view all

मॉब लिंचिंग पर चिंतित है मोदी सरकार, उठाए जा रहे हैं ये बड़े कदम

पीएम मोदी ने पिछले दिनों विभिन्न राज्यों के पुलिस अधिकारियों को दिल्ली तलब किया और एक बैठक में उन्हें ये आदेश दिया कि वो ये सुनिश्चित करें कि सामाजिक व्यवस्था में असामाजिक तत्व खलल न डालें

Yatish Yadav

हाल के दिनों में देश में लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी है. हाल के मामले में उत्तर प्रदेश में 2 और महाराष्ट्र, त्रिपुरा, कर्नाटक और झारखंड में एक-एक लिचिंग की घटना मुख्य रूप से सोशल मीडिया पर फैली अफवाह की वजह से हुई. इन घटनाओं से चिंतित पीएम मोदी ने पिछले दिनों विभिन्न राज्यों के पुलिस अधिकारियों को दिल्ली तलब किया और एक बैठक में उन्हें ये आदेश दिया कि वो ये सुनिश्चित करें कि सामाजिक व्यवस्था में असामाजिक तत्व खलल न डालें.

पुलिस अधिकारियों को पीएम मोदी ने कहा है कि जो शांति भंग करने की कोशिश करते हैं पुलिस उन पर कड़ी नजर रखे और सोशल मीडिया के अफवाह के चलते घटित होने वाली हिसंक घटनाओं को हर हाल में रोके.


पीएम मोदी ने दिल्ली में आयोजित एक गोपनीय मीटिंग में पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी. पुलिस अधिकारियों की मोदी से ये मुलाकात हाल के अलवर लिचिंग से कुछ दिनों पहले हुई थी. इस मीटिंग की जानकारी रखने वाले एक उच्चस्तरीय सूत्र ने फ़र्स्टपोस्ट को इस संबंध में जानकारी दी है. गौरतलब है कि हाल के दिनों में देश के कुछ राज्यों में भीड़ के द्वारा कुछ लोगों को गो-तस्करी और बच्चा चोरी के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया है.

फ़र्स्टपोस्ट को मिले एक नोट से खुलासा हुआ है कि पीएम मोदी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को साफ साफ कहा है कि वो अफवाहों को फैलने से रोकें और ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करें. मोदी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से कहा कि 'आप लोग सुनिश्चित करें कि अफवाहों के बल पर समाज का मनोबल और धैर्य तोड़ने में लगे असामाजिक और विरोधी ताकतें सफल न होने पाएं और इस तरह की घटनाओं पर कड़ी नजर रखी जाए.'

पीएम मोदी ने वरिष्ठ अधिकारियों से ये कहा कि सभी एजेंसियों और राज्य पुलिस के बीच सूचना का आदान-प्रदान आधुनिक तकनीक के आधार पर किया जाए और इन दोनों के बीच का सामंजस्य इस तरह का हो कि इनमें आपसी प्रतिबद्धता दिखे न कि व्यवस्था महज खानापूरी में तब्दील हो जाए. वैसे संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार लॉ एंड आर्डर राज्य का विषय है.

व्यवस्था को साफ किया जाए

बैठक में पीएम मोदी ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में पुलिस की पेट्रोलिंग वैनों की संख्या बढ़ी है लेकिन उसका प्रभाव उतना नहीं है जितना पैदल पेट्रोलिंग का गांवों और शहरों में रहा है. प्रधानमंत्री चाहते हैं कि स्थानीय स्तर पर पुलिस की संख्या बढ़े और वो स्पष्ट रूप से हर जगह पर दिखाई पड़े.

लेकिन प्रधानमंत्री ने लोगों को बेहतर सेवाएं देने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पुलिस व्यवस्था में सुधार की सलाह पहली बार नहीं दी है. फ़र्स्टपोस्ट को 2016 का भी एक नोट मिला है जिसमें पीएम मोदी ने राज्य पुलिस को सलाह दी है वो भीड़ की मनोदशा समझने के लिए पुलिसकर्मियों में कौशल विकसित करने की कोशिश करें जिससे कि वो भीड़तंत्र पर रोक लगाने में ज्यादा कारगर तरीके से सक्षम हो सकें.

