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कुलभूषण जाधव को सजा: हमने तो कसाब से भी ऐसा व्यवहार नहीं किया था

जाधव को किसी नागरिक कोर्ट के सामने नहीं बल्कि सेना की अदालत के सामने पेश किया गया.

Ajay Kumar

सोमवार की शाम को भारत के लिए एक बुरी खबर आई कि पाकिस्तानी सेना ने कुलभूषण जाधव को मौत की सजा दे दी है. जाधव पर ये आरोप लगाया गया है कि उसने रॉ (रिसर्च एण्ड एनालाइसिस विंग) के लिए जासूसी करते हुए पाकिस्तान के सरकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन किया है.

जाधव पहले नेवी में कमांडर रह चुके हैं लेकिन इस समय वो एक कारोबारी हैं. भारत सरकार के मुताबिक जाधव का किसी भी तरह की गुप्तचर एजेंसी से कोई लेना देना नहीं है. चूंकि वह ईरान के चाबहार इलाके में एक कार्गो व्यवसाय के मालिक थे, इसलिए अपने कारोबार के सिलसिले में ही वह भटकते हुए पाकिस्तानी जल क्षेत्र में चले गए थे.


लेकिन इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल पाया है कि वह वाकई एक जासूस थे या नहीं. जाधव को किसी नागरिक कार्ट के सामने नहीं बल्कि सेना की अदालत के सामने पेश किया गया. जाधव भारतीय सेना में अब नहीं हैं और चूंकि इस समय पाकिस्तान-भारत के बीच कोई युद्ध भी नहीं चल रहा है, लिहाजा इस मामले में युद्ध का नियम भी लागू नहीं होता है. इसलिए जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सकता है.

हालांकि उन्हें सैन्य अदालत के सामने ही पेश किया गया और अगर इसे अंतर्राष्ट्रीय नियम के तहत ही अंजाम दिए जाने की बात कही जा रही है, तो ऐसे में पूरा मामला ही सवाल के घेरे में आ जाता है. जब दो देशों के बीच युद्ध चल रहा हो, उस समय तो अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत निश्चित रूप से सैन्य अदालत के सामने इस तरह के मामले लाए जाते हैं, लेकिन शांति के दौरान नागरिक अदालत से पहले किसी भी आरोपी को सैन्य अदालत में पेश किया जाना निश्चित रूप से स्वीकार करने वाली बात नहीं है. जाधव को नागरिक अदालत के बजाय सैन्य अदालत के सामने पेश करना न्यायिक प्रक्रिया का सरासर उल्लंघन है.

जाधव के पकड़े जाने की तुलना उस कसाब के पकड़े जाने से की जा रही है, जो एक हथियारबंद आतंकी था और जिसने निर्दोष लोगों पर गोलियों की बौछार की थी. कसाब साफ तौर पर एक अर्धसैन्य अभियान में शामिल था, लेकिन इस सच्चाई के बावजूद उसे किसी सैन्य अदालत के बजाय मुंबई सिविल कोर्ट के सामने पेश किया गया था. चूंकि वह किसी सशस्त्र बल का सदस्य नहीं था और पाकिस्तान के साथ कोई युद्ध भी नहीं चल रहा था, ऐसे में उसे किसी सैनिक अदालत के सामने पेश किया जाता तो ये युद्ध के नियमों का उल्लंघन होता.

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पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी जाधव से भारतीय दूतावास के किसी अधिकारियों की मुलाकात करने की बात को सीधे-सीधे खारिज कर दिया, जो 1963 में हुए दूतावास सम्बन्धी वियना सम्मेलन के अनुच्छेद 36(1)(C) के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन है. अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को अधिकार है कि वो जाधव तक अपनी पहुंच बनाएं. पाकिस्तान ने इस तरह की किसी भी भारतीय कोशिश को नकार दिया है, जो वियना सम्मेलन और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है.

पाकिस्तान के रुख के ठीक उलट भारत ने कसाब की पेशी के दौरान पाकिस्तानी अधिकारियों को उससे मिलने की न केवल अनुमति दी थी, बल्कि कसाब को इस हद तक छूट दी गई थी कि वो पाकिस्तानी दूत को लिखकर किसी भी तरह की मदद की गुहार लगा सकता था.

जाधव के खिलाफ जिस तरह के दोष मढ़े जा रहे हैं, वह अपने आप में संदेह पैदा करता है. जाधव की तरफ से कानूनी पैरवी करने वाला पाकिस्तानी सेना का एक अधिकारी था. ऐसे में यह साफ नहीं है कि दलील तैयार करने से पहले उसे निष्पक्ष सलाह मिली भी थी या नहीं. उसे दोषी ठहरा दिया गया और उसके जासूस होने पर मुहर भी लगा दी गयी.

हमें तो यह भी पता नहीं है कि उसे दी गयी किसी ‘यातना’ के बाद वह अपने जासूस होने की बात क़ुबूलने के लिए कैसे मजबूर हुआ. कसाब ने तो अपने वकील का चुनाव खुद ही किया था और उसकी तरफ से सबसे बढ़िया वरिष्ठ वकील ने पैरवी भी की थी.

जाधव पर चलाया गया मुकदमा न सिर्फ़ स्वीकार किये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय मानक के हिसाब से ग़लत है, बल्कि इसे फर्जी अदालत करार देना गैरकानूनी अदालतों के साथ भी एक तरह का अन्याय ही होगा. इस बात की जरूरत है कि पाकिस्तान इस फ़ैसले को तुरंत रद्द करे और जाधव को रिहा करने के लिए कोई कदम उठाए या फिर किसी और विकल्प पर विचार करे. पाकिस्तान इस मुकदमे को किसी नागरिक अदालत के अधीन लाए और जाधव की सहायता के लिए उस तक कम से कम भारत के कूटनीतिक अधिकारियों की पहुंच को आसान बनाये और समुचित प्रक्रियाओं का पालन करे.

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