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रिहाई से पहले मनु शर्मा की मानसिकता को परखिए, सबरीना की चिट्ठी को नहीं

30 अप्रैल 1999 की रात अब तक दिल्लीवासियों की जेहन से निकली नहीं है जब मॉडल जेसिका लाल का कत्ल कर दिया गया

Pallavi Rebbapragada

किसी को माफ करने का अधिकार राज्य के पास होता है और सच ये है कि कानून के हिसाब से भी किसी को माफी देने का फैसला सरकार का ही होता है. जेसिका लाल की बहन सबरीना लाल ने हाल ही में तिहाड़ जेल प्रबंधन को चिट्ठी लिखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि उन्हें अपनी बहन के हत्यारे मनु शर्मा कि रिहाई पर कोई एतराज नहीं है. सबरीना ने ये चिट्ठी मनु के पक्ष में तब लिखी है जब मनु को 6 महीने पहले सेमी ओपन जेल में शिफ्ट कर दिया गया है.

30 अप्रैल 1999 की रात अब तक दिल्लीवासियों की जेहन से निकली नहीं है जब मॉडल जेसिका लाल का कत्ल कर दिया गया. मामले में फैसला आने वाले से पहले दिल्ला वालों को लगने लगा था इस शहर में कई जगह पर कई लोग ऐसे हैं जो देश के संविधान और कानून से ऊपर हैं. इस कत्ल के लिए आखिरकार दिल्ली हाईकोर्ट ने 2006 में पूर्व कांग्रेसी नेता विनोद शर्मा के बेटे मनु शर्मा को दोषी करार दिया. लेकिन उससे पहले जेसिका हत्याकांड के मामले में 32 गवाह पलट गए थे और ट्रायल कोर्ट ने मनु शर्मा को बरी भी कर दिया था. लेकिन इस मामले ने लोगों की अंतरात्मा को झकझोरने का काम किया था जिसे बाद में फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में दिखाया भी गया.


तिहाड़ जेल के वेलफेयर ऑफिसर राज कुमार जो कि तिहाड़ के एडिशनल इंस्पेक्टर जनरल भी हैं, उनसे फ़र्स्टपोस्ट ने सबरीना लाल की चिट्ठी के संबंध में बात की. राजकुमार ने स्पष्ट किया कि जेल प्रबंधन चिट्टठियों से ज्यादा मतलब नहीं रखता है क्योंकि तिहाड़ में 15 हजार कैदी बंद हैं और अगर सभी कैदियों की चिट्ठियों का हिसाब किताब रखा जाए तो जेल प्रंबधन की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. कानून के हिसाब से भी सब के लिए एकसमान नियम बनाए गए हैं.

भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को ये अधिकार दिए गए हैं कि वो सजा प्राप्त व्यक्ति को क्षमा प्रदान कर सकते हैं या उसकी सजा को स्थगित या फिर कम कर सकते हैं. इनको सजा प्राप्त दोषियों को आर्टिकल 72 और 161 के तहत सजा को स्थगित करने,कम करने और बदल देने का अधिकार दिया गया है. इनके द्वारा पूरी तरह से माफ कर देने के बाद दोषी को स्थायी रुप से रिहा कर दिया जाता है जबकि शर्तों के साथ रिहा करने के मामले में अभियुक्त को निर्धारित शर्तों के साथ रिहा किया जाता है और अगर उसने अपनी रिहाई की शर्तों का उल्लंघन किया तो फिर से उसकी सजा बरकरार हो जाती है.

सिविल सोसयाटी के दखल ने सरकार और न्यायपालिका पर दबाव बनाया कि केस की जल्द सुनवाई हो जिससे कि मनु शर्मा को जेल भेजा जा सके. मनु शर्मा अभी तिहाड़ जेल में जेसिका हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहा है और दोषी से पश्चाताप के बाद निखर कर सुधरने के उसके दावे की जांच ज्यूडिशियल अधिकारी कर रहे हैं. इस समय शर्मा के मामले से जेल में चल रहे सुधारों और माफी की मानसिकता को अच्छे से समझा जा सकता है.

