किंग ऑफ गुड टाइम्स विजय माल्या ने अपने बुरे कर्मों की सजा भुगतना शुरू कर दिया है. उन्हें भले ही लंदन की अदालत से गिरफ्तारी के कुछ ही घंटे बाद सशर्त जमानत मिल गई हो, लेकिन इतना तो तय है कि उनकी आजादी और शानो-शौकत के दिन अब लद गए हैं.
2 मार्च, 2016 को भारत से डिप्लोमेटिक पासपोर्ट पर भागने के बाद से ही माल्या लंदन रह रहे हैं. उनकी गिरफ्तारी ललित मोदी जैसे दूसरे भारतीय भगोड़ों के लिए खतरे की घंटी है. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार ने माल्या की गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार से न सिर्फ अधिकारी स्तर पर बल्कि ट्रैक 2 डिप्लोमेसी का भी इस्तेमाल किया.
हालांकि माल्या के पास अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ कानूनी रास्ते अपनाने और ऊपरी अदालत में अपील करने का विकल्प है लेकिन मौजूदा हालात में उनकी राह आसान नहीं होगी. उन्हें गिरफ्तार करने के ब्रिटिश सरकार के फैसले से यही संकेत मिलते हैं. इस बात की पूरी संभावना है कि ब्रिटेन माल्या को भारत वापस भेज देगा ताकि यहां उन पर कानूनी कार्रवाई हो सके. भारतीय बैंकों से 9000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की सजा उन्हें यहां की देसी जेलों में सालों काटनी पड़ सकती है.
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अपनी पीठ थपथपाने से पीछे नहीं हटेगी बीजेपी
यह प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि है. लंदन में माल्या की गिरफ्तारी से दो स्तरों पर मोदी सरकार और बीजेपी को अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिलेगा. पहला, भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार की कथनी और करनी में अंतर नहीं है - आप भाग कर कहीं छुप जाएं, सरकारी एजेंसियां आपके गिरेबान तक पहुंच ही जाएंगी.
मसलन, मंगलवार सुबह के अखबार भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी जांच एजेंसियों की कार्रवाई से अटे पड़े थे. उनकी सुर्खियां कुछ इस तरह थीं– ‘नारद टेप मामले में 13 पर सीबीआई की ओर से एफआईआर’, ‘चुनाव आयोग के अधिकारी को रिश्वत देने की कोशिश, शशिकला के भतीजे पर एफआईआर’, आयकर रिटर्न न दाखिल करने वाली 40 लाख कंपनियों का पंजीकरण रद्द होने का खतरा’, ‘फेमा उल्लंघन मामले में कार्ति चिदंबरम को ईडी का नोटिस’.
दूसरा, बीजेपी अब ताल ठोंक के कह सकती है कि मोदी सरकार की मजबूत राजनैतिक इच्छाशक्ति के चलते एक बड़े रसूख वाला आरोपी कानूनी शिकंजे से बच नहीं पाया. वह बोफोर्स रिश्वत कांड के आरोपी ओत्ताविओ क्वात्रोकि से माल्या के मामले की तुलना कर भ्रष्टाचार पर तब और अब की सरकारों के रुख को सबके सामने रखेगी.
ब्रिटेन में अरुण जेटली की बातों से बदला लंदन का रुख?
दो महीने पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ब्रिटेन यात्रा पर गए थे. उन्होंने वैध पासपोर्ट न होने के बावजूद माल्या को लंदन में रहने की इजाजत देने पर ब्रिटिश सरकार की खिंचाई की थी. गौरतलब है कि लंदन से वापस आकर भारत में चल रहे मुकदमों का सामने करने से कतराने पर केंद्र सरकार ने माल्या का पासपोर्ट रद्द कर दिया था.
