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विजय माल्या को पकड़ना नामुमकिन नहीं, लेकिन मुश्किल है!

माल्या ने एक बार फिर से साबित किया कि नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए उन्हें पकड़ पाना बहुत मुश्किल है

Dinesh Unnikrishnan

लंदन पुलिस के हाथों गिरफ्तारी के बाद शराब कारोबारी विजय माल्या को जमानत हासिल करने में बस तीन घंटे लगे. माल्या की गिरफ्तारी की खबर अभी ब्रेकिंग न्यूज के रूप में चल ही रही थी कि वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी.

शराब के कारोबार के इस बेताज बादशाह ने बिना वक्त गंवाए अपनी जीत की खुशफहमी से भरा एक ट्वीट किया. माल्या ने अपनी ट्वीट में लिखा- 'भारतीय मीडिया हमेशा की तरह हवा बनाने में लगी है. उम्मीद के मुताबिक आज से अदालत में प्रत्यर्पण के मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई है.'


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक लंदन की अदालत में विजय माल्या को अब 17 मई को हाजिर होना है. प्रत्यर्पण संबंधी भारत की अर्जी के तर्कों को परखकर लंदन की अदालत को फैसला करना है कि विजय माल्या को भारत भेजा जाए या नहीं.

विजय माल्या ने पहले ही साफ कर दिया है कि प्रत्यर्पण के खिलाफ वे अपनी अदालती लड़ाई जारी रखेंगे. भारत सरकार और इसकी जांच एजेंसियां इस करोड़पति शराब-कारोबारी के प्रत्यर्पण के मामले को कहां तक आगे ले जा पाते हैं यह देखने और इंतजार करने वाली बात होगी.

बहरहाल, माल्या ने एक बार फिर से साबित कर दिखाया है कि नरेंद्र मोदी सरकार के लिए उन्हें पकड़ पाना बहुत मुश्किल है, भले ही सरकार उन्हें भारत वापस लौटाने के लिए चाहे कितना भी जोर लगाए.

लेकिन यह बात भी कही जानी चाहिए कि माल्या की गिरफ्तारी, चाहे वह चंद घंटे की ही क्यों ना हो, मोदी सरकार के लिए एक जीत की तरह है. एक साल से ज्यादा का अरसा हुआ जब विजय माल्या भारत से भागकर ब्रिटेन पहुंचे और भारत के 17 बैंक सकते की हालत में रह गए क्योंकि विजय माल्या पर इन बैंकों का लगभग 9000 करोड़ रुपए का कर्ज है.

बैकों ने इस करोड़पति कारोबारी को निजी गारंटी पर किंगफिशर एयरलाइन के लिए कर्ज दिए थे. यह एयरलाइन अब बंद हो चुकी है. भारत छोड़ने के बाद से विजय माल्या गाहे-बगाहे सार्वजनिक रुप से नमूदार होते रहते हैं और हर बार अपने तेवर में तने हुए नजर आते हैं.

माल्या ने बैंकों से लड़ाई जारी रखने का एलान किया

माल्या ने खुलेआम कहा है कि भारत की बैकिंग व्यवस्था और जांच एजेंसियों के खिलाफ वह अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने कर्जदाताओं को अलग-अलग अदालतों में चुनौती दी है.

भारत से भागने के बाद विजय माल्या ने एक तो मीडिया से अपना राब्ता बहुत कम कर दिया है और जब भी वे मीडिया के सामने आए हैं, लगातार यही कहा है कि भारत सरकार, जांच एजेंसियां तथा बैंकर उन्हें नाहक परेशान कर रहे हैं.

अपने एक इंटरव्यू में विजय माल्या ने कहा, 'मेरा पासपोर्ट जब्त करने और मुझे गिरफ्तार करने से उन्हें पैसे तो वापस मिलने से रहे.'

ऐसे में ‘विजय माल्या-किंगफिशर’ मामला भारतीय बैंकों के लिए एक बड़े इम्तिहान के रूप में उभरा. बैंकों से कर्ज की बड़ी रकम लेकर लौटाने में आनाकानी कर रहे शेष सभी के लिए यह मामला एक संदेश की तरह था. बहुत से बड़े कॉरपोरेट घरानों ने बैंकों से कर्ज ले रखे हैं और कर्ज चुकाने से कतरा रहे हैं, विजय माल्या-किंगफिशर मामला तो बस एक उदाहरण भर है.