फैसला जेल प्रशासन या व्यक्ति विशेष नहीं, बल्कि कानून को लेना है 

फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के अनुसार इस मामले में कानून को फैसला लेना है न कि किसी व्यक्ति विशेष को, क्योंकि ये ऐसे मामले हैं जिसका प्रभाव सीधे समाज पर पड़ता है. बेदी के अनुसार हमें पीड़ितों के साथ संवेदनशीलता बरतनी चाहिए क्योंकि सबके पास अपनी अपनी अलग संवेदनशीलता होती है. लेकिन न्याय कानूनी प्रकियाओँ की जिम्मेदारी है न कि पीड़ितों की. बेदी ने तिहाड़ की पोस्टिंग में रहते हुए जेल सुधारों पर बहुत काम किया है.

अजय वर्मा जो कि एक अधिवक्ता होने के साथ साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी है, उनका कहना है कि 2013 के रिट पिटीशन संख्या 406 के जवाब में कोर्ट ने अपने जजमेंट 'री इनह्यूमन कंडीशन इन 1382 प्रिजन्स' में कहा है कि इस मामले में एमिकस का सुझाव निश्चित रुप से विचार करने योग्य है जिसमें सरकार से ओपन जेल की स्थापना को प्रोत्साहित किए जाने का अनुरोध किया गया है. इस फैसले में कहा गया है कि काउंसिलिंग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और राज्य सरकारों को इसके लिए मनोवैज्ञानिकों या सोशल काउंसलर्स की मदद लेनी चाहिए जो कि जेलों में प्रतिदिन जाकर जेलों में बंद अपराधियों या सजायाफ्ता मुजरिमों की काउंसिलिंग कर सकें. खास करके पहली बार अपराध करने वालों की जरुर काउंसिलिंग करनी चाहिए.

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इसके अलावा इसमें लिखा है कि जेलों में एक ऐसी स्वतंत्र व्यवस्था कायम की जानी चाहिए जिसमें जेल में रहने वाले कैदियों की समस्या का निदान किया जा सके वो भी जेल में बाकी कैदियों और जेल अधिकारियों से बिना उनकी जान खतरे में डाले. इस आदेश में कोर्ट ने ये भी कहा है कि जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदियों को रखने से बचना चाहिए जिससे कि जेलों के अंदर होने वाली आत्महत्याओँ के भी कम होने की संभावना होती है.

वर्मा जो कि नेशनल फोरम ऑफ प्रिजन रिफार्म्स के कनवेनर भी हैं, उनका कहना है कि तिहाड़ में लगभग 7,500 कैदियों के रहने की व्यवस्था है जबकि अभी वहां उस आंकड़े के कहीं ज्यादा लगभग 15,000 कैदी बंद हैं. वर्मा का नेशनल फोरम फॉर प्रिजन रिफार्म्स एक सिविल सोसाइटीज का ग्रुप है जो कि जेल सुधारों पर काम कर रहा है. वर्मा के मुताबिक ये मामले सबरीना लाल की चिट्ठी से आगे का मामला है.

जेल से रिहाई को लेकर तिहाड़ में एक सजा समीक्षा बोर्ड है जो कि ये विचार करता है कि क्या उम्रकैद की सजा प्राप्त कैदी को रिहा करने से पहले सेमी ओपन जेल में भेजा जा सकता है. इस बोर्ड में जेल के अधिकारी,एक जज,गृह विभाग के सचिव और प्रोबेशन अधिकारी जो कि रिपोर्ट तैयार करते हैं, वो शामिल रहते हैं. वर्मा के मुताबिक एक पूर्व आईपीएस अधिकारी का पुत्र संतोष कुमार सिंह जो कि 25 वर्षीया कानून की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू के बलात्कार और हत्या का दोषी है उसे भी सेमी ओपन जेल भेजा जा चुका है.

