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बीजेपी-शिवसेना गठबंधन: दम तोड़ती दोस्ती को फिर से जिंदा करने की कोशिश

दोनों पार्टियों की टॉप लीडरशिप संबंधों में आई खटास को दूर करने की कोशिश कर रही है

Sanjay Sawant

आम चुनाव केवल 14 महीने दूर हैं और बीजेपी अपने 2014 के प्रदर्शन को दोहराने की दिशा में पहले से ही जुट गई है. हालांकि, हाल के दिनों में, शिवसेना, तेलुगू देशम पार्टी और अकाली दल जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ पार्टी के राजनीतिक समीकरणों में तनाव उभर कर आया है.

शिवसेना के मामले में, पार्टी सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने 23 जनवरी को बीजेपी के साथ गठबंधन खत्‍म करने का खुलेआम ऐलान करके इस तनातनी को लेकर अपने इरादे जाहिर कर दिए. अब, ऐसा लगता है कि बीजेपी नेतृत्व एनडीए को बरकरार रखना चाहता है और इसके लिए, बीजेपी नेताओं ने मुंबई, औरंगाबाद और दिल्ली में शिवसेना की टॉप लीडरशिप से मुलाकात की.


इसके अलावा, पार्टी ने महाराष्‍ट्र में अपने इस सहयोगी पार्टी को 2019 के विधानसभा चुनावों में 140 और 144 सीटों पर जोर आजमाइश का मौका देने की बात भी कही है.

हालांकि तीन हफ्ते पहले शिवसेना ने एकतरफा ढंग से गठबंधन खत्म करने और 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अकेले ही भिड़ने का फैसला किया था. इसके नेता पिछले एक साल में अपने इन इरादों को कई बयानों से जाहिर भी कर रहे हैं.

इन नेताओं ने राज्य सरकार की खुले मंच पर आलोचना की और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार पर भी निशाना साधा. पर अब ऐसा लगता है कि, बीजेपी और शिवसेना, दोनों पार्टियों के खेमों को यह बात समझ में आ गयी है कि आगामी चुनावों में उन्‍हें एक-दूसरे की जरूरत है.

गठबंधन बचाने की सोच के साथ, नवंबर 2017 से दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं के बीच तीन गुप्त बैठकों में इसे लेकर चर्चा हुई है. बीजेपी के उच्च-पदस्‍थ सूत्रों ने फ़र्स्टपोस्ट से इस बात की पुष्टि की है कि गठबंधन को वापस पटरी पर लाने का प्‍लान अक्टूबर 2017 में बना था, जिसके बाद दोनों दलों की बैठक हुई.

पहली बैठक में बीजेपी कमेटी की ओर से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल और वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार शामिल हुए. जबकि विनोद तावडे, पंकजा मुंडे और पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे जैसे ताकतवर नेताओं को इन बैठकों से बाहर रखा गया.

शिवसेना का प्रतिनिधित्व उद्धव के निजी सहायक और पार्टी सचिव मिलिंद नार्वेकर, राज्यसभा सांसद अनिल देसाई और उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने किया. शिवसेना के सांसद और प्रवक्ता संजय राउत को कुछ समय के लिए बाहर रखा गया है.

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उच्च पदस्‍थ सूत्रों ने इस बात की ताकीद की है कि नवंबर के पहले सप्ताह में, मुंबई में नार्वेकर और मुनगंटीवार के बीच एक बैठक हुई थी. जिसमें उन्‍होंने शिवसेना से लोकसभा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने की अपील की. इसके अलावा, यह कहा गया कि अगर बगावती तेवर अपनाए हुए नारायण राणे गठबंधन के लिए मुसीबत बने हुए हों तो, उन्हें दरकिनार किया जा सकता है.

सूत्रों ने यह भी पुष्टि की कि बीजेपी अपने और शिवसेना के बीच सीटों के लिए 50:50 सीट के साझे वाले फॉर्मूला के लिए तैयार थी. मौजूदा विधानसभा में 122 बीजेपी और 63 शिवसेना के विधायक हैं. इस तरह, 185 सीटों को छोड़कर, बीजेपी शेष 103 सीटों में से 22 पर चुनाव लड़ सकती है, साथ ही बाकी 81 सीटों पर शिवसेना ले सकती है.

इस बैठक के कुछ समय बाद ही बीजेपी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह 2019 में गठबंधन के लिए तैयार है.

