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पुरुषवादी सोच है किराए की कोख में अपना बच्चा?

ये कानून जल्द लागू हो जिससे दूसरा कोई करण जौहर किसी मां की ममता खरीद न सके

Harshvardhan Tripathi

करण जौहर ने एक बार फिर से वो साबित कर दिया जिसकी आशंका मैं किराए की कोख पर जताता रहता हूं. किराए की कोख में मां का कोई मतलब ही नहीं है. बच्चा भले ही पुरुष के पौरुष का प्रतीक माना जाता है लेकिन सच यही है कि बच्चा तो मां की ममता से तैयार होता है और मां की ममता किसी भी पिता के पौरुष से बड़ा होता है.

कम से कम पारंपरिक व्यवस्था में मां की ममता का ये स्थान बना हुआ है. लेकिन, किराए की कोख से अपना बच्चा पैदा करने की आधुनिक व्यवस्था ने तो पुरुष के पौरुष का अहम और बड़ा कर दिया है.


करण जौहर विवाहित नहीं हैं और मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है. उनका आधुनिक से आधुनिकतम परिभाषा के अनुसार भी उनका किसी स्त्री के साथ किसी तरह का रिश्ता नहीं है लेकिन करण जौहर बाप बन गए हैं.

करण जौहर किराए की कोख से जुड़वा बच्चों के पिता बन गए हैं. ये उसी अस्पताल में ये हुआ, जहां शाहरुख खान अपने तीसरे बच्चे के लिए किराए की कोख खोजने गए थे

अब सोचिए जिस बच्चे को किसी भी वजह से गौरी खान 9 महीने अपनी कोख में न रख सकी, उसकी चाहत शाहरुख और उनकी पत्नी गौरी को क्यों थी? हाल ही में केंद्र सरकार ने किराए की कोख पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने की कोशिश शुरू की.

करण जौहर बने पिता

केंद्र सरकार को इस बात के लिए बधाई देनी चाहिए कि लंबे समय से बिना किसी नियंत्रण के चल रहे किराए की कोख के बाजार को नियंत्रित करने के लिए एक कानून बनाने की कोशिश की गई. लेकिन, उसके कानून बनने से पहले ही करण जौहर बिना मां के सिंगल पेरेंट के तौर पर जुड़वा बच्चों के पिता बन गए.

किराए की कोख पर कानून बनाने का मसला कितना संवेदनशील हो चला है कि इस कानून का प्रस्ताव रखने के लिए खुद सुषमा स्वराज को सामने आना पड़ा था. इस बात पर बहुत ज्यादा विवाद हुआ कि अगर कोई गोद ले सकता है तो उसे किराए की कोख की इजाजत क्यों नहीं होगी.

प्रगतिशील जमात सिंगल पेरेंट और एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए भी सरोगेसी कानूनी  मदद देने की मांग कर रही है. एक बहस ये भी खड़ी हो रही है कि आखिर जिस महिला का शरीर है...जिसकी कोख है तो फिर उसके अलावा सरकार कौन होती है ये तय करने वाली?

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बहस इस बात पर होती है कि किसी भी व्यक्ति में ममता जग सकती है. ऐसे में विज्ञान ने अगर ऐसी तरक्की कर ली है तो कोई भी अपने शुक्राणु के जरिये किसी दूसरे की कोख की मदद से अपना बच्चा पैदा कर सकता है. ऐसे में अगर उस महिला को अपनी कोख देने में कोई एतराज नहीं है तो फिर सरकार को क्या बीच में आना चाहिए.

अनाथ बच्चों का क्या हो?

कई लोग तो विदेशियों और भारत के अमीरों से किराए की कोख के बदले में मिलने वाले धन से गरीबी खत्म होने तक की शानदार दलीलें दे रहे हैं. लेकिन, इन सबमें एक बड़ा सवाल छूट रहा है. यहां पर सारी चिंता किसी के अपना बच्चा पैदा करने की इच्छा की तो हो रही है लेकिन कोई ये सवाल नहीं खड़ा कर रहा है कि आखिर जिस बच्चे के सिर से मां-बाप का साया हट गया हो...वो क्या करे? वो क्या मां-बाप पैदा कर सकता है?

कमाल है कि हम पहले से सभ्य होने की बात कर रहे हैं. लेकिन इस सभ्य होने में धरती पर जो आया नहीं है, उसके लिए तो कानून पर बहस हो रही है पर जो पहले से ही धरती पर है और बदकिस्मत और अनाथ है उसके लिए हमारा ये सभ्य समाज शायद ही संवेदनशील होता दिख रहा हो.

किराए की कोख का कानून लागू हो जाएगा तो हो सकता है कि फिर से बच्चों को गोद लेने वालों की संख्या कुछ बढ़ जाए. लेकिन, इसके पहले तक किसी तरह का कोई कानून न होने का दुष्परिणाम ये है कि देश में अनाथों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. न सरकार और न ही तथाकथित तौर पर पहले से ज्यादा सभ्य हुआ हमारा समाज.

सूचना के अधिकार के तहत सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी से आई जानकारी बताती है कि पिछले पांच सालों में गोद लेने वालों की संख्या आधी रह गई है. चाहे वो देश में गोद लेने के इच्छुक रहे हों या फिर विदेशी. महिला एवं बाल विकास मंत्री ने इस पर गहरी चिंता जताते हुए गोद लेने के कानूनों को काफी सरल कर दिया.

