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नोटबंदी@एक साल: ऐलान तो कई हुए लेकिन कामयाबी नहीं मिली

नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला अपने घोषित लक्ष्यों को पाने में बुरी तरह नाकाम रहा है

Rajesh Raparia

नोटबंदी को हुए एक साल पूरे हो गए हैं. पिछले साल 8 नवंबर को रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संदेश में पीएम ने आधी रात से देश में 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा की. उन्होंने इस कड़े और ऐतिहासिक फैसले को देश के विकास के लिए आवश्यक बताया और कहा कि भ्रष्ट्राचार, कालाधन, आतंकवाद, नक्सलवाद और जाली नोट देश के विकास के लिए नासूर बन गए हैं.

तब इसे भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी का सर्जिकल स्ट्राइक बताया गया था. मोटा अनुमान था कि नोटबंदी से 3 से 4.5 लाख करोड़ रुपए का विंडफाल गेन (अकस्मात लाभ) होगा.


मोदी सरकार को पूरी उम्मीद थी कि बोरियों, गद्दों और तकियों में बंद नोटों की लाखों गड्डयां बेकार हो जाएंगी और लोग उन्हें गंगा में बहा देंगे. 15 अगस्त 2017 को लाल किले की प्राचीर से दिए अपने राष्ट्रीय संबोधन में एक रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि 3 लाख करोड़ रुपए जो बैंकिंग सिस्टम नहीं आए, वह क्या है.

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सुप्रीम कोर्ट में देश के महाअधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने एक मुकदमे के दौरान सूचित किया था कि 3 लाख से 4.5 लाख करोड़ रुपए नोटबंदी के कारण सिस्टम में नहीं लौटेंगे. इसलिए सरकार इससे इंकार नहीं कर सकती है कि नोटबंदी का मकसद काले धन की जब्ती करना नहीं था.

नोटबंदी के शुरुआती दिनों में सरकार बहुत उत्साहित थी और प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए कुल 50 दिन का समय मांगा था. रिजर्व बैंक शुरुआत में रोजाना बता रहा था कि बैंकों में कितने रद्द नोट वापस आ गए हैं. लेकिन दिसंबर के आखिरी दिनों में अचानक यह जानकारी देना बंद कर दिया, क्योंकि जिस गति से रद्द नोट बैंकों में वापस आ रहे थे, उससे सरकार की फजीहत होनी तय थी और नोटबंदी के बाद तक कुल कितने रद्द नोट वापस आ चुके हैं, इसे बताने में रिजर्व बैंक महीनों आना-कानी करता रहा.

उसने संसदीय समिति को यह कह कर टरका दिया कि अभी रद्द नोटों की गिनती जारी है, जबकि 97 प्रतिशत रद्द नोट बैंकों में वापस आ चुके हैं. यह जानकारी दिसंबर के आखिरी दिनों में सार्वजानिक हो चुकी थी. पर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती. देर से आई भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट ने नोटबंदी की सरकारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

इस रिपोर्ट से उजागर हुआ कि 500 और 1000 रुपए के रद्द किए नोटों में से 99 फीसदी नोट रिजर्व बैंक के पास वापस आ गए हैं. नोटबंदी के समय रिजर्व बैंक के मुताबिक 15.44 लाख करोड़ रुपए के रद्द नोट प्रचलन में थे. इनमें से 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आए हैं. महज 16000 करोड़ रुपए के प्रतिबंधित नोट वापस नहीं आए.

रिजर्व बैंक की इस रिपोर्ट ने बता दिया कि नोटबंदी अपने घोषित लक्ष्यों को पाने में बुरी तरह नाकाम रही. अब तक प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्री सारभूत ढंग से यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि नोटबंदी के फितूर से देश का क्या भला हुआ व्यापार बढ़ा, रोजगार में इजाफा हुआ या आर्थिक विकास दर बढ़ी. पर इतना सबको मालूम है कि नोटबंदी के दरमियान बैंकों के आगे लगी लंबी-लंबी कतारों के कारण किसी कालेधन के स्वामी की अकाल मौत नहीं हुई. पर 100 से ज्यादा मेहनतकश गरीब लोग नोटबंदी की यातना से अपनी जान खो बैठै.

जाली नोटों की अबूझ कहानी 

समझा गया था कि आतंकवाद और नक्सलवाद की जड़ में नकली नोट हैं और नोटबंदी से इनकी कमर टूट जाएगी. भारतीय रिजर्व बैंक को अप्रैल 2016 से मार्च 2017 के बीच 500 और 1000 रुपए के 573891 नकली नोट मिले. इससे पहले साल 404794 नकली नोटों की पहचान की गई थी. यह बहुत मामूली उपलब्धि है. पर नोटबंदी से फर्जी नोटों की समस्या के निदान की पूरी उम्मीद लगाई थी, लेकिन अब भी नए 500 और 2000 के नोटों के फर्जी नोटों के पकड़े जाने  की खबरें गाहे-बेगाहे आती रहती हैं.

पर नोटबंदी से न तो सीमा पर आतंकवादी वारदातें कम हुईं हैं, बल्कि शहीद सैनिकों की संख्या बढ़ी है. पर वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि नोटबंदी से घाटी में पत्थरबाजों की संख्या कमी आई है. नोटबंदी से उम्मीद थी कि इससे नक्सली हिंसा की कमर टूट जाएगी, पर नक्सली हिंसा की खबरें भी आती रहती हैं. गृह मंत्रालय का मानना है कि नोटबंदी के बाद नक्सली हिंसा की वारदातों में 40 फीसदी कमी आ चुकी है.

