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नोटबंदी @ एक साल: कश्मीर में ना फंडिंग रुकी ना पत्थरबाजी

फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली का कहना है कि नोटबंदी से पत्थरबाजी कम हुई है, लेकिन पिछले एक साल के आंकड़ों पर गौर करें तो यह बात पूरी तरह सही नहीं है

Updated On: Nov 07, 2017 04:59 PM IST

Piyush Raj Piyush Raj
कंसल्टेंट, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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नोटबंदी @ एक साल: कश्मीर में ना फंडिंग रुकी ना पत्थरबाजी

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दावा किया है कि नोटबंदी के बाद कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है. जेटली ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि ‘जम्मू-कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन और पत्थरबाजी की घटनाओं और माओवाद प्रभावित जिलों में नक्सली घटनाओं में कैश की कमी की वजह से कमी आई है.’

कुछ इसी तरह का दावा कुछ दिनों पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी किया था. उन्होंने इस साल अगस्त में दावा किया था कि पिछले तीन साल में पूर्वोत्तर में उग्रवाद 75 फीसदी कम हुआ है जबकि नक्सलवाद में 40 फीसदी की गिरावट आई है. इसके अलावा एनआईए की सक्रिय भूमिका की वजह से जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में भी कमी आई है.

कुछ इसी तरह का दावा सीआरपीएफ ने भी किया है कि अप्रैल के बाद कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है.

इन सब दावों से पहले पिछले साल नोटबंदी की घोषणा के बाद पीएम मोदी ने यह कहा था कि नोटबंदी से आतंकवाद, पत्थरबाजी और नक्सलवाद की घटनाओं में कमी आएगी क्योंकि इन सब में कैश और कालेधन का इस्तेमाल होता है.

नोटबंदी से  न फंडिंग घटी है, न पत्थरबाजी 

अब यह सवाल है कि इन दावों में कितनी सच्चाई है? यह भी एक सच्चाई है कि कश्मीर में होने वाली पत्थरबाजी की घटना में शामिल कई युवकों ने यह स्वीकार किया है कि उन्हें पत्थरबाजी करने के लिए पैसे मिलते थे. इन पत्थरबाजों ने न्यूज18 को दिए इंटरव्यू में कबूल किया कि उनकी गरीबी का फायदा उठाकर हुर्रियत के नेता उन्हें पत्थर फेंकने के लिए मजबूर करते हैं.

अब अगर इन युवाओं को के कबूलनामे को सही माने तो यह साबित होता है कि नोटबंदी के बावजूद पत्थरबाजों को फंडिंग जारी है. यानी नोटबंदी से टेरर फंडिंग में कमी नहीं आई.

अगर पत्थरबाजी की घटनाओं पर भी गौर करें तो इसमें कोई कमी नहीं आई है. सरकार ने या सीआरपीएफ ने अपने दावों के पक्ष में कोई आंकड़े भी पेश नहीं किए हैं.

अगर एक बार सरकार के दावों पर विश्वास कर भी लें कि पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आई है, फिर भी एक तथ्य है कि इस साल कश्मीर में जो भी पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं हैं वो अपने प्रभाव में बहुत बड़ी थीं. यही नहीं इस बार कश्मीर में कश्मीरी महिलाएं भी बड़ी संख्या में पत्थरबाजी की घटनाओं में शामिल हुईं. ईद के दौरान भी पत्थरबाजी की बड़ी-बड़ी घटनाएं हुई हैं.

kashmir unrest2

सब कुछ सही है फिर अनंतनाग उपचुनाव में देरी क्यों?

कश्मीर में श्रीनगर में हुए लोकसभा के उपचुनावों में भी काफी कम मतदान हुआ (7 फीसदी) और हिंसा की काफी घटनाएं हुईं. चुनाव आयोग को अनंतनाग में लोकसभा के उपचुनाव को खारिज करना पड़ा. आज तक चुनाव आयोग अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं कर पाया है.