यह भी पढ़ें: क्या हमारे क्रिकेटरों को सड़कों पर बेलगाम हत्यारी भीड़ पर बात करनी चाहिए?

पीएम ने कहा था कि 'भीड़ की मनोदशा और अलग अलग तरह की भीड़ से निपटने और उससे जुड़े मामलों को देखने के लिए पुलिसकर्मियों को इस संबंध में पुलिस व्यवस्था से इतर, ज्ञान केंद्रों से जानकारी एकत्रित करनी चाहिए...केवल हेलीकॉप्टरों और ड्रोन्स को प्राप्त करने पर ध्यान लगाने से लॉ एंड आर्डर में सुधार नहीं होगा. इसके लिए लगातार पुलिस पेट्रोलिंग और पुलिस आधारित सूचना तंत्र का मजबूत करना जरुरी है, जिससे कि पुलिसिंग और सुदृढ़ बन सके. इससे न केवल जमीन पर पुलिस की विजिबिलीटी बढ़ेगी बल्कि जनता की नजर में उसकी सकारात्मक तस्वीर भी सामने आएगी.'

देश में पिछले 6 महीनों में 100 हेट क्राइम दर्ज किए गए हैं जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यकों को टारगेट बनाया गया है

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश?

हालांकि पुलिस राज्य का विषय है ऐसे में राज्य के डीजीपी की ये जिम्मेदारी है कि वो इन सुझावों पर अमल करके जमीनी स्तर पर भी अपनी आंख और कान रखें. लेकिन हाल के दिनों में बढ़ती लिंचिंग की घटनाओं ने पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व दोनों को फेल कर दिया है. ये सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम आदेश से भी पता चलता है जिसे उन्होंने राज्यों को भेजा है और राज्य की पुलिस को इस संबंध में विस्तृत निर्देश जारी किया है. इस आदेश में भी कहा गया है कि स्टेट पुलिस को भीड़ वाली हिंसा को रोकने के लिए लोकल इंटेलीजेंस के साथ मिलकर काम करने की जरुरत है.

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी गाइडलाइंस में मॉब लिंचिंग के लिए राज्य के पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने की बात कही गयी है.यहां तक कि इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा गया है. अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी राजनेता के साथ साठगांठ में कोर्ट के आदेशों का पालन करने में विफल रहता है तो उसे सजा मिल सकती है.

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि कुछ केसों में राजनीतिक हस्तक्षेप वास्तविकता है और पुलिस के काम में रोकटोक एक प्रकार की चालबाजी है. उनका कहना है कि  'इस मामले से निपटने के लिए एक सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है. एक समानांतर व्यवस्था और सांठ-गांठ के काम नहीं चलेगा.'

यह भी पढ़ें: लिंचिंग की त्रासदी: मुसलमानों में बढ़ा डर और गाय अब भी दरबदर

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एन.सी. अस्थाना तो अपनी किताब में एक कदम आगे चले गए हैं. इस किताब में उन्होंने पुलिस नेतृत्व की आलोचना की है जो कि राजनीतिज्ञों की नजदीकी की वजह से विभिन्न परिस्थितियों में आम आदमी को होने वाली पीड़ा और समस्याओं का निदान करने में विफल रहते हैं. अस्थाना ने अपनी किताब में लिखा है कि 'पुलिस एक ऐसा विभाग है जिसके पास लोग तभी जाते हैं जब वो किसी तरह की गंभीर मुसीबत में फंसे होते हैं और वो उन परिस्थितियों से निकलने के लिए पुलिस से मदद की अपेक्षा रखते हैं. लेकिन भारत का दुर्भाग्य ये है कि ऐसे लोगों को शायद ही कभी मदद मिल पाती है. पुलिस लोगों की मदद तो नहीं ही करती है बल्कि कई बार तो वो आम लोगों को परेशान करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ती. पुलिस की उदासीनता, अकर्मण्यता और शक्ति का दुरुपयोग ज्यादा निंदनीय होता है क्योंकि पहले से ही परेशान आम जनता उनसे बहस करने की स्थिति में नहीं होती है. अगर वो पुलिस से बहस करेंगे तो और मुसीबत को दावत देंगे. ये एक निर्विवाद तथ्य है. जिसको इस संबंध में किसी तरह का संदेह है, उसका पाला या तो भारतीय पुलिस से पड़ा नहीं है या फिर वो झूठ बोल रहा है.'