(फोटो: रॉयटर्स)

हाईप्रोफाइल कैदियों पर रहती है सबकी नजर, बाकियों के हाल हैं बेहाल 

अधिवक्ता प्रेम प्रकाश जो कि तिहाड़ के कैदियों के साथ नजदीकी रुप से काम करते हैं, कहते हैं कि अपराध और जेल सुधार का सिद्धांत है कि अपराधी को नहीं बल्कि उसकी आपराधिक मानसिकता को समाप्त किया जाना चाहिए. उनका मानना है कि मनु शर्मा जैसे हाई प्रोफाइल मामले लोगों को जेलों को समझने के प्रति आकर्षित करते हैं लेकिन सामान्य केसों में कई समस्याओँ पर कोई ध्यान नहीं देता. जैसे प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल जैसे हाइप्रोफाईल मामलों में सबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर होता है कि अभियुक्त को जमानत मिली या उसकी जमानत याचिका खारिज हो गई. लेकिन जमानत गरीबों के खिलाफ का विचार है.

पी रामांथा आय्यर द्वारा लिखित लॉ लेक्सीकान में जमानत की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि बंधक का मौद्रिक मूल्य जिसे कि जमानत या बेल बांड भी कहते हैं उसे कैदी के लिए निर्धारित करने का अधिकार अदालत के पास होता है. सेक्यूरिटी नगद में हो सकती हैं,या संपत्ति के कागजात के रुप में भी हो सकती हैं. जमानत पर रिहा किया गया व्यक्ति निर्धारित किए गए समय पर अगर उपस्थित नहीं होता है तो उसके द्वारा जमा की गयी सेक्यूरिटी जब्त की जा सकती है.

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प्रकाश उन लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं जो कि अपने लिए जमानत से जुड़े कागजात और रुपयों की व्यवस्था नहीं कर पाते. प्रकाश के मुताबिक उन्होंने हत्या और बलात्कार के आरोप में उम्रकैद की सजा प्राप्त किए दो कैदियों के लिए काफी काम किया है. और आज दोनों कैदी सुधरे हुए रुप में जेल से बाहर आ गए हैं. जेल में कई अपराधी डिप्रेशन में डूब जाते हैं, कुछ मेडिटेशन करते हैं और कुछ लोग पढ़ने लिखने में ध्यान लगाते हैं.

जेल अधिकारी इन लोगों पर लंबे समय तक नजर रखे रहते हैं,ऐसे में वो इनके बदले हुए व्यवहार को आसानी से पकड़ लेते हैं. कैदियों के लिए जेल अधिकारियों को मूर्ख बनाना मुश्किल होता है. प्रकाश के मुताबिक सेमी ओपन जेल के कांसेप्ट में एक चार मंजिला बिल्डिंग है जो कि है तो तिहाड़ जेल परिसर में ही लेकिन कैदखाने से दूर हैं. प्रकाश इस कांसेप्ट की तारीफ करते हैं

रजनी सिंह जो कि तिहाड़ में बंद महिला कैदियों के लिए काम करती हैं, उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को पताया कि मनु शर्मा तिहाड़ की जेल संख्या में 2 में रहता था और वहां से वो एनजीओ चलाता था. वो एनजीओ जेल में बंद कैदियों के परिवारवालों की आर्थिक सहायता करता था. खास करके उनके बच्चों की शिक्षा में मदद करता था. न केवल मनु शर्मा बल्कि 1997 के कनॉट प्लेस फर्जी एनकाउंटर कांड में दो निर्दोषों की हत्या का दोषी एसएस राठी ने भी इंटरनेशनल योगा डे समारोह में हिस्सा लिया.

मनु शर्मा ने जेल के सुधार कार्यों में जमकर लिया है हिस्सा  

शर्मा ने जेल संख्या 2 के आर्किटेक्चर पर काम किया और अन्य ने योगा ट्रेनिंग कोर्स में हिस्सा लिया. इन लोगों ने तो पंचवटी योग आश्रम की तरफ से एक योग प्रशिक्षण कार्यक्रम तक चलाया. पंचवटी योग आश्रम तिहाड़ जेल के अंदर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है. रजनी के मुताबिक इस जेल में 30 फीसदी हार्डकोर क्रिमिनल हैं जिनके लिए सुधार शब्द के मायने बहुत कम हैं. रजनी मानती हैं कि अपराध की प्रबलता यहां मायने नहीं रखती है बल्कि जेल के अंदर अपराधी को मिलने वाली परिस्थिति दिशा तय करती है कि वो किस मानसिक अवस्था में जेल से बाहर होगा.

