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हिल काका की खामोशी में फिर से सिर उठाने को तैयार मिलिटेंसी, गुज्जरों ने आतंकियों से निपटने के लिए मांगी नई बंदूकें

कश्मीर के दूसरे इलाकों की तरह हिल काका क्षेत्र में भी खुफिया तरीके से भारत और सेना के खिलाफ एक माहौल तैयार किया जा रहा है

Kinshuk Praval

17 अप्रैल, 2003 की एक तारीख थी वो जब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरू हुआ था. इसका नाम था ‘ऑपरेशन सर्प विनाश’. इस ऑपरेशन के तहत पीर पंजाल की पहाड़ियों पर हिल काका इलाके में डेरा डाले तकरीबन 100 आतंकी मार गिराए गए तो  700 पाकिस्तानी आतंकी खदेड़े गए. गुज्जरों और बकरवालों की ही वजह से ‘ऑपरेशन सर्प विनाश’के जरिए मुश्किल और नामुमकिन सा दिखने वाला मिशन कामयाब हो सका. हिल काका के इलाके के गांवों की विलेज डिफेंस कमिटी ने सेना का जोरदार साथ दिया था.

हिल काका क्षेत्र के गांवों में बसे ये गुज्जर और बकरवाल बॉर्डर पर फ्रंट लाइन डिफेंस की तरह नजर आते हैं. पीर पंजाल की पहाड़ियों पर अपनी बकरी और भेड़ चराने वाली प्रजातियां पहाड़ों के दर्रों में छिपे आतंकियों पर भी नजर रखती हैं. भारत की हिफाजत के लिए इन गांवों के लोग अपने सीने पर बंदूक की गोलियां झेलने जज्बा दिखा चुके हैं. लेकिन 15 सालों बाद हिल काका क्षेत्र के हालात बदले-बदले से नजर आ रहे हैं.


आस-पास के गांवों में संदिग्ध गतिविधियों का शक

मढ़ा गांव में विलेज डिफेंस कमिटी का नेतृत्व करने वाले गुज्जर हाजी ताहिर फैज़ल चौधरी को ये अंदेशा सता रहा है कि हिल काका में मिलिटेंसी फिर से सिर उठा सकती है. ताहिर चौधरी को हिल काका के आसपास के गांवों में संदिग्ध गतिविधियों का शक है.

फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में ताहिर फैज़ल चौधरी ने बताया कि कश्मीर के दूसरे इलाकों की तरह हिल काका क्षेत्र में भी खुफिया तरीके से भारत और सेना के खिलाफ एक माहौल तैयार किया जा रहा है. उनके मुताबिक हिल काका क्षेत्र के  बेरोजगार युवकों को भारतीय सेना और भारत के खिलाफ बरगलाने की कोशिशें हो सकती हैं और ऐसे में गांव के युवा बेरोजगार लड़कों को भारत विरोधी ताकतों के हाथ की कठपुतली बनने से रोकने की सख्त जरूरत है.

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ताहिर फैज़ल चौधरी की मांग है कि 15 साल पहले बनाई गई विलेज डिफेंस कमिटी को पुनर्गठित कर मजबूत किया जाए. साथ ही युवाओं की नई टीम तैयार कर उन्हें आतंकियों के खिलाफ लड़ने के लिए ट्रेनिंग और हथियार भी दिए जाएं. ताहिर चौधरी के मुताबिक पंद्रह साल पहले हिल काका क्षेत्र की विलेज डिफेंस कमिटी को तकरीबन दो सौ बंदूकें दी गई थीं जिनका अब समय के साथ बदलने का वक्त आ चुका है.

बकरवाल समुदाय के लोग.

पहले बाहर से था खतरा, अब घाटी के भीतर ही भटक रहे हैं युवा

ताहिर फैज़ल चौधरी की इस फिक्र को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. घाटी में आतंक में बड़ा बदलाव आया है. पहले एलओसी पार से घाटी में घुसपैठ कर आतंकी हिंसा का तांडव फैलाते थे. लेकिन अब घाटी के भीतर से ही भटके युवाओं में एके-47 उठाने का क्रेज देखा जा रहा है. हाल के साल में बड़ी तादाद में स्थानीय युवा आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं. इन युवाओं के लिए मुठभेड़ में मारा गया आतंकी बुरहान वानी पोस्टर बॉय है. ऐसे युवाओं को सेना के खिलाफ भड़काने और आतंक की एके-47 थामने के लिए बरगलाना आसान दिखता है. एक खास रणनीति के जरिए युवाओं को पहले पत्थरबाजों की भीड़ में शामिल किया जाता है तो बाद में उन्हें बंदूक थमाकर ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान और पीओके के कैंपों में भेज दिया जाता है.