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के एशिया सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में जेटली ने कहा था: 'बहुत से लोग सोचते थे कि बैंकों से लोन ले लो, लौटाने की जरूरत नहीं है, आप लंदन आ जाओ और यहीं रहो. यहां लोकतंत्र इतना उदार है कि जनता का पैसा डकार जाने वालों को भी रहने की इजाजत दे देता है. यह धारणा खत्म होनी चाहिए... यह पहला मौका है कि कड़ी कार्रवाई हो रही है. वे लोग भागे-भागे फिर रहे हैं. उनकी संपत्तियां जब्त हो रही हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. भारत पहली बार ऐसे सिग्नल दे रहा है. हम तो ऐसे घोटालेबाजों के साथ जीना सीख गए थे.'
माना जाता है कि माल्या को भारत वापस भेजने पर जेटली की ब्रिटिश अधिकारियों के साथ बात हुई थी. भारत चाहेगा कि प्रत्यर्पण की जटिल प्रक्रिया की बजाय माल्या को भारत वापस भेज दिया जाए. लंदन में माल्या की गिरफ्तारी से संकेत मिलता है कि ब्रिटेन भारत के रुख से सहमत है और इस दिशा में तत्परता से काम करेगा.
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सूट-बूट की सरकार का जुमला और राहुल गांधी होंगे निशाने पर
बगैर वक्त गवाए. बीजेपी ने लंदन में चल रहे घटनाक्रम पर अपनी पीठ थपथपाना शुरू कर दिया है. पार्टी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, वित्त राज्यमंत्री संतोष गंगवार, पीएमओ में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह और पार्टी प्रवक्ता नलिन कोहली टीवी चैनलों के जरिए जनता से मुखातिब हुए और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी सरकार के संकल्प को दोहराना शुरू कर दिया.
राहुल गांधी मोदी सरकार को सूट-बूट वाली सरकार बताते रहे हैं. माल्या पर कार्रवाई से बीजेपी को राहुल गांधी को एक बार और जवाब देने का मिलेगा. माल्या ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में बैंकों से कर्ज लिया और नहीं चुकाया. यूपीए के कार्यकाल में ही बैंकों ने माल्या के कर्ज को पुनर्गठित किया. बावजूद इसके कांग्रेस मोदी सरकार पर माल्या को देश छोड़ने की इजाजत देने का आरोप लगाती रही है. इसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस तथा दूसरे राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर चला.
यह और बात है कि किंगफिशर मामले में सरकार के साथ माल्या के पत्राचार और लीक हुए ईमेल से कांग्रेस की काफी फजीहत हुई थी, जिसमें माल्या की तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम के साथ हुई बैठकों और उनके सहयोगी रुख का विस्तृत ब्यौरा दिया है.
मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने अपने बचाव में तकनीकी बिंदुओं का सहारा लिया और फाइलों पर खुद की नोटिंग को रूटीन बताया. विजय माल्या के कर्ज के मामले में कांग्रेस के नेताओं की भूमिका के ढेरों सबूत मौजूद हैं. ऐसे में मनमोहन सिंह और चिदंबरम के रूटीन कामकाज वाले तर्क टिक नहीं पाए. फ़र्स्टपोस्ट की रिपोर्ट पढ़ें.
अपनी गिरफ्तारी के कुछ घंटे पहले माल्या सहारा फोर्स इंडिया के ट्वीट को री-ट्वीट कर रहे थे. जाहिर है वह किंग ऑफ गुड टाइम्स वाली अपनी छवि को जी रहे थे. बाद में लंदन की अदालत से सशर्त जमानत मिलने के बाद माल्या ने ट्वीट किया– ‘यूजुअल इंडियन मीडिया हाइप. एक्स्ट्राडिशन हियरिंग इन कोर्ट स्टार्टेड एज एक्सपेक्टेड (हमेशा की तरह भारतीय मीडिया में उबाल. सामान्य तौर-तरीके से प्रत्यर्पण पर अदालत में सुनवाई)’.
Usual Indian media hype. Extradition hearing in Court started today as expected.
— Vijay Mallya (@TheVijayMallya) April 18, 2017
अच्छा होगा कि माल्या अब मान लें कि उनके पास थोड़ा वक्त ही बचा है.
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