view all

इसरो जासूसी केस: SC के फैसले से लॉ एनफोर्समेंट मशीनरी की मानसिकता बदलेगी- नंबी नारायणन

वैज्ञानिक नंबी नारायणन का राजनीति से ज्यादा वास्ता नहीं रहा है. यही वजह है कि उन्हें इसरो जासूसी कांड में राजनीति साजिश नजर नहीं आती है

TK Devasia

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन की लंबी जद्दोजहद ने आखिरकार उनके माथे से गद्दार और जासूस होने के कलंक को मिटा दिया है. उन्होंने खुद को बेदाग साबित करने के लिए 22 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी. जासूसी के आरोप ने रॉकेट साइंटिस्ट नंबी की जिंदगी और करियर को तबाह कर दिया. लिहाजा नंबी नारायणन की यह जंग उन तीन पुलिस अफसरों के खिलाफ भी थी, जिन्होंने झूठे आरोप लगाकर उन्हें कुख्यात इसरो जासूसी कांड में फंसाया था.

इंसाफ के लिए नंबी नारायणन को भले ही लंबा इंतजार करना पड़ा हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मायूस नहीं किया. देश की सबसे बड़ी अदालत से नंबी को उम्मीद से ज्यादा मिला. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की एक पीठ ने 76 साल के नंबी नारायणन को न सिर्फ बेकसूर करार दिया बल्कि लंबी मानसिक प्रताड़ना झेलने के एवज में मुआवजे का हकदार भी माना. कोर्ट ने उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है. मुआवजे की यह राशि उन अफसरों से वसूली जाएगी जो नंबी नारायणन की अनैतिक और गलत गिरफ्तारी में शामिल थे. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस डीके जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति भी गठित की गई है. इस समिति का काम यह पता लगाना होगा कि नंबी की गिरफ्तारी में शामिल अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए या नहीं.


ये भी पढ़ें: डेमोक्रेसी इन इंडिया (पार्ट-16): क्या RSS और हिंदुवादी संगठनों की विविधता की परिभाषा वही है, जो लोकतंत्र में है?

लेकिन वैज्ञानिक नंबी नारायणन ने इतनी लंबी कानूनी जंग मुआवजे के लिए नहीं लड़ी. मुआवजे को उन्होंने कभी महत्व ही नहीं दिया. दरअसल नंबी का मानना था कि मुआवजे में मिलने वाली कोई भी रकम उन्हें और उनके परिवार को लगे आघात और मानसिक प्रताड़ना की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकती. नंबी नारायणन को जासूसी के आरोप में 30 नवंबर 1994 को गिरफ्तार किया गया था. जिसके बाद 50 दिनों तक वह जेल में बंद रहे. जेल की जिंदगी और जासूसी के दाग ने नंबी के साथ-साथ उनके परिवार को भी तोड़कर रख दिया था.

अदालत तय करेगी कि क्या कार्रवाई की जानी चाहिए

नंबी नारायणन के वकील सी उन्नीकृष्णन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति का काम व्यापक होगा. नंबी की याचिका पर गठित की गई यह समिति न केवल दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करेगी बल्कि उन अफसरों के पीछे छिपे अन्य गुनहगारों की भी जांच करेगी.

वकील सी उन्नीकृष्णन का कहना है कि, ‘यह एक ऐतिहासिक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में समिति गठित करके वैज्ञानिक नंबी नारायणन के साथ न्याय किया है. यह समिति नंबी की गिरफ्तारी में शामिल अफसरों की भूमिका की जांच करेगी. समिति यह जानने की भी कोशिश करेगी कि क्या नंबी की गिरफ्तारी में अफसरों के अलावा कुछ अन्य लोग तो शामिल नहीं थे. इसके बाद ही अदालत तय करेगी कि क्या कार्रवाई की जानी चाहिए.’