30 प्रतिशत के अलावा बाकी के 70 फीसदी कैदियों को काउंसिलिंग, योगा, मंत्रोच्चार और रचनात्मक क्रियाकलापों के द्वारा उनके मस्तिष्क में अंकित अपराध और शर्म के क्षणों को मिटाने की कोशिश की जाती है जिससे कि वो अपना बदला लेने वाली भावना को समाप्त करके एक अच्छे इंसान के रुप में जेल से बाहर निकल सकें.

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रजनी और पंचवटी योग आश्रम के स्वामी आशुतोष के मुताबिक सबसे बड़ी समस्या अंडरट्रायल्स हैं क्योंकि लंबी सजा पाए कैदियों के पास तो अपनी गलतियों पर पश्चाताप करने और सुधरने के लिए लंबा समय रहता है लेकिन अंडरट्रायल्स इस बात को लेकर अनिश्चित रहते हैं कि कहीं उन्हें गलती से दोषी करार देकर जेल में सात आठ सालों के लिए कैद न कर लिया जाए. 18 से 21 साल तक युवकों के वार्ड में उनकी मानसिकता समझना सबसे मुश्किल काम है क्योंकि उनमें से करीब 700 कैदी छोटी मोटी चोरियों, मारपीट और छीना-झपटी जैसे छोटे छोटे अपराधों के लिए आरोपी बनाए गए हैं.

उनके अंदर प्रतिशोध की ज्वाला धधकती रहती है और जब उन्हें लगता है कि जेल कि सजा काटने के बाद उन्हें समाज पूर्ण रुप से स्वीकार नहीं करेगा तो उन्हें पूरा अपराधी बनना ज्यादा आसान लगता है. ये अभियुक्त हाईप्रोफाइल कैदियों से अलग स्कूल ड्रापआउट होते हैं. तिहाड़ के मंडोली जेल संख्या 14 को योग आश्रम के द्वारा गोद लिया है. वहां पर 600 कैदियों में से केवल 15 ग्रैजुएट हैं, करीब 50 प्राइमरी स्कूलों से ड्रापआउट हैं और अन्य ने तो स्कूलों का चेहरा ही नहीं देखा है.

अपराधी की तरह ही परिस्थियां भी सुधार में आवश्यक होती है. हर हाईप्रोफाइल कैदी को जेल में एक अलग कोठरी नहीं दी जाती है. कभी कभी उन्हें जेल के आदि और नशेड़ी अपराधियों के साथ भी रहना पड़ता है और ये वातावरण उनके सुधार और माफी की राह पर असर डालता है.

सामान्य कैदी बदल सकते हैं नाम और पता, वीआईपी के साथ नहीं होता ऐसा 

वर्तिका नंदा जेल सुधारों पर काम कर रही एक एक्टिविस्ट हैं और उन्होंने तिनका तिनका प्रोजेक्ट शुरु किया है जो कि जेल में रह रहे कैदियों की जिंदगी में बदलाव लाने वाली श्रृंखला के रुप में काम कर रही है. वर्तिका मनु शर्मा पर किताब लिख रही हैं और उन्होंने आरुषि हत्याकांड में जेल में बंद रही आरुषि की मां नुपुर तलवार के साथ मिलकर संयुक्त रुप से तिनका तिनका डासना (डासना जेल,गाजियाबाद) नाम की एक पुस्तक लिखी है.

नंदा के मुताबिक अधिकतर हाई प्रोफाइल पीड़ित कहते हैं कि वो जेल वापस आकर यहां के लोगों के लिए काम करेंगे लेकिन सामान्य रुप से ऐसा होता नहीं है. सामान्य इंसान अपना पता बदल सकता है, मोबाईल नंबर, शहर और यहां तक कि अपना नाम तक बदल सकता है लेकिन प्रसिद्ध कैदियों के साथ ऐसा नहीं है उन्हें अपने नाम और पहचान के साथ ही जीना पड़ता है. नंदा के मुताबिक कुछ लोग जेल से बाहर सुधर कर आते हैं लेकिन ये उनके जेल के अंदर मिलने वाली परिस्थितियों पर निर्भर करता है. वीआईपी कैदी के जेल में आने से जेलकर्मियों को सबकुछ व्यवस्थित करने में पसीने छूट जाते हैं ऐसे में उनकी सामान्य कैदियों के साथ बातचीत काफी कम हो जाती है.

