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बिहार: कांग्रेस विधायकों का टूटना तय है, बस नीतीश कुमार की वजह से देरी

तोड़ने वाले और टूटने वाले दोनो दावा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हो चुका है,अब कांग्रेस पार्टी को बिहार में खत्म कर दिया जाएगा.

Kanhaiya Bhelari

जब आदमी की जीभ गरम दूध पीने से जलती है तो वो छाछ भी फूंक-फूंक कर पीना शुरू कर देता है. बिहार कांग्रेस विधायकों को तोड़ने में लगे प्रधान तोड़क को इसी सिन्ड्रोम से गुजरना पड़ रहा है. शायद इसी वजह से संभावित टूट में देरी हो रही है.

कानून के मुताबिक विधायक दल को तोड़ने के लिए दो तिहाई सदस्यों का समर्थन होना चाहिए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2013 में आरजेडी को तोड़ने में सफल तो हो गए थे मगर उनकी किरकिरी हो गई. उनकी बनी-बनाई बेदाग छवि पर बेईमानी का धब्बा लग गया था.


दरअसल में 21 सदस्यीय आरजेडी विधायक दल को तोड़ने के लिए 14 विधायकों की जरूरत थी. निश्चित ही सत्ता की मलाई के लिए तड़प रहे आरजेडी विधायकों को निर्धारित जगह पर जुटा लिया गया था. लेकिन ऐन मौके पर विद्रोही विधायकों के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी पीछे हट गए. संख्या 13 पर अटक गई. पूरी मेहनत एक झटके में खत्म होने पर आ गई.

लेकिन प्रधान तोड़क के आदेश पर दल-बदल विरोधी कानून को ठेंगा दिखाते हुए आरजेडी विधायक दल को तोड़ने का एलान कर दिया गया. इसके बाद महान लोक सेवक, स्वयंभू दलित नेता और विधानसभा के स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने आरजेडी से अलग हुए सदस्यों की सदस्यता खत्म होने से बचा कर भारी पुण्य का काम किया था. हालांकि विरोधी आरोप लगाते रहे. ‘साफे गंगा पी गया’.

लालू प्रसाद यादव स्पीकर पर खूब गरजे, उनके आवास तक जुलूस लेकर गए. अपने स्टाइल में ताने मारते रहे. स्पीकर के सरकारी घर पर लालू जी के कार्यकर्ता थोड़े उग्र भी हो गए थे, लेकिन कोई खास सफलता आरजेडी अध्यक्ष को नहीं मिली.

लालू ने चुनौती भी दी कि ‘लोकतंत्र के हत्यारों के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे’. लेकिन आदत के अनुसार जल्द ही शांत भी हो गए. इतिहास गवाह है कि जिसके पक्ष में सदन का स्पीकर रहा है अमूमन उसका बाल भी बांका भी नहीं होता है.

कई विद्रोही विधायकों को मंत्री बनाया गया. हालांकि बाद में उनमें से कुछ नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत करके जीतन राम मांझी के कैंप में भाग गए. लालू प्रसाद ने उन्हें ‘खानदानी भगोड़ा’ का तमगा भी दिया. बहरहाल, इस घटनाक्रम ने सीएम नीतीश कुमार की छवि पर करारी चोट की.

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तोते की तरह नियम कानून की रट लगाने वाले नीतीश कुमार खुद को असहज महसूस करते रहे. मीडिया ने कई दिनों तक अघोषित रूप से उनके नेतृत्व में की गई ‘असंवैधानिक’ दल-बदल की प्रक्रिया को पहले पन्ने पर लिया. अफवाहों में कहा जाता है कि तभी उन्होंने तय किया कि आगे से टूट-फूट की कसरत को काफी सावधानी से करेंगे

अभी क्या है हाल

बिहार विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के कुल 27 सदस्य हैं. संवैधानिक दायरे में टूट के लिये 18 सदस्यों की जरूरत है. सूत्रों पर यकीन करें तो आज की तारीख में नीतीश कुमार के सीधे सम्पर्क में 20 विधायक हैं. अंतरआत्मा की आवाज पर निर्णय लेने वाले सीएम के एक इशारे पर ये घोड़े अपना खूंटा-पगहा लेकर, पुराने और ढहते घर को छोड़कर सत्ताधारी पार्टी में आ जाएंगे.

इन विधायकों में से एक ने पूरी ईमानदारी से इस लेखक को बताया, ‘हमारी पार्टी का बिहार में कोई वजूद नहीं है. लालू प्रसाद के साथ रहने पर हम लोग अपना कोई राजनीतिक भविष्य नहीं देख रहे हैं. हम लोग जिंदगी भर घास छीलने के लिए थोड़े ही राजनीति कर रहे हैं.’ वहीं एक दूसरे कांग्रेसी विधायक का कहना है कि ‘जो इज्जत नीतीश कुमार के साथ रहने पर मिलती है है वह लालू प्रसाद के घर में कभी भी नहीं मिल सकती है’.

नीतीश कुमार किसी भी तरह की जल्दबाजी में नहीं है. वैसे कांग्रेस हाईकमान को पुख्ता प्रमाण मिल गया है कि बिहार इकाई में भयंकर भूकम्प आनेवाला है. विधायक दल के नेता सदानन्द सिंह और बीपीसीसी अध्यक्ष और विधायक अशोक चैधरी दिल्ली जाकर आलाकमान को सफाई भी दे चुके हैं, ‘टूट की अफवाह है. हमलोग अटूट हैं’.

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असल में जहां तक सदानन्द सिंह की बात है तो इनके सुपुत्र खुले आम बीजेपी के संपर्क में है.

नीतीश कुमार

अब किस बात की है देरी

उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने लेखक को एक बार बताया भी था कि ‘हमलोग चाहते हैं कि उनका बेटा बीजेपी का किसी रूप में अंग बने’. वैसे भी आजकल की भारतीय राजनीति में बेटे अपने-अपने पिताओं की परेशानी का सबब बन रहे हैं. इस नजरिए से सदानंद सिंह कोई अपवाद नहीं हैं.

राज्य में कम से कम एक दर्जन विधानसभा क्षेत्र हैं जहां कांग्रेस ने बीजपी के उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की है. इन क्षेत्रों के कांग्रेस विधायकों को नीतीश कुमार की बात पर भरोसा है कि बगावत करने पर उन्हें सीट बरकरार करने का मौका मिलेगा. मगर बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे पर सीएम नीतीश कुमार को अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है.

इस तोड़फोड़ में देर होने के पीछे ये मुख्य पेंच माना जा रहा है. लेकिन तोड़ने वाले और टूटने वाले दोनों दावा कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हो चुका है,अब कांग्रेस पार्टी को बिहार में खत्म कर दिया जाएगा.

मगर ये बात भी तय है कि सीएम नीतीश कुमार इस बार तोड़-फोड़ के खेल में कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं. 2005 में जो सावधानी एलजेपी को तोड़ने में बरती गई थी. इस बार भी बरती जाएगी, क्योंकि ‘सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी’.