असम सरकार ने आधार कार्ड जारी करने के तौर-तरीकों से जुड़ी प्रक्रिया को फिर से गति देने की कोशिश शुरू कर दी है. यह प्रक्रिया रुकी हुई थी, आशंका थी कि एक ऐसे वक्त में जब विदेशी नागरिकों की पहचान और उनके घुसपैठ पर अंकुश लगाने की कवायद बड़े पैमाने पर चल रही है तो कहीं ये विदेशी नागरिक आधार-कार्ड ना हासिल कर लें.
गृह व राजनीतिक मामलों के विभाग के मुख्य सचिव एल एस चंगसन ने इस बाबत बताया कि 'हम लोग इन प्रक्रियाओं के तौर-तरीकों (मोडालिटिज) को तैयार कर रहे हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाना है. जो भी आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे उन्हें एक नेशनल डेटाबेस में आधार के जरिए जोड़ा जाएगा. आधार का नागरिकता संबंधी पहचान से कोई लेना-देना नहीं है और जिन लोगों के नाम एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता पंजी) में नहीं आए हैं वे भी आधार-कार्ड हासिल कर सकते हैं.'
आधार 12 अंकों की अनूठी पहचान संख्या है, यह पहचान संख्या भारत के सभी निवासियों को उनके बायोमीट्रिक और डेमोग्राफिक (जनांकिक) डेटा के आधार पर जारी की जाती है. बीते मंगलवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी कि जिन लोगों के नाम एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजी) में शामिल नहीं हैं उनके बायोमीट्रिक डेटा को एकत्र किया जाएगा ताकि उन्हें दूसरे राज्यों में जाने से रोका जा सके.
पूरे देश में फैल रहे हैं बांग्लादेशी नागरिक
समय-समय पर इस आशय की खबरें आती रहती हैं कि बांग्लादेशी नागरिक भारत में अलग-अलग जगहों पर आना-जाना कर रहे हैं. हाल में केरल के एक पूर्व पुलिस प्रमुख ने कहा कि बांग्लादेशी आप्रवासी असम से दस्तावेज हासिल करने के बाद दक्षिण के राज्यों में छुप रहे हैं.
दो साल पहले असम में कुछ महीनों तक आधार-संख्या जारी की गई लेकिन नागरिक संगठनों और राजनीतिक दलों के विरोध के बाद इस प्रक्रिया को रोक दिया गया था. बीजेपी और असम गण परिषद ने मांग रखी थी कि आधार-कार्ड जारी करने से पहले एनआरसी की पूरी लिस्ट प्रकाशित हो जानी चाहिए. असम स्टूडेंटस यूनियन ने भी ऐसा ही रूख अपनाया है, यूनियन ने लगातार मांग की है कि अवैध आप्रवासियों की पहचान करके उन्हें सूबे से बाहर निकाला जाए.
सरकार ने सूबे की विधानसभा में जो सूचनाएं दी हैं उनसे जाहिर होता है कि प्रदेश के शोणितपुर, नगांव और गोलाघाट में राज्य की मात्र 8 फीसद आबादी को आधार कार्ड हासिल हुए हैं. बीते मार्च में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा था कि तय की गई डेडलाइन यानी 31 मार्च तक आधार-कार्ड से मुहैया कराई जा रही मुख्य सेवाओं को जोड़ना मुमकिन नहीं हैं.
सरकार ने पिछले साल इस योजना को जारी रखने का फैसला किया था. गृह विभाग से कहा गया था कि वह पूरी प्रक्रिया की देखरेख करे. पूरे राज्य में 1241 स्थानों की आधार-केंद्र के रूप में निशानदेही की गई ताकि वहां से कार्ड बांटा जा सके. सभी जिलों के उपायुक्त (डिप्युटी कमीशनर) को प्रक्रिया की निगरानी और प्रत्येक केंद्र पर सत्यापन करने वालों की नियुक्ति का निर्देश दिया. कुछ बैंकों ने भी अपने ग्राहकों के लिए आधार-संख्या के नामांकन का काम शुरू किया.
एनआरसी पूरा किए बगैर आधार कार्ड जारी करने पर समस्या
बहरहाल, कुछ नागरिक संगठनों ने विरोध में आवाज उठाई कि एनआरसी के पूरा हुए बगैर सरकार आधार-कार्ड क्यों जारी कर रही है. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सलाहकार समुज्ज्वल भट्टाचार्य ने साफ कहा कि आधार-कार्ड तो एनआरसी के मुताबिक ही होना चाहिए. उनका कहना था कि जब 'एनआरसी की प्रक्रिया जारी है और सुप्रीम कोर्ट इसकी निगरानी कर रहा है तो ऐसे में आधार कार्ड जारी करने का क्या तुक बनता है? यह बात सही है कि सूबे के बाहर काम कर रहे या पढ़ाई कर रहे नागरिकों को दिक्कत हो रही है लेकिन सरकार इस मसले का हल निकालने के लिए जरूर ही कोई तरकीब ढूंढ़ सकती है.'
भट्टाचार्य की राय से असोम जातीयताबादी जुबा छात्र परिषद के महासचिव पलाश चंगमई (एजेवायसीपी) भी सहमत हैं. एजेवायसीपी विदेशी नागरिकों के विरोध में चलने वाले आंदोलन की अग्रिम पांत का एक अन्य रेडिकल संगठन है. पलाश चंगमई ने कहा कि आधार के बारे में सरकार के फैसले को लेकर हमारे विरोध के बारे में महीनों पहले बता दिया गया था. पलाश के मुताबिक 'पहले एनआरसी को पूरा होने दिया जाना चाहिए. इस प्रक्रिया को और ज्यादा जटिल बनाने की जरूरत नहीं है.'
स्थानीय समूहों को डर है कि आधार-संख्या मिलने की वजह से अवैध आप्रवासियों को मुख्य सेवाएं हासिल हो जाएंगी और ऐसा होने पर उन्हें सूबे से बाहर किसी और जगह पर भेजने में एक और बाधा खड़ी हो जाएंगी.
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