दूसरी बैठक जनवरी के पहले सप्ताह में राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र में औरंगाबाद में हुई थी. यह शिवसेना की उस घोषणा से कुछ हफ्ते पहले हुई जिसमें कहा गया कि उसकी राहें बीजेपी से अलग हो रही हैं. यह बैठक एक समारोह के अवसर पर हुई और इसमें बीजेपी के राज्य अध्यक्ष रावसाहेब दानवे, शिवसेना सांसद चंद्रकांत खैरे और राज्य मंत्री अर्जुन खोतकर शामिल थे.

दानवे ने आश्वासन दिया कि गठबंधन 2019 में सत्ता में लौट आएगा, हालांकि, चुनाव में अकेले जाने का मतलब विपक्षी दलों, कांग्रेस और एनसीपी के लिए रास्‍ता आसान बनाना है. उन्होंने दोहराया कि ग्रामीण महाराष्ट्र में, पार्टियों को एक दूसरे की जरूरत है. हालांकि, उस बैठक में खैरे ने बाकायदा बताया कि 2019 के चुनावों में बीजेपी कैसे अकेले जाने की तैयारी कर रही थी और उसने पहले से ही उनके निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ने वाले को चुन भी लिया है. दोनों पक्ष इस नतीजे पर पहुंचे कि कुछ तय नहीं हुआ है और आखिरी फैसला अमित शाह और उद्धव ही लेंगे.

प्रतीकात्मक तस्वीर

इन बैठकों में से तीसरी राष्ट्रीय राजधानी में बीते शुक्रवार को हुई. शिवसेना और बीजेपी के सूत्रों ने पुष्टि की कि दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व को बैठक का एजेंडा पता था. 9 फरवरी को संसद के बजट सत्र के पहले चरण के साथ, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और शिवसेना राज्यसभा सांसद अनिल देसाई ने जेटली के संसद भवन कार्यालय में 10 मिनट की बातचीत बंद-दरवाजों के भीतर की और बाद में जेटली ने अपने आवास पर उनसे एक लंबी बातचीत की.

बगैर फैसले वाली पहली बैठक के बाद, देसाई अपनी पार्टी के विचार साझा करने के लिए अनिच्छुक लग रहे थे. जेटली ने अपने आवास पर हुई बैठक में शिवसेना को विधानसभा में 50:50 सीट-शेयर के बदले में 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन जारी रखने का विकल्प देने की पेशकश की.

दूसरी बैठक में जेटली ने शिवसेना को प्रस्ताव दिया कि किसी भी तरह 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन जारी रहे. नाम न छापने की शर्त पर शिवसेना के शीर्ष नेता ने बताया कि दिल्ली की इन दोनों बैठकों के बीच उद्धव ने देसाई को गठबंधन पर चर्चा को आगे ले जाने को कहा.

लोकसभा में, महाराष्‍ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में शिवसेना के 18 सांसद, जबकि बीजेपी के 23 सांसद हैं. शिवसेना के वरिष्ठ नेता ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि पार्टी को यह महसूस हो रहा है कि जिस दिन से उसने केंद्र सरकार के साथ हाथ मिलाया है, उस दिन से ही उसे अनदेखा किया गया है.

उन्‍होंने कहा, 'यह चिंता की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में लोकप्रियता और विश्वसनीयता खो रहे हैं. गुजरात में हाल के चुनावों के परिणाम बताते हैं कि अपने ही राज्य के मतदाता मोदी के जुमलेबाजी से नाराज हैं. महाराष्ट्र में भी, पिछले तीन वर्षों में बिना कोई ठोस काम करने वाले फडणवीस भी उसी रास्‍ते पर चल रहे हैं.'

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'मराठा और धनगर आरक्षण का मुद्दा अभी भी अस्तित्व में है और राज्यभर में ऐतिहासिक किसानों को ऋण माफी स्कीम के असफलता के बारे में सवाल पूछे जा रहे हैं, इसलिए दिन-प्रतिदिन, शिवसेना के लिए अपमान बढ़ता जा रहा है और तब जाकर 23 जनवरी को उद्धव ने बीजेपी के साथ गठबंधन खत्म करने की बात जनता को बताने का फैसला किया. इसके अलावा, शिवसेना किसी भी अन्य पार्टी के साथ गठजोड़ नहीं करेगी.

इस बीच, मुनगंटीवार ने फ़र्स्टपोस्ट से इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने अपने नेचुरल सहयोगियों का साथ फिर से लेने के के विचार के साथ वास्‍तव में नार्वेकर से मुलाकात की थी. उन्होंने स्पष्ट किया कि कांग्रेस और एनसीपी संयुक्‍त रूप से बीजेपी और शिवसेना के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं, अगर ये दोनों अकेले ही चुनावी मैदान में ताल ठोंके. उन्‍होंने कहा, 'अगर कांग्रेस और एनसीपी एक साथ आते हैं, तो अनुमान है कि उन्हें 1.85 करोड़ वोट मिल रहे हैं जबकि शिवसेना और बीजेपी को कुल मिलाकर 2.8 करोड़ वोट मिलते हैं. इसलिए हमने इस परिदृश्य पर चर्चा की और इसमें क्‍या किया जा सकता है.'