जांच के दौरान एजेंसियों ने एकदम साफ कर दिया है कि माल्या ने कर्ज की रकम अपनी ग्रुप कंपनियों में खपी दी और उधारी की रकम के इस्तेमाल को लेकर बैंकों को दिए गए अपने वचन का उल्लंघन किया. लेकिन जांच-एजेंसियों को तफ्तीश के शुरुआती मुकाम पर अपनी बात के पक्ष में मजबूत सबूत हासिल नहीं हो सके. इसी वजह से इस करोड़पति व्यवसायी की हिम्मत बढ़ी है.

मोदी सरकार विजय माल्या को गिरप्तार करने तथा भारत भेजने को लेकर ब्रिटेन के अधिकारियों पर लगातार दबाव बनाती आई है. ऐसा करना बहुत मुश्किल था क्योंकि जैसा कि लेख में ऊपर बताया गया है, विजय माल्या को अपराधी साबित करने के लिए जांच एजेंसियों के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं.

यही वजह रही जो केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय ने माल्या मामले में अपनी गति धीमी रखी और ब्रिटेन के अधिकारियों ने प्रत्यर्पण संबंधी भारत की बात को मानने से लगातार इनकार किया.

एक वक्त ऐसा भी आया जब लगने लगा कि शराब के इस करोड़पति कारोबारी को भारत लौटाने और अदालत में पेश करने में सरकार को कभी सफलता नहीं मिलेगी. कई स्थानीय अदालतों ने भी माल्या के खिलाफ सम्मन जारी कर रखा था.

लेकिन माल्या के खिलाफ कोई भी कदम काम करता नहीं जान पड़ रहा था. बैकों के साथ चल रही अपनी अदालती लड़ाई में माल्या ने कानूनी नुक्तों का अपने फायदे के लिए बड़ी चालाकी से इस्तेमाल किया और कर्ज-अदायगी की पूरी प्रक्रिया को सुस्त बनाए रखने में कामयाबी हासिल की.

माल्या मामले में एक अहम मोड़ पिछले माह आया. भारत ने प्रत्यर्पण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया और ब्रिटेन ने प्रत्यर्पण संबंधी भारत की अर्जी को मंजूर करते हुए आगे की कार्रवाई के लिए डिस्ट्रिक्ट जज के पास भेज दिया. इसी के बाद विजय माल्या की गिरफ्तारी संभव हुई.

कैसे बनाया 17 बैंकों को ‘बकरा’

किंगफिशर एयरलाइंस की उड़ान 2012 में बंद हो गई. अपने संचालन के आठ सालों में किंगफिशर एयरलाइंस ने कभी मुनाफा नहीं कमाया. लेकिन इस एयरलाइंस की कर्जदाताओं ने फंड जुटाने और अन्य बातों में खूब मदद की. 2010 में माल्या एक बार फिर से कर्ज लेने के लिए कर्जदाताओं की शरण में गए. उस वक्त कर्जदाता बैंकों के कॉन्सर्टियम, जिसमें स्टेट बैंक इंडिया सहित कई अन्य बैंक शामिल हैं, में आपसी मतभेद पैदा हो गया.

कुछ बैंक जानना चाह रहे थे कि आखिर विजय माल्या को आगे कर्ज क्यों दिया जाए? खैर, बैंकों के कॉन्सर्टियम ने बहुमत से फैसला किया कि जोखिम लिया जा सकता है और माल्या को निजी गारंटी पर फिर से कर्ज की रकम दे दी गई.

पिछले साल मार्च में लेखक को एक बैंकर ने बताया कि दरअसल यह 'फंस चुकी रकम के पीछे एक बार फिर से कुछ और रकम फंसाने जैसा मामला था (उस वक्त तक किंगफिशर एयरलाइन्स की तंगहाली के किस्से आम हो चुके थे) लेकिन उस वक्त अगर हमलोगों ने कर्ज ना देने का फैसला किया होता तो किंगफिशर एयरलाइंस की तंगहाली तुरंत ही दिवालियेपन में बदल जाती. कोई नहीं चाहता था कि ऐसा हो. हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था.'

इस बैंकर के मुताबिक हर कोई मन ही मन जान रहा था कि आगे क्या होने वाला है लेकिन किसी ने खुली चर्चा में मन में चल रही बात का जिक्र नहीं किया. बैठक में कुछ लोग 'बेचारगी की मनोदशा में थे तो कुछ के मन में अब भी उम्मीद कायम थी.'

