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व्यंग्य: चूहे शराब पी सकते हैं तो लालू का 'चरवाहा' करोड़पति क्यों नहीं हो सकता?

मोदी जी आपको भी अगर थोक भाव में मेवा की ख्वाहिश है तो किसी तबेला में चरवाहा बनकर गो माता की सेवा कीजिए

Kanhaiya Bhelari

जब मछली ट्रांसफॉर्मर खा सकती है, स्कूटर पर सांढ ढोए जा सकते हैं, चूहे दारू पी सकते हैं, तो लालू प्रसाद का चरवाहा करोड़पति और दानवीर कर्ण क्यों नहीं हो सकता है?

कमाल के नेता हैं सुशील कुमार मोदी. जानना चाहते हैं कि प्रचंड गरीब और बीपीएल लिस्ट में शामिल ललन चौधरी ने कहां से इतने रुपए लाकर पटना में जमीन खरीद लिया? और उसी जमीन को कुछ दिनों बाद राबड़ी देवी और उनकी पांचवीं बेटी हेमा यादव को क्यों दान कर दिया?


कृष्ण की कृपा और शांताक्लॉज का गिफ्ट

जानकारी के लिए बता दें कि सीवान जिला के बड़हरिया गांव निवासी ललन चौधरी कई वर्षों तक लालू प्रसाद का चरवाहा रहा है. उसने गायों और बछड़ा-बछड़ी की मुग्ध भाव से सेवा की थी. ऊपर वाले गोरक्षक भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर 2008 जन्माष्टमी की रात लालू प्रसाद के तबेले में जहां ललन सोता था, वहां सोने से भरा डिब्बा रख दिया.

फिर उसी साल 25 दिसंबर को क्रिसमस की आधी रात को शांताक्लॉज ने ललन के सिरहाने नोटों की गड्डी रख दी. मोदी जी आपको भी अगर थोक भाव में मेवा की ख्वाहिश है तो किसी तबेला में चरवाहा बनकर गो माता की सेवा कीजिए. आपको मालूम है न कि अभी कल ही हैदराबाद हाई कोर्ट ने गाय को भगवान और मां के बराबर स्थान दिया है.

आरोपावतार श्रीमान मोदी जी आप कनवा में रुई ठूंसकर या आंख पर पट्टी बांधकर सो गए थे जब कुछ दिन पहले बिहार के ‘रैट’ सब मस्ती में सोमरस पी रहा था. सिस्टम से उनका सवाल भी था कि क्या दारूबंदी मानुष के अलावे पशु, पंछी आदि जीवों पर भी लागू है?

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भला हो बिहार के एडीजी मुख्यालय के अशोक कुमार सिंघल का जिन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके खंडन किया कि चूहों ने किसी थाने के मालखाने में रखी शराब को नहीं गटका.

भारी मन से एडीजे ने सफाई दी थी कि ‘मीडिया में आ रहीं ये खबरें सही नहीं हैं कि बिहार में चूहे दारू पी रहे हैं.' सिंघल साहब जांच के बाद खुलासा करने वाले थे कि आखिर करोड़ों रुपए की शराब पुलिस कस्टडी में रहने के बाद भी कहां छू-मंतर से गायब हो गई. खुलासे का अब तक इंतजार है. इसी बीच चतुर सुजान सरकार ने सारी बोतलों को सरेआम नष्ट करा दिया. न बांस रहेगा, न बांसुरी बजेगी.

चूहों की जिज्ञासा 

शराब पीते चूहे की प्रतीकात्मक तस्वीर (ट्विटर)

आदतन टवेंटी फोर ऑवर भोग लगाने वाले खटुस और मनबढु ‘चूहों’ को भी जानने की जिज्ञासा थी कि माता सीता, गौतम बुद्ध, महावीर और जय प्रकाश नारायण की इस पावन धरती पर जब गंगा नदी की मछलियां करोड़ों रुपए कीमत की लोहे से निर्मित बिजली का ट्रांसफॉर्मर सफाचट कर सकती हैं, स्कूटर्स पर पंजाब और हरियाणा से ढोकर सैकड़ो की संख्या में सांढ बिहार लाए जा सकते हैं तो हम लोग 45 करोड़ रुपए का 4.6 लाख लीटर सोमरस 13 महीने की लंबी अवधि में क्यों नहीं पी सकते?

लेकिन उनको इसका जवाब अभी तक नहीं मिला है. फिर आप लालू प्रसाद से जवाब के लिए इतने बेचैन क्यों हैं?

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अप्रैल 2016 में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद करीब 100 करोड़ रुपए की 9.15 लाख लीटर देशी, मसालेदार और विदेशी शराब बिहार के विभिन्न जगहों पर पुलिस द्वारा जब्त की गई थी. बरामद शराब की बोतलों और पाउच को राज्य भर के पुलिस स्टेशनों के मालखानों में रखा गया था. कई जगहों पर मकान हायर कर जब्त की गई बोतलों को रखा गया था.

कायदे से इसे नष्ट कर देना चाहिए था. लेकिन ऐसा करने के लिए प्रशासन को लंबी चौड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता. मसलन एसपी डीएम को लिखते फिर डीएम एक मजिस्ट्रेट बहाल करते, इसके बाद शराब के बोतलों और पाउच को नष्ट किया जाता.

