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उन्नाव केस: निराला का शहर अब सेंगर की 'शर्मनाक करतूत' से पहचाना जाएगा

आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले सेंगर और उनके परिजनों को मालूम है कि वो इन आरोपों से बच निकलेंगे, भले ही उनके खिलाफ तमाम सबूत हों

Ajay Singh

'सड़क पर तोड़ती पत्थर. देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर'

हिंदी साहित्य को बुनियादी तौर पर जानने वाले भी मशहूर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की लिखी इन पंक्तियों से बखूबी वाकिफ होंगे. निराला को दुनिया कठिन हिंदी कविता को सरल भाषा में पेश करने वाले कवि के तौर पर जानती है. वो व्यक्तिवाद जैसे पेचीदा मसले को भी आसानी से कहने के माहिर थे. निराला को अपने दौर के कवियों में सबसे ऊंचा दर्जा हासिल था.


साहित्य और देशभक्ति की कई विभूतियों का नाम जुड़ा है

निराला का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से था. उन्नाव, यूपी के दो बड़े शहरों के बीच स्थित है. इसके एक तरफ है राजधानी लखनऊ, तो दूसरी तरफ है कारोबारी शहर कानपुर. दो बड़े शहरों के बीच होने की वजह से उन्नाव को हमेशा दोयम दर्जे का शहर ही माना गया. चूंकि लखनऊ सूबे की राजधानी के साथ-साथ इसकी संस्कृति का केंद्र भी मानी जाती थी. वहीं कानपुर को तमाम उद्योग-धंधों की वजह से यूपी की आर्थिक राजधानी कहा जाता था. ऐसे में उन्नाव को कानपुर और लखनऊ के मुकाबले राजनैतिक पहुंच और पैसे की ताकत के मामले में दोयम दर्जा ही हासिल रहा.

इसके बावजूद साहित्यिक विरासत और देशभक्ति के मामले में उन्नाव ने काफी योगदान दिया. निराला के अलावा भी हिंदी के कई मशहूर लेखक और कवि, जैसे शिवमंगल सिंह सुमन, उन्नाव से ताल्लुक रखते थे. देशभक्ति के लिए उन्नाव की शोहरत इसलिए रही क्योंकि यहां क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के पुरखे रहा करते थे. आजाद के अलावा भी उन्नाव की भूमि ने कई स्वाधीनता सेनानियों को जन्म दिया. 1857 की जंग-ए-आजादी में इलाके की बड़ी आबादी, खास तौर से निचले दर्जे के सिपाही अंग्रेजों के खिलाफ बागी हो गए थे. इन लोगों ने अंग्रेज फौज को लखनऊ और कानपुर में घुसने देने से रोकने के लिए जमकर लड़ाई लड़ी थी.

राजनीतिक गंदगी बढ़ती रही है

लेकिन, आज के दौर में उन्नाव का ये शानदार इतिहास बेमानी है. आजादी के बाद से उन्नाव अपनी देशभक्ति और साहित्यिक विरासत के रास्ते से काफी दूर तक भटक गया. ये जिला जुर्म, जातिवाद और उठा-पटक का गढ़ बन गया. लोगों को अब शायद ही याद हो कि राजीव गांधी सरकार के दौरान, अस्सी के दशक में भी उन्नाव जिला इस वजह से चर्चा में आया था कि यहां के सांसद और केंद्र में पर्यावरण राज्य मंत्री जिया उर रहमान अंसारी पर मुक्ति देवी नाम की कार्यकर्ता से अपने दफ्तर में छेड़खानी का आरोप लगा था.

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वो घटना लोगों के लिए बहुत बड़ा झटका थी. राजनीति का स्तर तब भी इतना नहीं गिरा था कि अनैतिक लोगों को बढ़ावा और प्रश्रय दिया जाता हो. राजीव गांधी ने कुछ दिनों के भीतर ही जिया उर रहमान अंसारी से मंत्रिपद से इस्तीफा ले लिया था. जईफ जिया उर रहमान अंसारी इस आरोप के बाद दोबारा कभी सियासी मैदान में चमक नहीं बिखेर सके. अंसारी की मौत गुमनामी में हुई.

