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हिंदूवादियों को समझना चाहिए, अगर दिल साफ हो तो नाम से फर्क नहीं पड़ता

औरंगजेब की मौत ने एक बहुत छोटी सी चेतावनी दे दी है- अगर आपका दिल साफ है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किससे मिलते हैं.

Bikram Vohra

सबसे पहली बात सबसे पहले, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और उनकी मंडली के लोगों को लड़ाई के दौरान जान गंवाने वाले फौजियों को ‘शहीद’ कहना बंद कर देना चाहिए. वह ‘शहीद’ नहीं हैं और सैन्य सेवा के किसी भी अधिकारी या सैनिक को इस राजनीति-प्रेरित तमगे से कोई राहत या सम्मान हासिल नहीं होता.

ऐतिहासिक रूप से शहीद ऐसे शख्स को कहते हैं जो आमतौर पर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए, अत्याचार सहते हुए, जान दे देता है. सैनिक लड़ाई में मारे जाते हैं या अपनी ड्यूटी निभाते हुए जान गंवाते हैं. जॉन ऑफ आर्क, सुकरात, भगत सिंह, नाथन हेल, थामस बेकेट… ये उन चंद लोगों के नाम हैं, जो शहीद थे. सैनिक मारे जाते हैं. सैनिकों की हत्या होती है. यही सेना की भाषा है और यही उनकी संस्कृति है. यहां तक कि हाल ही में सेना का जवान औरंगजेब भी, जिसकी आतंकवादियों द्वारा कश्मीर घाटी में अपहरण करके नृशंस हत्या कर दी गई, शहीद नहीं है. वह अपनी वर्दी का शिकार हुआ और उसने संघर्ष में जान गंवाई.


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वह बिना कहे सैनिक जैसे अंतिम संस्कार और लास्ट पोस्ट सेरेमनी का हकदार था. उसकी मौत से उसकी कंपनी, उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले दोस्त और वह सेना जिसका वह अभिन्न अंग था, गमगीन हैं.

बीजेपी के लिए अजीब विडंबना

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत और रक्षा मंत्री का मृतक सैनिक के घर जाना सही कदम था, हालांकि जहां तक बीजेपी का सवाल है, इसके दिग्गजों के दौरे में विडंबना का पुट है.

यह भी एक औरंगजेब है, जिसके लिए उन्होंने समुचित सम्मान जताया. दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर डॉ. अब्दुल कलाम मार्ग करने के लिए खूब हल्ला मचाने और क्रूर मुगल शासक की विरासत को खत्म करने के लिए मशहूर मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर दीन दयाल उपाध्याय करने के बाद देश की सेवा करते हुए जान की कुर्बानी दे देने वाले इसी नाम के शख्स को अब सलाम करना इसके लिए थोड़ा अटपटा जरूर रहा होगा. अगर यह ऐसा गमगीन मौका नहीं होता, तो लोग इस विडंबना पर जरूर मुस्कुराते.

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मुगल विरोधी अभियान एक निरंतर युद्ध है. बीजेपी विधायक संगीत सोम ने इसमें ताजमहल को भी घसीट लिया है और वह चाहते हैं कि इतिहास को दोबारा लिखा जाए. यह ऐसी मांग है जो तार्किक रूप से पूरी नहीं की जा सकती क्योंकि अगर दोबारा लिखा जाए, तो वह इतिहास नहीं रहेगा.

फ़र्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पाठ्य पुस्तकों तक में मुगलकाल के वर्णन वाले पन्नों में बदलाव किया जा रहा है और तथ्यों से जालसाजी की जा रही है. यहां तक कि बीजेपी वेबसाइट पर मुगल काल की क्रूरता की तुलना नरसंहार से ही जा रही है. खतरा इन छिटपुट बेतरतीब कारगुजारियों से नहीं है, या एक ऐसे अदृश्य दुश्मन के खिलाफ छेड़े गए युद्ध से भी नहीं है, जिसका आधुनिक भारत के लिए कोई औचित्य नहीं है, बल्कि इतिहास में बदलाव का लाइसेंस देने से है- चाहे वह अच्छा हो या बुरा हो या भद्दा हो, हम खतरनाक दौर में हैं.

पुराने तजूर्बों से सीख लेने की जरूरत

हम नहीं जानते कि यह कब रुकेगा और कपट का सिलसिला कहां जाकर खत्म होगा, लेकिन हमें पुराने तजुर्बों से सीख लेनी चाहिए ताकि पुरानी गलतियां भविष्य में दोहराई ना जाएं.

जो हो चुका है उसे दुरुस्त नहीं किया जा सकता. एक पुरानी कहावत हैः जो अतीत से सीख नहीं लेते, वो उसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं. अगर अतीत एक झूठ से बना होगा, तो यह गलतियां कई गुना बढ़ जाएंगी और इनमें नई गलतियां भी जुड़ जाएंगी. शायद, बहुत छोटे रूप में ही सही, इस सेना के जवान की मौत ने एक बहुत छोटी सी चेतावनी दे दी है- अगर आपका दिल साफ है तो आपके बार में कोई कुछ भी कहे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

यह भी कि अगर आपको अपनी लड़ाइयां चुनने का मौका मिले, तो ऐसी लड़ाई चुनें जो देश के लिए हो, जैसा कि उसने किया. अपना वक्त मूर्खताओं में बर्बाद ना करें.