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प्रदूषण रोकने के लिए हवा-हवाई बातों की बजाए एक्सपर्ट्स की ठोस राय पर काम करना होगा

ईपीसीए चेयरपर्सन भूरे लाल यादव ने एनसीआर के सभी अथॉरिटी को पत्र लिखकर कहा है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स को दोबारा जांचने के बाद बुधवार को बताएंगे कि प्रदूषण को कम करने के लिए और क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं.

Ravishankar Singh

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण लगातार खतरनाक स्तर पर बना हुआ है. वायु की गुणवत्ता का लेवल दिल्ली-एनसीआर में अभी भी सामान्य से कई गुना ज्यादा खराब है. ऐसे में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम प्राधिकरण (ईपीसीए) दिल्ली में डीजल और पेट्रोल गाड़ियों पर पूरी तरह बैन लगाने की तैयारी कर ली है. ईपीसीए का साफ कहना है कि अगर अगले दो दिनों में वायु की गुणवत्ता में कोई सुधार देखने को नहीं मिलता है तो दिल्ली में सभी डीजल, पेट्रोल गाड़ियों के साथ टू-व्हीलर गाड़ियों को भी अगले कुछ दिनों तक बैन किया जा सकता है.

मंगलवार को ईपीसीए ने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के नेतृत्व में काम करने वाले टास्क फोर्स से कहा है कि दिल्ली में केवल सीएनजी से चलने वाली गाड़ियों को छोड़कर सभी गाड़ियां बैन कर देनी चाहिए. ईपीसीए चेयरपर्सन भूरे लाल यादव ने एनसीआर की सभी अथॉरिटी को पत्र लिखकर कहा है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स को दोबारा जांचने के बाद बुधवार को बताएंगे कि प्रदूषण को कम करने के लिए और क्या-क्या कदम उठाए जा सकते हैं. उन्होंने पत्र में ये भी कहा है कि हमारे लिए लोगों का स्वास्थ्य सबसे ज्यादा जरूरी है.


ईपीसीए चेयरमैन भूरे लाल यादव ने कहा है कि अब हमारे पास कोई चारा नहीं बचा है, इसलिए हम इतने सख्त कदम उठाने पर विचार करने लगे हैं. ईपीसीए ने कई सीविक एजेंसियों के साथ मंगलवार को भी कई दौर की बैठकें की हैं. ईपीसीए का कहना है कि अभी तक गाड़ियों पर संभावित रोक पर इसलिए फैसला नहीं हुआ है क्योंकि गाड़ियों पर स्टीकर लगाने का काम शुरू नहीं हो पाया है. ऐसे में बैन के दौरान डीजल और पेट्रोल गाड़ियों की पहचान करना संभव नहीं है. जल्द ही इस काम को पूरा कर लिया जाएगा.

बता दें कि दिल्ली में हाल के वर्षों में यह पहला मौका है जब ऑड-ईवन के बजाए इस तरह के सख्त कदम उठाए जा रहे हैं. ईपीसीए का कहना है कि पिछले कुछ सालों में दिल्ली सरकार के द्वारा उठाए ऑड-ईवन के फॉर्मूले से कोई फर्क नहीं पड़ा. ऑड-ईवन फॉर्मूले में गाड़ियों पर छूट इतनी है कि प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आती है. कई प्राइवेट टैक्सियां इसका फायदा उठा लेती हैं.

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दूसरी तरफ भारत सरकार के उपक्रम सफर इंडिया का आकलन बताता है कि दिल्ली में पराली के प्रदूषण में कुछ कमी आई है. मंगलवार को दिल्ली में पराली का प्रदूषण 5 प्रतिशत ही रहा. ऐसे में यह साफ हो रहा है कि दिल्ली में प्रदूषण की ज्यादातर वजह खुद अपनी ही बनाई है. पराली जलाने की घटना में बीते 11 नवंबर से ही कमी देखी जा रही है.

सफर इंडिया के पूर्वानुमान में कहा गया है कि मंगलवार रात से हवा की गुणवत्ता में सुधार आनी शुरू हो जाएगी, लेकिन इसके बावजूद प्रदूषण बेहद खराब स्थिति में रहेगा. मंगलवार को दिन में दिल्ली-एनसीआर में बारिश होने की भी आशंका व्यक्त की गई थी, लेकिन बारिश की महज कुछ बूंदें ही गिरीं.

बता दें कि बीती रात ईपीसीए ने दिल्ली-एनसीआर में निर्माण-कार्य पर लगी रोक में ढील दे दी है. अब दिल्ली-एनसीआर में सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक कंस्ट्रक्शन काम काम किया जा सकेगा. दिल्ली बॉर्डर पर ट्रकों की लंबी लाइनों को देखते हुए भी बीती रात 11 बजे से 7 घंटे की छूट दी गई थी. 7 घंटे की ढील के बाद दोबारा से दिल्ली में भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है.

