नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल लगातार पराली जलाने की समस्या पर नजर बनाए हुए हैं. ट्रिब्यूनल इस समस्या के दीर्घकालिक समाधान खोजने की कोशिश कर रहा है. इसी क्रम में सोमवार को ट्रिब्यूनल ने राज्यों से कहा कि वो पराली जलाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य योजनाओं में कटौती कर सकते हैं.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि 'ये वास्तविकता है कि समस्या से पूरी तरह से निपटा नहीं जा सका है और नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन पर बेशक बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है. सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के हित में इस तरह के सभी उपायों को संभवतः हल करने के लिए समस्या का समाधान करना आवश्यक है.'
ट्रिब्यूनल ने कहा कि वो पराली जलाने पर वायु रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम, 1981 या दूसरे लागू होने वाले कानूनों की मदद जैसे कदम नहीं उठाना चाहता लेकिन उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी लाभदायक योजनाओं में थोड़ी बहुत कटौती करने में कोई समस्या नहीं दिखाई देती.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि 'हम यह स्पष्ट करते हैं कि मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) योजना को हमें ऐसे ट्रीट करना होगा ताकि संबंधित राज्य पराली जलाने के लिए एमएसपी के लाभ को पूरी तरह से या आंशिक रूप से अस्वीकार कर सकें.'
बोर्ड ने पराली जलाने की समस्या का समाधान ढूंढने के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों को 15 नवंबर को तलब किया है. उन्हें निर्देश दिया गया है कि वो ट्रिब्यूनल के सामने पराली जलाने से रोकने के तरीके सुझाएं.
ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्रीय कृषि सचिव और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया कि पराली जलाने से रोकने के तरीकों और उसकी रणनीति योजना बनाने के बाद वे लोग 15 नवंबर को उसके समक्ष उपस्थित हों.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि वह केंद्र सरकार से अपेक्षा करती है कि वह इस मुद्दे पर उसी दिन या किसी भी दिन एक बैठक आयोजित करे.
ट्रिब्यूनल ने कहा कि सरकार 2014 में पराली प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति लेकर आई थी, जिसके तहत किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए कुछ मशीनों और उपकरणों के माध्यम से कुछ सहायता दी जाती. हालांकि, कदम उठाने के बावजूद समस्या अभी भी वही है.
बेंच ने कहा कि हम यह साफ करना चाहते हैं कि हमारी मंशा किसी भी राज्य या केंद्र सरकार के कामकाज की आलोचना करने की नहीं है. हमने उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के हलफनामों और रिपोर्टों का और भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट का भी अध्ययन किया है.
पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हुआ है और इसमें कोई संदह नहीं है कि वायु गुणवत्ता का खराब स्तर नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन पर लगातार प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.
(एजेंसी से इनपुट)
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