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इस जादूगर की जादूगरी 'जूठी' भी है और 'झूठी' भी

काले धन का सवाल मंच पर खड़ा था, जादूगर उसे गायब करने वाला काला जादू कर रहा था

Yogendra Yadav

सन् 2016 का आखिरी दिन था. हमारे युग की माया यानी टीवी का पर्दा था. पर्दे पर देश का सबसे बड़ा जादूगर था. कुल 43 मिनट का मैजिक शो था. सारे देश के साथ-साथ मैं भी देख रहा था.

आज रहस्य खुलने वाले थे, देश सच का सामना करने वाला था. पचास दिन पहले प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की थी, जनता से कुछ तकलीफ झेलने की अपील की थी.


विपक्षी दल कुछ भी कहते रहे मगर जनता ने अपनी दुख-तकलीफ भुला कर नोटबंदी का समर्थन किया. प्रधानमंत्री ने 50 दिन मांगे, जनता ने दिल खोल कर दिए.

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अपने किसी लालच में नहीं, बल्कि इस उम्मीद में कोई तो देश से काले धन को निकालने की कोशिश कर रहा है. आज पचास दिन के बाद हिसाब देने का वक्त था.

पुराने 500-1000 के नोट

जादूगर ने छड़ी घुमाई. पर्दे पर गांधीजी बोल रहे थे. 'हर इंसान में कमजोरी होती है, विकृतियां होती हैं, लेकिन हम उससे मुक्त होने के लिए छटपटाते हैं .. पिछले पचास दिनों में देश एक ऐसे ऐतेहासिक शुद्धि यज्ञ का गवाह बना है. नागरिकों ने धैर्य, अनुशासन और संकल्प शक्ति की मिसाल कायम की है... जब सच्चाई और अच्छाई सरकार का सहयोग करेगी तो देश आगे बढ़ेगा.' मुझे लग रहा था कि मैं सिर्फ एक नेता नहीं एक राष्ट्र निर्माता को सुन रहा हूं.

24 लाख लोगों की सालाना कमाई 10 लाख से ज्यादा

इतने में जादूगर ने फिर अपनी छड़ी घुमा दी. अब मेरे सामने सरदार पटेल की छवि थी. सही को सही और गलत को गलत कहने वाला स्पष्टवादी नेता, जो जरूरत पड़ने पर सख्ती से परहेज नहीं करता.

सच ये है कि बड़े नोटों का इस्तेमाल कालेधन के लिए हो रहा था... देश में सिर्फ 24 लाख लोग अपनी सालाना आमदनी 10 लाख रुपये से ज्यादा घोषित करते हैं. क्या ये सच हो सकता है?' सरकार सज्जनो की मित्र है लेकिन दुर्जनों को ठीक रास्ते पर लाना होगा... अगर किसी बैंक कर्मचारी ने अपराध किया है तो उसे बख्शा नहीं जायेगा.

चाहे मैं हर बात से सहमत नहीं था लेकिन सुनकर अच्छा लग रहा था.

मेरे जैसे सब लोगों की उम्मीद बढ़ रही थी. अब प्रधानमंत्री सब सवालों के जवाब देंगे. पचास दिन के त्याग से देश ने कितना कालाधन पकड़ा? कितने नोट बैंकों में जमा हुए? बैंकों ने कितने नए नोट जारी किये? अब कितने दिन में लोग अपने ही अकाउंट से पैसे निकाल पाएंगे?

उम्मीद यह भी थी की जनता को अनावश्यक हुई पीड़ा को प्रधानमंत्री स्वीकार करेंगे. हर बड़े काम में कुछ गलती भी हो जाती है.

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उम्मीद थी कि अगर कोई भूल हो गयी हो तो प्रधानमंत्री उसको साफगोई से जनता के सामने रखेंगे. विश्वास था की जिस जनता ने उनके कहने पर पचास दिन कष्ट झेल लिया वो उनकी छोटी-बड़ी भूल को भी अनदेखा कर देगी.

इतने में ही ब्रेक आ गया. ब्रेक के बाद पर्दे पर इंदिरा गांधी की छवि थी. अब युगपुरुष या राष्ट्रनिर्माता की जगह एक लोकलुभावन राजनेता बोल रहा था.