लाखों हुए बेरोजगार

अब सरकार ने इतना माना है कि नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर फौरी प्रभाव पड़ा है. यह एक बड़ी स्वीकारोक्ति है. नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर भारी प्रतिकूल असर पड़ा है और पिछली चार तिमाहियों में आर्थिक विकास दर तकरीबन 2 फीसदी गिर चुकी है. जिसकी प्रबल आशंका पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जता चुके थे. पर नोटबंदी की सबसे घातक मार देश के असंगठित क्षेत्र पर पड़ी है, जो देश में 93-94 फीसदी रोजगार मुहैया कराता है और सकल घरेलू उत्पादन में इस क्षेत्र का योगदान 45 फीसदी है.

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बीजेपी की पैतृक संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि नोटबंदी से तकरीबन ढाई लाख लघु इकाइयां बंद हो गईं. हर इकाई में 10 कामगार भी मान लें, तो 25 लाख लोग अपनी जीविका से हाथ धो बैठे. इसमें सेवा क्षेत्र में काम करने वाले लाखों दिहाड़ी मजदूरों की संख्या शामिल नहीं है, जो काम न मिलने के कारण अपने गांव लौट गए थे. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग आॅफ इंडियन इकॉनामी देश का एक प्रतिष्ठित आर्थिक संस्थान है जिसकी रिपोर्ट लेने के लिए कारोबारी लाखों रुपए खर्च करते हैं. इस संस्थान का आकलन है कि जनवरी-मार्च 17 के बीच कम से कम 15 लाख नौकरियां खत्म हुई हैं.

अर्थव्यवस्था में आई सिकुड़न से सब मिलाकर देश को 2 लाख से ढाई लाख करोड़ रुपए का कम से कम नुकसान हुआ है. नोटबंदी का भयानक असर किसानी पर पड़ा है. अधिक पैदावार के बावजूद आज उनकी आर्थिक हालत पहले से बेहद खराब है. किसानों के देश में बढ़ते असंतोष, आंदोलनों और किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं से कृषि क्षेत्र में व्याप्त भयावह संकट का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है.

बदलते गोलपोस्ट 

नोटबंदी के नफे-नुकसान को लेकर मोदी सरकार तेजी से गोलपोस्ट बदलती रही है. जब जिस जगह  गोल मारना होता है, वहीं वह गोलपोस्ट रख देती है. अब मोदी सरकार को वसूली के गोलपोस्ट से भारी उम्मीदें हैं. अब रोजाना शेल कंपनियों (फर्जी कंपनियों) और संदिग्ध खातों की वसूली पर सरकार की नजरें टिक गई हैं.

कंपनी मामलों के मंत्रालय के अनुसार 2.24 लाख कंपनियों के रजिस्ट्रेशन रद्द किए जा चुके हैं. प्रारंभिक जांच में 35 हजार कंपनियों के 58 हजार खातों में 17 हजार करोड़ रुपए के नोटबंदी के समय जमा कराने और उनके निकालने की बात सामने आई है. एक कंपनी के 2134 खातों का पता चला है. और एक कंपनी ने जिसके खाते में निगेटिव बैलेंस था, उसने 2484 करोड़ रुपए खाते में जमा कराए और फिर निकाल लिए.

प्रतीकात्मक तस्वीर

इसके अलावा तकरीबन 3 लाख करोड़ रुपए की बेहिसाबी नकदी को लेकर आयकर विभाग 13 लाख बैंक खातेदारों की जांच कर रहा है. अब सरकार  इन खातों से कितना वसूल कर पाएगी, इस पर ही नोटबंदी का नफा नुकसान जुड़ा हुआ है. वैसे आयकर विभाग के 2015 में 5 लाख करोड़ रुपए आयकर -मांग के बकाये थे. केवल 17 करदाताओं पर ही 2.14 लाख करोड़ रुपए आयकर मांग का बकाया था.

एनपीए देखते-देखते ही 8 लाख करोड़ रुपए पार कर गया. लेकिन इनसे कोई खास वसूली नहीं हो पाई है. उम्मीद यह की गई थी कि नोटबंदी से रिजर्व बैंक को लगभग 3-4 लाख करोड़ रुपए का अकस्मात लाभ होगा. पर फिलवक्त नोटबंदी से रिजर्व बैंक नुकसान में रही है. 2016-17 में रिजर्व बैंक ने 35 हजार करोड़ रुपए का कम लाभांश सरकार को दिया.

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यह केंद्र सरकार का सीधा-सीधा नुकसान है. इसके साथ नोटबंदी से आई भारी नकदी पर रिजर्व बैंक को 18 हजार करोड़ रुपए ब्याज देना पड़ा और नए नोटों की प्रिंटिंग पर साढ़े चार हजार करोड़ रुपए अलग से खर्च करने पड़े. अब नोटबंदी की प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की दलीलों में तकरार पैदा हो गया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने इसे काला धन, भ्रष्ट्राचार, नकली नोट, आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ जंग बताया था. पर वित्तमंत्री कहते हैं कि नोटबंदी का असली मकसद काला धन को समाप्त करना नहीं, वित्त व्यवहार बदलने के लिए किया गया फैसला था. कुल मिलाकर नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला अपने घोषित लक्ष्यों को पाने में बुरी तरह नाकाम रहा है.