जेल के अंदर एक कोठरी में अकेले में बंद किए जाने की अपनी अलग समस्या होती है और ये कैदी के लिए मानसिक रुप से बड़े आघात जैसा होता है क्योंकि उस दौरान कैदी को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा ये जेल के लिए भी भार जैसा होता है. देश के 149 जेलों में से क्षमता से अधिक कैदी भरे हुए हैं. वर्तिका ध्यान दिलाती हैं कि कुल 63 ओपन जेलों में से 59 पुरुषों के हैं जबकि केवल 4 महिलाओँ के लिए हैं. महिलाओं के लिए ओपन जेल महाराष्ट्र के येरवदा में,राजस्थान के सांगानेर और दुर्गापुर में और एक तिरुवनंतपुरम में मौजूद है.

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क्या माफी का जब समय आता है तो क्या ये बहुत परिश्रम के बाद मिलता है और क्या उस समय तक कैदी अपने अपराध बोध से मुक्त हो चुका होता है? इसको समझने और जानने के लिए फ़र्स्टपोस्ट ने तिहाड़ के दो पूर्व कैदियों से बात की. रणधीर मिश्रा ने बताया कि जेल संख्या 2 जहां पर मनु शर्मा है वहां पर एक बेकरी और एक फर्नीचर फैक्ट्री है. जब काठमांडू में भयानक भूकंप आया था तब उस समय तिहाड़ जेल की फैक्ट्रियों की तरफ से 1000 बिस्किटों के पैकट बनाए गए थे.

मिश्रा हमसे उन कहानियों को साझा करते हैं जिसमें उम्रकैद की सजा पाए कैदी अपने सजा के आखिरी दिनों में किस तरह से ओपन जेल में रहते हैं. ओपन जेल में ये कैदी कैंपस में टहल सकते हैं और यहां तक कि अपने परिवारवालों को भी अपने कमरे में बुला सकते हैं. रणधीर के मुताबिक जिन्हें उम्रकैद की सजा मिली होती है वो अपने सामान्य जीवन से बड़े लंबे समय तक दूर रहते हैं ऐसे में उन्हें इस ओपन जेल के माध्यम से आजाद होने से पहले थोड़ी और आजादी दे दी जाती है. रणधीर तिहाड़ में बिताए अपने समय को याद करके बताते हैं कि उस समय हरियाणा सरकार के तत्कालीन मंत्री गोपाल कांडा भी जेल में थे. कांडा पर उस समय एक एयर होस्टेस को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था. कांडा ने जेल में कंबल बंटवाए थे.

सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत राय ने करवाए थे सोनू निगम के कार्यक्रम 

सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत राय सहारा जो कि 1500 करोड़ रुपए नहीं लौटाने की वजह से तिहाड़ में बंद थे उन्होंने तिहाड़ जेल में सोनू निगम के कार्यक्रम के आयोजन में मदद की थी. 1996-97 के दिल्ली धमाकों में किशोरावस्था में रहे मोहम्मद आमिर खान को गलती से अपराधी मान लिया गया था. आमिर को अपनी बेगुनाही साबित करने में 14 साल लग गए. इन 14 सालों की जेल के दौरान आमिर के पिता का निधन हो गया और मां बमुश्किल से जी सकीं.

आमिर को अभी हाल ही में 5 लाख रुपए हर्जाना मिला है. आमिर कहते हैं कि, ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुझे अपने माथे पर लगे दाग को धोने में 14 साल लग गए और उससे ज्यादा चिंताजनक ये है कि भारत में मुसलमानों को कम भारतीय माना जाता है और उन्हें अपनी देश भक्ति को बार बार साबित करना पड़ता है. ये एक ऐसा मामला है जिसमें पीड़ित के साथ न्याय नहीं हो सका ऐसे में इसके लिए सरकार से केवल कुछ रुपए लेकर उसे माफ नहीं किया जा सकता.