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लोग माल्या की गिरफ्तारी चाहते हैं लेकिन सरकार को उसकी संपत्ति जब्त करनी चाहिए

अगर बैंकों को कुर्क की गई संपत्तियों को बेच कर नुकसान भी उठाना पड़े, तो भी माल्या अपने अपराध से मुक्त नहीं हो पाएंगे. इससे ज्यादा संतोष की बात टैक्स देने वाले भारतीयों को और क्या होगी

S Murlidharan

भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण के मामले पर लंदन की अदालत ने अपना फैसला इस साल 10 दिसंबर तक सुरक्षित रख लिया है. ज़ाहिर है कि किसी विदेशी अदालत को आप फैसले के लिए बाध्य तो कर नहीं सकते. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि लंदन की अदालत फैसला भारत सरकार के हक में ही दे. अगर भारत सरकार के हक में फैसला आ भी जाता है, तो प्रत्यर्पण रोकने के लिए विजय माल्या उस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे और हर वह कोशिश भी करेंगे जिससे उनका प्रत्यर्पण रुक सके.

इस पृष्ठभूमि में अब हमें उसकी उन अचल संपत्तियों पर काम करना चाहिए, जिसे सरकार पहले ही कुर्क कर चुकी है. अच्छी बात ये है कि कुर्क की गई सारी संपत्ति की कीमत करीब 14 हजार करोड़ बनती है, जिससे उन सभी 17 बैंकों का 9 हजार करोड़ रुपया आराम से चुकाया जा सकता है, जो माल्या ने उधार लिया था. वास्तव में, बैंको का पैसा लेकर विदेश भागने वाले और वहां की अदालतों के जरिए भारत सरकार और बैंकों को ठेंगा दिखाने वाले ऐसे लोगों के लिए ही आर्थिक अपराध से जुड़े कानून बनाए गए हैं.


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कानून ऐसे हैं कि अपनी अनुपस्थिति में भी कोई भगोड़ा अपने वकील के जरिए अपनी बात हमारी अदालतों में कह सकता है. 2002 में बनाए गए ‘एंटी मनी लॉन्ड्रिंग कानून’ के तहत जो विशेष अदालतें बनाई गई थीं, उनके पास भगोड़ों को वापस ला कर सुनवाई के लिए बड़ी ताकत भी है. पहले की तरह भगोड़ों को वापस लाने के लिए उनके रिश्तेदारों को नहीं पकड़ा जाता.

नए कानून का हो पूरी ताकत से इस्तेमाल

अब नए कानून के मुताबिक भगोड़े की संपत्तियां कुर्क कर ली जाती हैं, जिससे वह वापस भारत लौटे और समर्पण कर अदालत में अपनी बात रखे. ये एक बढ़िया कानून इसलिए है कि अगर उनको वापस देश में लाया न जा सके, तो आरोपित भगोड़े की संपत्तियां बेच कर सरकार और बैंकों की उधारी चुकाई जा सके. इसीलिए मोदी सरकार और माल्या के शिकार सभी 17 बैंकों को तुरंत, बिना वक्त गंवाए, अपनी पूरी ताकत से इस कानून का इस्तेमाल करना चाहिए.

ये मुमकिन है कि रिसीवर जब इन संपत्तियों को बेचने की कोशिश करे, तो उसे वह कीमत न मिल पाए, जिसकी उम्मीद की जा रही हो. ज़ाहिर है कई संपत्तियां बेकार मान ली जाती हैं और कई मामलों में खरीददार इसे ‘आपदा के चलते मजबूरी में बेची जा रही संपत्ति’ मान लेते हैं और कम दाम लगाते हैं. लेकिन किसी भी हालत में ये 2016 के डरावने ‘इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड’ से तो बेहतर ही है.

बैंकों को भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि वे अभी नेशनल कंपनी लॉ ट्रस्ट के सामने नहीं बुलाए गए हैं, उनके मामले की सुनवाई अभी भगोड़ा कानून के तहत बनाई गई विशेष अदालतें ही कर रही हैं और संपत्तियों को कुर्क करने की प्रक्रिया ही काफी साबित होंगी.

ट्रायल के दौरान माल्या का प्रत्यर्पण हो तो बढ़िया

अगर बैंकों को कुर्क की गई संपत्तियों को बेच कर नुकसान भी उठाना पड़े, तो भी माल्या अपने अपराध से मुक्त नहीं हो पाएंगे. इससे ज्यादा संतोष की बात टैक्स देने वाले भारतीयों को और क्या होगी. माल्या को कुटिल मुस्कान के साथ मुंह में सिगार दबाए हुए देख कर ईमानदारी से टैक्स देने वाला आम आदमी खासा नाराज है. न्याय तो तभी होगा जब उसे बता दिया जाए कि उसकी सारी संपत्ति बिक गई है और उसका हाथ बिल्कुल खाली है.

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आर्थिक अपराध से जुड़े किसी भी मामले में जोर इस बात पर होना चाहिए कि फैसला ऐसा हो कि अपराध के पहले की स्थिति की बहाली की जा सके. यही वजह है कि अमेरिका में ऐसे मामलों में बहाली के फैसले खूब हुए हैं. भगोड़ों को लेकर जो कानून बनाया गया है, वह दरअसल एक तरह से बहाली के फैसलों से ही जुड़ा है. इसीलिए, प्रत्यर्पण और ट्रायल दोनों मामले साथ-साथ चलने चाहिए. अगर ट्रायल के दौरान माल्या का प्रत्यर्पण हो जाता है, तो बढ़िया है. और वह खुद ही अगर आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाता है, तो ट्रायल कोर्ट में भी बच नहीं पाएगा. इस तरह भारत की सरकार और 17 बैंकों के लिए ये दोनों हाथों में लड्डू आने की तरह का मामला है.