live
S M L

नोटबंदी: कड़वी दवा जिसका जायका जुबां से गया नहीं और मर्ज के इलाज का पता नहीं

समय का ऐसा चक्र है कि एक साल बाद भी नोटबंदी का फायदा और नुकसान की चर्चा हो रही है

Updated On: Nov 06, 2017 06:10 PM IST

Ravishankar Singh Ravishankar Singh

0
नोटबंदी: कड़वी दवा जिसका जायका जुबां से गया नहीं और मर्ज के इलाज का पता नहीं

देश के इतिहास में पहली बार, अचानक और बेहद ही गोपनीय तरीके से लिए गए एक फैसले का एक साल पूरा होने वाला है. हम बात कर रहे हैं मोदी सरकार की नोटबंदी की.

8 नवंबर 2016 को रात आठ बजे अचानक ही पीएम मोदी का देश के नाम संबोधन शुरू हुआ. पीएम ने टीवी पर अपने संबोधन में कहा कि आज आधी रात से 500 और 1000 के नोट रद्दी हो जाएंगे.

पीएम मोदी ने उस समय कहा था कि यह फैसला कालेधन और जाली नोटों के कारोबारियों के खिलाफ लगाम लगाने की दिशा में एक कड़ा और बड़ा कदम है. पीएम ने नोटबदली की प्रक्रिया के लिए लोगों को 30 दिसंबर 2016 तक का वक्त दिया था. जिसे बाद में कई बार अफरा-तफरी में बढ़ाया भी गया.

ये भी पढ़ें: नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजैक्शन की ओर बढ़ रहे हैं लोग: जेटली

नोटबंदी का मुद्दा बाद में सड़क से संसद और कोर्ट कचहरी तक भी पहुंचा था. कुल मिलाकर नोटबंदी के फैसले पर देश में काफी बवाल कटा था. नोटबंदी लागू करने के फैसले पर देश की मीडिया से लेकर विदेशी मीडिया और देश के अर्थशास्त्रियों से लेकर विदेशी अर्थशास्त्रियों में भी खूब बहस हुई थी. पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने इसे ऐसी मानवजनित त्रासदी बताया था जो कि सुनामी से भी बड़ी थी.

पिछले साल दिसंबर से लकर इस साल मार्च महीने तक पीएम मोदी की तारीफ और आलोचनाओं का दौर खूब चला. कई अर्थशास्त्रियों ने जहां पीएम मोदी के इस फैसले को ऐतिहासिक कदम करार दिया था तो कइयों का कहना था कि देश इस फैसले के बाद 10-15 साल पीछे चला जाएगा.

तमाम आलोचनाओं के बाद भी सरकार बड़ी मुस्तैदी से अपने फैसले का बचाव करती रही. सरकार की नुमाइंदगी करने वाले कई लोगों ने इस फैसले को सही ठहराने को लेकर अलग-अलग दलीलों के साथ टीवी डिबेट और अखबारों में प्रतिक्रिया दे रहे थे.

विरोधियों ने बताया 'आर्थिक आपातकाल'

Parliament Session

पीएम मोदी के इस फैसले के बाद विरोधियों ने इसे आर्थिक आपातकाल बताया था. पूरे देश में 50 दिनों तक कैश क्रंच की वजह से लोगों को बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारों में देखा गया था. इसमें लगभग डेढ़ सौ के आस-पास लोगों की कतार में लगने की वजह से मौत भी हुई. अमीर हो या गरीब, सभी कतार में खड़े नजर आ रहे थे. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी कतार में नजर आए थे. तब कुर्ते की फटी जेब में से हाथ निकाले उनकी तस्वीरें भी खूब सुर्खियां बनी थीं.

हालांकि इसके बाद मोदी सरकार के कदम यहीं नहीं रुके. सालभर के भीतर कालेधन पर नकेल कसने के लिए कई कदम उठाए गए. नोटबंदी की घटना के बाद से जांच एजेंसियों के रडार पर कई कंपनियां और उसके निदेशक आए थे.

नोटबंदी से क्या हासिल? सरकार ने नहीं बताया

देश की आयकर विभाग, सीबीआई और ईडी ने मिलकर कालाधन जमा करने वालों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ा था. कई लाख शेल कंपनियां और उसके निदेशकों पर भारतीय जांच एजेंसियों ने नकेल कसकर धर-पकड़ भी की गई. हालांकि इस एक साल में सरकार ने यह आंकड़ा अभी तक जारी नहीं किया है कि सरकार के खाते में कितना कालाधन आया है? शुरुआत में नोटबंदी के समर्थक रहे लोग भी धीरे-धीरे इसके पक्ष में अपने तर्क खोते चले गए.

ये भी पढ़ें: 'नोटबंदी के विरोध में 8 नवंबर को प्रोफाइल पिक 'ब्लैक' रखें यूजर'

दूसरी तरफ सरकार नोटबंदी को बड़ी सफलता के तौर पर दिखाती रही है. यही कारण है कि सरकार एक साल पूरा होने पर कालाधन विरोधी दिवस मनाने की तैयारी कर रही है जबकि विपक्ष इस पर विरोध दिवस की तैयारी में है. बीजेपी की कई राज्य इकाइयों ने नोटबंदी के फैसले को लेकर देश में जनजागरण अभियान चलाने का फैसला किया है.

महीनों तक होती रही थी सिर्फ नोटबंदी पर चर्चा

Demonetization_CashLine

चाहे प्रिंट मीडिया हो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या तमाम डिजिटल न्यूज वेबसाइट्स या फिर गली मोहल्ले, चौक-चौराहों और चाय या पान के दुकानों पर नोटबंदी का ही जिक्र हुआ करता था. लोगों के हाथ से नोट बिल्कुल गायब हो जाने के कारण दूसरे मुद्दे गौण हो गए थे. लोग तब इसके पक्ष और विपक्ष दोनों में ही थे.

तब इसे बिल्कुल देशविरोधी कदम बताने वाली विपक्षी पार्टियां अब एक साल बाद फिर से फैसले की नाकामी बता कर राजनीतिक माहौल भुनाने में लग गई हैं. कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष मोदी सरकार पर जबरदस्त हमला बोलने की तैयारी कर रहा है.

नोटबंदी को सफल क्यों मानती है बीजेपी

समय का ऐसा चक्र है कि एक साल बाद भी नोटबंदी का फायदा और नुकसान की चर्चा हो रही है. नोटबंदी भले ही एक आर्थिक फैसला रहा हो लेकिन बीजेपी इसे राजनीतिक तौर सफल प्रयोग के तौर देखती है. नोटबंदी के तकरीबन चार महीने बाद हुए पांच राज्यों के चुनाव को नोटबंदी पर जनमत संग्रह के रूप में सभी दलों द्वारा प्रचारित किया जा रहा था.

इन चुनावों में बीजेपी की भारी सफलता को बीजेपी लोगों का जनमत संग्रह मानती है. हालांकि राजनीति का चरित्र यही है. आर्थिक फैसलों को भी राजनीतिक तौर पर देखा जाता है. शायद यही वजह है कि एक साल पूरे होने पर दोनों तरफ से जमकर राजनीति जारी है.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi