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क्या बीजेपी का घर भी रोशन करेगी सरयू तट की ये दीपावली?

योगी उम्मीद कर सकते हैं कि ये रोशनी 2019 में बीजेपी की किस्मत को भी रोशन करेगी.

Sanjay Singh

गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिए जाने की घटना के बाद केंद्र में तब की वाजपेयी सरकार ने जो सबसे पहले जरूरी कदम उठाए, उनमें से एक था अयोध्या को नो-गो एरिया घोषित कर देना.

उस घटना के बाद बाद ही सांप्रदायिक बदले की खबरें आना शुरू हो गई थीं और वाजपेयी सरकार के राजनीतिक नेतृत्व का अपने कार्यकाल की सबसे कठिन चुनौती से सामना होने वाला था. उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में मारे गए लोग अयोध्या में कारसेवा करके लौट रहे थे और इस बात की संभावतना थी कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थिति विस्फोटक हो सकती है, जहां कुछ दिनों से वीएचपी और रामजन्मभूमि न्यास प्रायोजित पूजा चल रही थी, और 15 मार्च तक, जब राम मंदिर के लिए 'शिला पूजन' की जानी थी, जारी रहने वाली थी.


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हजारों श्रद्धालुओं और वीएचपी के समर्थकों के इसमें शामिल होने अयोध्या पहुंचने की संभावना थी, जो कि 6 दिसंबर 1992 के बाद सबसे बड़ा जमावड़ा होने था. कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में बीजेपी बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी, लेकिन जनमत बंटा हुआ था, इसलिए राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के लिए कोशिशें करने या राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने का फैसला करने तक राजनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर बने रहने को कहा गया था.

इस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और केयरटेकर मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी.

केंद्र और यूपी सरकार द्वारा प्राइवेट कार, अयोध्या के सरयू साइड पर हर तरह की बोट सर्विस समेत हर किस्म के ट्रांसपोर्ट पर पाबंदी की बात जेहन से उतर जाने के बाद उस समय एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के लिए काम करने वाला यह लेखक 28 फरवरी को दिल्ली से शताब्दी एक्सप्रेस से लखनऊ स्टेशन पर उतरा.

अयोध्या पहुंचने का और कोई तरीका नहीं था, सिवा इसके कि कुछ दूर राज्य परिवहन की बस से सफर करने के बाद मोटरसाइकिल से, फिर मौसमी सब्जियां ले जा रहे टैंपो में छिप कर और फिर अंतिम कुछ किलोमीटर पैदल तय करके जाया जाए.

इस सफर और अयोध्या/फैजाबाद में तीन हफ्ते के पड़ाव के दौरान मुझे समझ में आया कि लोगों के मन में अयोध्या आंदोलन के सारथी उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के 'विश्वासघात' को लेकर उनके खिलाफ गुस्सा भरा था. लोग न भूलने के मूड में थे न क्षमा करने के.

इस इलाके के लोगों में कल्याण सिंह के लिए हमदर्दी थी, जिन्होंने अपनी क्षमता भर जो भी मुमकिन था अयोध्या के लिए किया था, लेकिन कल्याण सिंह अब बीजेपी में प्रासंगिक नहीं रह गए थे. लोगों ने अपनी नाराजगी 2002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में बीजेपी को 156 सीटों से 88 पर समेट कर जता भी दी.

युवा योगी आदित्यनाथ का उस समय गोरखपुर से सांसद के रूप में दूसरा कार्यकाल था. आज 15 साल बाद योगी आदित्यनाथ एक जबरदस्त बहुमत के साथ विधानसभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं.

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केंद्र में भी बीजेपी सरकार के पास अकेले दम पर बहुमत है, इसलिए पार्टी के पास 1992 से चला आ रहा या केंद्र में वाजपेयी के छह साल के कार्यकाल में पेश किया जाने वाला बहाना नहीं है कि जब तक केंद्र और राज्य में उसका पूर्ण बहुमत नहीं होगा, वह अयोध्या में मंदिर नहीं बना सकती.

यह बहाना अब खत्म हो चुका है. योगी आदित्यनाथ पर राम मंदिर के श्रद्धालुओं और बीजेपी के समर्थकों की उम्मीदों का भारी दबाव है कि कुछ सकारात्मक कदम उठा कर दिखाएं.

