक इस मुद्दे पर बैकफुट पर थी. अब पार्टी इस मसले पर फ्रंट फुट पर खेलना चाहती है. कांग्रेस को लग रहा है कि एनआरसी पर स्टैंड साफ ना होने से बीजेपी को राजनीतिक फायदा हो रहा है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कांग्रेस के ऊपर हमलावर हैं. बीजेपी को लग रहा है कि बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया है.

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कांग्रेस अब जागी है इसलिए कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हुई है. कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि एनआरसी कांग्रेस का चलाया हुआ प्रोग्राम है. इसमें बीजेपी क्रेडिट क्यों ले रही है? कांग्रेस की कार्यसमिति ने कहा है कि जो भारतीय नागरिक हैं, उनको नागरिकता साबित करने में कांग्रेस मदद करेगी. जिसके लिए पार्टी तैयारी कर रही है लेकिन जो विदेशी हैं उनके साथ कांग्रेस नहीं है.

घुसपैठ समर्थक के आरोप से पार्टी परेशान

बीजेपी लगातार कांग्रेस पर इल्ज़ाम लगा रही है, कि पार्टी बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ है. अब कांग्रेस ने पलटवार की तैयारी की है. कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि असम समझौता कांग्रेस ने किया था. एनआरसी लिए मनमोहन सरकार ने प्रयास किया. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 490 करोड़ रुपए इस काम के लिए दिए गए थे. कांग्रेस ने सवाल किया कि 1998 से 2004 तक रही वाजपेयी सरकार ने कितने पैसे इस काम के लिए दिए थे? ज़ाहिर है कि कांग्रेस की रणनीति इस मसले पर बदल रही है. पार्टी अपने आप को बांग्लादेशी खासकर मुसलमानों के हिमायती के तौर पर नहीं दिखाना चाहती है.

रणदीप सुरजेवाला के बयान को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि पार्टी ने मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज़ किया है. सुरजेवाला ने कहा कि देश के कई प्रांतों के रहने वाले जो असम में बस गए हैं उनकी नागरिकता पर, इसके अलावा बंगाली भाषी हिंदू, जनजाति और धार्मिल अल्पसंख्यकों की नागरिकता पर प्रश्नचिह्न लग गया है. जिससे लगता है कि प्रक्रिया मे कोई दिक्कत है क्योंकि तरुण गोगोई को कार्यकाल में एनआरसी का 80 फीसदी काम किया जा चुका था. वहीं संसद में सरकार के बयान का हवाला देते हुए बीजेपी से सवाल किया है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2003 -2013 तक 82728 लोगों को असम से डिपोर्ट किया गया है तो घुसपैठियों के साथ खड़े होने का सवाल कहां से खड़ा होता है?

बंगाली हिंदू और पूर्व फौजियों का मसला उठाना रणनीतिक

कांग्रेस ने जानबूझकर बंगाली हिंदू शब्द का इस्तेमाल किया है. आंकड़ो के मुताबिक काफी संख्या बंगाली हिंदुओं की है. जिसका कांग्रेस बार-बार नाम लेकर बीजेपी के हमले को कुंद करना चाहती है. बीजेपी कांग्रेस को मुस्लिम परस्त साबित करने में लगी है. तो इसका जवाब कांग्रेस दे रही है. कांग्रेस की रणनीति है कि ये साबित किया जाए कि बीजेपी अपनी राजनीति की वजह से बहुसंख्यक की बड़ी आबादी को नकार रही है. जो एनआरसी में किसी कारणवश नहीं आ पाए है. इसलिए कांग्रेस अब उनकी सहायता करने की बात कर रही है. लेकिन इस रणनीतिक शिफ्ट की वजह भी राजनीतिक है.

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कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कोई ऐसी गलती नहीं करना चाहती है. जिससे बीजेपी के ध्रुवीकरण की रणनीति कामयाबी के साथ आगे बढ़ सके. लेकिन बीजेपी का गेमप्लान यही है. जिसकी काट कांग्रेस ने ये निकाली है कि बीजेपी को पूर्व फौजियों, बंगाली हिंदुओं, जनजातीय और नेपाली लोगों को बहाने घेरा जाए.

एनआरसी कांग्रेस की गले की हड्डी

कांग्रेस ने जिस तरह से शुरुआत में स्टैंड लिया वो पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन गया. बीजेपी ने कांग्रेस को इस मसले पर काफी खरी-खोटी सुनाई. हालांकि पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करके इसे अपना बताने की कोशिश की, लेकिन वो बात शोर में दब गई. ऐसा लगने लगा कि कांग्रेस में इस मसले पर दो राय है. पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी इसे अपना बताने की कोशिश की लेकिन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाया है क्योंकि 40 लाख से ज्यादा लोगों का एनआरसी में ना आना कांग्रेस के लिए झटका था.लेकिन पार्टी संसद के अंदर और बाहर इस मसले को लेकर रुख साफ नहीं कर पाई है. जिससे बीजेपी को फायदा हुआ है.

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तरुण गोगोई की राजनीति में फंसी कांग्रेस

एनआरसी का पूरा मामला तरुण गोगोई के कार्यकाल में शुरू हुआ. जिसके लिए मनमोहन सरकार ने वित्तीय सहायता भी मुहैया कराई. हालांकि तरुण गोगोई असमिया कॉर्ड के पीछे छिपना चाह रहें हैं लेकिन इसके राजनीतिक कारण भी थे. घुसपैठियों के विरोध में असम में वक्त-वक्त पर आवाज़ उठती रही है. लेकिन 2006 में बदरूद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के गठन के बाद गोगोई ने इस मसले को तूल दिया. उनको लगा कि मुस्लिम वोट एआईयूडीएफ के साथ जा रहा है. जो कांग्रेस का वोट था. ऐसे में कांग्रेस ने बहुसंख्यक की राजनीति शुरू की थी. जिससे कांग्रेस को फायदा भी हुआ. लेकिन सांप्रदायिक दंगों की वजह से बीजेपी को पैर पसारने से गोगोई रोक नहीं पाए. जिसकी वजह से कांग्रेस ज़मीन पर बीजेपी ने राजनीतिक तौर अपनी तरफ खींच लिया.