इसरो जासूसी कांड के चलते केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरण को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद स्वर्गीय करुणाकरण के रिश्तेदारों के लिए भी उम्मीद की किरण जगी है. परिवार को यकीन है कि, अब उन लोगों के नाम उजागर हो सकते हैं जिनकी साजिश के चलते करुणाकरण को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

करुणाकरण की बेटी पद्मजा वेणुगोपाल का कहना है कि, इस मामले में इंसाफ तभी पूरा होगा, जब पर्दे के पीछे रहकर साजिश रचने वाले राजनेताओं के चेहरे बेनकाब होंगे. पद्मजा ने आगे कहा कि, अगर उन्हें समिति के सामने पेश होने का मौका मिला, तो वह इस मामले में शामिल सभी साजिशकर्ताओं के सिलसिलेवार ब्योरे देगी.

केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) की पदाधिकारी पद्मजा वेणुगोपाल के मुताबिक, ‘अगर मुझे समिति के सामने पेश होने का मौका नहीं दिया गया, तो मैं कानूनी सहारा लूंगी. क्योंकि मैं चाहती हूं कि मेरे पिता की आत्मा न्याय को महसूस करे. मैं उस वक्त अपने पिता के साथ थी, जब उनका नाम इस जासूसी कांड में घसीटा गया था. मैं उन सभी लोगों को जानती हूं जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर यह पूरी साजिश रची. उन लोगों ने कठपुतली की तरह कुछ पुलिसवालों का इस्तेमाल किया और उन्हें अपने इशारों पर नचाकर साजिश को अंजाम दिया. मैं उन साजिशकर्ताओं के नाम का खुलासा समिति के सामने करुंगी.’

वैज्ञानिक नंबी नारायणन का राजनीति से ज्यादा वास्ता नहीं रहा है. यही वजह है कि उन्हें इसरो जासूसी कांड में राजनीति साजिश नजर नहीं आती है. नंबी नारायणन को इस मामले में बड़ी ताकतों के शामिल होने का शक है. उन्होंने पिछले साल प्रकाशित अपनी आत्मकथा 'ओरमाकालुदे ब्रह्मांडपदम' (ऑर्बिट ऑफ मेमोरीज) में इस मामले की साजिश में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ होने का आरोप लगाया है.

नंबी नारायणन ने आरोप लगाया कि, साजिश की योजना क्रायोजेनिक रॉकेट के विकास में भारत की तीव्र प्रगति को रोकने के लिए बनाई गई थी. नंबी की गिरफ्तारी के समय इसरो की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में क्रायोजेनिक रॉकेट सबसे ऊपर थी. नंबी नारायणन ने अपनी आत्मकथा में दावा किया है कि, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) का एक अफसर अमेरिकी जासूसी एजेंसी के संपर्क में था. नंबी ने उस आईबी अफसर के नाम का भी खुलासा किया है.

नंबी नारायणन के मुताबिक, रतन सहगल नाम के जिस अफसर की अध्यक्षता में आईबी की टीम ने जासूसी कांड की जांच की थी, उस अफसर के इसरो में काम करने वाली सीआईए की एक महिला जासूस के साथ घनिष्ठ संबंध थे. सीआईए से लिंक के चलते ही रतन सहगल को आईबी ने नौकरी से निकाल दिया था.

ये भी पढ़ें: बेटी-दामाद की बगावत रामविलास पासवान के लिए चुनावी मुसीबत न बन जाए

इसरो जासूसी कांड में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की भूमिका सराहनीय रही. सीबीआई ने ही इस पूरे मामले का कच्चा चिट्ठा खोला. सीबीआई ने पाया कि आईबी ने बेकसूर वैज्ञानिकों को बेहद रहस्यपूर्ण तरीके से गिरफ्तार किया था. अदालत में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में एजेंसी ने कहा कि, आईबी की टीम ने गैरपेशेवराना तरीके से काम किया था.

हालांकि आईबी के अफसरों ने पूछताछ के लिए आरोपियों को हिरासत में लिया था, लेकिन पूछताछ में क्या खुलासे हुए इसकी जानकारी राज्य पुलिस के पास नहीं भेजी गई थी. आईबी के जिन लोगों ने पूछताछ के दौरान नंबी नारायणन को टॉर्चर किया था, उन्होंने पूछताछ की रिपोर्ट तक जमा नहीं की थी. जबकि ऐसा करना कानूनन अनिवार्य है.