हालांकि उत्तर प्रदेश में 2014 और 2017 में अप्रत्याशित नतीजे के पीछे कई कारण थे, लेकिन बीजेपी की जबरदस्त जीत के लिए सबसे बड़ा कारण था, चुनाव का 'हिंदू-मुस्लिम' केंद्रित हो जाना. जाहिर है ना तो बीजेपी और ना ही भगवा लिबास में लिपटे मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश और शेष भारत के बड़े वर्ग के दशकों पुराने भावनात्मक सवाल पर ढिलाई बरतते दिखने का खतरा मोल ले सकते हैं.

मोदी सरकार का नेतृत्व और बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे के साथ ही यूपी सरकार भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपना फैसला नहीं दे देता, वो राम मंदिर के मसले पर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते. लेकिन यह बहाना जनता के बीच चलने वाला नहीं हैं.

केंद्र सरकार का अयोध्या में एक विशाल म्यूजियम और थीम पार्क बनाने का फैसला और योगी आदित्यनाथ द्वारा मंदिर नगरी के विकास लिए उठाए गए कई कदम ऐसे उपाय हैं, जिनके माध्यम से बीजेपी कुछ कदम आगे बढ़ाती हुई दिखना चाहती है.

योगी ने अयोध्या को फैजाबाद से अलग कर यह संदेश दे दिया है कि वह अपने इरादे, काम और अमल को लेकर गंभीर हैं. उनका यह आरोप गलत नहीं है कि उत्तर प्रदेश में पूर्व की सभी सरकारों ने अयोध्या के विकास पर ध्यान नहीं दिया.

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भारत के सबसे पुराने सांस्कृतिक शहरों में से एक अयोध्या लंबे समय से बदहाली का शिकार है. इसे देख कर ऐसा लगता है मानो यह किसी मध्यकालीन युग में थम सा गया है. इस जगह पर आधुनिक समय की कोई भी निशानी मिलना अजूबा होगा.

सरयू नदी का तट बड़ा मनोरम दिखता है, लेकिन इसका ठीक से विकास और रखरखाव नहीं किया गया. अयोध्या में कोई ढंग की जगह नहीं है, जहां रात में ठहरा जा सकता हो और आपको अच्छा ठिकाना पाने के लिए फैजाबाद जाना होता है.

अपनी शुरुआत में योगी ने समझदारी से इस दिशा में कदम उठाते हुए अयोध्या को बड़ी तीर्थ पर्यटन नगरी बनाने के लिए कदम उठाए हैं. करीब 100 मीटर ऊंची भगवान राम की प्रतिमा का निर्माण सैलानियों के लिए एक बड़ा आकर्षण हो सकता है. यह भी विडंबना ही है कि राम की जन्मस्थली में सबसे महत्वपूर्ण स्थान हनुमानगढ़ी है.

विवादास्पद रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की साइट पर एक 'यथास्थिति' वाला कामचलाऊ रामलला का मंदिर है, लेकिन सैकड़ों तीर्थयात्रियों को यहां आने पर रामलला की मूर्ति के दर्शन नहीं होते.

योगी ने 2017 की दीपावली को अयोध्या के लिए एक मेगा इवेंट में तब्दील कर दिया है. उनके खुद के शब्दों में उन्होंने राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापसी के उत्सव को फिर से जीवित करने की कोशिश की है.

अयोध्या और सरयू के तट पहले ही बीते कुछ दिनों से रंगीन रौशनियों से जगमगा रहे हैं. सरयू पर 1.71 लाख दीयों का जलना और इनका नदी में तैरना का एक शानदार नजारा है, जो इस मंदिर नगरी के लोगों और बाकी देश ने कभी नहीं देखा होगा.

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योगी उम्मीद कर सकते हैं कि ये रोशनी 2019 में बीजेपी की किस्मत को भी रोशन करेगी. अगर वह अपने इरादे में कामयाब होते हैं तो वह बीजेपी के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान सुरक्षित कर लेंगे. वह सिर्फ अयोध्या में ही नहीं रुक रहे हैं. उनके अगले दो पड़ावों में चित्रकूट भी इतना ही महत्वपूर्ण है.

फिर भी कोई उन पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाता है तो उनके समर्थक बीते दो दिनों में उनके ताजमहल पर दिए बयान की याद दिला सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह यह भारतीय पैसे से भारतीयों के खून-पसीने से बना है. बाकी 26 अक्टूबर को वह आगरा तो जा ही रहे हैं.