जम्मू-कश्मीर के दूसरे इलाकों की ही तरह हिल काका में भी इसकी सुगबुगाहट दिखाई देने लगी है. एक सोची-समझी रणनीति के तहत स्थानीय युवाओं को भारतीय सेना के खिलाफ भड़काने और उकसाने के लिए हर तरीका अख्तियार किया जाता रहा है. इसी जानी-पहचानी दहशत की वजह से ताहिर फैज़ल चौधरी को भी ये अंदेशा है कि कहीं मढ़ा गांव के युवा भी राह से भटककर बुरहान वानी न बन जाएं. तभी वो ये चाहते हैं कि गांव के लड़कों को लेकर विलेज डिफेंस कमिटी का नया स्काउट बनाया जाए.

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लेकिन इसके अलावा यहां के सियासी हालात पर भी नजर रखना जरूरी है ताकि स्थानीय युवा किसी तंज़ीम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का मोहरा न बन सकें. ताहिर फैज़ल चौधरी चाहते हैं कि घाटी के तमाम सियासी दल हिल काका क्षेत्र के बाशिंदों के साथ मिलकर मौजूदा हालात पर चर्चा करें. बीजेपी, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों के नुमाइंदे इन गांवों का रुख कर ग्रामीणों का भरोसा मजबूत करने का काम करें ताकि भविष्य में दोबारा ये गांव आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह न बन सकें और बाहरी लोग यहां के युवाओं को जिहाद के नाम पर बरगला न सकें.

पीर पंजाल की पहाड़ियां.

आजादी का सब्जबाग दिखाकर पाकिस्तानी आतंकियों ने ली थी गांवों में पनाह

दरअसल, जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में पाकिस्तानी आतंकियों ने ‘आजादी’ का सब्जबाग दिखाया था. नतीजतन, उन्हें पीर-पंजाल की पहाड़ियों से लेकर हिल काका के इलाके के गांवों में सुरक्षित पनाहगाह मिली हुई थी. यहां तक कि इन आतंकियों को हिल काका इलाके के गांवों से नौकरियों के लिए सऊदी अरब गए युवाओं से भी पैसा मिलता था. लेकिन जल्द ही हिल काका के इलाके के गांवों की नींद ‘आजादी’ के दिखाए सपनों से टूट गईं. पाकिस्तान से आए कट्टरपंथी आतंकियों ने न सिर्फ गांव की लड़कियों का यौन शोषण किया बल्कि विरोध करने वालों की हत्या करनी भी शुरू कर दी, जिससे गुज्जर और बकरवाल जाति के लोगों में आतंकियों के खिलाफ गुस्सा भरने लगा.

गांव के ही युवाओं ने आतंकियों के हमले के खिलाफ विलेज डिफेंस कमिटी बनाई. गुज्जर हाजी मोहम्मद आरिफ ने जम्मू पीस मिशन के नाम से आतंकियों के खिलाफ मोर्चा खोला. जिससे नाराज आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी. इसके बाद मोहम्मद आरिफ के भाई ताहिर फैज़ल चौधरी ने बंदूक उठाई और मोर्चा संभाला. ताहिर फैज़ल चौधरी और उनके कई साथी सिर्फ आतंकियों से लोहा लेने के मकसद से ही सऊदी अरब की नौकरी छोड़कर गांव लौटे थे.

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ताहिर फैज़ल चौधरी और गांव के दूसरे युवाओं ने सेना और सुरक्षा बल के साथ मिलकर आतंकियों को खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई. पीर पंजाल की पहाड़ियों में हिल काका पर डेरा डालने वाले 700 आतंकियों के खिलाफ निर्णायक जंग शुरू हुई. इस निर्णायक जंग को ‘ऑपरेशन सर्प विनाश’ का नाम दिया गया था. अब इसी जीत की नायक रही विलेज डिफेंस कमिटी को फिर से मजबूत होने की दरकार है ताकि दोबारा इन इलाकों में आतंकी दहशत सिर न उठा सके.

जिस हिल काका के इलाके की आबो हवा में पंद्रह साल पहले गुज्जरों की गरजती बंदूकों की बारूद को महसूस किया जाता रहा आज वहीं पर पसरी खामोशी में एक दशहत सी महसूस होने लगी है. एक बार फिर से यहां की फिजां में दहशत फैलाने के मंसूबों की सुगबुगाहट सुनी जा रही है. जिस वजह से मढ़ा गांव के लोगों को ये फिक्र सता रही है कि 15 साल बाद इलाके में आतंक फिर से दस्तक तो नहीं दे रहा है कहीं?