सच्चाई और अच्छाई की बात करते-करते लॉलीपॉप बंटने लगे. और जब लॉलीपॉप का रैपर खोला तो उसमे आधी जूठी निकली और बाकी झूठी, यानि कुछ योजनाएं तो पुरानी थीं और बाकी में दावे बड़े थे और हकीकत छोटी.

नोटबंदी से क्या फायदा हुआ?

गर्भवती महिला को 6000 रुपये की योजना तो खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सरकार पर दो साल पहले लागू करने की बंदिश थी.

सच्चाई की बात करने वाले प्रधानमंत्री इस मजबूरी को नयी योजना की तरह पेश कर रहे थे. छोटे उद्योगपतियों की कर्ज लिमिट तो पहले ही बढ़ चुकी थी.

गरीबो के लिए आवास योजना में बस कर्जे की सीमा 6 लाख से बढ़ा कर नौ लाख कर देने से कुछ होने जाने वाला नहीं है क्योंकि यह योजना तो पहले ही फेल हो चुकी है. किसान के लिए तो कुछ भी नहीं था. बस पिछली दो फसल के कर्जे में 60 दिन की ब्याज माफी की घोषणा हुई.

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वो तो करना ही पड़ता क्योकि 50 दिन तक तो सरकार ने ही सहकारी बैंको को लगभग बंद रखा. किसानों को नोटबंदी के कारण फसल के दाम और बीज-खाद में किसान को जो नुक्सान हुआ उसका हर्जाना कौन देगा?

मेरा मन बुझने लगा था, लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा था. मैजिक शो में न जाने कब क्या हो जाये!

नोटबंदी या लूटबंदी ?

मुझे अभी बड़े सवाल के जवाब का इंतज़ार था. नोटबंदी तो हो गयी, अब लूटबंदी कब होगी?

कालेधन के राक्षस के बाकी सिरों पर कब हमला बोला जायेगा? कालेधन को हीरे-जवाहरात, प्रॉपर्टी और शेयर के रूप में रखने वालों का नंबर कब आएगा?

विदेशों से कालेधन को सफेद करने का धंधा कब रुकेगा? और इस दशानन की नाभि, यानि राजनीती की फंडिंग, पर कब हमला होगा? पार्टियों पर क्या पाबंदी लगेगी?

इस बार जादूगर ने फिर छड़ी घुमाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ. इस बार पर्दे पर खुद नरेंद्र मोदी ही दिखाई दे रहे थे. तरह-तरह के आंकड़े दे रहे थे, बस वो आंकड़े नहीं बता रहे थे जो सारा देश पूछ रहा था.

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पचास दिन के बाद जवाब देने की बजाय सवाल पूछ रहे थे. काले धन के सब बड़े सवालों पर चुप थे. बाकी सब पर बंदिश लगाने वाले अपने आप पर कुछ पाबंदी लगाने की बात से कन्नी काट रहे थे.

राजनीति की फंडिंग के बारे में सिर्फ इतना कहा कि सभी पार्टियां मिलकर एक राय बनाएं लेकिन व्यापारियों और आम जनता को भी ये सुविधा क्यों नहीं मिले की वो खुद फैसला करें की उनपर क्या पाबंदी लगे?

राजनैतिक सुधार के मुद्दे को घुमाने के लिए प्रधानमंत्री ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ करवाने का शगूफा दोहरा दिया. इसका नोटबंदी और कालेधन से क्या सम्बन्ध?

काले धन का सवाल मंच पर खड़ा था, जादूगर उसे गायब करने वाला काला जादू कर रहा था, लेकिन बात बन नहीं रही थी. तिलिस्म टूट गया था, हाथ की सफाई पकड़ी गयी थी. जादूगर मंच पर अकेला खड़ा था.

अब भी कुछ-कुछ बोल रहा था 'चंपारण के गांधी' वाला मंत्र लगा रहा था, लेकिन अब दर्शक उठ कर जाने लगे थे. जादूगर ने अचानक शो खत्म कर दिया.

मैं भी उठ खड़ा हुआ. जादूगर को धन्यवाद कहा कि उसने हमारी आंखे खोल दीं - काले धन का मुकाबला काले जादू से नहीं होगा.

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दस सिर वाले इस राक्षस की नाभि पर बाण वो लोग नहीं चलाएंगे जिनकी अपनी तिजोरी वहां रखी है. ये काम आपको और मुझे ही करना होगा. यही नए साल का संकल्प होना चाहिए.

(लेखक स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ये लेखक के निजी विचार हैं)