'इसके अलावा, कांग्रेस-एनसीपी शासन के 15 वर्षों के बाद, राज्य के मतदाताओं ने 2014 में सेना-बीजेपी को जनादेश दिया, तो 2019 में क्यों सहयोगियों के रूप में नहीं रहना? मैं एक टाई अप से कोई निजी लाभ नहीं लेने का ख्याल रखता हूं, लेकिन इससे राज्य को फायदा होगा. मुनगंटीवार ने दावा किया 'मुझे पूरा भरोसा है कि अगर हम गठबंधन बना लेंगे तो शिवसेना के साथ हम सत्ता में वापस आ सकते हैं. कांग्रेस और एनसीपी को सत्ता में लौटने से रोकने के लिए, अपनी पार्टी के छोटे कार्यकर्ता की हैसियत से मैं जो भी कर सकता हूं, करूंगा.'

देसाई-जेटली की बैठक पर, मुनगंटीवार ने कहा कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व शिवसेना को एक प्राकृतिक सहयोगी के रूप में भी देखता है, और इसलिए, गठबंधन से दोनों पक्षों के लिए बेहतर नतीजे मिलेंगे.

प्रतीकात्मक तस्वीर

देसाई ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि बैठक आधिकारिक नहीं थी. उन्होंने कहा, 'बजट सत्र में हर सांसद दूसरे सांसदों को मिलते हैं. जेटली वित्त मंत्री हैं और मैं राज्यसभा का एक सदस्य, इसलिए शुभकामनाएं देना स्वाभाविक ही है.'

जेटली के साथ उनकी बैठक के बारे में पूछा गया (पहले, उनके कार्यालय में और उसके बाद उनके निवास पर), तो देसाई ने इससे स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. उन्‍होंने कहा, 'जैसा कि उद्धव ने कहा है, बीजेपी के साथ हमारे पार्टी के गठबंधन की स्थिति,संक्षिप्त होगी. जहां तक मेरा सवाल है, शिवसेना ने पहले ही घोषणा की है कि वह बिना किसी सहयोगी के 2019 चुनावों में हिस्‍सा लेगी, जिसका मतलब है कि हम अकेले जाएंगे.'

खैरे ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'आम तौर पर हम जिले के कामकाज के लिए दानवे से मिलते हैं लेकिन जहां तक बीजेपी के साथ गठबंधन की बात है तो इस पर मैं कुछ टिप्‍पणी नहीं कर सकता. यह पार्टी अध्‍यक्ष का विशेषाधिकार है और उनका फैसला है. यह बीजेपी के खेल और दबाव की रणनीति का हिस्सा है कि एक तरफ सेना को गठबंधन को लेकर बातचीत में उलझाए रखें और दूसरी तरफ मराठावाड़ा क्षेत्र की सभी 41 सीटों के लिए तैयार करते रहें. मेरे क्षेत्र में, दानवे ने पहले ही बीजेपी उम्मीदवारों को पहचान कर ली है. हम इस पार्टी पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?'

उन्होंने दावा किया, 'गुजरात चुनाव के परिणाम के बाद, बीजेपी को हारने का डर बढ़ने लगा है. उद्धव के इस घोषणा के बाद कि हम गठबंधन समाप्त करेंगे, पूरे राज्य में सैनिक और पदाधिकारी अकेले ही लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.'

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उन्होंने कहा कि पार्टी ने 23 जनवरी से पहले दानवे के साथ कोई खास बातचीत नहीं की है, लेकिन अंतिम फैसला वास्तव में उद्धव और शाह ही लेंगे. खैरे ने कहा, 'केवल दो नेता गठबंधन का भाग्य तय कर सकते हैं, कोई और नहीं.'

शिवसेना और बीजेपी एलायंस में दरारें साफ हैं. ऐसा लगता है कि दोनों पार्टियों के नेता एक बार फिर से मेलमिलाप करने की कोशिश कर रहे हैं. दलों को पता है कि राज्य में कांग्रेस और एनसीपी के संयुक्त शक्ति के खिलाफ अकेले जाना मुश्किल होगा. यह एक 'तेल देखो तेल की धार देखो’ वाली बात है जो अगले कुछ महीनों में साफ हो जाएगी.