ऐसे कठोर शब्द एक ऐसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हैं जिन्होंने बड़ी साफगोई से स्वीकार किया है कि उनका वर्ग लोगों की उम्मीदों पर खड़ा उतरने में न केवल विफल रहा है बल्कि वो आज भी उसी तरह से काम कर रहा है जिस तरह से 150 साल पहले वो काम कर रहा था. इसके साधन जरूर बदल गए हैं लेकिन आज भी मन और दिमाग वही है.

भीड़ द्वारा हिंसा को रोकने में क्यों हो रही है पुलिस को मुश्किल? 

वहीं दूसरी तरफ एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस मत का विरोध करते हुए कहते हैं भीड़ की हिंसा पुलिस के सामने एक बहुस्तरीय चुनौती पेश कर रही है. इनका कहना है कि सोशल मीडिया की जबरदस्त पहुंच ने इसे खतरनाक बना दिया है इसका फायदा उठाकर समाज में वैमनस्यता और हिंसा फैलाई जा रही है.

उनका ये भी कहना है कि कुछ मामलों में हिंसा में शामिल भीड़ को पकड़ना और उस पर मुकदमा चलाना बहुत मुश्किल है क्योंकि सीआरपीसी के वर्तमान प्रावधान इस संबंध में स्पष्ट नहीं हैं. ऐसे मामलों में दोषियों को सजा दिलाने के लिए वो सुझाव देते हुए कहते हैं कि इंडियन एविडेंस एक्ट में संशोधन किया जाना चाहिए जिसके अंतर्गत इस तरह की घटना के समय मौजूद व्यक्ति को घटना में शामिल समझा जाना चाहिए जब तक कि वो अपने आप को बेगुनाह साबित न कर दे.

उनका कहना है कि 'इस तरह के मामले में कुछ व्यवहारिक चुनौतियां भी है. इसके अलावा उन चुनौतियों से भी निपटने की आवश्यकता है जिसमें सोशल मीडिया पर लगातार घटना से संबंधित विचारों और अफवाहों का आदान प्रदान होता रहता है.'

सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया, राज्य सरकार से कार्रवाई करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य सरकारों के लिए एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं जिसमें ऐसी घटनाओं के लिए राज्य पुलिस को जिम्मेदार ठहराने की बात कही गयी है. इसके साथ ही गृह मंत्रालय ने राज्यों को एक एडवाइजरी जारी करते हुए एक नोडल अफसर नियुक्त करने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट की एडवाइजरी

एडवाइजरी में लिखा है कि 'राज्य सरकार हर जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को नोडल अधिकारी के. पद के लिए नामित करेगी जो कि एसपी रैंक से नीचे का न हो और हरेक नोडल अधिकारी को असिस्ट करने के लिए एक डीएसपी रैंक के अधिकारी की भी नियुक्ति की जाएगी. इनपर जिम्मेदारी होगी कि वो भीड़ की हिंसा और लिंचिंग जैसी वारदातों पर रोक लगाने के उपायों को लागू करेंगे.'

राज्यों को बोला गया है कि वो अपने यहां एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करें जिनका काम उन लोगों की इंटेलीजेंस रिपोर्ट इकट्ठा करना हो जिनपर इस तरह के आपराधिक मामलों में शामिल होने की संभावना हो या फिर ऐसे लोग जो कि हेट स्पीच, भड़काउ भाषण या फिर फर्जी खबरों के आधार पर समाज में तनाव पैदा करने कि कोशिश करते हैं. राज्य सरकारों को ये भी बोला गया है कि वो उन जिलों, अनुमंडलों और गांवों की पहचान करें जहां पर पिछले पांच सालों के दौरान मॉब लिंचिंग या फिर भीड़ के हिंसा के मामले की रिपोर्ट की गई हो. इन जगहों की पहचान के लिए तीन सप्ताह का समय दिया गया है.

