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बीजेपी के सहयोगियों के तेवरों ने राज्यसभा चुनावों को किया और दिलचस्प

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीटों के उपचुनाव में हार के बाद अब 23 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व का सिर दर्द बढ़ा रहे हैं.

Ranjib

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीटों के उपचुनाव में हार के बाद अब 23 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व का सिर दर्द बढ़ा रहे हैं. सरकार के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर के तीखे तेवर इसकी वजह हैं.

राज्यसभा की दस सीटों के चुनाव में बीजेपी ने अपना 9वां उम्मीदवार उतारा हुआ है. समाजवादी पार्टी ने एक और बीएसपी ने एक प्रत्याशी उतारा है. एक प्रत्याशी को जीत के लिए 37 विधायकों के वोटों की जरूरत होगी. बीजेपी अपने विधायकों के दम पर आठ प्रत्याशी आराम से जितवा लेगी. सहयोगियों के साथ उसके 324 विधायक हैं. वहीं समाजवादी पार्टी भी अपनी उम्मीदवार जया बच्चन की जीत सुनिश्चित करवा लेगी. मुकाबला दसवीं सीट पर है. जिस पर बीजेपी के नवें प्रत्याशी अनिल अग्रवाल का मुकाबला बीएसपी के भीमराव अंबेडकर से होगा.


हालांकि बीएसपी के पास अपने सिर्फ 19 ही विधायक हैं लेकिन एसपी के बाकी बचे वोट और कांग्रेस व रालोद और कुछ निर्दलीयों के समर्थन से उसकी जीत तय करवाने को विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ गोलबंद हैं. लोकसभा उपचुनावों से बीएसपी समेत बाकी कई दलों के समर्थन से एसपी की जीत से विपक्षी पाले के हौसले वैसे भी बुलंद हैं. हालांकि बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव के लिए 9वां उम्मीदवार जब उतारा था तब लोकसभा उपचुनावों के नतीजें नहीं आए थे और सियासी हलकों में आम चर्चा थी कि समाजवादी पार्टी और बीएसपी के कुछ विधायकों को अपने पाले में कर बीजेपी राज्यसभा चुनाव में अपने 9वें उम्मीदवार के लिए क्रॉस वोटिंग करवा लेगी. लेकिन उपचुनाव ने जिस तरह विपक्ष को उत्साहित किया है उसके बाद क्रॉस वोटिंग हो पाएगी इस पर बीजेपी के ही खेमे में संशय है.

अब ओमप्रकाश राजभर के तीखे तेवरों ने नई दिक्कत खड़ी कर दी है. उनके चार विधायक हैं और बीजेपी के 9वें उम्मीदवार की जीत तय करने में इनका वोट भी चाहिए होगा. ओमप्रकाश राजभर यूपी में बीजेपी व सहयोगियों की सरकार बनने के कुछ महीनों बाद से ही नाराज चल रहे हैं. अपने गृह जिले गाजीपुर के जिलाधिकारी का तबादला न करवा पाने का मामला हो या बीजेपी की ओर से तवज्जो न मिलने की शिकायतें, राजभर हमेशा ही सरकार के खिलाफ मुखर रहे. बीजेपी और उनके बीच गए एक साल में तनातनी इस कदर बढ़ी कि बीजेपी ने उनके खिलाफ अपने राज्यमंत्री अनिल राजभर को उतार दिया.

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ओमप्रकाश राजभर की रैलियों व बयानों के खिलाफ अनिल राजभर भी रैलियां करते रहे हैं जिनमें वे कहते हैं कि ओमप्रकाश यह न समझें कि अकेले वे ही बिरादरी की नुमाइंदगी करते हैं. बकौल अनिल राजभर, अपने बेटे को लोकसभा का टिकट दिलाने व बीजेपी के समर्थन से जीत दिलाने के लिए ओमप्रकाश दबाव की राजनीति कर रहे हैं. योगी सरकार के एक साल पूरा होने पर सोमवार को लखनऊ में हुए समारोह से खुद को ओमप्रकाश राजभर ने न सिर्फ दूर रखा बल्कि तीखे बयान भी दिए कि बीजेपी को सिर्फ मंदिरों की फिक्र है न कि गरीबों की. एक दिन पहले बस्ती में अपनी पार्टी की एक जनसभा में भी राजभर के यही तेवर थे जहां उन्होंने कहा था कि बीजेपी को गोरखपुर और फूलपुर हरवा कर गरीबों ने उनकी अनदेखी का जवाब दे दिया.

बीजेपी की ओर से एक वरिष्ठ मंत्री उन्हें लखनऊ स्थित उनके आवास पर मनाने भी गए फिर भी राजभर साल पूरा होने पर आयोजित समारोह में नहीं गए. अलबत्ता उन्होंने यह कह कर बीजेपी नेतृत्व की परेशानी बढ़ा दी है कि अब यदि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह बात करेंगे तभी बात बनेगी वरना उनकी पार्टी राज्यसभा चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला करेगी.

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वाकई ऐसा हुआ तो बीजेपी को अपने 9वें उम्मीदवार के लिए अतिरिक्त वोट जुटाने में बड़े पापड़ बेलने पड़ सकते हैं. उसके बाद भी कामयाबी नहीं मिली तो न सिर्फ प्रत्याशी हार जाएगा बल्कि लोकसभा उपचुनावों में हार के बाद राज्यसभा की एक सीट पर भी एकजुट विपक्ष के आगे हार पर फजीहत अलग होगी. खास तौर पर इसे उन रणनीतिकारों की नाकामी माना जाएगा जिन्होंने पर्याप्त वोट न होने के बावजूद विपक्ष में सेंध लगाकर अपना उम्मीदवार जितवा लेने का हवाला देकर 9वां प्रत्याशी उतरवाने के लिए नेतृत्व को सहमत किया.

ऐसे में बीजेपी नेतृत्व के लिए फिलहाल ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ कोई कार्रवाई न करना ही बेहतर विकल्प है. हालांकि ओमप्रकाश राजभर के सरकार से अलग हो जाने या गठबंधन छोड़ देने से योगी सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के दो दलों में सार्वजनिक खटास से बड़े दल यानी बीजेपी की ही भद ज्यादा पिटेगी. खासकर तब जब हाल में कुछ सहयोगी दल राजग का साथ छोड़ चुके हैं.

राज्यसभा चुनावों पर ओमप्रकाश राजभर अंततः क्या रुख अपनाते हैं या बीजेपी उनकी बातें किस हद तक मानती है यह अगले कुछ दिनों में तय हो जाएगा लेकिन इतना तय है कि राज्यसभा के चुनावों में राजभर के विधायकों ने बीजेपी के लिए वोट नहीं किया तो यह दोनों दलों के आपसी रिश्तों के बहुत लंबा न चल पाने की नींव भी डाल देगा.

उधर सरकार में बीजेपी की एक और सहयोगी पार्टी केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का राज्यसभा चुनावों को लेकर क्या रुख होगा यह भी अभी तय नहीं है. हालांकि दल के सूत्रों के मुताबिक वहां भी बीजेपी के रवैए को लेकर कई विधायक नाराज हैं. अपना दल के नौ विधायक हैं. ऐसे में राज्यसभा चुनावों में बीजेपी प्रत्याशी के प्रति अपना दल का क्या रवैया रहता है यह देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा.