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विकास के जमीन में राजनीति की रेत भरने से बचना सिखाती है हैदराबाद मेट्रो

हैदराबाद मेट्रो रेल को 28 नवंबर को पीएम मोदी हरी झंडी दिखाएंगे लेकिन करीब 400 साल पुराने हैदराबाद शहर में मेट्रो रेल का भविष्य अभी भी अंधेरे में लटका हुआ है

Sandhya Ravishankar

एक दशक के उतार चढ़ाव के बाद, पीपीपी (प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप) से बनी देश की पहली ऐलिवेटिड मेट्रो रेल आखिरकार बन कर तैयार हो गई है. एचएमआरएल के एमडी एनवीएस रेड्डी ने कहा, ‘इससे न केवल निजाम के शहर में आने जाने का तरीका बदलेगा बल्कि लोगों के रवैये में भी बदलाव देखने को मिलेगा.'

इस मेट्रो रेल को 28 नवंबर को हरी झंडी दिखाया जाना तय हुआ है. एलएडंटी एमआरएच के चेयरमैन एसएन सुब्रहमण्‍यम, एमडी शिवानंद निम्‍बार्गी और उनकी कोर टीम के लिए यह बहुत सुकून भरी बात है. इन लोगों ने तकरीबन एक दशक से बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं. जिनकी वजहों में लगातार होने वाले राजनीतिक हस्‍तक्षेप, सामाजिक कार्यकर्ताओं की वजह से देरी, सार्वजनिक हित याचिकाएं और लागत में बढ़ोतरी शामिल हैं.


एलएडंटी एमआरएच के प्रतिनिधि ने कहा, ‘भगवान का शुक्र है कि गाड़ी अब पटरी पर चलने को तैयार है’. इस कंपनी को इस मेट्रो के निर्माण का काम मिला है और उसने परियोजना की लागत का करीब 90 फीसदी खर्च किया है जिसे अगर रुपए में देखें तो यह 13,000 करोड़ से 16,375 तक बैठता है.

एलएडंटी एमआरएच ने तेलंगाना सरकार की कंपनी हैदराबाद मेट्रो रेल (एमएमआर) और भारत सरकार के साथ मिल कर इस योजना को अमली जामा पहनाया है.

कंपनी जरा इस बात भी जरा गमज़दा है कि उसको काम तो 2012 में मिला जब राज्‍य में कांग्रेस के मुख्‍यमंत्री किरन कुमार रेड्डी की सरकार थी पर हकीकत में वास्‍तविक काम तभी परवान चढ़ सका जब 2014 में तेलंगाना का गठन हुआ. लेकिन मेट्रो के रास्‍ते में मोड़ों और उसे दोबारा तय करने को लेकर उठे मुद्दों को मौजूदा तेलंगाना राष्‍ट्र समिति (टीआरएस) सरकार के साथ मिलकर हल करने के बाद भी कंपनी तय हुये 72 किलोमीटर में से 30 किलोमीटर का ही फासला तय कर सकी जिससे उन्‍हें काम पूरा करने के लिए दो साल की मोहलत की और जरूरत हुई.

टीआरएस का रोड़ा

परिदृश्‍य में बदलाव 2014 में तब आया जब टीआरएस सरकार ने परियोजना की कमान संभाली और इसके मुख्‍यमंत्री के. चंद्रशेखर ने ऐलान कर दिया कि हैदाराबाद में 200 किलोमीटर लंबी मेट्रो होगी और वे इसे ऐतिहासिक इलाकों जैसे विधानसभा और सुल्‍तान बाज़ार से गुजरना देना नहीं चाहते. इतना ही नहीं उनके राजनीतिक सहयोगी एमआईएम ने भी मेट्रो के रास्‍ते में पुराने शहर से आड़ा तिरछा होकर गुजर रहे 12 ऐतिहासिक स्‍थानों को लेकर ऐतराज जताते हुए इस रूट को दोबारा तय करने की मांग की.

एलएडंटी समूह चेयरमैन एएम नाइक ने केसीआर को इस मसले को हल करने के लिए कई ख़त लिखे और इसके कानूनी पहलुओं को लेकर चेतावनी तक दे डाली. फरवरी 2017 का खत इस बारे में सरकार के साथ हुए भारी-भरकम पत्राचार को बताता है कि परियोजना को लागू करने में आई चुनौतियों से कैसे पार पाया गया.

नाइक के खत में कहा गया कि एलएडंटी से परियोजना की जिम्‍मेदारी ले ली जाए क्‍योंकि तेलंगाना सरकार की ओर से ‘अजीबोगरीब’ शर्तें लाद दी गई हैं और विपरीत आ‍र्थिक हालातों ने इसकी लागत को बहुत बढ़ा दिया है जिससे इस परियोजना अब काम करने लायक नहीं बची है.

सितंबर महीने में मीडिया से बात करते हुए एलएडंटी हैदराबाद मेट्रो रेल के मुख्‍य कार्यकारी वीबी गाडगिल ने कहा, ‘परियोजना को बंद करने की बात वाले पत्र को समाचारपत्रों ने अनुचित ढंग से बताया है, ये केवल एक इशारा है न कि अंतिम फैसला’.

एलएडंटी ने कथित तौर पर सरकारी हस्‍तक्षेप और मेट्रो के गलियारों और रास्‍तों को अंतिम रूप देने में देरी की आलोचना की. राजनीतिक रूप से केंद्र जिसे लागत का 10 फीसदी या 1458 करोड़ रुपए वहन करना था वो भी तेलंगाना सरकार के ढीले ढाले रवैये के कारण कदम पीछे खींचता सा दिख रहा था. ये भी आरोप है कि केंद्र ने अंतिम तौर पर चेतावनी दी थी कि तेलंगाना सरकार के अस्‍पष्‍ट रवैये के कारण दूसरी परियोजनाओं में पलीता लग सकता है और आने वाली केंद्रीय सहायता और समर्थन खटाई में पड़ सकता है. एलएडंटी एचएमआर ने एक प्रवक्‍ता ने नाम गुप्‍त रखने के अनुरोध के साथ बताया, ‘हमने चुप्‍पी साधे रखी और अंतत: तेलंगाना सरकार को समझ में आया, साथ ही केंद्र सरकार के हस्‍तक्षेप में भी मदद की’.

इस मामले पर राज्‍य की कैबिनेट में चर्चा हुई और अंत में मुख्‍यमंत्री कार्यालय जो कभी ‘एलएडंटी की धमकी और काम छोड़ने’ वाले पत्र को शुरू में लीक कर चुका थे, वो समझौते पर आ गया और उसने रास्‍तों को दोबारा तय करने की मांग छोड़ दी और कंपनी से अनुरोध किया कि परियोजना को निर्धारित समय में पूरा किया जाए. लेकिन तब तक कंपनी के दो बेशकीमती साल खत्‍म हो चुके थे और तेलंगाना सरकार ने एलएडंटी की इस मांग को लगातार अनसुना ही रखा कि इसकी अंतिम तारीख को एक या दो साल के लिए बढ़ाया जाए. मुख्‍यमंत्री जिनके पास उद्योग विभाग भी था, उन्‍होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हैदराबाद में चलने वाले वैश्विक सम्‍मेलन मे मेट्रो को प्रदर्शित किया जाए’.

संकटों की सुरंग

सन 2000 की शुरूआत सूचना प्रौद्योगिकी का जो विस्‍फोट हुआ उसका समुचित दोहन करने के लिए शहरी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत थी और यह चंद्रबाबू नायडू सरकार के बनाए ‘विजन 2020’ दस्‍तावेज में मेट्रो रेल, बाहरी रिंग रोड और पीवी एक्‍सप्रेस के रूप में हिस्‍सा बने. नायडू सरकार ने जमीन अधिग्रहण को लेकर तैयारी करते हुए वक्‍फ़ और धर्मार्थ विभाग से विकास के जमीन ली और मेट्रो रेल की लागत 10 हजार करोड़ होने का अनुमान लगाया.

लेकिन उनके बाद आये वाईएस राजशेखर रेड्डी का ध्‍यान कल्‍याणकारी योजनाओं पर अधिक था जिससे मेट्रो रेल को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया. रेड्डी जब दोबारा सत्‍ता में आए तो उन्‍होंने एक बार फिर मेट्रो परियोजना पर ध्‍यान देना शुरू किया.

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साल 2008 में पीपीपी परियोजना की पहला ठेका मायटस को दिया गया, जो सत्‍यम समूह की कंपनी थी. सत्‍यम घोटाले के उजागर होने और इसके संस्‍थापक रामलिंगा राजू के इसमें शामिल होने की बात सामने आने और मायटस की धन जमा करने की असफलता के बाद इसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया गया. अगले साल वाईएसआर की हेलीकॉप्‍टर दुर्घटना में मौत हो गई और राज्‍य में पसरी राजनीतिक अनिश्चितता से मेट्रो रेल परियोजना पर एक बार फिर ठंडा पानी पड़ गया.

अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री एन किरन रेड्डी ने दोबारा इसे शुरू किया और 2010 में इसका ठेका एलएडंटी को 12,132 करोड़ रूपये में दिया गया और शुरूआत जून 2012 से करके पूरा करने का काम 2017 तक तय हुआ. उस समय तेलंगाना आंदोलन तेज हुआ और इसके कामकाज पर असर पड़ा.

अंतत: 2014 को इसके अंतिम मंजूरी तब मिली जब नए राज्‍य तेलंगाना का गठन हुआ और सरकार चाहती थी कि ये परियोजना तीन सालों में पूरी हो जाए.

इस समय हैदराबाद मेट्रो रेल को लेकर 200 से अधिक अदालती मामले हैं जिनमें 12 जनहित याचिकाएं शामिल हैं (इनमें से कुछ टीआरएस समर्थकों ने 2010 में मेट्रो के लिए वक्‍फ़ जमीन अधिग्रहण के खिलाफ दायर कीं.)

एचएमआरएल के अधिकारियों और एलएडंटी का दावा है कि काम ने गति पकड़ी है और इस परियोजना के शुरुआती हिस्‍से के 72 किलोमीटर दिसंबर 2018 तक पूरी तरह से परिचालन में आ जाएगा.

अगर सरकार आगे के गलियारे को लेकर कोई रुचि रखती है तो परियोजना पर इसे बनाने वाले के साथ दोबारा बातचीत करनी होगी

तस्वीरः न्यूज18

हैदराबाद मेट्रो के चरण

एलएडंटी एमआरएच मियांपुर-अमीरपेट-नागोल के बीच 24 स्‍टेशनों पर 15 मिनट के अंतराल में छह डिब्‍बों वाली ट्रेन चलाने के लिए तैयार है और इसकी क्षमता 2000 यात्रियों की होगी. यह गलियारा 28 नवम्‍बर को शुरू हो जाएगा. इसमें 400 करोड़ रुपए की लागत से 670 स्‍वचालित सीढि़यां लगाने की भी योजना है. तेलंगाना सरकार ने प्रधानमंत्री के साथ यात्रा करने के लिए इवांका ट्रंप को भी आमंत्रित किया है पर अमेरिकी सरकारी अधिकारियों ने अभी तक इसकी स्‍वीकारोक्ति नहीं दी है.

एलएडंटी और एचएमआरएल के अनुमान के अनुसार मियांपुर-एलबी नगर (29 किलोमीटर) के पहले गलियारे की यात्रा का समय 45 मिनट होगा जबकि सड़क से जाने पर इसमें 144 मिनट तक का समय लगता है. जुबली हिल्‍स से फलकनुमा वाले दूसरे गलियारे (15 किलोमीटर) में 22 मिनट लगेंगे ज‍बकि सड़क मार्ग से जाने पर 140 मिनट का वक्‍त लगता है. इसी तरह तीसरे गलियारे (28 किलोमीटर) को पार करने में केवल 39 मिनट का समय लगेगा जबकि सड़क से ये दूरी 126 मिनट में पूरी होती है.

पिछले साल सितंबर में कांग्रेस नेताओं ने कार्यस्‍थल का दौरा करना चाहा लेकिन पुलिस ने उन्‍हें मेट्रो अधिकारियों और सरकार के निर्देश पर रोक दिया. तेलंगाना विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष मोहम्‍मद अली शब्‍बीर ने कहा कि टीआरएस-एमआईएम गठबंधन ने इसमें जानबूझ कर देरी की है क्‍योंकि वे 2016 में हैदराबाद नगर पालिका के चुनावों के मद्देनजर पुराने शहर के मुसलमान मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्‍होंने आरोप लगाया, ‘टीआरएस और एमआईएम दोनों ने खुद को हैदराबाद की विरासत के संरक्षण पर नाम पर खेल खेला और एलएडंटी के काम में रोड़ा अटकाया.’

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शब्बीर चाहते हैं कि मेट्रो के उद्धघाटन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हस्‍तक्षेप करते हुये पुराने शहर के साढ़े पांच किलोमीटर के इमलीबान से फलकनुमा के गलियारे को जल्‍द से जल्‍द पूरा करने को आश्वस्त करें ताकि मुसलमान समुदाय की तरक्‍की ओर विकास हो सके. उन्‍होंने कहा, ‘एमआईएम के राजनीतिक तत्व, जो अपने (मुस्लिम) विकास और युवाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण से पुराने शहर में डरे हुए हैं, मेट्रो का विरोध कर रहे हैं.'