नब्बे के दशक से उन्नाव भयंकर जातिवाद, जुर्म, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता की रपटीली राह पर तेजी से चल पड़ा. उन्नाव सीट पर ब्राह्मणों की तादाद काफी ज्यादा है. इसी वजह से यहां अरुणाशंकर शुक्ला जैसे ब्राह्मण माफिया पैदा हुआ. लेकिन, इसी सीट से एक बाहरी अन्नू टंडन भी जीतीं. अन्नू की पहचान एक विकासवादी नेता की थी. तभी 2014 तक वो जाति और संप्रदाय के समीकरणों पर भारी पड़ती रहीं.

नब्बे के दशक से ही तमाम सियासी दल इस इलाके में जुर्म, जाति और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते रहे हैं. ये कड़वी हकीकत एक मिसाल से साफ हो जाती है. अक्टूबर 2013 की बात है. लोकसभा चुनाव से पहले 'आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया' ने उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव में बड़े पैमाने पर खुदाई की थी. इसका मकसद छुपे हुए खजाने की तलाश करना था. दिलचस्प बात ये थी कि एएसआई ने खुदाई का ये काम एक स्थानीय साधु की भविष्यवाणी की बिनाह पर किया था. उस साधु का नाम शोभन सरकार था. शोभन सरकार ने दावा किया था कि उसने सपने में एक हजार टन सोने वाला खजाना देखा था. तब पूरी की पूरी सरकार शोभन सरकार के इशारे पर खुदाई करके खजाने की तलाश में जुट गई थी. सियासी दलों के बीच शोभन सरकार को अपने पाले में लाने की होड़ लग गई थी. इसका मकसद आध्यात्मिक नहीं, पूरी तरह से सियासी फायदा उठाने का था.

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साक्षी महाराज यहीं से सांसद हैं

इन मिसालों के बाद ये बात बिल्कुल भी हैरान नहीं करती कि आज उन्नाव की लोकसभा में नुमाइंदगी कोई और नहीं बीजेपी नेता साक्षी महाराज जैसा शख्स करता है. साक्षी महाराज ने 2014 के चुनाव के दौरान अपने हलफनामे में बताया था कि उनके ऊपर कम से कम आठ आपराधिक मामले चल रहे हैं. इन आठ मामलों में डकैती, कत्ल, धोखाधड़ी और डरा-धमकाकर वसूली करने जैसे आरोप हैं.

2004 में साक्षी महाराज को समाजवादी पार्टी के सांसद के तौर पर राज्यसभा से निकाल दिया गया था. क्योंकि एक स्टिंग ऑपरेशन में साक्षी महाराज को सांसद विकास निधि का दुरुपयोग करते देखा गया था. साक्षी महाराज पर कुछ और लोगों के साथ मिलकर गैंगरेप जैसा गंभीर आरोप भी लग चुका है. इस आरोप के चलते वो कुछ वक्त दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी गुजार चुके हैं. आखिर मे सबूतों की कमी से साक्षी महाराज को इस आरोप से बरी कर दिया गया था.

एक लड़की के साथ रेप और फिर उस लड़की के पिता की पुलिस कस्टडी में संदिग्ध मौत के संगीन आरोप झेल रहे बीजेपी विधायक, उन्नाव की बांगरमऊ सीट से विधायक हैं. सेंगर भी अपने जिले के सांसद जैसे बर्ताव के लिए ही जाने जाते हैं.

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कुलदीप सेंगर से जुड़ा विवाद इस बात की मिसाल है कि यूपी की राजनीति किस कदर कीचड़ में धंस चुकी है. आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले सेंगर और उनके परिजनों को मालूम है कि वो इन आरोपों से बच निकलेंगे, भले ही उनके खिलाफ तमाम सबूत हों. सेंगर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कुछ ऐसे अफसरों का करीबी कहा जाता है, जिन्हें अपराधियों को खुली छूट देने में जरा भी हिचक नहीं है. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ महंत भी हैं. ऐसे में उन्हें ऊपरवाले के श्राप का डर दिखाकर भी नहीं रोका जा सकता.

और जहां तक बात है निराला की मशहूर जज्बाती कविता की, तो हम उनके जिले में इस कविता की एक घिनौनी पैरोडी होते देख रहे हैं.