जब चूहे पी गए दारू

कानूनन जब्त की गई शराब की सीजर लिस्ट भी तैयार की जाने का प्रावधान है. सीजर लीस्ट का जब भौतिक सत्यापन शुरू हुआ तो पाया गया कि फिफ्टी परसेंट दारू की बोतलें गायब हैं.

जिलों में तैनात कुछ कड़क पुलिस अधीक्षकों ने मंथली क्राइम मीटिंग में थानेदारों से गायब बोतलों के बारे में तहकीकात की तो मजेदार जबाब मिला, ‘हुजूर मालखाने में भारी मात्रा मे चूहों का पोट्टी पाया गया. लगता है कि गणेश वाहकों ने छककर सुरा पान किया और बोतल भी तहस नहस कर दिया.' ये ‘सच्चाई’ मीडिया के मार्फत पूरे विश्व में फैल गई.

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लेकिन ये जग जाहिर है कि जब्त की गई शराब की बोतलों को दुगने दाम पर भाया बिचैलिया बिकवाकर खाकी वर्दीधारियों ने 'पुरकस' माल कमाया. रोहतास जिले के एक थाने में तैनात मुंशी ने फ़र्स्टपोस्ट को डरते हुए नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया था कि ‘होली से 10 दिन पहले हमलोग '10 चक्कावा' ट्रक को सीज किए थे जिसमें 2000 बोतल अंग्रेजी शराब थी. 1500 बोतल आराम से 'नोन पियक्कड़ों' के बीच खपा दिए और उसकी जगह खाली बोतल मालखाने में ठेल दिये.'

‘चूहा’ दारू पीता है कि नहीं, इसकी जांच जरूरी है. वैसे अभी तक दर्जनों पुलिसवाले जिन्हें मालखाने को 'अगोरने' की जिम्मेवारी थी दारु के नशे में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. चूंकि ये कानून के रखवाले रहे हैं इसीलिए फटाक से छूट भी जाते हैं. बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्मल सिंह तो अरैस्टिंग के 24 घंटे के भीतर ही फ्री हो गए.

जब मछलियों ने खाया ट्रांसफॉर्मर

मोदी जी, 'पुरनकठ नेता' होने के नाते आप तो जानते ही होंगे कि सुराप्रेमी ‘चूहों’ से मिलता जुलता वाक्या 70 के दशक में भी हुआ था. जिसने राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तहलका मचा दिया था. तब बिजली ट्रांसफॉर्मर को मछलियां निगल गईं थीं.

उस समय अर्बन बैंक घोटाला के सूत्रधार, जो बाद के दौर मे बिहार के सीएम भी बने थे, बिजली मंत्री हुआ करते थे. नार्थ बिहार में पावर सप्लाई ठीक-ठाक करने के लिए बिजली विभाग ने कागज पर करोड़ों रुपए का ट्रांसफॉर्मर खरीदा था. विरोधियों ने हल्ला-गुल्ला मचाया तो जांच कमिटी बिठा दी गई.

महीनों ‘जांच’ के बाद कमिटी ने रोचक रिपार्ट दिया जो इस प्रकार है,‘ट्रांसफार्मर कई नावों पर लादकर पहलेजा घाट भेजा जा रहा था. बीच गंगा नदी में सारी नावें पलट गईं. ट्रांसफार्मर को ढूंढ़कर निकालने के लिए नदी में महाजाल फेंका गया फिर भी पता नहीं चला. प्रबल संभावना है कि डूबे हुए ट्रांसफार्मर को मछलियां खा गईं.' घोटालेबाजों की दिमाग की दाद देनी पड़ेगी जिन्होनें महाजाल का पैसा भी सरकार से 'टान' लिया.

बिहार का 'फर्टाइल दिमाग' 

चलिए, अब चारा घोटालेबाजों के दिमागी कारीगरी पर भी चर्चा कर लिया जाए. बिहार के पशु पालकों को समृद्ध बनाने के नाम पर राज्य का पशु पालन विभाग कई करोड़ की विभिन्न नस्लों की साडों की खरीददारी की थी. सीबीआई की जांच में 'डीभास्टेटिंग फैक्ट' सामने आया कि साढों को वेस्पा और लेम्ब्रेटा स्कूटर पर लादकर पंजाब और हरियाणा से बिहार लाया गया है.

ये सारी परचेजिंग 1980 से 1994 के बीच की गई थी. शुरूआती दौर में इस अजब-गजब घोटाले का दिमाग संवैधानिक पद पर बैठा एक कांग्रेसी नेता था जबकि सरगना श्याम बिहारी सिन्हा हुआ करते थे. लेकिन आरोप है कि सीएम बनने के बाद क्रमशः जगन्नाथ मिश्रा और लालू प्रसाद यादव ने मुख्य कमान अपने जिम्मे ले ली. दोनों लोग चारा घोटाले में 'कनभिक्टेड' अभियुक्त हैं.

प्रामाणिक तौर पर बिहार के घोटालेबाजों का दिमाग बहुत ही 'फर्टाइल' होता है. मोदी जी आप ही बताएं, ‘महान नटवरलाल, जो संयोग या दुर्योग से सीवान जिले का ही निवासी था, उसके 'पसंघा' में भी आजतक देश में कोई ठग पैदा हुआ?’