कांग्रेस ने टीआरएस और एमआईएम पर आरोप लगाया है कि उनकी राजनीतिक हीलाहवाली के परिणामस्वरूप परियोजना लागत में 4000 करोड़ रुपए की भारी भरकम बढ़ोतरी हो गई और वो इसके लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, ‘अब हैदराबाद के लोग जो मेट्रो रेल के निर्माण के दौरान यातायात जाम के कारण पहले से काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, उन्हें अब ऊंचे शुल्‍कों की मार सहनी है.'

निर्माताओं को चाहिए डेडलाइन में रियायत

एलएडंएटी एचएमआर अब इस डेडलाइन में रियायतों के साथ एक या दो साल की बढ़ोतरी चाहते हैं ताकि इस पीपीपी में भारी लागत लगाने का लाभ उन्‍हें मिल सके. उनका पहले से ही अनुमान था‍ कि 40 प्रतिशत राजस्‍व यात्री किराए से आयेगा और 50 फीसदी मेट्रो स्‍टेशन के मॉल और दुकानों से जबकि बाकी का दस फीसदी विज्ञापनों से होने वाली आय से मिलेगा.

यह 30 सालों तक यानी 2027 तक चलेगा. एलएडंटी के प्रवक्‍ता ने कहा, ‘अब तब एलएडंटी ने परियोजना में लागत का 90 फीसदी लगा दिया है जो कि 13 हजार करोड़ रुपए है और अंतिम चरण में कुछ और पैसा लगाया जाएगा.

तेलंगाना सरकार ने जमीन के लिए केवल 300 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है और भारत सरकार 1458 करोड़ रुपए या 10 फीसदी रकम दे रही है. एलएंडटी एमआरएचएल के मुख्य वित्तीय अधिकारी जे रविकुमार ने कहा, ‘अब तक हमने 9,000 करोड़ रुपए निवेश किए हैं जिसमें इक्विटी के रूप में वीजीएफ के 2700 करोड़ रूपये शामिल हैं और बाकी कर्ज है.'

अब गेंद तेलंगाना सरकार के पाले में भी है, क्योंकि अब एलएडंटी ने निर्माण और रियायत दोनों के लिए समय सीमा के विस्तार को सशर्त बना दिया है. रियायत 35 साल के लिए होगी जिसमें पांच साल की निर्माण अवधि शामिल है, जो जून 2017 में समाप्त हो गई. निर्धारित 72 किलोमीटर में से केवल 30 किलोमीटर ही पूरा हुआ है और 42 किलोमीटर निर्माण कार्य बचा है, जिसमें का 78 फीसदी पहले से ही पूरा हो चुका है. मुख्‍य सचिव एसपी सिह ने कहा, ‘निर्माणकर्ता ने सरकार से अनुरोध किया है कि एक या दो साल की मोहलत दी जाए और इस पर मुख्‍यमंत्री के चंद्रशेखर राव विचार कर रहे हैं’.

लेकिन अभी भी सुरंग के अंत में पर्याप्त रोशनी नहीं है. मेट्रो रेल के पुराने शहर के गलियारे के निर्माण में एलएडंटी के लिए मुश्किल काम होगा. वजह ये है कि इसमें 15 सूचीबद्ध विरासत संरचनाओं सहित 145 विरासत संरचनाओं की पहचान की गई है, हालांकि बिल्डरों का तर्क है कि यह केवल नौ विरासत संरचनाओं से गुजरता है.

'फोरम फॉर बैटर हैदराबाद' के संयोजक वेद कुमार, जिन्‍होंने इस मुद्दे पर पीआईएल दायर की है, वे चाहते हैं कि दिल्ली और बंगलौर की तर्ज मेट्रो खंभों पर चलने के बजाए सुरंगों में चले ताकि इस विरासत टाउनशिप और स्मारकों को बचाया जा सके. बिल्‍डरों का कहना है, ‘इससे हर एक किलोमीटर पर 600 से 700 करोड़ रुपए का अधिक खर्च आएगा.'

करीब 400 साल पुराने हैदराबाद शहर में मेट्रो रेल का भविष्य अभी भी अंधेरे में लटका हुआ है. यह परियोजना बताती है कि क्‍यों विकास, वोट और विरासत की राजनीति को आपस में मिलाना नहीं चाहिए.