भारत में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में हुई देरी

चार अन्य आरोपियों की पूछताछ वाली रिपोर्टों में न तो किसी आईबी अफसर के हस्ताक्षर हैं और न ही उन पर कोई तारीख दर्ज है. ऐसा आरोपियों से पूछताछ करने वाले आईबी अफसरों की पहचान छुपाने के मकसद से किया गया था. उन्होंने आरोपियों के बयान की पुष्टि भी नहीं की थी. सीबीआई ने अपनी जांच में पाया कि, अगर खुफिया एजेंसी ने ऐसा किया होता, तो उससे न सिर्फ पूरे मामले से धुंध छंट जाती बल्कि वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा को भी बचाया जा सकता था.

नारायणन का मानना है कि, इस मामले की साजिश में सीआईए पर शक करने के लिए मजबूत आधार था. क्योंकि क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिए रूस के साथ समझौते के भारत के कदम से अमेरिका परेशान था. दरअसल भारत ने 1991 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लेवकॉसमॉस से सात क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन और उनके साथ प्रौद्योगिकी के पूर्ण हस्तांतरण का करार किया था. लेकिन अमेरिका ने इसरो और ग्लेवकॉसमॉस पर प्रतिबंध लगाकर उस समझौते को नाकाम कर दिया था.

नंबी नारायणन के मुताबिक, ‘अगर यह समझौता परवान चढ़ गया होता, तो इसरो 15 साल पहले क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित कर सकता था. लेकिन भारत में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में हुई देरी से अमेरिका और फ्रांस को फायदा हुआ. इन दोनों देशों ने अपने कम विकसित टेक्नोलॉजी वाले क्रायोजेनिक इंजनों को भारत को बेचने की कोशिश की थी. दोनों ही देशों का हाथ इसरो जासूसी कांड में शामिल हो सकता है, या शायद इनमें से कोई भी इस मामले में शामिल न हो. लेकिन इस सच्चाई को खोजने के लिए विस्तृत जांच जरूरी है.’

नंबी नारायणन

नंबी नारायणन का मानना है कि, केरल में उस वक्त सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी के एक गुट ने शायद करुणाकरण को सत्ता से बेदखल करने के लिए जासूसी कांड का राजनीतिक इस्तेमाल किया हो. हालांकि नंबी को लगता है कि, जासूसी कांड की साजिश रचने में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं थी.

नंबी नारायणन ने कहा कि, ‘देश हित के लिए यह जरूरी है कि, झूठे केस की साजिश रचने वाले का पता लगाया जाए. साथ ही इस बात की भी पड़ताल की जाए कि उनका उद्देश्य क्या था. क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में देरी के चलते हमें अबतक लाखों डॉलर का नुकसान हो चुका है.’

नंबी नारायणन का कहना है कि उनकी प्राथमिकता मुआवजा पाना नहीं थी. हालांकि उन्होंने माना कि बेकसूर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने और उसे बर्बाद करने वाले अफसरों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए, ताकि जांच और खुफिया एजेंसियों में बेलगाम होकर काम करने वाले लोगों को सबक मिले.

नंबी नारायणन ने आगे कहा, ‘पुलिसवालों को लगता है कि वह कुछ भी कर सकते हैं, किसी को भी ठिकाने लगा सकते हैं. उनका यह रवैया बदलना चाहिए. मुझे यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लॉ एनफोर्समेंट मशीनरी (कानून प्रवर्तन संस्थानों) की मानसिकता को बदलने में मदद मिलेगी.’

'मैं पिछले 24 सालों से इस केस के लिए दौड़ता रहा हूं'

सीबीआई ने केरल के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सिबी मैथ्यू और दो रिटायर्ड पुलिस अधीक्षक (एसपी) के जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है. यह तीनों पुलिस अफसर ही वैज्ञानिकों की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थे. सिबी और विजयन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. लेकिन जोशुआ ने कहा कि, वैज्ञानिक नंबी नारायणन की गिरफ्तारी में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. जोशुआ के मुताबिक उन्होंने केवल केस डायरी बनाई थी.

नंबी नारायणन ने ऐलान किया है कि अब उनकी लड़ाई खत्म हो गई है. नंबी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि, ‘मैं पिछले 24 सालों से इस केस के लिए दौड़ता रहा हूं. अब मुझे कुछ समय अपने परिवार के साथ बिताना है. इसलिए मैं इस अध्याय को बंद कर दूंगा.’