अब सवाल यह है कि अगर पत्थरबाजी की घटना या विरोध-प्रदर्शन की वजह सिर्फ ब्लैकमनी है तो कश्मीर में हालात ठीक हो जाने चाहिए थे. फिर सरकार को बातचीत के लिए दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त करने की क्या जरूरत थी?

दरअसल खुद सरकार की कथनी और करनी में साफ-साफ फर्क दिख रहा है. अगर कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आ गई है तो फिर सेना को अपने बचाव के लिए एक कश्मीरी युवक को अपने जीप से बांधने की जरूरत क्यों आ गई?

नोटबंदी को सफल ठहराने के उद्देश्य या जल्दीबाजी में वित्त मंत्री और गृहमंत्री के दावे खुद सरकारी एजेंसियों के आंकड़ों से भी खारिज हो जाते हैं. ये दोनों मंत्री बड़ी सफाई से नोटबंदी के बाद कश्मीर में बढ़ी आतंकी घटनाओं के आंकड़ों पर कुछ नहीं बोल रहे.

jammu kashmir jeep

नोटबंदी के बाद कश्मीर में बढ़ी हैं आतंकी घटनाएं

फ़र्स्टपोस्ट में लिखे अपने लेख में इश्फाक नसीम ने सरकारी आंकड़ों के जरिए यह दिखाया कि कैसे कश्मीर में आतंक की घटनाओं में नोटबंदी के बाद बढ़ोत्तरी हुई है. वे लिखते हैं कि नोटबंदी से आतंकवाद पर लगाम लगाने में सफलता मिलने के सरकारी दावे के उलट कश्मीर में लगातार आतंकी हमले जारी हैं. लोग पत्थरबाजी का सहारा ले रहे हैं ताकि मुठभेड़ वाली जगहों से आतंकियों को भागने में मदद मिल सके. यह साफ है कि ओवर-ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) और आतंकियों के समर्थकों का तगड़ा नेटवर्क अभी भी मौजूद है. इसकी वजह से इन्हें पैसों की लगातार सप्लाई मिल रही है.

भले ही बेहतर सुरक्षा निगरानी से आतंकियों के लिए आम लोगों से चंदे के जरिए खुलेआम पैसा जुटाना आसान नहीं रहा है, लेकिन सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर में आतंकियों से सहानुभूति रखने वालों और ओजीडब्ल्यू के जरिए फंडिंग लगातार जारी है. 1990 के दशक में आतंकी खुलेआम आम लोगों से चंदा इकट्ठा किया करते थे.

अधिकारियों के मुताबिक, आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले युवाओं की संख्या पर कोई लगाम नहीं लगी है और नोटबंदी से घाटी में आतंकवाद की घटनाओं पर कोई रोक नहीं लगी है. गृह मंत्रालय और जम्मू और कश्मीर पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में 53 सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए थे और 67 आतंकी मारे गए थे. 2014 में यह संख्या क्रमशः 47 और 110 थी. 2015 में यह आंकड़ा 39 और 108 का था. 2016 में यह एक बार फिर बढ़कर 82 और 150 पर पहुंच गया.

Kashmir Killing

इस साल अब तक 160 आतंकी मारे गए हैं, जबकि शहीद होने वाले सुरक्षा बलों के जवानों की संख्या 40 पर पहुंच गई है. पुलिस महानिदेशक एस. पी. वैद्य ने कहा कि जनवरी से अब तक शहीद होने वाले सुरक्षा बलों में 24 पुलिस के जवान हैं.

कुल मिलाकर 2017 में चाहे सरकार लाख दावे कर ले लेकिन कश्मीर में होने वाली आतंकी घटनाओं और पत्थरबाजी की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है. इसे नोटबंदी, टेरर फंडिंग और कालेधन की समस्या से जोड़कर देखने का सरकारी नजरिया ही गलत है. कश्मीर की समस्या को अगर हल करना है तो सरकार को सबसे पहले कश्मीर में सभी पक्षों से बातचीत करना होगा. सरकार चाहे लाख कह ले लेकिन यह सच्चाई है कि कश्मीर घाटी में होने वाली पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं को बहुत बड़ा पब्लिक सपोर्ट हासिल है.

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