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अयोध्या मामले की सुनवाई का सियासत पर कितना असर पड़ेगा ?

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस फैसले का देश की राजनीति पर व्यापक असर होगा.

Amitesh

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई एक बार फिर टल गई है. अब 14 मार्च को राम मंदिर विवाद और इस पूरे मामले की सुनवाई होगी. एक बार फिर से सभी दस्तावेज पूरे नहीं होने के चलते इसे मामले की सुनवाई टल गई है. अब अदालत के निर्देश के मुताबिक, सात मार्च तक सारे दस्तावेज पूरे करने होंगे, जिसके बाद अदालत में आगे की कार्यवाही शुरू होगी.

हालांकि आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान साफ कर दिया कि इस मामले में भावनात्मक और राजनीतिक दलीलें नहीं सुनी जाएगी, बल्कि इस पूरे मामले की सुनवाई कानूनी आधार पर होगी. इस मामले में एक पक्ष की तरफ से कहा गया था कि यह मामला 100 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं का है.


हालांकि सभी पक्षों ने अपनी तरफ से सभी दलीलें और दस्तावेज देने की कोशिश की है. अदालत में सुनवाई के दौरान गीता-रामायण समेत 42 किताबें भी दी गई हैं, जिन पर आने वाले दिनों में बहस के दौरान इन पर भी चर्चा होगी, क्योंकि अदालत ने गीता और वाल्मीकि रामायण के कुछ अंश भी मांगे हैं.

इस पूरे मामले में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड तीन पक्षकार हैं. लेकिन, इसके अलावा भी कोर्ट में कई दूसरे लोगों ने भी अपना पक्ष रखने की कोशिश की है. श्याम बेनेगल की उस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है जिसमें विवादित स्थल पर अस्पताल बनाने की मांग की गई थी. लेकिन, अब कोर्ट की तरफ से साफ हो गया है कि और किसी को नया पक्ष नहीं बनाया जाएगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर

8 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भले ही 14 मार्च तक के लिए सुनवाई टल गई है. लेकिन, जो संकेत मिल रहे हैं उससे साफ लग रहा है कि अब अदालत में शुरुआती कागजी कारवाई लगभग पूरी हो गई है और यह पूरा मामला ट्रैक पर आ गया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि अब अदालत में सुनवाई 14 मार्च से नियमित तौर पर शुरू हो सकेगी.

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अयोध्या मामला पहले से ही संवेदनशील रहा है. ऐसे में अब इस मामले को लेकर अब सियासी सरगर्मी भी तेज हो गई है. क्योंकि 2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. इसके पहले अगर अयोध्या मामले को लेकर कोई भी फैसला आता है तो उसका सीधा असर चुनाव पर भी पड़ सकता है.

इसी को मुद्दा बनाकर पिछली सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल की तरफ से यह दलील दी गई थी कि इस मामले को 2019 के लोकसभा चुनाव तक टाला जाए. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के रुख से साफ लग रहा है अब यह मुद्दा नहीं टलने वाला.

अगर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की नियमित तौर पर सुनवाई होती है तो निश्चित तौर पर अयोध्या विवाद पर फैसला इसी साल आ जाएगा. लिहाजा पहले से ही इस बात के माहौल बनने लगे हैं.

शिवसेना नेता संजय राउत के बयान ने पूरे मामले को और गरमा दिया है. संजय राउत ने ज्यादा देर न करने की सलाह देते हुए कहा कि अब तो केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार है. उनका इशारा इस बात को लेकर था कि अब जब दोनों राज्यों में अपनी सरकार है तो अदालत के फैसले का इंतजार क्यों? हो सकता है कि संजय राउत बीजेपी पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हों, क्योंकि आज कल बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते पहले की तरह अपनेपन वाले नहीं रहे. लेकिन, उनका यह बयान बीजेपी के हिंदुत्व-प्रेम की काट के तौर पर देखा जा रहा है.

राउत यहीं नहीं रुके. उनका कहना था कि जब बाबरी ढांचा गिराया गया तो क्या अदालत से पूछ कर गिराया था क्या?

इस बयान से साफ है कि अदालत का फैसला जो भी आए उस मुद्दे पर सियासत होगी ही.

बीजेपी के कई नेता रह-रहकर इस तरह के बयान देते रहते हैं जो कि इस मामले को और ज्यादा तूल दे देते हैं. लेकिन, इस मुद्दे को सियासत के केंद्र में लाने वाली बीजेपी ने सत्ता में आते ही अदालत के फैसले का इंतजार करने का फैसला कर लिया है. उधर, विपक्ष को भी इसी बात का डर सता रहा है कि कहीं एक बार फिर से यह मुद्दा ज्यादा राजनीतिक रंग न ले ले, क्योंकि ध्रुवीकरण का नुकसान उसे उठाना पड़ सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अयोध्या मामले को कानूनी तौर पर ही देखा जाएगा, न कि राजनीतिक औऱ भावनात्मक तौर पर. लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस फैसले का देश की राजनीति पर व्यापक असर होगा.