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इस वक्त विजय माल्या को पूरी उम्मीद थी कि वे एयरलाइंस को तंगहाली की हालत से उबारने में कामयाब होंगे और यही वजह रही जो बैंकर्स ने उनके ऊपर अपना विश्वास कायम रखा. हालांकि उस वक्त पूरी एविएशन इंडस्ट्री (उड्डयन उद्योग) अंधेरे में थी. विडंबना देखिए कि विजय माल्या के आशावाद के उलट उस वक्त हर किसी को दिख रहा था कि आगे दरअसल होने क्या जा रहा है.

2012 के मार्च महीने में किंगफिशर ने यूरोप और एशियाई देशों को जाने वाली अपनी उड़ान रोक दी और रकम बचाने के लिए स्थानीय उड़ानों की संख्या भी कम कर दी गई. स्थानीय उड़ानें 20 जहाजों के साथ रोजाना 110-125 की संख्या तक सीमित हो गईं जबकि पहले के वक्त में किंगफिशर के विमान दिन में 340 उड़ान भर रहे थे. साल 2012 के अक्टूब महीने में किंगफिशर ने अपने पंख फड़फड़ाने बंद कर दिए. इसके बाद से किंगफिशर एयरलाइंस के किसी विमान ने उड़ान नहीं भरी है.

किसी वक्त किंगफिशर भारत की दूसरी बड़ी एयरलाइंस हुआ करती थी लेकिन उसके फिर से उड़ान भरने की संभावना कम से कमतर होती गईं. एक तो उड़ान भरने के लिए जरूरी निगरानी संबंधी मंजूरी हासिल नहीं हो रही थी, दूसरे किंगफिशर एयरलाइंस का जमा खाता (बैलेंस शीट) भी औंधा पड़ा नजर आ रहा था.

मार्च 2013 में कंपनी ने जब उस साल की अपनी चौथी तिमाही पूरी की तो घाटा बढ़कर 2142 करोड़ का हो चुका था. इसके पिछले साल कंपनी को 1150 करोड़ रुपए का घाटा सहना पड़ा था. कंपनी 2013 के मार्च तक कुल 16023 करोड़ रुपए के घाटे में जा चुकी थी.

आगे क्या होगा?

चूंकि गिरफ्तारी के चंद घंटे के भीतर ही विजय माल्या ने जमानत ले ली इसलिए यह तो जाहिर ही है कि बैंकों को तत्काल उनकी रकम वापस नहीं मिलने वाली. कर्जदाता बैंको और विजय माल्या के बीच भारत की अदालतों में लंबी लड़ाई चलनी है. यहां मिसाल के तौर पर सहारा मामले को देखा जा सकता है.

सहारा मामले में दिख तो यही रहा है कि कंपनी के पास देनदारी चुकाने के लिहाज से पर्याप्त संपदा है लेकिन पिछले सात साल से कंपनी के प्रोमोटर से वसूली नहीं हो पायी है. किंगफिशर का मामला और भी संगीन है क्योंकि कंपनी के पास इतनी संपदा ही नहीं कि बैंक वसूली कर पाएं. रास्ता बस एक ही है कि बैंकों की डूबी हुई रकम विजय माल्या खुद अपनी जेब से भरें.

विजय माल्या से अपनी रकम हासिल कर पाने की दिशा में बैंकों ने कुछ खास प्रगति नहीं की है. हाल में गोवा का किंगफिशर विला मुंबई के एक व्यवसायी को 73 करोड़ रुपए में बेचा गया. नीलामी की तीन बार की कोशिश में नाकाम रहने के बाद 12,350 वर्गफुट का विला बैंकों ने एक्टर-प्रोड्यूसर सचिन जोशी को बेचा.

लेकिन माल्या पर बैंकों की भारी कर्जदारी(9000 करोड़ रुपए) को देखते हुए विला को बेचने से हासिल हुई रकम बहुत कम कहलाएगी.

बैंकों और सरकार के लिए अगली बड़ी चुनौती माल्या के प्रत्यर्पण के मामले को आगे बढ़ाना और उन्हें जल्दी से जल्दी भारत लौटाने की होगी. कर्ज लेकर बैंकों के साथ लुकाछिपी का खेल खेलने वालों को माल्या की गिरफ्तारी से एक सख्त संदेश मिला है और बकरा बनने वाले बैकों में भी कुछ उम्मीद जगी है कि कर्ज की रकम वापस मिल सकती है.

लेकिन यह बात तय है कि विजय माल्या के खिलाफ जीत आसानी से नहीं होने वाली.