view all

लाभ का पद: मणिपुर में भी ‘आप’ सा मामला, लेकिन मजे में चलेगी BJP सरकार

अब सवाल है कि क्या केंद्र सरकार दिल्ली की तरह मणिपुर के भी 12 विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाएगी? शायद नहीं

Ravi kant Singh

दिल्ली के 20 विधायक अयोग्य करार दिए गए हैं. राष्ट्रपति ने इसकी अनुशंसा कर दी है. हालांकि मामला हाई कोर्ट में है, लेकिन सवाल है कि आगे क्या होगा? सवाल यह भी है कि दिल्ली की इस घटना का कहां और कैसा असर होगा. उधर दिल्ली की आप सरकार ने केंद्र पर ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया है कि ‘बदले की भावना’ के तहत सरकार गिराने की कोशिश हो रही है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने तो चुनाव आयोग तक को घेर लिया और उसपर ‘तरफदारी’ का आरोप लगाया.

इतने कुछ के बाद सियासी हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या चुनाव आयोग वहां के संसदीय सचिवों को भी ‘लाभ का पद’ मामले में लपेटेगा जहां बीजेपी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सरकार है?


ये भी पढ़ें: आप के अयोग्य विधायकों ने वापस ली हाई कोर्ट से अर्जी

दिल्ली पहला राज्य नहीं है जहां ‘लाभ का पद’ मामला फंसा हो. देश के लगभग 11 राज्य ऐसे हैं जहां के उच्च न्यायालयों में संसदीय सचिवों का मामला किसी न किसी रूप में लटका है. लेकिन उन राज्यों में चुनाव आयोग ने कोई अंतिम फैसला इसलिए नहीं सुनाया क्योंकि मामला अगर कोर्ट के अधीन है तो आयोग को फरमान सुनाने का कोई तुक नहीं बनता.

नजराना बनेगा कोर्ट का फैसला

दिल्ली की जहां तक बात है तो सबकी निगाहें अब कोर्ट के फैसले पर हैं. कोर्ट जो भी फैसला लेगा, वह कई राज्यों के लिए यह नजराना साबित होगा. दिल्ली के बाद मणिपुर ऐसा राज्य है जहां की राजनीति पर कोर्ट के फैसले का व्यापक असर होने वाला है. नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्य हैं जहां संसदीय सचिवों का पचड़ा फंसा है, लेकिन मणिपुर का मामला कुछ खास है.

मणिपुर में चुप है बीजेपी

मणिपुर का मामला इसलिए अहम है क्योंकि यहां बीजेपी समर्थित सरकार में 12 संसदीय सचिव हैं. अगर दिल्ली की तरह यहां भी हुआ तो कायदे से 12 विधायकों को अयोग्य करार देना चाहिए. अगर 12 विधायक अयोग्य करार दिए जाते हैं तो इस छोटे से प्रदेश की सरकार अल्पमत में आ जाएगी. नतीजतन संवैधानिक संकट की हालत पैदा होगी.

यहां फरवरी 2017 में हुए चुनाव में बीजेपी को 21 सीटें मिलीं. लेकिन आज उसके विधायकों की कुल संख्या 31 तक पहुंच गई है क्योंकि 9 कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी की ओर पाला बदल लिया है. दूसरी ओर कांग्रेस है जो 2017 में जहां 28 सीटों पर थी, आज उसके विधायकों की संख्या घटकर 19 रह गई है. अन्य कई पार्टी के नेताओं ने बीजेपी को समर्थन दिया है.

अब सवाल है कि क्या चुनाव आयोग और राष्ट्रपति दिल्ली की तरह मणिपुर के भी 12 विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाएंगे? कतई नहीं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो 12 विधायकों के अयोग्य होते ही मणिपुर की सरकार अल्पमत में आ जाएगी क्योंकि यहां की असेंबली 41 विधायकों की है जिसमें स्पीकर भी शामिल हैं. बहुमत के लिए कुल 31 विधायकों की संख्या होनी चाहिए, जबकि 12 घटने के बाद यह संख्या 29 पर सिमट जाएगी. मौजूदा परिस्थिति में चुनाव आयोग या राष्ट्रपति ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे केंद्र की बीजेपी सरकार पर कोई खराब असर पड़े.

अमन-चैन के लिए चुप हुई बीजेपी

जैसा कि सभी जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसदीय सचिव के पदों को ‘लाभ का पद’ के तहत असंवैधानिक मानता है. लेकिन मणिपुर का मामला देखकर सरकार शायद सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कान नहीं देती, या नहीं देना चाहती. नहीं तो अबतक यहां के विधायकों पर भी गाज गिरने की तैयारी हो जाती.

ये भी पढ़ें: 2019 की तैयारी में जुटी बीजेपी जीत के लिए महायज्ञ करा रही है?

इसको लेकर जानकार एक अलग थीसिस दे रहे हैं. जानकारों का मानना है कि केंद्र सरकार अगर मणिपुर के मामले को हल्के में ले रही है तो इसका कारण है कि वहां सरकार गिरती है तो उथल-पुथल की हालत पैदा होगी. अशांति छाने का भी खतरा है, जबकि बहुत मुश्किल से केंद्र ने कई दौर की वार्ता कर यहां अमन-चैन कायम कराया है.

तब क्या करेगी कांग्रेस

मणिपुर हाईकोर्ट

अगर बीजेपी का यह मामला चुपके से दबता दिख रहा है तो क्या कांग्रेस भी इसे दबने देगी? कुछ ऐसे ही संकेत हैं क्योंकि कांग्रेस यहां राजनीतिक रूप से इतनी कमजोर हो गई है कि उसे विधायकों को अयोग्य करार दिला देने का माद्दा नहीं बचा. कांग्रेस फिलहाल इस मामले को बेबसी में देख सकती है. कांग्रेस इतना जरूर कर सकती है कि मणिपुर बीजेपी के मामले को नैतिक आधार पर उठाए और लोगों तक ले जाए. लेकिन इसके साथ एक समस्या यह है कि उसने भी अपने राज में कई संसदीय सचिव बनाए थे. यह अलग बात है कि उस वक्त सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया था.

अयोग्य नहीं कराएगी बीजेपी

मणिपुर के बीजेपी विधायक अगर अयोग्य घोषित नहीं होते हैं तो यह मामला कोर्ट से टसल का बन जाएगा. विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने का मतलब होगा कोर्ट की अवहेलना. और ऐसा कोई आयोग या पार्टी नहीं चाहेगी.

इसलिए दिल्ली की तरह मणिपुर का मामला नहीं होगा और यहां की बीजेपी सरकार मजे में चलेगी.