इधर प्रदूषण पर काम करने वाली सिविक एजेंसियों की लेट-लतीफी पर भी अब सवाल उठने लगे हैं. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड(सीपीसीबी) ने दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सीपीसीबी ने दिल्ली में प्रदूषण को लेकर 242 शिकायतों पर एक्शन लेने के लिए सिविक एजेंसियों के भेजा था, लेकिन सिविक एजेंसियों ने 40 प्रतिशत से भी कम शिकायतों पर कार्रवाई की.

पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इस बात की तस्दीक कर दी थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में भारत में वायु प्रदूषण की वजह से 5 साल की उम्र तक 1 लाख से ज्यादा बच्चों ने अपनी जान गंवाई है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि करीब 7 हजार मासूम बच्चे जिनकी उम्र 5 से 14 साल के बीच है, उनकी मौत भी वायु प्रदूषण की वजह से हुई है.

रिपोर्ट में यह भी चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि लड़कों की तुलना में लड़कियों की मौत सबसे ज्यादा हुई है. डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में सबसे ज्यादा बच्चों की मौत हो रही है. इस रिपोर्ट में बताया गया कि निम्न-मध्यम आय वर्ग के देशों में 5 साल से कम उम्र के 98 प्रतिशत बच्चे 2016 में हवा में मौजूद महीन कण (पार्टिकुलेट मैटर) से होने वाले वायु प्रदूषण के शिकार हुए हैं.

मौसम वैज्ञानिक और प्रदूषण पर काम करने वाली सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियां दिल्ली-एनसीआर के स्मॉग चैंबर बनने को लेकर अपना अलग-अलग नजरिया पेश कर रहे हैं. पर्यावरण पर काम करने वाले कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह संकेत आने वाली बड़ी घटना की तरफ इशारा कर रहे हैं. हमलोग इसे मौसमी आपातकाल भी कह सकते हैं.

देश के जानेमाने पर्यावरणविद गोपाल कृष्ण फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘देखिए प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, एनजीटी या फिर सुप्रीम कोर्ट का हर कदम बेअसर साबित हो रहा है. प्रदूषण पर इस समय देश में जो हालात हैं, उसके लोग जिम्मेदार नहीं है उसके लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कहीं न कहीं कोर्ट का रवैया भी जिम्मेदार है. साल 1997 में प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया था. मगर इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उस एक्शन प्लान पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. अब लोगों का संस्थाओं पर से विश्वास उठ गया है. संस्था की जिम्मेदारी होती है कि वो एक्शन प्लान को लागू करे. ’

प्रतीकात्मक

गोपाल कृष्ण आगे कहते हैं, ‘साल 1981 एअर पॉल्यूशन एक्ट की अब इस देश में कोई सार्थकता नहीं बची है. यह एक्ट अब देश में आउटडेटेड हो चुका है. 1981 के बाद वैज्ञानिक और मेडिकल साइंस के सबूत के आधार पर इस एक्ट को अपडेट नहीं किया गया है. इसको आप दूसरे तौर पर कह सकते हैं कि सरकारें या फिर कोर्ट कैंसर के मरीज को बैंडेज लगाने का काम कर रही है. भारत में प्रदूषण का जो स्टैंडर्ड मानक है वह डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड मानकों से काफी नीचे है. प्रदूषण की परिभाषा जो इस एक्ट में दी गई है उसमें भी अब काफी बदलाव की जरूरत है.’

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ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, ‘भारत में पर्यावरण को लेकर हम लोगों ने पिछले साल सरकार के सामने विस्तृत और व्यावहारिक नीतियों को रखा था. हम पर्यावरण मंत्रालय से गुजारिश करते हैं कि वो हमारे बताए कुछ उपायों को स्वच्छ वायु के लिए तैयार हो रही राष्ट्रीय कार्ययोजना में शामिल करे और पावर प्लांट के लिए अधिसूचित उत्सर्जन मानकों का कठोरता से पालन करे. साथ ही अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कठोर मानकों को लागू कर प्रदूषण नियंत्रित करे.’

कुलमिलाकर दिल्ली की दमघोंटू हवा से अब लोग किसी तरह निजात पाना चाहते हैं. इस दमघोंटू हवा से सभी लोग शिकार हो रहे हैं. खासतौर पर स्कूली बच्चे प्रदूषण की गिरफ्त में सबसे ज्यादा आ रहे हैं. वायुमंडल में नमी के कारण सुबह प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा रहता है और स्कूली बच्चे उसी हवा में सांस लेते हुए स्कूल जाते हैं. इसलिए आम लोगों को प्रदूषण पर अब सरकार की ठोस पहल की दरकार है.