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हालांकि, गोद लेने वालों में सिंगल पेरेंट ज्यादातर सेलिब्रिटी ही नजर आते हैं. उस देश में जहां हर साल लगभग पचास हजार बच्चे अनाथ हो जाते हों और उनमें से बमुश्किल 800 से 1000 बच्चों को गोद लिया जाता हो, वहां किराए की कोख का कानून बनने पर मचने वाला हो-हल्ला थोड़ा चौंकाता है.

‘बेटी हो या बेटा बच्चा एक ही अच्छा’, के नारे को लागू करने वाला सभ्य भारतीय समाज, अनाथ बच्चों को गोद लेने की बहस की बजाए किराए की कोख में बच्चा पैदा करने के अधिकार की बहस कर रहा है. कमाल की बात ये है कि अभी तक देश में सरोगेसी यानी किराए की कोख का कोई कानून ही नहीं था.

कमर्शियल सरोगेसी

इस कारण दुनिया भर में किसी भी वजह से अपना बच्चा पैदा न कर पाने वाले विदेशी दंपत्तियों के लिए सबसे बेहतर कोख का बाजार भारत ही रहा है. यूके, आयरलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, बेल्जियम, मेक्सिको, थाइलैंड और नेपाल में पहले से ही कमर्शियल सरोगेसी प्रतिबंधित है, इसलिए इन देशों के लोग सीधे भारत का रुख कर रहे हैं.

हालांकि, अब भारत भी कमर्शियल सरोगेसी प्रतिबंधित करने वाले देशों में शामिल हो जाएगा. लेकिन भारत में अभी भी सरोगेसी मुमकिन है. हालांकि, वो विदेशियों..एलजीबीटी, सिंगल पेरेंट के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित है

हां, सरकार ने ऐसे दंपत्तियों के लिए जो किसी स्वास्थ्य वजहों से अपना बच्चा पैदा नहीं कर सकते, उन्हें इस बात की इजाजत दी है कि वो किराए की कोख से अपना बच्चा पैदा कर सकते हैं. उसका भी बाजार न खड़ा हो जाए इसके लिए सरकार ने ढेर सारे नियम लगाए हैं.

सरकार ने ये सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि ऐसे दंपत्तियों को बच्चा किसी नजदीकी रिश्तेदार की कोख से ही पैदा सकता है. हालांकि, सरकार से ये संकेत साफ मिल रहे हैं कि नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा को विस्तार दिया जाएगा और ये ठीक भी है.

प्रगतिशीलता और विकसित समाज की बात करने वाले लोग भूल जाते हैं कि फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, बुल्गारिया और स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देशों में सरोगेसी पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इसलिए भारत जैसे देश में जो पहले से ही बढ़ती आबादी और ढेर सारे अनाथ बच्चों वाला देश है, वहां पर किराए की कोख से अपना बच्चा चाहने की बात शायद मानवता पर दूसरी बहस की जरूरत बताती है.

विदेशियों को या फिर किसी भी गैर-भारतीय को भारत आकर किसी की कोख से बच्चा लेकर जाना किस तरह की सभ्यता की ओर ले जा रहा है. हमें बार-बार ये दलील दी जाती है कि गरीब महिलाओं के लिए अपनी जरूरत भर के पैसे कमाने का ये एक जरिया था जो सरकार ने इस कानून के जरिए बंद कर दिया.

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नियंत्रित बाजार ज्यादातर मामलों में जरूरी और बेहतरी करने वाला होता है. लेकिन, किराए की कोख के बाजार की वकालत और भारत जैसे देश की छवि कुछ ऐसे कर देना कि यहां की गरीब महिलाएं अपनी कोख बेचकर जरूरत भर का कमा पा रही है.

पता नहीं, इसे कैसे प्रगतिशीलता कहा जा सकता है और ये अपने ही शुक्राणु से पैदा हुआ बच्चा पाने की चाहत पुरुषवादी मानसिकता का चरम ही तो है.

किराए की कोख

जहां महिला तो अपने पति के शुक्राणु से दूसरी कोख से पैदा बच्चे को अपना मान ले लेकिन, पुरुष किसी भी बच्चे को अपनाकर उसे अपने बच्चे का दर्जा देने से बचना चाहता है इसलिए मुझे लगता है कि केंद्र सरकार को जल्द से जल्द ये कानून लागू करना चाहिए.

किराए की कोख के बाजार को महिमामंडित करना न तो सभ्य समाज के हक में है, न महिलाओं के और न ही देश के और सबसे बड़ा सवाल ये कि अनाथ होते ही बच्चों को गोद लेने में आयी कमी शायद इस कानून के बनने के बाद कुछ बेहतर हो.

मानवता का स्तर ऊंचा उठाने में मदद कीजिए और अनाथ बच्चों की चिंता कीजिए.

बेटी हो या बेटा बच्चा एक ही अच्छा से आगे बढ़िए...अगर नहीं है अपना बच्चा तो एक अनाथ बच्चे के सिर पर हाथ रखिये. समाज में जिन महिलाओं को किसी वजह से मातृत्व सुख नहीं मिल सकता, उनके प्रति नजरिया सुधारने का भी एक मौका हो सकता है ये किराए की कोख का कानून.

ये कानून जल्द लागू हो जिससे दूसरा कोई करण जौहर किसी मां की ममता खरीद न सके.