यह भी पढ़ें: सोशल मीडिया से फैल रही हिंसा को रोकने में लगातार जुटी सरकार: रविशंकर प्रसाद

एडवाइजरी में कहा गया है कि 'नोडल अधिकारी (एसपी) को इस संबंध में जिले में महीने में कम से कम एक मीटिंग लोकल इंटेलीजेंस यूनिट्स के साथ करनी होगी,जिसमें जिले के सभी थानेदार भी शामिल होंगे. इसका मकसद होगा कि वो जिले में विजिलांटिस्म, मॉब वायलेंस और लिंचिंग जैसी घटनाओं की प्रवृत्ति की पहचान करें, और विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर उपलब्ध आपत्तिजनक और भड़काउ कंटेट के फैलने पर समय रहते रोक लगाने की कोशिश करें. एसपी या नोडल अधिकारी का दायित्व होगा कि वो किसी भी धर्म या जाति के खिलाफ प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्माण न होने दे जिन्हें किसी भी तरह की घटना में भीड़ द्वारा निशाना बनाया गया हो. हरेक पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य होगा कि वो उस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सीआरपीसी की धारा 129 के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों के अनुसार शक्ति का प्रयोग करे, जिसपर उन्हें आशंका हो कि वो विजलांटिस्म के नाम पर या फिर अन्य कारणों के तहत लिंचिंग जैसा कार्य कर सकते है. राज्य सरकार सीआरपीसी की धारा 375 ए के तहत दिए प्रावधानों के अंतर्गत लिंचिंग या भीड़ की हिंसा का शिकार हुए पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना तैयार करे वो भी सुप्रीम कोर्ट के 17 जुलाई को दिए गए आदेश के एक महीने के अंदर. इस योजना के अंतर्गत मुआवजे को व्यक्ति की शारीरिक चोट, उसके कमाई के नुकसान, रोजगार के मौके, शिक्षा, कानूनी और मेडिकल खर्चों के आधार पर तय किया जाए. इस मुआवजा योजना के अंतर्गत अंतरिम राहत देने का भी प्रावधान होना चाहिए जिसे घटना के तीस दिनों के अंदर पीड़ित या मृतक के परिजनों को दिया जा सके.'

राज्यों को भेजे गए तीन पेज की एडवाइजरी का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट वो है जिसमें कहा गया है अगर इसमें किसी तरह की कमी पाई गई तो पुलिस अधिकारी और उनके मातहतों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी.

राज्य सरकार को भेजे गए निर्देशों में कहा गया है कि 'जब भी ये पाया जाएगा कि पुलिस अधिकारी या फिर जिला प्रशासन का अधिकारी दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करने में या फिर मॉब वायलेंस की घटना पर रोक लगाने में विफल रहता है तो उसकी इस विफलता को जानबूझ कर की गई काम में लापरवाही माना जाएगा और इसके लिए उसके खिलाफ उचित कार्रवाई भी की जाएगी जो कि उसके केवल विभागीय सर्विस रुल बुक के हिसाब से नहीं निर्धारित की जाएगी. अधिकारियों द्वारा विभागीय कार्रवाई का भी संभवतया छह महीने के भीतर निपटारा कर दिया जाएगा.'

एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि ये दिशा निर्देश पूरे राज्य में एक तरह से पुलिस अधिकारियों के लिए डराने वाला है और सही मायनों में ये पुलिस नेतृत्व के लिए वास्तविक परीक्षा की घड़ी भी है. अगर वो चाहेंगे तो कानून का राज चलेगा.

इसके अलावा केंद्र सरकार ने एक हाई लेवल कमिटी का भी गठन किया है जिसके चेयरमैन गृह सचिव राजीव गौबा होंगे. ये कमिटी इन मामलों पर विचार विमर्श करके गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाले ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स को अपने प्रस्ताव भेजेगी. आखिरी में मंत्री समूह इस संबंध में अपने प्रस्ताव पीएम मोदी को भेजेगा.